/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: जुलाई 2023

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शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

कृष्णं वंदे जगदगुरूम्

                कृष्णं वंदे जगदगुरूम्

जिस प्रकार ईशतत्व सर्व व्याप्त है। उसी प्रकार गुरुतत्व सर्व व्याप्त है। गुरु में और कृष्ण में भेद नहीं है। कृष्णम वंदे जगदगुरूम। कृष्ण ही गुरु रूप में मिलकर उपदेश देते हैं। गुरु सेवा से कृष्ण कृपा सुलभ होती है, तात्पर्य यह है कि संत, भगवंत, गुरु में एकता है। संत, भगवंत, गुरु कृपा निरंतर जीवों पर बरसती रहती हैं। जो साधक सात्विक है वे कृपा को पचा लेते हैं और पुष्ट हो जाते हैं। उनका ज्ञान बुद्धि भक्ति सब कुछ पुष्ट हो जाता है। जो कृपा को नहीं पचा पाते हैं, वह दुष्ट हो जाते हैं। जैसे पौष्टिक पदार्थ पचेगा ,तो शरीर पुष्ट होगा। अति मात्रा में सेवन किया गया पौष्टिक तत्व जब नहीं पचता है, तो उल्टे शरीर में रोग पैदा कर देता है। इसलिए कृपा का अनुभव प्रत्येक परिस्थिति में करना चाहिए। यदि प्रभु की कृपा ना हो तो हमारी जिव्हा पर प्रभु का नाम भी नहीं आ सकता है।

।।जय श्री कृष्ण।।

गंगा में गुरु भाव प्रगट होने से.....

                        गंगा में गुरु भाव प्रगट होने से.......

गुरुदेव प्रदेश जाने लगे तो शिष्य से कहा कि गंगा जी को गुरु मानो। मेरे स्थान पर उन्हें प्रणाम करो। शिष्य ने गंगा जी में स्नान, वस्त्र धोना बंद कर दिया। गुरु के आने पर भी गंगा में गुरु भाव बना रहा। लोगों के मन में गुरु भक्ति दृढ़ करने के लिए गुरु ने गंगा में प्रवेश कर के, शिष्य से वस्त्र मांगे। गुरु आज्ञा पालन करना है वस्त्र देना है, पर गंगा में पैर नहीं रखना। धर्म संकट के समय धर्म की निष्ठा की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं। कमल पत्र प्रकट हो गए, उन पर चलकर वस्त्र दिए। गुरु वचनों में विश्वास का अद्भुत दृष्टांत है।

विश्वास से परधाम गए गुरु वापस आए

                 विश्वास से प्रधान गए गुरु वापस आए

संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है। जहां पर श्रद्धा होगी वहीं पर प्रभु अपना रूप प्रकट करके अनुभव करा देते हैं और अश्रद्धा के द्वारा दिया गया दान, हवन तुच्छ ल देता है। श्रद्धा पूर्वक थोड़ा दान भी महान फल देता है। शिष्य प्रदेश जाने लगा तो गुरु ने कहा कि वापस आओगे तो रहस्य की बात बताऊंगा। वापस आते आते गुरु का शरीर छूट गया, पर अपनी श्रद्धा के कारण उसने गुरु के शरीर त्याग को स्वीकार नहीं किया।बिना मुझे उस बात को बताए गुरुदेव भगवान वैकुंठ नहीं जा सकते, गुरु की वाणी में शिष्य का विश्वास था अतः गुरुदेव वैकुंठ में से वापस आ गए और कहा संत में मुझसे अधिक श्रद्धा रखकर सेवा करो। गुरु वचन में विश्वास से रहस्यमय  उपदेश मिला। वैकुंठ जाकर कोई वापस नहीं आता पर शिष्य की श्रद्धा ने गुरु को वापस बुला लिया। पुनः जीवित कर लिया। 

जय गुरुदेव।।

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

परमार्थ के पत्र पुष्प (गुरु महिमा)

                  परमार्थ के पत्र पुष्प( गुरु महिमा)


ईश्वर परम दयालु है। तभी हम लोग सुख पूर्वक रह रहे हैं। यदि हमारे दोषों को प्रभु देखें तो एक क्षण भी हमको सुख ना मिले। जैसे अबोध शिशु के दोषों को देखकर माता-पिता उन पर ध्यान नहीं देते हैं, उसी प्रकार संसारी माता-पिता से भी कई गुना दयालु ईश्वर हम जीवो के दोषों पर ध्यान नहीं देता है। हम पग-पग पर अनेक अपराध करते हैं। भगवत कृपा से सत्संग प्राप्त हो, जीव ईश्वर की शरण में पहुंच जाए तो यह निष्पाप व निर्भय हो जाता है। ईश्वर का नियम है कि वह किसी संत सद गुरु देव की सिफारिश के बिना किसी को नहीं अपनाता है। गुरुदेव के रूप धारण कर ईश्वर ही अपनी प्राप्ति का उपाय बताता है। प्रत्येक शिष्य का गुरु ईश्वर ही होता है। ईश्वर और गुरु एक ही है। फिर भी वह ईश्वर जब गुरु रूप धारण करता है तब ईश्वर की अपेक्षा अधिक दयामय और क्षमाशील होता है। गुरु भक्त पर ईश्वर प्रसन्न रहता है। इतिहास में जिन लोगों ने गुरुवाणी में विश्वास किया, उन्हें प्रत्यक्ष फल मिला। कल्याणकारी शिक्षा देने वाले को गुरु कहते हैं। सर्वप्रथम शिक्षा देने वाले माता-पिता हैं वह गुरु हैं उनमें श्रद्धा विश्वास रखकर उनकी सेवा करनी चाहिए। वर्णमाला तथा लौकिक व्यवहार की शिक्षा देने वाले गुरु हैं। ईश्वर को प्राप्त कराने वाली शिक्षा सद्गुरु होते हैं। लोक में कोई ज्ञान बिना गुरु के नहीं होता है तो फिर ईश्वरीय ज्ञान बिना गुरुदेव के कैसे हो सकता है। गुरुवाणी में विश्वास से परधाम गए गुरु वापस आए और गंगा में गुरु भाव होने से चरणों के नीचे कमल दल प्रकट हो गए ।

सदगुरुदेव भक्त माली श्री गणेश दास जी महाराज दादा गुरु

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