/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: नवंबर 2019

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गुरुवार, 28 नवंबर 2019

पान वाले चूने से होते हैं हमारे शरीर को बहुत से फायदे----

                           चूने से होने वाले फायदे

 जब भी किसी को पीलिया हो जाए,  उसके सबसे अच्छी दवा है चुना। गेहूं के दाने के बराबर चूना ले लीजिए। गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से पीलिया में आराम मिल जाता है।

 गेहूं के दाने के बराबर चूना लीजिए, उसे दही में मिलाकर या दाल में मिलाकर, नहीं तो पानी के साथ मिला कर ले लीजिए शरीर में होने वाली कैल्शियम की कमी को दूर करता है। 50 की उम्र के बाद जिनको कैल्शियम की कमी हो जाती है, उन्हें गेंहू के दाने के बराबर  पानी में लेने से, कैल्शियम की कमी दूर हो जाती है ।जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता है, और मासिक धर्म रुकने के बाद होने वाली सभी तरह की की परेशानियों से आराम मिल जाता है।एनीमिया की प्रॉब्लम हो तो चूने से आराम मिलता है।
 कई बार हमारी रीढ़ की हड्डियों में gape  पाया जाता है, वह भी चूने से आराम मिलता है। अनार के रस में गेहूं के दाने के बराबर चूना मिलाकर पीने से खून बहुत ज्यादा बढ़ता है। घुटने में घिसाव आ जाता है, उसके लिए भी चुना बहुत लाभकारी है। हारसिंगार का काढ़ा पीने से भी घुटने के घिसाव में आराम मिलता है। इसलिए चूने के बहुत फायदे हैं। अगर शुरू से ही चूना ,चावल या गेहूं के दाने के बराबर लिया जाए, हफ्ते में दो बार ले लीजिए । लंबे समय तक कभी भी कोई प्रॉब्लम नहीं आएगी।
चूना पान की  दुकान पर या ऑनलाइन भी मिल जाता है। ड्राई पाउडर ले लिया जाए ,तो उसे लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

आप अकेले नहीं आपके आसपास कोई है जो कह रहा है मैं हूं ना और वह है हम सबके प्रभु

                                  मैं हूं ना

यह शब्द देखने में तो छोटे हैं ,लेकिन जब कोई अकेला और उदास होता है।तो इन शब्दों के मायने बढ़ जाते हैं। जब हम छोटे होते हैं और हमें किसी खिलौने की तलाश होती है, तो मां और पिता नजर आते हैं,, जो कह रहे होते हैं मैं हूं ना ।जब हमें एग्जाम में नोट्स की या स्टडी की जरूरत होती है ,तो दोस्त होते हैं करीबी ,जो कहते हैं मैं हूं ना। जब हमें जीवन में आगे बढ़ना होता है चाहे वह पढ़ाई का क्षेत्र हो, चाहे वह जॉब्स या व्यापार का, उस समय पिता सामने होते हैं ,जो कह रहे होते हैं- मैं हूं ना ।चिंता क्यों करते हो/ या करती हो। ऐसे ही जब हम बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता साथ नहीं होते हैं, वह हमें छोड़कर जा चुके होते हैं । तो केवल और केवल एक ईश्वर का साथ ही होता है, जो हमें अकेले होने पर वह हमारा साथ देता है। उस पर अगर आपका विश्वास हो, और श्रद्धा हो,, तो ईश्वर हर मोड़ पर, हर जगह यही अहसास दिलाता है कि ,तू अकेला नहीं है मैं हूं ना। तो विश्वास को बनाकर रखिए। ईश्वर से जुड़े रहिए। तो आप कभी भी अकेले नहीं हो सकते- क्योंकि वह है ना। हमारे आसपास, हर पल ,हर समय।बस श्रद्धा  और विश्वास होना चाहिए।
जय श्री राधे🙏

बुधवार, 27 नवंबर 2019

क्या आप जल्दी ही सभी दुखों से मुक्ति चाहते हैं तो श्री रामायण मनका 108 का हफ्ते में एक बार पाठ जरूर करें।

     जिनके पास पूरी रामायण पढ़ने का समय नहीं है, वह यह रामायण मनका पढ़कर लाभ उठा सकते हैं।                                                       श्री रामायण मनका 108

रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
जय रघुनंदन जय घनश्याम। पतित पावन सीताराम।।
भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दुख हमारे।।
दशरथ के घर जन्मे राम। पतित पावन सीताराम।।
विश्वामित्र मुनीश्वर आये। दशरथ भूप से वचन सुनाए।।
संग में भेजें लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम।।
वन में जाए ताड़का मारी। चरण छू आए अहिल्या तारी।।
ऋषियों के दुख हरते राम। पतित पावन सीताराम।
जनकपुरी रघुनंदन आए। नगर निवासी दर्शन पाए।।
सीता के मन भाए राम। पतित पावन सीताराम।।
रघुनंदन ने धनुष चढ़ाया। सब राजों का मान घटाया।।
सीता ने वर पाए राम। पतित पावन सीताराम।।
परशुराम क्रोधित हो आए। दुष्ट भूप में मन में हरषायें।।
जनक राय ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
बोले लखन सुनो मुनि ज्ञानी। संत नहीं होती अभिमानी।।
मीठी वाणी बोले राम। पतित पावन सीताराम।।
लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो। जो कुछ दंड दास को दीजो।।
धनुष तुड़इया मै हूं राम। पतित पावन सीताराम।।
लेकर के यह धनुष चढ़ाओं। अपनी शक्ति मुझे दिखाओ।। छुवत चाप चढ़ाए राम। पतित पावन सीताराम।।
हुई उर्मिला लखन की नारी।श्रुति कीर्ति रिपुसूदन प्यारी।।
हुई मांडवी भरत केबाम।पतित पावन सीता राम।।
अवधपुरी रघुनंदन आए घर घर नारी मंगल गायें।।
12 वर्ष बिताए राम। पतित पावन सीताराम।।
गुरु वशिष्ट से आज्ञा लीनी।  राज तिलक तैयारी कीनी।।
कल को होंगे राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
कुटिल मंथरा ने बहकाई। कैकई ने यह बात सुनाई।।
दे दो मेरे दो वरदान। पतित पावन सीताराम।।
मेरी विनती  तुम सुन ली जो। भरत पुत्र को गद्दी दीजो।।
होत प्रात वन भेजो राम। पतित पावन सीताराम।।
धरनी गिरे भूप तत्काल। लगा दिल में शूल विशाल।।
तब सुमंत बुलवाएं राम। पतित पावन सीता राम।।
राम पिता को शीश नवाए। मुख से वचन कहा नहीं जाए।।
कैकई वचन सुनायो राम। पतित पावन सीताराम।।
राजा के तुम प्राणों प्यारे। इनके दुख हरोगे सारे।।
अब तुम वन में जाओ राम। पतित पावन सीता राम।।
वन में 14 वर्ष बिताओ ।रघुकुल रीत नीति अपनाओ।।
आगे इच्छा तुम्हरी राम। पतित पावन सीता राम।।
सुनत वचन राघव हर्षाए। माता जी के मंदिर आए।।
चरण कमल में किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
माताजी में तो वन जाऊं।14 वर्ष बाद फिर आऊँ।।
चरण कमल देखूँ सुखधाम। पतित पावन सीताराम।।
सुनी शूल सम जब यह बानी। भू पर गिरी कौशिला रानी।।
धीरज बना रहे श्री राम। पतित पावन सीता राम।।
सीता जी जब यह सुन पाई ।रंग महल से नीचे आई।
कौशल्या को किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
मेरी चूक क्षमा कर दीजो। वन जाने की आज्ञा दीजो।।
सीता को समझाते राम। पतित पावन सीताराम।।
मेरी सीख सिया सुन लीजो। सास-ससुर की सेवा कीजो।। मुझको भी होगा विश्राम। पतित पावन सीताराम।।
मेरा दोष बता प्रभु दीजो। संग मुझे सेवा मे लीजो।।
अर्धांगिनी तुम्हारी राम। पतित पावन सीताराम।।
समाचार सुनि लक्षमण आए। धनुष बाण संग परम सुहाए।। बोले संग चलूंगा श्री राम। पतित पावन सीताराम।।
राम लखन मिथिलेश कुमारी। वन जाने की करी तैयारी।।
रथ में बैठ गए सुखधाम। पतित पावन सीताराम।।
अवधपुरी के सब नर नारी। समाचार  सुन व्याकुल भारी।। मचा अवध में अति कोहराम। पतित पावन सीताराम।। श्रृंगवेरपुर रघुवर आए। रथ को अवधपुरी लौटाए।।
गंगा तट पर आए राम। पतित पावन सीता राम।।
केवट कहे चरण धूल वाओ। पीछे नौका में चढ़ जाओ।।
पत्थर कर दी नारी राम। पतित पावन सीताराम।।
लाया एक कठोता पानी। चरण कमल धोए सुखमानी।।
नाव चढ़ाए लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम।।
उतराई में मुद्री दीन्ही। केवट ने यह विनती कीन्ही।।
उतराई नहीं लूंगा राम। पतित पावन सीताराम।।
तुम आए हम घाट उतारे। हम आएंगे घाट तुम्हारे।।
तब तुम पार लगाओ राम। पतित पावन सीताराम।।
भारद्वाज आश्रम पर आए ।राम लखन ने शीश नवाए।।
एक रात कीन्हा विश्राम।  पतित पावन सीताराम।।
भाई भरत अयोध्या आए।  कैकई को कटु वचन सुनाए।।
क्यों तुमने वन भेजे राम। पतित पावन सीताराम।।
चित्रकूट रघुनंदन आए।वन को देख सिया सुख पाए।।
मिलें भरत से भाई राम। पतित पावन सीता राम।।
अवधपुरी को चलिए भाई ।यह सब कैकई की कुटीलाई ।।तनिक दोष नहीं मेरा राम ।पतित पावन सीता राम।।
चरण पादुका तुम ले जाओ। पूजा कर दर्शन फल पावो।।
भरत को कंठ लगाए राम ।पतित पावन सीताराम।।
आगे चले राम रघुराई। निशाचर को वशं मिटाया।।
ऋषियों के हुए पूर्ण काम। पतित पावन सीताराम ।।
अनसूया की कुटिया आए ।दिव्य वस्त्र सीता माँ ने पाए।।
था यह  अत्रि  मुनि  का  धाम। पतित पावन सीताराम।।
मुनि स्थान आए रघुराई। सुपनखा की नाक कटाई।।
खर दूषण को मारे राम। पतित पावन सीताराम।।
पंचवटी रघुनंदन आए। कनक मृगा के संग में धाए।।
लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम। पतित पावन सीताराम।।
रावण साधु वेश में आया। भूख ने मुझको बहुत सताया।। भिक्षा दो यह धर्म का काम। पतित पावन सीताराम।।
भिक्षा लेकर सीता आई। हाथ पकड़ रथ में बैठाई।।
सुनी कुटिया देखी राम ।पतित पावन सीताराम।।
धरनी गिरे राम रघुराई। सीता के बिन व्याकुलता आई।।
हे प्रिय सीते,चीखे राम। पतित पावन सीताराम।।
लक्ष्मण, सीता छोड़ ना आते। जनक दुलारी को नहीं गवांते।। बने बनाए बिगड़े काम। पतित पावन सीताराम।।
कोमल बदन सुहासिनी सीते। तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते।।
लगे चांदनी- जैसे घाम। पतित पावन सीताराम।।
सुन री मैना, सुन रे तोता। मैं भी पंखों वाला होता।।
वन वन लेता ढूंढ तमाम। पतित पावन सीताराम।।
श्यामा हिरनी तू ही बता दे । जनक नंदिनी मुझे मिला दे।।
तेरे जैसी आंखें श्याम ।पतित पावन सीताराम।।
वन वन ढूंढ रहे रघुराई। जनक दुलारी कहीं ना पाई।।
गिद्धराज ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
चखकर के फल शबरी लाई।प्रेम सहित खाए रघुराई।।
ऐसे मीठे नहीं है आम। पतित पावन सीताराम।।
विप्र रुप धरि हनुमंत आए।चरण कमल में शीश नवाए।।
कंधे पर बैठाए राम। पतित पावन सीताराम।।
सुग्रीव से करी मिताई। अपनी सारी कथा सुनाई।।
वाली पहुंचाया निजधाम ।पतित पावन सीताराम।।
सिहासन सुग्रीव बिठाया । मन में यह अति ही हर्षाया।।
वर्षा ऋतु आई है राम।पतित पावन सीताराम।।
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ। वानर पति को यू समझाओ।। सीता बिन व्याकुल है राम। पतित पावन सीताराम।।
देश देश वानर भिजवाई ।सागर के सब तट पर आए।।
सहते भूख प्यास और घाम।पतित पावन सीताराम।।
संपाती ने पता बताया। सीता को रावण ले आया।।
सागर कूद गए हनुमान। पतित पावन सीताराम।।
कोने कोने पता लगाया। भगत विभीषण का घर पाया।
हनुमान ने किया प्रणाम ।पतित पावन सीताराम।।
अशोक वाटिका हनुमान आए।वृक्ष तलें सीता को पाएं।।
आंसू बरसे आठो याम ।पतित पावन सीताराम।।
रावण संग निशाचरी लाके। सीता को बोला समझा के।।
मेरी ओर तो देखो बाम ।पतित पावन सीताराम।।
मंदोदरी बना दूं दासी। सेवा में सब लंका वासी।।
करो भवन चलकर विश्राम। पतित पावन सीताराम।।
चाहे मस्तक कटे हमारा। मैं देखूं ना बदन तुम्हारा।।
 मेरे तन मन धन है राम। पतित पावन सीताराम।।
ऊपर से मुद्रिका गिराई ।सीता जी ने कंठ लगाई।।
हनुमान ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
मुझको भेजा है रघुराया। सागर कूद यँहा में आया।।
मैं हूं दास राम हनुमान।पतित पावन सीताराम।।
भूख लगी फल खाना चाँहू।जो माता की आज्ञा पाऊं।।
सबके स्वामी है श्री राम। पतित पावन सीताराम।।
सावधान होकर फल खाना।रख वालों को भूल ना जाना।। निशाचरों का है यह धाम। पतित पावन सीताराम।।
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े।देख देख माली ललकारे।।
मार मार पहुंचाए धाम। पतित पावन सीताराम।।
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया। इंद्रजीत फांसी ले आया।। ब्रहम फाँस में फँसे हनुमान। पतित पावन सीताराम।।
सीता को तुम लुटा दीजो। उनसे क्षमा याचना कीजो।।
तीन लोक के स्वामी राम। पतित पावन सीताराम।।
भगत विभीषण ने समझाया। रावण ने उस को धमकाया।।
सन्मुख देख रहे हनुमान। पतित पावन सीताराम।।
रुई तेल घृत वसन मँगाई। पूछ बांधकर आग लगाई है।।
पूंछ घुमाई है हनुमान। पतित पावन सीता राम।।
लंका में आग लगाई। सागर में जा पूछ बुझाई।।
हृदय कमल में राखे राम। पतित पावन सीताराम।।
सागर कूद लौट कर आए। समाचार रघुवर ने पाए।।
जो मांगा सो दिया इनाम। पतित पावन सीताराम।।
वानरी रीछ संग में लाए।लक्ष्मण सहित सिंधु तटआए।।
लगे सुखाने सागर राम। पतित पावन सीताराम।।
सेतु कपि नल नील बनावे।राम राम लिख सिला तेरावें।।
लंका पहुंचे राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
अंगद चल लंका में आया। सभा बीच में पांव जमाया।।
बाली पुत्र महाबल धाम।पतित पावन सीता राम।।
रावण पांव हटाने आया।अंगद ने फिर पांव उठाया।।
क्षमा करे तुझको श्री राम। पतित पावन सीताराम।।
निशाचरों की सेना आई।गरज़ गरज़ फिर हुई लड़ाई।।
वानर बोले जय सिया राम। पतित पावन सीताराम।।
इंद्रजीत ने शक्ति चलाई। धनी गिरे लखन मुरझाए।।
चिंता करके रोए राम। पतित पावन सीता राम।।
जब मैं अवधपुरी से आया। हाय पिता ने प्राण गंवाया।।
बन में गई चुराई बाम। पतित पावन सीताराम।।
भाई तुमने भी छिटकाया। जीवन में कुछ सुख नहीं पाया।। सेना में भारी कोहराम।पतित पावन सीताराम।।
जो संजीवनी बूटी को लाए। तो भाई जीवित हो जाए।।
बूटी लाए तब हनुमान।पतित पावन सीताराम।।
जब बूटी का पता ना पाया। पर्वत ही ले कर के आया।।
काल नेम पहुंचाया धाम। पतित पावन सीता राम।।
भक्त भरत ने बाण चलाया।चोट लगी हनुमत लंगडाया।।
मुख से बोले जय सिया राम। पतित पावन सीता राम।।
बोले भरत बहुत पछता कर। पर्वत सहित बाण बैठाकर।।
तुम्हें मिला दूं राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
बूटी लेकर हनुमत आया।लखन लाल उठ शीश नवाया।। हनुमत कंठ लगाए राम।पतित पावन सीताराम।।
कुंभकरण उठ कर तब आया ।एक बाण से उसे गिराया।। इंद्रजीत पहुंचाया धाम।पतित  पावन सीताराम।।
दुर्गा पूजन रावण कीनो। 9 दिन तक आहार न लीनो।।
आसन बैठ किया है ध्यान। पतित पावन सीता राम।।
रावण का व्रत खंडित कीना। परमधाम पहुंचा ही देना।।
वानर बोले जय सियाराम।पतित पावन सीताराम।।
सीता ने हरी दर्शन कीना। चिंता शोक सभी तज दीना।।
हंस कर बोले राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
पहले अग्निपरीक्षा पाओ। पीछे निकट हमारे आओ।।
तुम हो पतिव्रता हे बाम। पतित पावन सीताराम।।
करी परीक्षा कंठ लगाई।सब वानर सेना हरषाई।।
राज्य विभीषण दीना राम। पतित पावन सीताराम।।
फिर पुष्पक विमान मंगवाया। सीता सहित बैठे रघुराया।। दंडक वन में उतरे राम। पतित पावन सीताराम।।
ऋषिवर सुन दर्शन को आए। स्तुति कर मन में हर्ष आए।।
तब गंगा तट आए राम। पतित पावन सीताराम।।
नंदीग्राम पवनसुत आए। भगत भरत को वचन सुनाए।।
लंका से आए हैं राम। पतित पावन सीता राम।।
कहो विप्र तुम कहाँ से आए। ऐसे मीठे वचन सुनाएं।।
मुझे मिला दो भैया राम। पतित पावन सीताराम।।
अवधपुरी रघुनंदन आए ।मंदिर मंदिर मंगल छायो।।
माताओं को किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
भाई भरत को गले लगाया। सिहासन बैठे रघुराया।।
जग ने कहा राजा राम । पतित पावन सीताराम।
सब भूमि विप्रो को दीनी।विप्रो ने वापस दे दीन्ही।।
हम तो भजेंगे राजाराम।पतित पावन सीताराम।।
लव कुश हुए दो भाई ।धीर वीर ज्ञानी बलवान।।
जय सियाराम ,जय सियाराम ,जय सियाराम ,जय सियाराम पतित पावन सीताराम, जय सियाराम, जय सियाराम ,पतित पावन सीताराम ,जय सियाराम, जय सियाराम ,पतित पावन सीताराम, जय सियाराम, जय सियाराम ,जय सियाराम( यहां पर हम श्री राम जी और सीता जी के विरह के विषय में बात नहीं करेंगे क्योंकि वह क्षण मुझे पसंद नहीं है।)
"यह माला पूरी हुई मनका 108, मनोकामना पूर्ण हो नित्य करे जो पाठ।।"

रविवार, 24 नवंबर 2019

गुरु गीता से लाभ

                            गुरु गीता से लाभ  

जब हम गुरु गीता का पाठ करते हैं तो बस हम उसे पढ़ ही नहीं रहे होते बल्कि हम अपने अंतर में श्री गुरु की पूजा कर रहे होते हैं। गुरु गीता, गुरु की चैतन्य मंत्र- देह है। गुरु गीता के प्रत्येक अक्षर में श्री गुरु का वास है। हम गुरु पूजा ही कर रहे होते हैं।
 स्वामी मुक्तानंद

स्वंय शास्त्रों का व ग्रंथों का अध्ययन करने से क्या लाभ होता है?

              स्वाध्याय का अर्थ श्री गुरु के शब्दों में

जब तुम शास्त्रों का पाठ करते हो या सिद्ध जनों द्वारा रचित ग्रंथ पढ़ते हो  , तो तुम सकारात्मक ऊर्जा का एक भंडार बना लेते हो । तुम एक अत्यंत उत्थान कारी वातावरण का निर्माण कर लेते हो । तुम अपने अस्तित्व की समस्त कोशिकाओं को शुद्ध कर लेते हो। पवित्र ग्रंथों का नित्य पाठ करना, पवित्र नदियों में स्नान करने जैसा है। यह मन को तरोताजा करता है, वाणी को निर्मल कर देता है और तुम्हें शक्ति से भर देता है।    - गुरुमाई चिद्विलासानंद

सोमवार, 18 नवंबर 2019

मंत्रधुन का महत्व

                                 मंत्रधुन


जब तुम बहुत समय तक निरंतर मंत्र धुन गाते हो तो तुम मंत्र की अग्नि को उत्पन्न कर रहे हो, जो तुम्हारी संपूर्ण सत्ता में फैल जाती है।
 - गुरुमाई चिद्विलासान्नद
इसलिए जब कभी कुछ विपदा हो, कुछ संकट हो, मन निराश हो ,चारों ओर निराशा ही निराशा नजर आ रही हो। तो जो भी मंत्र आपको पसंद है ।जिस मंत्र से भी आपके मन को शांति मिलती है। उस मंत्र को आप जरूर सुनिए, घर में ऑडियो क्लिप के द्वारा या वीडियो के द्वारा घर में चला दीजिए। जब आपके घर में वह मंत्र प्रतिदिन चलता रहेगा ,तो आप महसूस करेंगे ,धीरे-धीरे आपके मन में और आपके घर में और आपके जीवन में शांति आ रही है। एक बार करके जरुर देखिएगा। मंत्र जब घर में चलता है ,तो आपके दिमाग में जो नकारात्मक सोच होती है, और जो आपके जीवन में, आपके विचार में नकारात्मक सोच होती है। वह धीरे-धीरे खत्म हो जाती है और आपके अंदर विश्वास पैदा हो जाता है और यही विश्वास आपको हर संकट में लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
राम राम

रविवार, 17 नवंबर 2019

मनन के लिए श्री गुरु के शब्द

                       मनन के लिए श्री गुरु के शब्द

सेवा का अर्थ है ,बिना किसी अपेक्षा या शर्त के अपना समय और अपनी शक्ति अर्पित करना और इस तरह से,
पूर्ण स्वतंत्रता के साथ काम कर पाना।
सेवा का अर्थ है ,उच्चतम उद्देश्य के लिए कार्य करना,
दूसरे मनुष्य की योग्यता को पहचानते हुए कार्य करना और जीवन के मूल्यों को ध्यान में रखना।
सेवा का अर्थ है ,कार्य को ऐसे करना जैसे पूजा का एक रूप हो ,भगवान की महिमा गाने का
एक तरीका हो, परमोच्च प्रेम के लिए किया गया एक अर्पण हो ।
गुरु माई चिद्विलासानन्द

बुधवार, 6 नवंबर 2019

श्री राधा माधव के यवन भक्त श्री सनम साहब

        श्री राधा माधव के यवन भक्त श्री सनम साहब

भक्त  श्री सनम साहब जी का पूरा नाम था- मोहम्मद याकूब साहब। आपका जन्म सन् 1883 ईस्वी के लगभग अलवर में हुआ था। इनके पिता अजमेर के सरकारी अस्पताल के प्रधान चिकित्सक थे। इनकी मां एक पठान की पुत्री थी, फिर भी पूर्व जन्म के संस्कार वश उन्हें गोस्वामी श्री तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस पढ़ने और गाने का शौक था। श्री राम जी की कृपा से उन्हें श्री रामचरितमानस के मूल ग्रंथ वाल्मीकि रामायण को पढ़ने की इच्छा हुई। किंतु पर्दे में रहने के कारण बाहर जाना नहीं हो सका। तो उन्होंने एक पंडित जी को घर बुलवाकर रामायण सुनने की इच्छा व्यक्त की। किंतु उसमें भी सफलता नहीं मिली । तब मां ने कहा- 'बेटे ,तुम संस्कृत पढ़ लो ।"पर कोई पंडित गोमांस तथा प्याज खाने वाले मुसलमान को संस्कृत पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ। माता पुत्र  ने निश्चय पूर्वक मांस आदि का त्याग कर दिया। फिर मां के कहने पर सनम साहब ने पंडित गंगा सहाय शर्मा से सारी बात बताई और उनकी अनुमति मिलने पर पंडित जी से संस्कृत पढी। भागवत आदि ग्रंथों के अध्ययन के पश्चात उनका चित्त श्री राधा माधव के प्रति आकृष्ट हो गया और उन्होंने अपने सुहृद्
भगवानदास भार्गव के माध्यम से ब्रिज के एक संत श्री सरस माधुरी- शरणजी से युगल मंत्र की दीक्षा प्राप्त की ।यद्यपि दीक्षा के उपरांत इनका नाम 'श्यामाशरण' हुआ फिर भी गुरुदेव इन्हें  स्नेहवश सनम कहते थे। सनम साहब के भगवत अनुराग तथा वैष्णवोचित वेश में क्रुद्ध धर्मांध मुसलमानों ने इनका भाँति-भाँति से अवकार किया। किंतु सर्वत्र यह भगवत कृपा से रक्षित होते रहे। इन्होंने श्री निकुंज लीलाओं के माधुरी से ओतप्रोत बहुत से पदों की रचना की तथा राधासुधानिधि एंव मधुराष्टकं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। सरस सद्गुरुविलास आदि इनके स्व प्रणीत ग्रंथ है। इन्होंने हिंदी, बृज भाषा तथा अंग्रेजी में ग्रंथों का वर्णन किया है ।प्रसिद्ध कृष्ण भक्त अंग्रेज रोनाल्ड निक्सनने कृष्ण प्रेम की स्फूर्ति इन्हीं से प्राप्त की थी। श्री मालवीय जैसे प्रख्यात महापुरुषों के साथ सनम साहब का अति सोहार्दपूर्ण संबंध था इन्होंने अलवर में श्री कृष्ण लाइब्रेरी की स्थापना की। जिसमें लगभग 1200 कृष्ण भक्ति परक ग्रंथ संगृहीत है ।यह राधा अष्टमी आदि के अवसर पर उल्लास पूर्वक महोत्सव का आयोजन करते थे ।सनम साहब के भक्तिप्रवण चित्त में समय-समय पर राधा माधव की निकुंज लीलाओं की स्फूर्ति होती रहती थी। उन्हें दो बार राधा माधव का प्रत्यक्ष दर्शन भी हुआ था ।वे चाहते थे कि राधा माधव के श्री चरणों में ही उनका देहपात हो, वैसा हुआ भी,सन् 1945 में शरद पूर्णिमा के दिन उनकी इच्छा पूर्ण हुई। वृंदावन में एक स्थान पर रासलीला में सखियां गा रही थी- अनुपम माधुरी जोड़ी हमारे श्याम श्यामा की।
रसीली मद भरी अखियां हमारे श्याम श्यामा की।।
 कतीली भोंह अदा बाकी सुघर सूरत मधुर बतियां।
 लटक गर्दन की अनबँसिया हमारे श्याम श्यामा की।
*            *            *           *
 नहीं कुछ लालसा धन की, नहीं निर्वान की इच्छा ।
सखी श्यामा मिले सेवा हमारे श्याम श्यामा की।।
 उन्हीं सखियों के साथ स्वर मिलाकर गाते गाते सनम साहब ने श्याम श्यामा के श्री चरणों में सदा के लिए माथा टेक दिया। विस्मित अवाक् दर्शकों ने इनके भक्तिभाव एंव सौभाग्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और प्रेमाश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अंतिम विदा दी ।
।।जय श्री राधे ,जय श्री श्याम, जय श्री कृष्णा।।

श्री कृष्ण दीवाने रसखान जी

                   श्री कृष्ण दीवाने रसखान जी

 हमारे बांके बिहारी कोई -ना -कोई  अहेतु की लीला करते ही रहते हैं। उनकी माया का कोई पार नहीं पा सकता, ना जाने कब किस पर रीझ जायँ, ना जाने कब किस जीव पर कृपा हो जाए। बुलाने पर तो वह कभी आते नहीं ,चाहे सिर पटक पटक कर मर जाए। ना तप से मिलते हैं, ना जप से, न ध्यान से ।यदि इन्हें इस प्रकार मिलना हो तो योगी, यति, ऋषि, ध्यान करते रहते हैं, परंतु यह उनकी ओर देखते तक नहीं। जब कृपा करते हैं, तो अचानक करते हैं।
 कृष्ण के दीवाने रसखान जी एक मुसलमान थे। एक बार की घटना है  वे अपने उस्ताद के साथ मक्का मदीना जा रहे थे। उनके उस्ताद ने कहा- देखो, रास्ते में हिंदुओं का तीर्थ वृंदावन आएगा ,वहां एक काला नाग रहता है। तू आगे- पीछे मत देखना ,नहीं तो वह तुझे डस लेगा, तू मेरे पीछे-पीछे चला आ।अपने दाएं- बाएं भी मत देखना, वरना जब मौका दिखेगा तुझेडँस लेगा।  बस रसखान जी के मन में एक उत्कंठा सी जाग गई ,क्या मुझे वहां काला नाग दिखाई देगा। वह यही सोचते जा रहे थे उनके लो लग गई, हमारी श्री बांके बिहारी से। फिर क्या था जैसे ही आप वृंदावन आए ,उस्ताद ने पुणः कहाँ, रसखान अब सावधानी से चलना यह हिंदुओं का तीर्थ है, यही वह काला नाग रहता है। उस्ताद का इतना कहना था कि हमारी लीलाधारी ने अपनी लीला आरंभ कर दी। कभी दाएं, कभी बाएं, मीठी मीठी बांसुरी का धुन बजाने शुरू कर दी ।दूसरी और नूपुर की मधुर झंकार होने लगी -सुनकर बेचारे रसखान जी मुक्त हो गए। दोनों और मधुर तान तथा झंकार सुनकर बौरा से गए, उनसे दाएं बाएं देखे बिना न रहा गया ।अंत में जब यमुना किनारे पहुंचे तो एक और देख ही तो लिया। वहां प्रिया जी के साथ श्री बांके बिहारी जी की सुंदर छवि के दर्शन किये और वह मोहित हो गए।भूल गए अपने उस्ताद को और निहारते ही रहे उस प्यारी छवि को। अपनी सुध बुध खो बैठे, अपना ध्यान ही ना रहा कि मैं कहां हूं, वही ब्रज में लोटपोट हो गए। उनके मुख से झाग निकल रहा था, वह तो ढूंढ रहे थे उस मनोहर छवि को, पर अब तक तो प्रभु जी  अंतर्ध्यान हो चुके थे ।
थोड़ी दूर जाकर उस्ताद जी ने पीछे मुड़कर देखा, रसखान दिखाई नहीं दिए। वापस आए ,रसखान की दशा देखकर समझ गए इसे वही काला नाग डस गया, अभी हमारे मतलब का नहीं रहा ।उस्ताद आगे बढ़ गए। होश आया तो वह प्यारी मनमोहक छवि ढूंढ रहे थे अपने चारों ओर सबसे पूछा सांवरा सलोना मूर्ति वाला अपनी बेगम के साथ कहां रहता है? कोई तो बता दो किसी ने बिहारी जी के मंदिर का पता बता दिया। वहां गए किसी ने अंदर जाने नहीं दिया। 3 दिन तक भूखे प्यासे वहीं पड़े रहे। तीसरे दिन बिहारी जी अपना प्रिय दूध- भात, चांदी के कटोरे में लेकर आए और अपने हाथ से खिलाया। प्रातःकाल लोगों ने देखा कटोरा पास में पड़ा है। रसखान जी के मुख पर दूध भात लगा हुआ है।  कटोरे पर बिहारी जी लिखा है। रसखान जी को उठाया, लोग उनके चरणों की रज़, माथे पर लगाने लगे। गली-गली गाते फिरते -बंसी बजा के, सूरत दिखा कर, क्यों कर लिया किनारा.... आज भी रसखान जी की मजार पर बहुत से लोग जाकर उनके दिव्य कृष्ण प्रेम की याद करते हैं।[ श्रीमती भगवती जी गोयल]

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