/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: मार्च 2015

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शुक्रवार, 13 मार्च 2015

                           मन में दो विचार क्यों आते हैं और किसकी सुने ?


अक्सर आपने देखा होगा कि हमारे मन में दो तरह के विचार आते हैं ,एक नकारात्मक और एक सकारात्मक ,हम इस दुविधा में रहते हैं कि किसकी सुने या फिर यह दो तरह के क्यों विचार आ रहे हैं ।मेने कही सुना था कि हम सभी के मन में दो तरह के विचार रमण करते हैं ,यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम किसको परोषित करते हैं ,या किसको अधिक  महत्व देते हैं ।यदि आप दुविचारो को अधिक महत्व देने लगोगे तो इस तरह कि विचारधारा आप पर हावी होने लगेगी व् आपके अंदर की सुविचार धारा धीरे -धीरे अपना दम तोड़ देगी और मृत हो जाएगी ।यह कही हद तक इस बात पर निर्भर करता हैं कि हमने किसी संत या सदगुरू का आश्रय लिया हैं या नहीं।हम जितना अपने ईश्वर के नजदीक होते जाएंगे या सदगुरू के सानिध्य में आ जाएगे हमारी विचारधारा उतनी ही सकारात्मक होती चली जाएगी ।हमारे मन में कितने ही नकारात्मक विचार आ जाए वह हम पर हावी नही हो सकते ।हमारे ईश्वर के प्रति आस्था जेसे जेसे बढ़ती जाएगी ,हमारी सोच उतनी ही सकारात्मक होती जाएगी ।यदि कभी विपरीत परिस्थिति में हमारा मन गलत मार्ग में जाने भी लगता हैं तो देर से ही सही लेकिन हमारी आस्था हमारा सात्विक मन हमे गलत मार्ग से बचा कर सही दिशा पर ले ही आता हैं ।इसलिए हमारा मन हमेशा सकरात्मक विचार ही रखे उसके लिए हमे प्रयास करना पड़ेगा ,अभी भी कोशिश करेगे तो भी सफल हो ही जाएंगे-

१  ईश्वर के प्रति लगन लगा लो ,इस सत्य को स्वीकार कर लो कि ईश्वर हैं और वो ही मेरा हैं ।

२  हमारे मन में हमेशा दो तरह के विचार आते हैं एक गलत ,एक सही ।हमेसा सही को अपनाओ ,ईश्वर से प्रार्थना करो कि वो आपका साथ दे ।

३ हमारा खान -पान का भी हमारे विचारो पर असर पड़ता हैं इसलिये कौशिश करे हमेशा सात्विक भोजन ही करे।

४  हमारी संगत  का भी हमारी सोच पर विशेष असर पड़ता हैं , इसलिए हमे  सात्विक विचारधारा वाले लोगो के बीच ही बेठना चाहिए।

५  हमेशा कौशिश करे कि संतो की वाणियों को सुने , धार्मिक विचारो में अपनी रूचि को बढ़ाए, क्योकि जैसी रूचि हमारी होगी वेसी ही हमारी विचारधारा होगी ।

६  जब आप मन में उठने वाली नकारात्मक सोच को या कुविचारों को ज्यादा महत्व नही दोंगे तो वह धीरे धीरे कमज़ोर पड़ने लगेगी और आप पर प्रभावी नहीं हो सकेगी ।

अंत में मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि ईश्वर हम सब को सदबुद्धि दे व् सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा दे व् हमेशा हमारे साथ रहे ताकि हम से अनजाने में भी कोई भूल  न  हो ।
श्री राधे !

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