इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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सोमवार, 31 अगस्त 2015
बुधवार, 5 अगस्त 2015
शुभ नहीं अशुभ कार्यों को टालते रहो
संस्कृत में एक सुक्ति हैं कि 'शुभस्य शीघ्रम् ,अशुभस्य कलहरणम 'अथार्त्त शुभ कार्य को जितना जल्दी हो सके कर डाले , लकिन अशुभ कार्य को टालते रहे ।यदि हम तत्क्षण किसी की मदद करने के लिए आगे आ जाते हैं तो उसकी मदद हो जाती हैं और एक नेक काम भी ,लकिन वह क्षण बीत गया तो सम्भव हैं हम उस अच्छे कार्य को करने के लिए जीवित ही न रहे अथवा हमारे विचार ही बदल जाये।बहुत सारी बातें हो सकती हैं ,लकिन इतना निश्चित हैं कि यदि हम उस क्षण को चूक गए तो हम किसी नेक काम करने से वंचित रह जायेगे।हमने अपने जीवन में कई बार यह महसूस किया होगा की अक्सर अच्छे कार्य को करने का हम अवसर चूक जातें हैं।तो ठीक ही कहा हैं कि शुभस्य शीघ्रम् अथार्त् शुभ कार्य अथवा अच्छे कार्य को शीघ्र कर लेना चाहिए ।
अशुभस्य कालहरणम् अथार्त् अशुभ अथवा पाप कर्म के लिए शीघ्रता न करें ।अपितु समय निकल जाने दे ।सम्भव हैं कालान्तर में कहीं से सदबुद्धि मिल जाये और हम पाप कर्म करने से बच जाएँ ।आज इस विश्व में ऐसे अणु परमाणु बम मौजूद हैंकि पूरी धरती नष्ट हो जाये पर कुछ लोगो की सदबुद्धि की वजह से हम सब जीवित हैं । वेदव्यास जी ने कहा हैं कि परोपकारःपुण्याय ,पापाय परपीडनम् अथार्त दुसरो की सहायता करना ,परोपकार करना ही सबसे बड़ा धर्म हैं ।और दुसरो को कष्ट पहुँचाना ही अधर्म हैं चाहे वो मानसिक पीड़ा हो अथवा शारीरिक ।इस सन्दर्भ में महाभारत की दो कथा प्रचिलित हैं एक महऋषि गौतम के पुत्र चिरकारी की ,जिन्हे धीरे धीरे कार्य करने की आदत थी जिस वजह से उन्होंने अपने पिता की आज्ञा के बावजूद भी अपनी माँ को नहीं मारा ,और दूसरी गौतम ऋषि को अपनी पत्नी पर क्रोध आया और उन्होंने बिना विचार किये अपने पुत्र को आज्ञा दे दी कि वह अपनी इस दुष्कर्म माता को मार दे ।चिरकारी के धीरे कार्य करने की वजह से व गौतम ऋषि को सदबुद्धि आ जाने के कारण एक बड़ा पाप होने से बच गया ।
इसी कारण कहा गया हैं कि शुभ कार्य को जल्दी कर लेना श्रेयस्कर होता हैं व अशुभ कार्य को टालने में ही भलाई होती हैं ।अतः जीवन में इस नीति का पालन जरूर करना चाहिए ।
जय श्री राधे ।
(कल्याण पत्रिका के सौजन्य से )
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