हम अपने जीवन में उन्नति कर रहे हैं अथवा अवनति यह हमें कैसे पता लगेगा
धार्मिक जीवन में आध्यात्मिक जीवन में हम उन्नति कर रहे हैं अथवा हम नीचे गिर रहे हैं, इस पर भी विचार करना चाहिए। जब भगवत चर्चा, सत्संग प्रिय लगे, भगवान की सेवा पूजा प्रिय लगे, दीन दुखी प्राणियों की सेवा प्रिय लगे, तो समझो कि हम उन्नति की ओर बढ़ रहे हैं। कुसंग में संसारी बातें अच्छी लगे दुष्टों के संग में आसक्ति हो जाए, दूसरों को धोखा देकर, छल कपट से संपत्ति बढ़ाने की इच्छा हो जाए, तो समझो कि हमारी अवनति हो रही है। प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य अवनति से बचकर उन्नति चाहता है। हमारा मन हमारी बुद्धि भगवत सेवा में लग रही है या नहीं, यदि लग रही है तो इसे भगवान की कृपा या प्रेरणा ही समझो। कभी कभी मन की आंखों से प्रभु को सामने खड़ा देखो, कभी बैठे हैं, कभी कुछ कह रहे हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे भगवत का सानिध्य प्राप्त करें। मन में कोई संकट हो व्याकुलता हो तो प्रभु के सामने निवेदन करके निश्चिंत हो जाना चाहिए। जो कुछ भी हो उसे प्रभु की इच्छा मानकर संतुष्ट रहना चाहिए। गुरुदेव की कृपा से शरणागति प्राप्त हुई है। उसका तात्पर्य यह है कि प्रभु हमारे हैं मैं उनका हूं। जिस तरह बच्चे का माता पर, मित्र पर मित्र का, सती साध्वी पत्नी का अपने पति पर प्रेम होता है। अधिकार होता है। उसी प्रकार प्रभु पर प्रेम और अधिकार भक्तों का होता है। ।।जय श्री राधे, जय श्री कृष्णा।।
(दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से)
धार्मिक जीवन में आध्यात्मिक जीवन में हम उन्नति कर रहे हैं अथवा हम नीचे गिर रहे हैं, इस पर भी विचार करना चाहिए। जब भगवत चर्चा, सत्संग प्रिय लगे, भगवान की सेवा पूजा प्रिय लगे, दीन दुखी प्राणियों की सेवा प्रिय लगे, तो समझो कि हम उन्नति की ओर बढ़ रहे हैं। कुसंग में संसारी बातें अच्छी लगे दुष्टों के संग में आसक्ति हो जाए, दूसरों को धोखा देकर, छल कपट से संपत्ति बढ़ाने की इच्छा हो जाए, तो समझो कि हमारी अवनति हो रही है। प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य अवनति से बचकर उन्नति चाहता है। हमारा मन हमारी बुद्धि भगवत सेवा में लग रही है या नहीं, यदि लग रही है तो इसे भगवान की कृपा या प्रेरणा ही समझो। कभी कभी मन की आंखों से प्रभु को सामने खड़ा देखो, कभी बैठे हैं, कभी कुछ कह रहे हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे भगवत का सानिध्य प्राप्त करें। मन में कोई संकट हो व्याकुलता हो तो प्रभु के सामने निवेदन करके निश्चिंत हो जाना चाहिए। जो कुछ भी हो उसे प्रभु की इच्छा मानकर संतुष्ट रहना चाहिए। गुरुदेव की कृपा से शरणागति प्राप्त हुई है। उसका तात्पर्य यह है कि प्रभु हमारे हैं मैं उनका हूं। जिस तरह बच्चे का माता पर, मित्र पर मित्र का, सती साध्वी पत्नी का अपने पति पर प्रेम होता है। अधिकार होता है। उसी प्रकार प्रभु पर प्रेम और अधिकार भक्तों का होता है। ।।जय श्री राधे, जय श्री कृष्णा।।
(दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से)