/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: अगस्त 2014

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गुरुवार, 21 अगस्त 2014

कान का दर्द -

गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात 

है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना 

पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट 

लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर 
समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान 
का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है |
आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -

१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है |

२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है |

३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है |

४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है |

५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है |

६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |

आपके कल्याण की पक्की गारंटी

श्री कृष्णा के 24 अवतार का नियमित पाठ करने से श्री कृष्णा की विशेष कृपा प्राप्त होती है


छप्पय 

जय जय मीन, बराह, कमठ, नरहरि, बलि, बावन 
परशुराम, रघुवीर, कृष्ण,  कीरति जग पावन।
बुद्ध, कल्कि  अरु व्यास पृथु  हरि, हंस मन्वंतर 
यज्ञ ऋषभ, हयग्रीव, धुर्ववरदैन, धन्वंतर।
बद्रिपति, दत्त, कपिलदेव  सनकादिक करुणा करौ 
चौबीस रूप लीला रुचिर श्रीअग्रदास उर पद धरौ।   

उपरोक्त पंक्तियों में  कृष्णा के २४ अवतारों का वर्णन किया हैं ,हमारे गुरु देव जी का कहना हैं कि इनका प्रतिदिन पाठ करने से ठाकुर जी की विशेष कृपा हो जाती हैं, हर रोज इन 24 अवतारों के नामों का पाठ सुबह-सुबह करना चाहिए।
हमारे गुरुदेव मलुकपीठाधीस वृंदावन जी कहते हैं कि जो सुबह उठते ही एवं  रात को सोने से पहले जो इसका पाठ करता है उसके कल्याण की पूरी गारंटी है।
।।जय श्री कृष्ण।।
श्री मलूकदासजी  कृत 
श्री भक्तनामावली 

राम राइ  तुम राजा जन परजा तेरे सुमिरन करते भारी। 
अपनी अपनी टहलैं लागें जो जाकें आधिकारी।।
शंकर नाचे नारद उघटै सुकदेव ताळ बजावें। 
दे दे तारी सनक सनंदन सेस सहस मुख गावैं।।
अंबरीष बलि ब्यास पंडवा अरु पंडो की दासी। 
खड़े रहैं दरबार तुम्हारे वीनती सुनु अविनासी।।
ध्रुव प्रह्लाद विदुर अरु भीष्म भली करीं सबकाई। 
हनुमान अक्रूर सुदामा सेवरी अति मन भाई।।
अमरधुज  तमरधुज ऊधौ कहँ लग दास गनाऊं। 
कहे मलूक दहु मोहिं आज्ञा अब कलियुग के ल्याऊँ।।
रैदास प्रेम की पनही बनावे ज्ञानहि गिने कबीरा। 
नामदेव सुरति का वागा सीवे माधो दास चलोवै वीरा।।
धन्नाधीर की खेती करता पीपै प्रीत लगाईं। 
सेन भजन को मर्दन करता चरण धोवै मीरा बाई।।
धर्म खटिक खिदमति कौं राखा घियु को घातभ मैना। 
तत कथन को नानक राखा सदा करे सुख चॆना।।
सूरदास परमानन्द स्वामी इन नीका मत ठाना। 
महामधुर पद नितहिं सुनावहिं मधि मधिं वेद पुराना।।
रामानंद तिलोचन जैदेव ए क़ुछ बहुत कहाते। 
जिभ्या स्वाद तजे तुम कारन गिरे परें फल खातें।।
दादू पवन चतुर्भुज कालू अनभै काजें लागैं।
गगन मंडल में सर्वस पाया भर्म कर्म ते भागें।।
परमदास रामदास बनिया  नेनादास मुरारी।
 कामदास और दरिया नन्द आए सरन तुम्हारी।।
जनवाजी दारांका बाँका कुवा जति कुंभारा।
मकरंद केवल कान्हा सदना एक़ तै एक प्यारा।।
देवल केवल परसा सोभू मुनिद्रिका जगीं ग्यानी। 
नरसी नापा मिरज़ा साल्हे बोलत अमृत बानीं।।
तुलसीदास अजामिल गनिका वीलमंगल गोपारा। 
जड़भरत अरु जनक विदेही धूरी तनहि विसारा।।
गोरख दत्त वसिष्ट रामानुज आदिक जे अचारज। 
चरन कवल ह्रिदय में राखें करत सकलई कारज।।
कहत मलूक निरंजन देवा मोहिं अपना क़र लीजै। 
एन के संग कमाऊँ रैनि दिन भगति मजूरी दीजै।।


भय वास्तव में है क्या?




भय मन की कल्पना हैं 

हम सोचकर देखे -हमे भय क्यों होना चाहिए ?
जब सब जगह अनन्तशक्ति सम्पन्न ,सब कुछ जानने वाला ,हमारे प्रति अनन्तसोहार्दमय  प्रभु ही नित्य निरन्तर अवस्थित हैं तो किस प्राणी -पदार्थ से हम भय करे ?खूब गहराई से सोचे ,भय एक झूठ मूठ अनादिकाल से कल्पित मन की कल्पना हैं। हमे मामूली से मामूली बात पर भय होने लगता हैं ;न जाने कितने प्रकार के भय हमे घेरे हुए हैं। क्यों नहीं हम प्रत्येक प्रतिकूल लगने वाली परिस्थिति में अपनी आँख प्रभु  की और कर लेते है, और निरन्तर पास में रहने वाले ,सर्वशक्तिमय ,सब कुछ जानने वाले ,अनंत, सोहार्दमय प्रभु पर ही सब प्रकार के भय को पूजा के रूप में सदा के लिए समर्पित कर देते ?हम सब स्थितियों में सोचने लग जाएं -`जैसे प्रभु की इच्छा होगी ,हो जाएगा। इसमें डरने की क्या बात हैं ?`-सच माने ,भय की सम्पूर्ण स्थितियां बदलने लगेगी और हमारा मन सच्चिदानंदमय आनन्द से भरने लगेगा। 

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