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गुरुवार, 21 अगस्त 2014

श्री मलूकदासजी  कृत 
श्री भक्तनामावली 

राम राइ  तुम राजा जन परजा तेरे सुमिरन करते भारी। 
अपनी अपनी टहलैं लागें जो जाकें आधिकारी।।
शंकर नाचे नारद उघटै सुकदेव ताळ बजावें। 
दे दे तारी सनक सनंदन सेस सहस मुख गावैं।।
अंबरीष बलि ब्यास पंडवा अरु पंडो की दासी। 
खड़े रहैं दरबार तुम्हारे वीनती सुनु अविनासी।।
ध्रुव प्रह्लाद विदुर अरु भीष्म भली करीं सबकाई। 
हनुमान अक्रूर सुदामा सेवरी अति मन भाई।।
अमरधुज  तमरधुज ऊधौ कहँ लग दास गनाऊं। 
कहे मलूक दहु मोहिं आज्ञा अब कलियुग के ल्याऊँ।।
रैदास प्रेम की पनही बनावे ज्ञानहि गिने कबीरा। 
नामदेव सुरति का वागा सीवे माधो दास चलोवै वीरा।।
धन्नाधीर की खेती करता पीपै प्रीत लगाईं। 
सेन भजन को मर्दन करता चरण धोवै मीरा बाई।।
धर्म खटिक खिदमति कौं राखा घियु को घातभ मैना। 
तत कथन को नानक राखा सदा करे सुख चॆना।।
सूरदास परमानन्द स्वामी इन नीका मत ठाना। 
महामधुर पद नितहिं सुनावहिं मधि मधिं वेद पुराना।।
रामानंद तिलोचन जैदेव ए क़ुछ बहुत कहाते। 
जिभ्या स्वाद तजे तुम कारन गिरे परें फल खातें।।
दादू पवन चतुर्भुज कालू अनभै काजें लागैं।
गगन मंडल में सर्वस पाया भर्म कर्म ते भागें।।
परमदास रामदास बनिया  नेनादास मुरारी।
 कामदास और दरिया नन्द आए सरन तुम्हारी।।
जनवाजी दारांका बाँका कुवा जति कुंभारा।
मकरंद केवल कान्हा सदना एक़ तै एक प्यारा।।
देवल केवल परसा सोभू मुनिद्रिका जगीं ग्यानी। 
नरसी नापा मिरज़ा साल्हे बोलत अमृत बानीं।।
तुलसीदास अजामिल गनिका वीलमंगल गोपारा। 
जड़भरत अरु जनक विदेही धूरी तनहि विसारा।।
गोरख दत्त वसिष्ट रामानुज आदिक जे अचारज। 
चरन कवल ह्रिदय में राखें करत सकलई कारज।।
कहत मलूक निरंजन देवा मोहिं अपना क़र लीजै। 
एन के संग कमाऊँ रैनि दिन भगति मजूरी दीजै।।


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जय श्री राधे

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