हे दीनदयालु भगवान सूर्य! मुनि, मनुष्य, देवता और राक्षस सभी आपकी सेवा करते हैं। आप पाले और अंधकार रूपी हाथियों को मारने वाले वनराज सिंह है। किरणों की माला पहने रहते हैं। दोष, दुख, दुराचार और रोगों को भस्म कर डालते हैं। रात के बिछड़े हुए चकवा चकवीयों को मिलाकर प्रसन्न करने वाले, कमल को खिलाने वाले तथा समस्त लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं। तेज,प्रताप, रूप और रस कि आप खानि है। आप दिव्य रथ पर चलते हैं, आपका सारथी (अरुण) लूला है। हे स्वामी! आप विष्णु, शिव और ब्रह्मा के ही रूप है। वेद पुराणों में आपकी कीर्ति जगमगा रही है। तुलसीदास आपसे श्री राम भक्ति का वर मांगता है।