/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: 2020

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मंगलवार, 15 सितंबर 2020

कुसंग, (बुरा संग)

                             कुसंग, यानि बुरा संग
बचपन का सत्संग जीवन भर के लिए लाभदायक होता है। इसी तरह बचपन का कुसंग भी जीवन को बिगाड़ देता है। दिनभर सत्संग में रहो, एक क्षण भी यदि कुसंग मिल गया तो सत्संग का प्रभाव नष्ट हो जाएगा। व्यक्ति के संग का, वेशभूषा का, खानपान का, कुसंग भी हानिकारक है।
          जे राखे  रघुवीर ते उबरे तेहि काल महूँ।।
 प्रभु ही सत्संग देने वाले हैं और कुसंग से बचाने वाले हैं। अतः हरिः शरणं हरिः शरणं । मैं भगवान की शरण में हूं, मैं भगवान की शरण में हूं। बार-बार कहना चाहिए, स्मरण रखना चाहिए।(दादा गुरु श्री गणेशदास भक्त माली जी के श्री मुख से)

सोमवार, 7 सितंबर 2020

कभी सुख कभी दुख भाग्य के अनुसार मिलते हैं


कभी सुख कभी दुख भाग्य के अनुसार मिलते हैं


जो लोग अपने मन को भगवान में लगाते हैं ,वाणी से नाम गुणों का कीर्तन करते हैं। शरीर से मंदिर में सेवा करते हैं वह भाग्यशाली हैं। इन्हीं कामों को प्रेम पूर्वक करते-करते भगवान के रूपों का ह्रदय में साक्षात्कार कर लेते हैं।संसार में प्राणी निरंतर सुखी नहीं रह सकता है। कभी सुख कभी दुख भाग्य के अनुसार मिलते हैं, इनसे घबराना नहीं चाहिए। सच्चाई के साथ व्यवहार करते हुए, किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए ।अपने साथ बुराई करने वाले को भी सज्जन शाप नहीं देते हैं ।ऐसे परोपकारी पर भगवान प्रसन्न रहते हैं। कष्ट के समय भक्तों की परीक्षा होती है। परीक्षा समझ कर बुद्धि को स्थिर करके कष्ट सहन करना चाहिए। इतिहास देखने से पता चलता है कि बड़े-बड़े भक्तों को अवतार काल में परमात्मा को कष्ट सहन करते देखा जाता है। कष्ट काल में भी अपने धर्म का त्याग ना करके जो उपकार करते हैं, वही धन्य हैं। जो करना चाहिए उसे कर्तव्य कहते हैं। वही धर्म भी है अतः शास्त्र एवं बड़ों की सम्मति से जो कर्तव्य है, उसे तत्परता पूर्वक करना चाहिए। अधिकारी शासक को मालिक बनने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। भक्त राजा अपने को राजा नहीं मानते थे। अंबरीश चक्रवर्ती सम्राट थे पर प्रभु की सारी सेवाएं अपने हाथ से ही करते थे। सज्जन तपस्वी स्वंय ही दास होते हैं। किसी को अपना दास नहीं बनाते हैं।अधिकारों को भूल ही जाया जाए तो अच्छा है।
श्री राधे।।
( दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से)
                                                                                           
English translation:----

Sometimes happiness and sometimes sorrow are met according to fate



 Those who fix their mind on God, chant the qualities of the name through speech.  Those who serve in the temple with their bodies are fortunate.  By doing these things with love, we get realization of the forms of God in the heart. A creature cannot remain happy continuously in the world.  Sometimes happiness and sometimes sorrow are found according to fate, one should not be afraid of them.  While dealing with truth, one should not think ill of anyone. Even a gentleman does not curse those who do evil to him. God is pleased on such a beneficiary.  Devotees are tested in times of trouble.  Considering the test, one should stabilize the intellect and bear the pain.  Seeing the history shows that great devotees are seen suffering the divine during the incarnation period.  Blessed are those who do favors by not sacrificing their religion even in times of trouble.  What should be done is called duty.  That is also the religion, so whatever duty is there with the consent of the scriptures and elders, it should be done promptly.  The official ruler should not aspire to be the master.  Devotee kings did not consider themselves kings.  Ambareesh Chakravarti was the emperor but used to do all the services of the Lord with his own hands.  Gentle ascetics are themselves slaves.  Do not make anyone your slave. It is better if the rights are forgotten.
 Shree Radhe..
 (From the mouth of Dada Guru Bhakt Mali Ji Maharaj)

रविवार, 23 अगस्त 2020

हम अपने जीवन में उन्नति कर रहे हैं अथवा अवनति यह हमें कैसे पता लगेगा

   हम अपने जीवन में उन्नति कर रहे हैं अथवा अवनति यह         हमें कैसे पता लगेगा


धार्मिक जीवन में आध्यात्मिक जीवन में हम उन्नति कर रहे हैं अथवा हम नीचे गिर रहे हैं, इस पर भी विचार करना चाहिए। जब भगवत चर्चा, सत्संग प्रिय लगे, भगवान की सेवा पूजा प्रिय लगे, दीन दुखी प्राणियों की सेवा प्रिय लगे, तो समझो कि हम उन्नति की ओर बढ़ रहे हैं। कुसंग में संसारी बातें अच्छी लगे दुष्टों के संग में आसक्ति हो जाए, दूसरों को धोखा देकर, छल कपट से संपत्ति बढ़ाने की इच्छा हो जाए, तो समझो कि हमारी अवनति हो रही है। प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य अवनति से बचकर उन्नति चाहता है। हमारा मन हमारी बुद्धि भगवत सेवा में लग रही है या नहीं, यदि लग रही है तो इसे भगवान की कृपा या प्रेरणा ही समझो। कभी कभी मन की आंखों से प्रभु को सामने खड़ा देखो, कभी बैठे हैं, कभी कुछ कह रहे हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे भगवत का सानिध्य प्राप्त करें। मन में कोई संकट हो व्याकुलता हो तो प्रभु के सामने निवेदन करके निश्चिंत हो जाना चाहिए। जो कुछ भी हो उसे प्रभु की इच्छा मानकर संतुष्ट रहना चाहिए। गुरुदेव की कृपा से शरणागति प्राप्त हुई है। उसका तात्पर्य यह है कि प्रभु हमारे हैं मैं उनका हूं। जिस तरह बच्चे का माता पर, मित्र पर मित्र का, सती साध्वी पत्नी का अपने पति पर प्रेम होता है। अधिकार होता है। उसी प्रकार प्रभु पर प्रेम और अधिकार भक्तों का होता है। ।।जय श्री राधे, जय श्री कृष्णा।।
 (दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से)

मन आपका मित्र भी है और शत्रु भी

                 मन आपका मित्र भी है और शत्रु भी

गीता में प्रभु का कथन है कि अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए अर्थात भवसागर से पार होना चाहिए। यत्न पूर्वक साधन करने से प्रभु कृपा अवश्य करेंगे। मन अपना मित्र है और शत्रु भी है। अपने वश में हुआ मन अपना मित्र है, उसे भजन साधन बनेगा, मित्रता का काम करेगा। विषयी मन, अवश मन,अवश इंद्रियां शत्रु है। यह सब नर्क में गिरा देंगें।अतः मन की ओर से सावधान रहें। हठ करके भजन में लगावे। मन भजन में ना लगे तो भी बिना मन लगे, भजन करने से मन लगने लग जाएगा। सबका मन भगवान में लगे, सब पर प्रभु की कृपा बनी रहे।
 जय श्री राधे
 (परमार्थ के पत्र पुष्प दादा गुरु भक्त माली जी के श्री मुख से)

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

कलयुग बुरा युग नहीं है अगर

कलयुग बुरा युग नहीं है अगर

कलयुग है ऐसा मानकर असत्य, मिथ्या, हिंसा, कपट नहीं करना चाहिए। कलयुग राजा है उसके अधर्म से बचकर उसमें जो गुण हैं उनकी बढ़ाई करनी चाहिए। उसका लाभ उठाना चाहिए। नास्तिक दुष्टों के लिए कलयुग बुरा युग है। आस्तिक भक्तों के, भगवान नाम जपने वालों के लिए यह युग अच्छा है। इसके समान कोई दूसरा युग नहीं है यह बात श्री भागवत, रामायण आदि में बार-बार कही गई है। ज्ञान वैराग्य के साथ प्रभु की भक्ति करनी चाहिए। ज्ञान वैराग्य केवल विरक्त साधु के लिए नहीं है गृहस्थाश्रम में उसकी बड़ी आवश्यकता है।बिना ज्ञान वैराग्य के गृहस्थाश्रम अति दुखदाई है। परिवार के जितने सदस्य हैं वह अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से मिले हैं। अतः उनका प्रेम से पालन करना चाहिए। हमको अच्छा, हमारे मन के अनुकूल यदि कोई पुत्र,स्त्री, भाई आदि नहीं मिले तो उनके दोष नहीं है, वे बुरे नहीं है, हमारी तपस्या पूर्व जन्म का पुण्य ही कम है। ऐसा मानकर संतुष्ट रहना चाहिए ।आग के बिना, बिजली के बिना हमारा काम नहीं चलता है पर यदि हम चुक जाए तो वह हमारे प्राण ले लेंगे।इसी तरह आग बिजली से बचकर हम अपना काम करते हैं। उसी तरह से पड़ोसी या परिवार के सदस्य से सावधान रहकर काम लेना चाहिए।
 जय श्री राधे
 जय श्री कृष्ण
 दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प से

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

हम प्रभु के भेंजें हुए सुन्दर पुष्प है


                  हम प्रभु के भेंजें हुए सुन्दर पुष्प है


हमारा सौभाग्य है कि प्रभु की इस पुष्प वाटिका में हमने जन्म
लिया। उन को प्रसन्न करने के लिए हम एक पुष्प की तरह खिले और उन्हें अर्पण हो जाएं। इष्ट देव को प्रसन्न करना ही प्राणी का कर्तव्य है। जिस प्रकार से आपका मन प्रसन्न रहें, वैसे ही कीजिए। स्वंय प्रभु सत्य दया क्षमा के समुंद्र है तो हमको भी प्राणियों के साथ सत्य व्यवहार करना चाहिए। सब के साथ दयामय  व्यवहार ही कर्तव्य है ।किसी के अपराध पर हम उसे क्षमा कर दें तो प्रभु प्रसन्न होंगे।क्षमा करने में भगवान पृथ्वी से भी अधिक हैं पृथ्वी माता के ऊपर हम अनेक अपराध करते हैं, पर वह सब सहन करती हैं। हमको भी दूसरों के अपराध पर रुष्ट ना होकर क्षमा ही करना चाहिए। यह प्रभु को प्रसन्न करने का साधन है। बदला लेने की इच्छा से फिर जन्म लेना पड़ता है।भजन करने के लिए जन्म लेना अच्छा है, बदला चुकाने के लिए जन्म लेना अच्छा नहीं है। किसी का ऋण रह गया तो उसे चुकाने के लिए पशु बनना पड़ेगा। कष्ट होगा ,सत्संग, भजन सेवा के लिए बार-बार जन्म लेना अच्छा है।
जय श्री राधे जय श्री राधे
 भक्तमाल दादा गुरु के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से

सोमवार, 17 अगस्त 2020

अनजाने में किया गया भगवतश्रवण भी कैसा फल देता है।

       अनजाने में किया गया भगवत का नाम भी कैसा फल देता है।


दुष्ट मन से स्मरण किया गया भी भगवान का नाम, पापों का नाश करता है। जैसे अनजान में स्पर्श की गई अग्नि भी जला देती है ।अतः 'हरी' वह नाम है जो सभी के पाप तापों को हरते हैं। अपने श्रवण कीर्तन द्वारा भक्तों के मन को हरते हैं। अतः हरि यह नाम है जो किसी के मन को भी हरता है। अतः उसका नाम हरा है उसके संबोधन में हरे ऐसा रूप होता है। इसलिए 'हरे राम हरे राम' मंत्र प्रयुक्त हरे का अर्थ है हे राधे। 'कृष्' आकर्षण करने वाला 'ण' आनंद दायक है। सब को आकृष्ट करने वाले आनंद देने वाले का नाम कृष्ण है।
 'रा' का उच्चारण करने से पाप बाहर निकल जाते हैं फिर 'म' का उच्चारण करने पर कपाट बंद हो जाते हैं फिर मुख के बंद होने पर पाप प्रवेश नहीं कर पाते हैं। अतः हरे राम यह महामंत्र विधि अविधि जैसे भी जपा जाय कलयुग में विशेष फल प्रदान
करती है।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
(परमार्थ के पत्र पुष्प में दादागुरु श्री भक्तमाल जी महाराज के श्री मुख से)

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

मन को काबू में लाना हो तो,

मन को काबू में लाना हो तो,


समय सार्थक होगा, समय सार्थक वही है जो भगवान अथवा
भगवान के भक्तों के गुणों पर चर्चा हो कहने को मिले, चाहे सुनने को मिले,चाहे किसी  सदग्रंथ में पढ़ने को मिले और अंतःकरण से उनपर  विचारने का अवसर मिले। तो समय की सार्थकता होती हैं धन्य घड़ी सोई जब सत्संगा धन्य जन द्विज भक्तिअभंगा समय की सार्थकता होगी और जो गायेंगे उनकी वाणी पवित्र होगी और जो सुनेंगे उनके कान पवित्र होंगे और क्या होगा? मन की वृत्ति सधी रहे। बोले महाराज- मन बहुत भटकता है। मन बहुत भटकाता  है। चंचल  बंचक जानिए मनहि भूत विकराल, कबहूँ जाए आकाश में कबहूँ जाए पाताल। मन काबू में नहीं आता है, तो कहते हैं मन को काबू में लाना हो तो, तो भक्तों का चरित्र गाने बैठ जाओ, सुनने बैठ जाओ ।मजाल है जो मन इधर-उधर भाग जाए। कम से कम इतनी देर के लिए मन की वृत्ति सधी रहे और बुद्धि,बुद्धि कंप्यूटर वाली बात उतनी देर नहीं सोच सकती है।
 मन की वृती सधी रहे ,बुद्धि प्रभु से बंधी रहे। अंतर की ही स्वच्छता और आवे प्रीत रीत ज्यों
मन की स्वच्छता जरूरी है जैसे घर में  गंदगी आ जाती है तो बुहारी से स्वच्छता हो जाती है, पोछा लगा कर के स्वच्छता हो जाती हैं और गाड़ी में गंदगी आ जाती है तो सर्विसिंग स्टेशन पर  ले जाकर  सफाई कराते हैं कपड़े में गंदगी आ जाती है तो धोबी घाट पर ले जाकर सफाई करा देते हैं। शरीर में गंदगी आ जाती है तो  स्नान इत्यादि प्रक्रिया से पूरी हो जाती है और अगर मन के भीतर कोई गंदगी आ गई तो कहते हैं भक्तों के चरित्र,भक्तमाल पढो़गें तो एकदम धो के पोंछ के उसको निर्मल बना देते हैं। प्रभु के चरणों में पहुंचने लायक बना देते हैं और ऐसे बना देंगे कि प्रभु ललक उठेंगे। आजा बेटा! तुम बहुत अच्छे लग रहे हो, भक्तों का चरित्र सुनते हो,पढ़ते हो और अनुसरण कर रहे हो। तो मुझे बहुत प्यारे लगते हो, आओ तो मैं गोदी में बैठा लूँ। तुम्हें प्यार दूं ।इस प्रकार से ही प्रभु की प्रीति की रीति आएगी और प्रभु का प्यार मिलेगा। अंतःकरण की स्वच्छता हो जाएगी।
इसलिए अपने मन को भटकने से बचाने के लिए भक्तो का चरित्र,भक्तमाल ग्रन्थ का अध्यन जरूर करना चाहिए।
(मामा जी महाराज श्री नारायणदास भक्तमाली जी)

सोमवार, 10 अगस्त 2020

ह्रदय व्याकुल हो जाए प्रभु से मिलने के लिए तो, प्रभु दूर नहीं है।

ह्रदय व्याकुल हो जाए प्रभु से मिलने के लिए तो, प्रभु दूर नहीं
है।



कौन कहता है मुलाकात नहीं होती है, रोज मिलते हैं केवल बात नहीं होती है।
मामाजी भक्तमालीजी के श्री मुख से
हम प्रभु से रोज मिलते हैं क्या हम मिलने के लिए कहीं से आते हैं या कहीं जाते हैं नहीं क्योंकि वह तो हर पल हर क्षण हमारे साथ ही रहते हैं इसलिए
मिले ही रहते हैं। पर बात नहीं होती, एक साथ रहते हैं पर बात नहीं होती। क्यों? हम 36 हो रहे हैं। दुनिया के लिए हम खूब रो रहे हैं, उसके लिए रोना नहीं आता है। कभी आंसू आते भी तो उसमें प्रदर्शन का भाव आ जाता है और सूख जाते हैं। 
 हम प्रभु के लिए रोना शुरू कर दें। बलिहारी, बलिहारी। एक बार मैं बक्सर से पटना जा रहा था, डुमराव स्टेशन पर एक सज्जन एक बच्चे को गोद में लिए हुए थे, गाड़ी में बैठ गए। बाप रे बाप, उस बच्ची का रोना सारे डिब्बे के लोग परेशान हो गए, डांटने लगे उसको, तुम क्यों नहीं  चुप करा रहे हो। इसके रुदन से हमारे कान फट रहे हैं,उसने कहा कि बाबूजी आप लोग ही चुप करा कर देख लीजिए, कोशिश कर लीजिए। सब लोगों ने पूछा बात क्या है? बात यह है कि यह सोई हुई थी, इसकी माँ लाचारी में इलाज के लिए पटना चली गई है।अब मां के लिए यह इतना रो रही है, हम लोगों ने सोचा कुछ खिला पिला कर मना देंगे। पर यह चुप नहीं हो रही है, कितना सामान दिया है, पर यह चुप नहीं हो रही है। अब लगता है जब तक यह पटना नहीं पहुंचेगी और मां को नहीं देखेगी तब तक चुप नहीं होगी। इसलिए लाचार होकर इसकी मां के पास लेकर जाना पड़ रहा है। सारे डब्बे के लोग परेशान थे और मुझे इतनी खुशी हुई बच्ची के रोने को देखकर,जैसे शरीर संबंध की बच्ची,शरीर संबंध की मां के लिए बेचैन हो रही है और इसकी मां तक पहुंचाया जा रहा है। इसी तरह हम आत्मा की मां, त्वमेव माता च पिता त्वमेव, सचमुच में अगर उस बच्ची की तरह हम भी रोना प्रारंभ करते हैं तो या तो वह मां स्वयं आ कर, मेरे पास तक आएगी या मुझको मेरा ही हिमायती मुझे उस माँ तक पहुंचाएगा। हमें वह रोना तो आए,हमें व्याकुलता हो तो उसके लिए। अपने प्रभु के लिए तो वह क्षण दूर नहीं जब प्रभु स्वयं आकर हमसे मिलेंगे

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है

             संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है।

संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है। जहां पर श्रद्धा होगी वहीं पर प्रभु अपना रूप प्रकट करके अनुभव करा देते हैं और अश्रद्धा के द्वारा दिया गया दान, हवन तुच्छ फल देता है। श्रद्धा पूर्वक थोड़ा दान भी महान फल देता है। शिष्य विदेश जाने लगा तो गुरु ने कहा कि वापस आओगे तो रहस्य कि बात बताऊंगा। वापस आते आते गुरु का शरीर छूट गया, पर अपनी श्रद्धा के कारण उसने गुरु के शरीर त्याग को स्वीकार नहीं किया। बिना मुझे, उस बात को बताए, गुरुदेव भगवान वैकुंठ नहीं जा सकते। गुरु की वाणी में शिष्य को विश्वास था अतः गुरुदेव वैकुंठ से वापस आ गए और कहा संत में मुझसे अधिक श्रद्धा रख कर सेवा करो।' गुरु वचन में विश्वास यह संदेश मिला।वैकुंठ जाकर कोई वापस नहीं आता है पर शिष्य की श्रद्धा ने गुरु को वापस बुला लिया, पुनर्जीवित कर लिया। शिष्य ने गुरु को जिंदा करवाया। गुरुदेव प्रदेश जाने लगे तो शिष्य से कहा गंगा जी को गुरु मानो मेरे स्थान पर, उन्हें प्रणाम करो। शिष्य ने गंगा जी में स्नान, वस्त्र धोना बंद कर दिया।गुरु के आने पर भी गंगा में गुरु भाव बना रहा, लोगों के मन में गुरु भक्ति जाग्रत करने के लिए गुरु ने गंगा में प्रवेश कर के शिष्य से वस्त्र मांगे, गुरु आज्ञा पालन करना है वस्त्र देना है, पर गंगा में पैर नहीं रखना। धर्म संकट के समय धर्म की निष्ठा की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं कमल पत्र प्रकट हो गए, उन पर चलकर वस्त्र दिया।गुरु वचनों में विश्वास का यह अद्भुत
दृष्टांत है।
।।श्री गुरुभ्य नमः।।

श्री कृष्ण ही जगतगुरु हैं।

             परमार्थ के पत्र पुष्प- भगवान श्री कृष्ण ही जगतगुरु है।




भगवान श्री कृष्ण जगद्गुरु हैं। जहां-जहां से हितकारी उपदेश प्राप्त होते हैं वे सब गुरु तत्व है। श्री कृष्ण ही सब गुरुओं में व्याप्त होकर फिर उपदेश देते हैं। प्रत्येक श्रद्धालु शिष्य का गुरु श्री कृष्ण का स्वरुप है। सर्वत्र उपदेशक श्री कृष्ण ही है। सर्वत्र गुरु तत्व श्री कृष्ण ही हैं। इस प्रकार श्री कृष्ण और गुरुदेव एक है इनमें अभेद है।'संत सबै गुरुदेव हैं व्यासहिं यह परतीति।' हरिराम जी व्यास कहते हैं कि मुझे यह विश्वास है भक्त संत गुरुदेव हैं। 'संत भगवंत अन्तर निरंतर नहीं किमपि मती विमल कह दास तुलसी।।' विमल बुद्धि से विचार कर श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि 'संत और भगवंत में नाम मात्र का भी अंतर नहीं है। इस प्रकार भक्तमाल का दिव्य सत्य सिद्धांत ही सत्य है कि( संत )भक्त, भक्ति, भगवंत, गुरु यह चारों एक है इनमें कोई अंतर नहीं है। इनके चरण कमल की वंदना करने से सभी प्रकार के विघ्नों का नाश होता है। यह समझ में आ जाय, इस सिद्धांत में विश्वास हो जाए तो कल्याण है। इससे ही शांति, भक्ति की प्राप्ति होती है। श्री भक्तमाल का, श्री गुरुदेव भगवान का यह वाक्य हमारे लिए मान्य है कि बिना भक्तमाल भक्ति रूप अती दूर है।' संत संग में भक्तमाल ही प्रधान है। भक्तमाल में भागवत, रामायण आदि के सारांश आ जाते हैं।
।।श्री सीताराम।।
दादागुरु भक्तमाली श्री गणेश दासजी के श्री मुख से।

रविवार, 26 जुलाई 2020

क्पा आप जानते है प्रभु के चरणों में कौन-कौन से चिन्ह है,और उनके दर्शन करने से क्या लाभ होता है?

प्रभु के चरणों में जो चिन्ह है उनके दर्शन करने से क्या लाभ होता है और उनका अर्थ क्या है।




अब इसमें अलग-अलग चिन्हों का महत्व का वर्णन करते हैं।
राजराजेश्वर रामचंद्र जी ने अपने चरण सरोज में सुख सुविधा के चिन्ह धारण कर रखे हैं।अगर कोई अपने मन को काबू में नहीं कर पाता हो तो, उसको प्रभु के चरणों में धारण अंकुश का ध्यान करना चाहिए। याद करें,ध्यान करें तो   मनु रूपी मतवाला हाथी काबू में आ जाता है।जैसे महावत मतवाले हाथी को अंकुश के द्वारा बस में कर लेता है ऐसे ही भगवान के चरणों के चिह्न में अंकुश का ध्यान करने से हमारा मन मतवाला काबू में आ जाता है 
अंकुश के बाद अंबर।अंबर कहते हैं वस्त्र को, अंबर आकाश को भी कहते हैं। तो अगर अंबर का अर्थ अकाश लिया जाए, तो जैसे आकाश अनंत है ऐसे भगवान भी अनंत हैं और अगर अंबर का अर्थ यहां वस्त्र लिया गया है, तो जाड़े में वस्त्र की जरूरत होती है और उसमें भी गरम कपड़ा,तो सठता रूपी शीत अगर सता रहा हो तो इस वस्त्र के चिन्ह का ध्यान करने वाले का शोक दूर हो जाता है। इस चिन्ह का ध्यान करने से बड़ा ही सुख मिलता है। जैसे जाड़े में रजाई ओढ़ने पर सुख मिलता है। ऐसे ही भगवान के चरण चिन्ह में अंबर का ध्यान करने से सुख मिलता है, शोक दूर हो जाता है।
तीसरा है कुलिश। कुलिश माने वज्र,भगवान के चरणों में वज्र का चिन्ह है।पाप रूपी पर्वत को चूर चूर कर देने के लिए,भगवान के चरण में कुलिश माने वज्र का चिन्ह है।अगर आप यह चिन्ह याद करेंगे,तो आपके पूर्व के पाप चाहे कितने पहाड़ सरीकें रहे होंगे वह सब चूर चूर हो जाएंगे

भगवान के चरणों में कमल का चिन्ह बना हुआ है मन को उसमें लगा दीजिए।तो भक्ति रूपी शहद,मधुरता आपको खूब मिलेगी।
शेष कल- श्री सीताराम

रविवार, 19 जुलाई 2020

भगवान की भक्ति में खो जाने से लाभ

            भगवान की भक्ति में खो जाने से लाभ


भगवान में लीन हो जाने की प्रक्रिया । नानक लीन भयो  गोविंद संग ,ज्यों पानी संग पानी। तो मोक्ष पांच प्रकार के बताए गए हैं। तो इसमें जो एक मोक्ष है "एक्त"- तो इसमें मुक्ति है। भगवान में विलीन हो जाना अथवा एक निर्वाण  केवल्य पद कहलाता है। यह ज्ञान पद के सिद्धों को , साधकों को प्राप्त होता है ।वहां पहुंचने के बाद संसारी दुख और संसारी सुख दोनों से आप  किनारे होना जाएंगे। यह ज्ञान पथ के पथिको का गंतव्य और चरम उपलब्धि है और भक्ति पथ के पथिको को स्वर्ग से ऊपर -तो ज्ञान है, मोक्ष है और मोक्ष से ऊपर भी भगवान का धाम बताया गया है। जहां प्रभु अपने मित्र सिद्ध साधकों, सिद्ध परिकरों के सहित निवास करते हैं और विभिन्न प्रकार के आमोद-प्रमोद अपनी लीलाओं के द्वारा भक्तों को सुख प्रदान करते रहते हैं। भक्त अपनी सेवाओं के द्वारा भगवान को सुख प्रदान करते हैं और भगवान अपनी लीलाओं के द्वारा, अपनी कृपा दृष्टि के पोषण द्वारा उनको आनंद प्रदान करते रहते हैं। तो यह जो भगवत धाम है  उसको वैदिक भाषा मे त्रिपाक  विभूति कहां गया है। पौराणिक भाषा में भक्तों की भावना और उपासना के अनुसार साकेत, गोलाेक और वैकुंठ इत्यादि कहा जाता है। वह एक ऐसा स्थान है, जहां पहुंचना सबके बस की बात नहीं है और जहां भगवान के भक्ति मार्ग के जो पथिक हैं, भक्ति पथ के जो पथिक हैं, वह भगवान की कृपा द्वारा ही वहां पहुंच पाते हैं और वहां पहुंचने के बाद, ब्रह्मा जी उनके भाग्य में यह जबरदस्ती नहीं लिखेंगे , कि तुमने पिछले जन्म में ऐसा कर्म किया था, तो तुमको बैल बनना पड़ेगा, गधा बनना पड़ेगा, मनुष्य बनना पड़ेगा, बीमार पड़ोगे और कोड़ फूटेगा यह सब भगवान के धाम में जो पहुंच गए अब उनके लिए ब्रह्माजी शासन नहीं कर सकते और ब्रह्मा जी के, देवराज इंद्र जी के, यमराज जी के विभाग से बहुत ऊपर पहुंच गए हो। इसके लिए भगवान श्यामसुंदर गीता जी में कहते हैं कि जहां भक्ति मार्ग पर चलकर के  पहुंचा जा सकता है और जहां पहुंचने के बाद, जहां भगवान की कृपा के बाद, ही वहां पहुंचा जा सकता है। वहां पहुंचने के बाद फिर संसार में पुनरावर्तन नहीं होता है। वह है मेरा धाम। वहां मैं ही अपने मित्र सिद्ध-प्रसाधन  सिद्ध परिकरो के साथ निवास करता हूं। लक्ष्मी जी रहती हैं, भूदेवी रहती हैं और लीलादेवी निवास करती हैं और भगवान के सेवक,जय-विजय, नंद-सुनंद. विश्वतसैन इत्यादि पार्षद। अथवा जिन भक्तों ने भगवान की भक्ति की उनको भी, जटायु जी ने भगवान की भक्ति की और इनको अपना सा स्वरूप प्रदान करके, चतुर्भुज प्रभु ने अपने धाम में भेजा। गजराज ने  प्रभु की स्मरण भक्ति की और उनकी स्तुति की, उनकी प्रार्थना की, भगवान ने प्रसन्न होकर उनको  अपना चतुर्भुज रूप प्रदान करके, विमान पर बिठा करके और उनको सीधा धाम में पहुंचाया। वह भगवान का धाम, भक्ति पथ के पथिको को मिला करता है।

भगवान और भगवान के भक्तो को प्रणाम करने से भी कष्ट दूर हो जाते है।


भगवान और भगवान के भक्तो को प्रणाम करने से भी कष्ट दूर हो जाते है।
गुरूदेव मलूकापीठेश्वर,वृन्दावन

भगवान का सिमरन करो पद वंदन करो तो सारे विघ्न नष्ट हो जाते हैं। गुरु का पद वंदन करो तो भी सारे कष्ट, नष्ट हो जाते हैं। भक्तों का पद वंदन करो, तो भी सारे कष्ट, विघ्न, नष्ट हो जाते हैं। इसका एक उदाहरण है कि आमिर के राजा माधव सिंह छोटे भाई थे उनकी पत्नी श्री रत्नावती जी, पहले तो उनकी भक्ति का विरोध किया लोगों ने। लेकिन फिर बाद में उनकी भक्ति का लोहा मान लिया लोगों ने, और परिवार वालों ने, कि यह भक्ति दिखावा नहीं है सच्ची भक्ति है। इसके बाद मान सिंह और माधव सिंह दोनों कहीं नोका में बैठकर कहीं जा रहे थे और नोका आपद् ग्रस्त हो गई लगा कि दोनों डूब जाएंगे। तो मानसिंह ने कहा कि अब क्या करना चाहिए,तो कहा कि आपकी अनुज बधू रत्नावती भक्त है और सिद्ध कोटि की भक्त हैं, उनका स्मरण करें उनका पद वन्दन करें, उनके नाम की दुहाई दे,नैया पार लग जाएगी।तो सचमुच में रत्नावती जी के नाम की दुहाई की, पद वंदन किया, सिमरन किया तो नासे विघ्न अनेक।मान सिंह जी ने इच्छा व्यक्त की कि मैं उनका दर्शन करना चाहता हूं। आ गए दर्शन करने के लिए और दर्शन करके इनको बड़ी प्रसन्नता हुई और बढ़ाई करने लगे तो रत्नावती जी ने कहा इससे मेरी कोई विशेषता नहीं थी, ठाकुर जी की कृपा और  भक्ति महारानी की कृपा थी। जिनके हृदय में भक्ति महारानी आकर विराजमान हो जाए उनका माया कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है 

बुधवार, 15 जुलाई 2020

परमार्थ के पत्र पुष्प भाग 2

( दादा गुरु श्री गणेश दास भक्तमाली जी महाराज के श्री मुख से कुछ प्रवचन हमारे जीवन का उद्धार करने के लिए)



सत्संग करते रहोगे,सत्संग में आते-जाते रहोगे, सत्संग करते-करते सब कुछ का ज्ञान हो जाएगा। सत्संग से जुड़े रहो।सत्संग से जुड़े रहोगे तो  आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए? इस बात का ज्ञान आपको हो जाएगा। आपके कर्तव्य का ज्ञान, आपका क्या कर्तव्य है?आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। सत्संग में आते-आते तरह-तरह की कथाएं आपको सुनने को मिलेंगीं। उससे आपको सब कुछ ज्ञान हो जाएगा। हम भगवान के शरण में हैं। अहंकार का त्याग होना जरूरी है।अहंकार का त्याग, जिसमें मैं राजा हूं,मैं धनी -मानी हूं,मैं बलवान हूं ,मैं रूपवान हूं। इस तरह से जाति में, उत्तम जाति में हूं। यह सब अहंकार छोड़ने के लिए होते हैं।एक अहंकार रहना चाहिए केवल, कि मैं भगवान का दास हूं। यह अहंकार नहीं छोड़ा जाएगा। वैष्णव के लक्षण, वैष्णव या भक्तों के लक्षण सभी रामायण, गीता, श्रीमद् भागवत सभी में बड़े-बड़े, लंबे चौड़े वाक्य में कहे गए हैं। मुख्य चार लक्षण श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि प्राणियों पर दया करनी चाहिए ।दया में सब धर्म आ जाते हैं। जिसके हृदय में दया होगी ,वह किसी की चोरी नहीं करेगा क्योंकि चोरी करेगा,तो उसे उसे लगेगा कि किसी को कष्ट होगा।किसी को कष्ट ना देना ,यह भक्तों का लक्षण है। सब के ऊपर दया करना प्राणी मात्र के ऊपर दया करना, व्यवहार करना है।जगत में सब प्रकार का व्यवहार करना है, लेना है, देना है। लेकिन उसमें दया रहनी चाहिए। दया होगी तो हम दूसरों को ठगेंगे नहीं। उचित व्यवहार करेंगे। धोखा नहीं देंगे क्योंकि धोखा देने से उसके मन में कष्ट हो जाएगा, इस प्रकार दया पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यह वैष्णव का मुख्य लक्षण है। चलते फिरते पैर के नीचे जीव मर जाते हैं, या अनजानें में हो जाता है। तो सायः काल को या प्रातः काल को भगवान के आगे नमस्कार करने से, कीर्तन करने से ,वह अपराध दूर हो जाता है। जानबूझकर के हत्या नहीं करनी चाहिए और अनजाने में जो हो जाती है तो भगवान का नाम लेने से, प्रणाम करने से वह अपराध  दूर हो जाता है।जीवों के प्रति दया का भाव बना रहना चाहिए। भगवान के नाम में रुचि रखना,चलते-फिरते उठते बैठते जिस भी नाम में आपको रुचि है, उसका जाप करते रहना चाहिए। गीता का कहना है कि भगवान ने अर्जुन को कहा तुम युद्ध भी करो और मेरा स्मरण भी करो। तो अर्जुन ने कहाँ कि दोनों काम तो नहीं हो सकते हैं, युद्ध भी करूँ और स्मरण भी करूँ। दोनों काम अगर नहीं हो सकते तो कृष्ण नहीं कहते। तो जो कृष्ण ने अर्जुन को कहा वह सिर्फ अर्जुन को ही नहीं कहा, हम सब को भी कहा है कि संसार में रहकर जाप भी करों। यह संसार भी एक प्रकार का युद्ध है संसार का व्यापार ,व्यवहार जो है। यह एक युद्ध ही है। इसको करते-करते भी भगवान का नाम जपते रहना चाहिए। नाम के वियोग होने पर दुख होना, यह भक्तों का दूसरा लक्षण है ।भगवान का ज्यादा से ज्यादा नाम लेते रहे। मनसे, वाणी से स्वयं भी लेना चाहिए और दूसरा कोई सामने पड़ जाए तो भक्ति का दान करना चाहिए, भक्ति का दान क्या है? सामने कोई आपके आ गया- श्री कृष्ण का नाम लिया, जय श्री कृष्ण, जय श्री सीताराम,जय श्री राधे, तो आपने एक नाम का दान कर दिया।नाम का दान किया तो, तो आपको कोई दुख दरिद्रता नहीं आएगी।

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

प्रभु से प्रार्थना करने पर लाभ




श्री राधे, पाप का रास्ता छोड़ कर के हमें पुण्य के रास्ते पर चलना चाहिए और चलने का हमारा सामर्थ्य नहीं है। अगर हम कहें कि हम से नहीं चला जा सकता, हम से नहीं बन सकता। जाने अनजाने पाप होते रहते हैं। इसके लिए हमें भगवान से प्रार्थना करते रहने चाहिए। जो हमारे बस की नहीं रह जाती है उसके लिए हम क्या करते हैं? भगवान से प्रार्थना करते हैं। कोई काम है, हमारे करे से नहीं हो रहा है। हमारे बनाए से नहीं बन रहा है। तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ठाकुर जी कृपा करें ,हमारा काम बन जाए। इसी तरह से सच के रास्ते पर, पुण्य के रास्ते पर, चलते हम से नहीं बन रहा है। तो पाप के रास्ते से हम बच नहीं पा रहे हैं इसके वास्ते भगवान से हमें प्रार्थना करनी चाहिए ।हर समय हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। ईश्वर हमें पाप के रास्ते से चलने पर बचाएगा। प्रार्थना में अहंकार नहीं होना चाहिए, प्रार्थना के समय दीनता होनी चाहिए। प्रार्थना की बहुत बड़ी महिमा है ।इतनी महिमा है कि पूजा पद्धति में अनंत उपचार हो जाते हैं।राजा लोग अनंत उपचार से पूजा करते हैं लेकिन साधारण इंसान पांच उपचारों से ही पूजा कर देता है। पाँच ही वस्तु रहती है- जल चढ़ा दिया, चंदन चढ़ा दिया, फूल चढ़ा दिया, आरती कर ली, भोग लगा दिया। इन पांच उपचारों के साथ या षोडशोपचारों के साथ या राज उपचार के साथ सब के साथ, अगर आप प्रार्थना नहीं करें, तो भगवान नहीं मानेंगे आप लोग सामने रख दें और कुछ नहीं बोले, ठाकुर जी नहीं खाएंगे। बिना प्रार्थना के भगवान किसी भी उपचार को चाहे भोग हो, जल हो, चंदन हो, बिना प्रार्थना के ईश्वर स्वीकार नहीं करता है। और मंत्र पढ़ने की जो विधि है वह प्रार्थना ही है। पूजा करते समय वैदिक, तांत्रिक, अलौकिक, सब प्रकार की पूजा मंत्र द्वारा की जाती है और इसे ईश्वर स्वीकार करता है। आपको पुराणों की भाषा में, मंत्रों की भाषा में नहीं आता है। तो अपनी भाषा में प्रार्थना करो, कि प्रभु यह जो भी मैं आपको दे रहा हूं। अर्पण कर रहा हूं यह आप ही की वस्तु है। आप इसे स्वीकार करो।भगवान को प्रणाम करते समय,भगवान से कहिए कि मैं आपका हूं।आप मुझे स्वीकार कर लीजिए। इस प्रकार कहने पर भगवान स्वीकार कर लेते हैं। जीव को जब भगवान स्वीकार करते हैं तो वह पवित्र हो जाता है। तो प्रार्थना करनी चाहिए ।अगर आपके पास फल, फूल ,भोग  चंदन कुछ नहीं है। केवल एक प्रार्थना है, तो भगवान से प्रार्थना कीजिए, तब भी भगवान प्रसन्न हो जाते हैं ।इसलिए प्रार्थना का बहुत बड़ा महत्व है।
(हमारे दादा गुरु भक्त माली जी महाराज मलूक पीठ वृंदावन के श्री मुख से)

मंगलवार, 5 मई 2020

दुर्गा कवच का पाठ हिदी में

                          दुर्गा कवच (हिंदी में )

आजकल पूरे विश्व में करोना जैसी महामारी फैली हुई है और सभी परेशान है, हताश है अपने अपने तरीके से सभी पराक्रम कर रहे हैं, इस महामारी  से लड़ रहे हैं ।इसी के साथ ही हमें दुर्गा माता कवच का पाठ नित्य करना चाहिए क्योंकि वह हमारी मां है, अंबे मां, जगदंबे मां है, वह हमारी पुकार को जरूर सुनेगी और हमारी इस महामारी से हमारी रक्षा करेंगी।
ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है।
 मार्कंडेय जी ने कहा- पितामह, जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो ऐसा कोई साधन मुझे बताइए ।
ब्रह्माजी बोले- ब्राह्मण ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है ।जो गोपनीय से भी परम गोपनीय,पवित्र तथा संपूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है।महामुने! उसे श्रवण करो।। देवी की नौ मूर्तियां हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहते हैं। उनके पृथक पृथक नाम बतलाए जाते हैं। प्रथम नाम 'शैलपुत्री' दूसरी मूर्ति का नाम 'ब्रह्मचारिणी' हैं . तीसरा स्वररुप 'चंद्रघंटा' के नाम से प्रसिद्ध है. । चौथी मूर्ति को 'कुष्मांडा' कहते हैं ,पांचवी दुर्गा का नाम 'स्कन्दमाता' है, देवी के छठे रूप को' कात्यायनी' कहते हैं सातंवा 'कालरात्रि' और आठवां स्वरूप 'महागौरी' के नाम से प्रसिद्ध है। नवीदुर्गा का नाम 'सिद्धिदात्री' है ।यह नाम वेदभगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ।जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो। रणभूमि में शत्रु से घिर गया हो,तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हैं उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता। युद्ध के समय, संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई भी विपत्ति नहीं आती।उन्हें शोंक, दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती। जिन्होंने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण किया है उनका निश्चय ही अभुदय होता है देवेश्वरी जो तुम्हारा चिंतन करते हैं, उनकी तुम निसंदेह रक्षा करती हो। चामुंडा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैसें  सवारी करती हैं। ऐंद्री का वाहन एरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरूड़ पर आती हैं ।माहेश्वरी वृषभ पर आसन जमाती हैं कुमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की पत्नि लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं ,और हाथों में कमल धारण किए हैं।वृषभ पर सवार ईश्वरी देवी ने श्वेत रुप धारण कर रखा है । ब्राह्मणी देवी हंस पर बैठी हुई है और  विभिन्न प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं। इस प्रकार यह सभी माताएं सब प्रकार की योग शक्तियों से संपन्न है इनके सिवा और भी बहुत सी देवियां है जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं।यह संपूर्ण देवियां क्रोध में भरी हुई है और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती है।यह शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल  खेतक, और तोमर ,परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल उत्तम धनुष आदि अस्त्र शस्त्र अपने हाथों में धारण किए रहती हैं। देत्यो के शरीर का नाश करना,भक्तों को अभय दान देना और देवताओं का कल्याण करना।यही उनके अस्त्र- शस्त्र धारण करने का उद्देश्य है। कवच का पाठ आरंभ करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए (महान रूद्र रूप, अत्यंत गूढ़ पराक्रम,महान बल और महान उत्साह वाली देवी तुम महान भय का नाश करने वाली हो ,तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारी और देखना भी कठिन है,शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदंबिके हमारी रक्षा करो)पूर्व दिशा में इंद्र शक्ति हमारी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्णिशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नेऋत्य कोण  खड़गधारण मेरी रक्षा करें। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्य कोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारनी देवी रक्षा करें। ब्राह्मणी ऊपर से, नीचे की ओर  वैष्णवी हमारी रक्षा करें। इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुंडा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजय पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें। वाम भाग में अजीता और दक्षिण भाग में अपराजिता मेरी रक्षा करें, उधौतिनी शिखा की रक्षा करें ।उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें। ललाट में माला धारी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरे मन की रक्षा करें। दोनों भवों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें । कानों में द्वारबासिनी रक्षा करें कालिका देवी कपोलो की तथा भगवती शांकरी कानों के मूल भाग की रक्षा करें, नासिका में सुगंधा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करें, नीचे की ओठ में अमृत कला और जीव्हा में सरस्वती देवी रक्षा करें, कौमारी दांतो की और चंडिका देवी कंठ प्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले की घाँटी और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे। कामाक्षी ठोड़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें,भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धारी पृष्ठ वंश मे( मेरूदंड) में रहकर रक्षा करें,कंठ के बाहरी में भाग में नीलग्रीवी और कंठ की नली में नलकूबरी रक्षा करें, दोनों कंधों में खडि्गनी और मेरी दोनों भुजाओं की व्रजधारिणी रक्षा करें। दोनों हाथों में दण्डिनी और अंगुलियों की अंबिका देवी रक्षा करें, शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें कुलेश्वरी कुक्षी (पेट)में रहकर रक्षा करें। महादेवी दोनों स्तनों की और शोक विनाशनी देवी मन की रक्षा करें, ललिता देवी ह्रदय में और शूल धारिणी उदर में रहकर रक्षा करें, नाभि में कामिनी और  गुह्यभाग की वह गुह्येश्वरी रक्षा करें, पूतना और कामिका लिंग और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें।
भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें संपूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिंडलियों की रक्षा करें, नारसिंही दोनों घुटनों की और तेजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें, श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासनी पैरों के तलवों में रहकर रक्षा करें, अपनी दाढो़ के कारण भयंकर दिखाई देने वाली दृंष्टा कराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशनी देवी केशो की रक्षा करें रोमावलियों के छिद्रों में कोबेरी और त्वचा की बागेश्वरी देवी रक्षा करें ,पार्वती देवी रक्त,मज्जा, वसा ,मांस  हड्डी और मेद की रक्षा करें ,आंतों की कालरात्रि और पित्त की मुक्तेश्वरी देवी रक्षा करें ,मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करें, नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें, जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता वह अभेध्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें।
ब्राह्मणी आप मेरे वीर्य की रक्षा करें, छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्म धारणी देवी मेरे अहंकार मन और बुद्धि की रक्षा करें, हाथ में व्रज धारण करने वाली व्रजहता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान,वायु की रक्षा करें। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करें, रस,रूप ,गंध ,शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें, तथा सत्व गुण रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें ।वाराही आयु की रक्षा करें, वैष्णवी देवी धर्म की रक्षा करें, तथा  चक्रधारण करने वाली देवी यश ,कीर्ति, लक्ष्मी ,धन तथा विद्या की रक्षा करें, इंद्राणी आप मेरे गोत्र की रक्षा करें ।चण्डिके आप पशु और पक्षियों की रक्षा करें ,महालक्ष्मी पुत्र और पुत्री की रक्षा करें ,भैरवी पत्नी/ पति की रक्षा करें, मेरे पथ की सुपथा और मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें ,राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें। तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें।
देवी ! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब आपके द्वारा सुरक्षित हो, क्योंकि तुम विजय शालिनी और पाप नाशिनी हो। यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी ना जाए । कवच का पाठ करके ही यात्रा करें। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहां जहां भी जाता है ,वहां-वहां उसे धन लाभ होता है तथा संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस जिस अभीष्ट वस्तु का चिंतन करता है, उस उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान  ऐश्वर्य का भागी होता है। सब ओर से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथागत तीनो लोक में पूजनीय होता है। देविका यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियम पूर्वक तीनों संध्याओ के समय श्रद्धा के साथ का पाठ करता है ,उसे देवी कला प्राप्त होती है तथा तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता है।
इसलिए आप सब से विन्रम निवेदन है कि प्रतिदिन इस कवच का पाठ अवश्य करें।

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप

                   (  ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप, संभल ना कहीं तुम्हारे जीवन में रात ना हो जाए?


एक दंपत्ति दिवाली की खरीदारी करने की हड़बड़ी में थे। पति ने पत्नी से जल्दी करने को कहा और कमरे में बाहर निकल गया, तभी बाहर लॉन में बैठी 'मां' पर उसकी नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए पति वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला 'शालू! तुमने मां से पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए? शालिनी बोली, नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा, दो वक्त की रोटी और 2 जोड़ी कपड़े। इसमें पूछने वाली क्या बात है?
 वह बोला 'यह बात नहीं है शालू... मां पहली बार दिवाली पर हमारे घर रुकी हुई है, वरना तो हर बार गांव में ही रहती हैं, तो औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती ।
' अरे, इतना ही मां पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यों नहीं पूछ लेते',झल्लाकर चीखी थी शालू, और कंधे पर हैंड बैग लटकाकर हुए तेजी से बाहर निकल आई।
 सूरज मां के पास जाकर बोला,' मां हम लोग दिवाली की खरीदारी करने के लिए बाजार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो बताइए। माँ बीच में ही बोल पड़ी,' मुझे कुछ नहीं चाहिए ।बेटा- सोच लो कुछ चाहिए, तो बता दीजिए।
 सूरज के बहुत जोर देने पर मां बोली, ठीक है तुम रुको, मैं लिख कर देती हूं ।तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ। कहकर सूरज की मां अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्टसूरज को थमा दी। सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, 'देखा मां को भी कुछ चाहिए था ,पर बोल नहीं रही थी। मेरी जिद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक जिंदा रहता है रोटी और कपड़े के अलावा भी उसे बहुत कुछ चाहिए होता है।
 अच्छा बाबा ठीक है, पहले मैं अपनी जरूरत का सामान लूंगी, बाद में आप अपनी मां की लिस्ट देखते रहना। पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली,' अब मैं बहुत थक गई हूं ,मैं कार में एसी चालू करके बैठी हूं। आप मांजी का समान देख लो। अरे चलते हैं ,अच्छा देखता हूं माँ ने इस दिवाली पर क्या मंगवाया है , कहकर मां की लिखी पर्ची जेब से निकालता है ,पता नहीं क्या-क्या मंगाया होगा। जरूर अपने गांव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगवाए होंगे। 'और बनो श्रवण कुमार,'के गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी, यह क्या सूरज की आंखों में आंसू और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते से काँप रहे थे ,पूरा शरीर कांप रहा था।
शालिनी बहुत घबरा गई,' क्या हुआ, ऐसा क्या मांग लिया है तुम्हारी मां ने?' कहकर हाथ से पर्ची झपट ली, हैरान थी शालिनी, की इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे। पर्ची में लिखा था... बेटा सूरज! मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम जिद कर रहे हो तो तुम्हारी शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ पल ले आना। ढलती हुई शाम हूं मैं, मुझे गहराते अंधेरे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है ,हर पल पर अपनी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर... जानती हूँ कि टाला नहीं जा सकता ,पूर्ण सत्य है, पर अकेलेपन में बहुत घबराहट होती है। सूरज! तो जब तक तुम्हारे घर पर हूं, कुछ पल बैठकर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही, मेरे बुढ़ापे का अकेलापन बांट लिया करो। बिन दीप जलाए ही रोशन हो जाएगी मेरे जीवन की सांझ। कितने साल हो गए हैं बेटा, तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हाथी तेरे सर को सहलाऊँ। एक बार फिर से इतराए हुए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पाकर।और  मुस्कुराए और फिर मैं मौत के गले मुस्कुराती हुई लगूँ। क्या पता अगली दिवाली तक रहूं या ना रहूं। पर्ची की आखिरी लाइन पढ़ते-पढ़ते शालीनी फफक कर रो पड़ी।
 ऐसी होती है माँ। हम लोग अपने घर के विशाल हृदय वाले लोग, जिनको हम बूढ़े और बुुद्या श्रेणी में रखते हैं, वे हमारी जीवन के कल्पतरु हैं। उनको यथोचित सम्मान आदर और देखभाल करें। यकीन मानिए हमारे भी बूढ़े होने के दिन नजदीक ही हैं। उनकी तैयारियां आज से ही कर ले। इसमें कोई शक नहीं है ,हमारे अच्छे बुरे कर्म देर सवेरे हमारे पास ही लौट कर आते हैं।
जय श्री राधे।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

हम कैसी भक्ति से प्रभु को आकर्षित करें?

                 हम कैसी भक्ति से प्रभु को आकर्षित करें?



वृन्दावन में संत है -प्रेमानंदजी महाराज,कभी आपको समय मिलें तो उनका youtube chanle है।उनको जरूर सुनिएगा।आपके बहुत से सवालों के जवाब मिल जाऐंगें।उनकी एक video आपके समक्ष भेज़ रही हूँ। सुनिएगा जरुर,और अपने विचार जरूर बताइएगा।
https://youtu.be/-oX_xUsgEHwhttps://youtu.be/-oX_xUsgEHw

रविवार, 19 अप्रैल 2020

                           हरे कृष्णा श्री राधे



 हम औषधि के देवता भगवान धन्वंतरि के प्रति 1000 प्रार्थनाओं की एक कड़ी अर्पित कर रहे हैं । हमारा उनसे विनम्र निवेदन है कि वे कोरोना वायरस कोविड19 से हम सभी को सुरक्षित रखें।  कृपया यह प्रार्थना बोलकर इसे अन्य लोगों के पास भेज दें ताकि हम सभी मिलकर अपनी रक्षा के लिए उनसे निवेदन कर सकें।


ॐ नमो भगवते
महा सुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये
अमृत कलश हस्ताय
सर्व भय विनाशाय
सर्व रोग निवारणाय
त्रैलोक्य पतये
त्रैलोक्य निधये
श्री महा विष्णु स्वरूप
श्री धन्वंतरि  स्वरुप
श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा


"अनुवाद"-


मैं उन भगवान धन्वंतरि को सादर नमन करता हूं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं और जिन्हें *सुदर्शन वासुदेव धनवंतरी* के नाम से जाना जाता है । आपके हाथों में अमरता के अमृत से भरा कलश है । हे ईश्वर आप सभी रोगों और भय से मुक्ति देने वाले हैं। आप तीनों लोगों के रक्षक हैं और सभी जीवों के शुभचिंतक हैं। आप आयुर्वेद के अधिपति हैं और भगवान विष्णु के अवतार हैं ।आप सभी जीवो के लिए परम कल्याणकारी हैं ।हम सभी आपकी आराधना करते हुए सभी के कल्याण के लिए आपसे निवेदन  करते हैं।

शनिवार, 28 मार्च 2020

शिव तांडव कब और कैसे शुरू हुआ?

                  शिव तांडव  कैसे शुरू हुआ?
                     शिव तांडव नृत्य की कथा




दारूक नामक एक दैत्य असुरों में उत्पन्न हुआ। तपस्या से पराक्रम प्राप्त करके वह असुर देवताओं तथा सभी को पीड़ित करने लगा। उस समय वह दारुक, ब्रह्मा, ईशान, कुमार ,विष्णु, यम, इंद्र आदि के पास पहुंच कर उनको सताने लगा। इससे वह देवता बहुत पीड़ित हुए,वह असुर स्त्रीवध्य है, ऐसा सोचकर स्त्रीरूप धारी तथा युद्ध के लिए स्थित ब्रह्मा जी आदि के साथ में ,असुर युद्ध करने लगा। तब उसके द्वारा पीड़ित किए गए सभी देवता  ब्रह्मा जी के पास पहुंचकर उनसे सबकुछ निवेदन करके , उमापति  के पास जाकर ,पितामह को आगे करके (शिव) की स्तुति करने लगे।इसके बाद देवेश के निकट जाकर अत्यन्त विन्रम भाव से विनती करने लगे-" हे भगवन् ! दारुक महाभयंकर है; हम लोग उससे पहले ही पराजित हो चुके है।स्त्री के द्वारा वध्य उस दारुक का संहार करके आप हम लोगों की रक्षा कीजियें ।।"
बह्मा जी की प्रार्थना सुनकर महादेव ,देवी गिरिजा से हँसते हुए कहा-'हे शुभे ! मैं सभी लोगो के हित के लिए इस स्त्री वध्य दारुक के वध हेतु आज आपसे प्रार्थना करता हूँ।'
तब उनका वचन सुनकर संसार को उत्पन्न करने वाली उन देवेश्वरी ने जन्म के लिए तत्पर होकर शिव के शरीर में प्रवेश किया। वे ( पार्वती) देवताओं मे श्रेष्ठ देवेश्वर में अपने सोलहवें अंश से प्रविष्ट हुई, उस समय ब्रह्मा तथा  इंद्र आदि प्रधान देवता भी इसे नहीं समझ पाए। मंगलमय पार्वती जी को शंभू के समीप देखकर सब कुछ जानने वाले ब्रह्मा भी उनके माया से मोहित हो गए थे। उन महादेव के शरीर में पदस्थ हुए उन पार्वती ने उनके कंठ में स्थित विष से अपने शरीर को बनाया। इसके बाद उन पार्वती को विषभूता जानकर  शिव ने अपने तीसरे नेत्र से  कृष्ण वर्ण के  कंठ वाली काली का प्रादुर्भाव हुआ । उस समय विपुल विजयश्री भी उत्पन्न हुई । अब असिद्धि के कारण देत्यों की  पराजय निश्चित है, इससे भवानी तथा परमेश्वर शिव को प्रसंता हुई। विष से अलंकृत कृष्ण वर्ण के कंठ वाली तथा अग्नि के सदृश स्वरूप वाली  काली को देखकर सभी देवता  और विष्णु, ब्रह्मा, देवता भी उस समय भय के कारण भागने लगे।
 उनके ललाट में शिव की भांति तीसरा नैत्र था तथा मस्तक पर अति तीव्र चंद्र रेखा थी,कंठ में कालकूट विष था, एक हाथ में  विकराल त्रिशूल  था और वे सर्पों के हार आदि धारण किए हुए थी।
 काली के साथ दिव्य वस्त्र धारण किए हुए तथा आभूषणों से विभूषित देवियां, सिद्धों के स्वामी, सिद्धगण तथा पिशाच भीउत्पन्न हुए।
 तब उन पार्वती की आज्ञा से परमेश्वरी काली ने  असुर दारुक का वध कर दिया।।
 उनके अतिशय वेग तथा क्रोध की अग्नि से  संपूर्ण जगत व्याकुल हो उठा। तब ईश्वर भव भी माया से बाल रूप धारण कर उस काली की क्रोधाग्नि को पीने के लिए काशी में शमशान में जाकर रोने लगे।
 उन बालरुप ईशान को देखकर उनके माया से  मोहित उन काली ने  उन्हे उठाकर, मस्तक सुघँकर ,अपना दूध ग्रहण कराया।
 बाल रूप शिव दूध के साथ उनका क्रोध भी पी गये और इस प्रकार वे इस क्रोध से क्षेत्रों की रक्षा करने वाले हो गए। उन बुद्धिमान क्षेत्रपाल (भैरव) की भी आठ मूर्तियां हो गई। इस प्रकार काली उस बालक के द्वारा क्रोधमूर्छित अर्थात क्रोध से मुक्त कर दी गई।
 इसके बाद महादेव ने काली की प्रसन्नता के लिए संध्याकाल में श्रेष्ठ भूतों प्रेतों के साथ तांडव नृत्य किया।
 शंभू के नृत्यामृत का कण्ठ तक पान करके वे परमेश्वरी  श्मशान में नाचने लगी और योगनियाँ भी उनके साथ नाचने लगी ।
वहां पर ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने सभी और से काली को तथा  पार्वती जी को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की।
 इस प्रकार मैंने संक्षेप में शूल धारी प्रभु के तांडव नृत्य का वर्णन कर दिया; योग के आनंद के कारण शिव तांडव होता है '-ऐसा अन्य लोग कहते हैं।
।। इस प्रकार श्री लिंग महापुराण के अंतर्गत पूर्व भाग में "शिवतांडव कथन "नामक एक सौ छठा अध्याय पूर्ण हुआ

सोमवार, 23 मार्च 2020

(आध्यात्मिक बोध कथा)श्रेष्ठतम का सहारा ही श्रेष्ठ होता है

 जो सब में श्रेष्ठ हो का सहारा लेना है श्रेष्ठ होता है


बहुत सी भेड़ बकरियां जंगल में चरने गई । उनमें से एक बकरी चरते चरते एक लता में उलझ गई ।उसको उस लता में निकलने में बहुत देर लगी ,तब तक अन्य सब भेड़ बकरियां अपने घर पहुंच गयें। अंधेरा भी हो रहा था वह बकरी घूमते घूमते एक सरोवर किनारे पहुंची। वहां किनारे की गीली जमीन पर सिंह का एक चरण चिन्ह अंकित था ,उस चरण चिन्ह के शरण होकर उसके पास बैठ गई। रात में जंगली सियार, भेड़िया ,बाघ आदि प्राणी बकरी को खाने के लिए पास में आए तो, उस बकरी ने बता दिया कि पहले देख लेना कि मैं किसके शरण में हूं,, तब मुझे खाना वह चिन्ह को देखकर कहने लगे अरे यह तो सिंह के चरण चिन्ह है। जल्दी भागो यहां से,आ जाएगा तो हम को मार डालेगा। इस प्रकार सभी प्राणी भयभीत होकर भाग गए। अंत में जिसका चरण चिन्ह था, वह  आया और बकरी से बोला तू जंगल में अकेले कैसे बैठी है ।बकरी ने कहा यह चरण चिन्ह देख लेना, फिर बात करना। जिसका यह चरण चिन्ह है उसी के में शरण हुए बैठी हूं। सिंह ने कहा कि वह तो मेरा ही चरण चिन्ह है ,यह बकरी तो मेरे शरण हुई ।सिंह ने बकरी को आश्वासन दिया कि अब तुम डरो मत अराम से रहो। रात में जब  जल पीने के लिए हाथी आया तो उसने हाथी से कहा - "इस बकरी को अपनी पीठ पर चढ़ा लो, इसको जंगल में चरा कर लाया कर, पर हरदम अपनी पीठ पर ही रखा कर, नहीं तो तू जानता  नहीं कि मैं कौन हूंँ? मार डालूंगा!" सिंह की बात सुनकर हाथी थर थर कांपने लगा। उसने अपने सूडं से ऊपर चढ़ा लिया अब  बकरी निर्भय होकर, हाथी की पीठ पर बैठे-बैठे ही वृक्षों की ऊपर की कोंपलें ऊपर खाया करती, मस्त रहती।
 ऐसे ही जब मनुष्य भगवान की शरण हो जाता है उनके चरणों का सहारा ले लेता है। संपूर्ण प्राणियों से,विघ्न बाधाओं से निर्भय हो जाता है। उसको कोई भी भयभीत नहीं कर सकता । उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
 जो जाजो जा को शरण रहे ताकहँ ताकि लाज।
 उल्टे जल मछली चले, ब्रह्माे जात गजराज।।

सोमवार, 2 मार्च 2020

एक खूबसूरत उपहार प्रभु भक्तों के लिए

 नमस्कार ,जय श्री राधे मुझे आज ही किसी ने यह खूबसूरत नोट फॉरवर्ड किया  जो कि प्रभु भक्तों के लिए बहुत ही सुंदर उपहार है। वही मैं आप सब लोगों को भी भेज रही हूं ।इस उपहार का लाभ जरूर उठाइएगा ।बहुत ही सुंदर तरीके से यह आईआईटी कानपुर  ने तैयार किया है



IIT Kanpur has develped a website on our treasures of Vedas, Shahstras etc. Finally someone from today's science & technology field, is pursuing this seriously in india.

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🙏कृपया यह शास्त्रों का खजाना प्रत्येक भारतीय तक फारवर्ड करें। एक साथ गीता, रामायण, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, व अन्य ग्रन्थ पढ़ व सुन भी सकते हैं। कृपया टेक्नोलॉजी का लाभ उठाएं।

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

वैदिक प्रार्थना- ॐ सहनाववतु का भावार्थ

                    ॐ सह नाववतु का भावार्थ-


ॐ   सह नाववतु ।सह नौ भुनक्तु सह वीर्य करवावहै । तेजस्वी नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।

ॐ वह प्रसिद्ध परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को साथ साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एक साथ मिलकर वीर्य यानी विद्या की प्राप्ति के लिए सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष ना करें।
 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः  (कृष्ण यजुर्वेद)

वैदिक प्रार्थना भावार्थ के साथ

                      वैदिक प्रार्थना ॐ पूर्णमद:




            ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्ण मुदच्यते।
             पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
             ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।


 भावार्थ- ॐ यानी कि वह (परब्रह्म) पूर्ण है।
 यह (कार्यब्रह्रम) भी पूर्ण है, क्योंकि पूर्ण से पूर्ण ही निकलता है, (प्रलयकाल में) पूर्ण (कार्य ब्रह्म) का पूर्णत्व लेकर पूर्ण (परब्रह्म) ही शेष रहता है। ॐ शांति: शांति: शांति: (यजुर्वेद)।।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

प्रार्थना- एक ओंकार का अर्थ

                 प्रार्थना एक ओंकार का भावार्थ-

एक ओंकार सतनाम कर्ता पुरूष निर्भऊ निर्वैर
अकाल मूरत अजूनी   सैभं गुरुप्रसाद जप।
आदि सच, जुगादि सच, है भी सच ,
नानक होसी भी सच। वाहेगुरु।।

परमात्मा एक है।उसका नाम सत्य है, अर्थात वह सदा स्थिर और एक रस है ।सृष्टि का कर्ता है, निर्भय और निवैंर है, उसका स्वरूप काल से परे है, वह समय के चक्र में कभी नहीं आता - मृत्यु, रोग और बुढ़ापा उसके लिए नहीं है ।वह अजन्मा है, स्वयंभू है ,पथ-प्रदर्शक है और कृपा की मूर्ति है ।
हे मनुष्य ! तू उसे जप।

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