/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: 2015

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बुधवार, 16 दिसंबर 2015

आज का शुभ विचार

                                                                          आज का शुभ विचार






ईश्वर के संबंध में अनुभव उन्ही को होते हैं जो लोग सत्य , दया , क्षमा , अहिंसा , आदि सदगुणो  को धारण कर के संयमित जीवन बिताते हैं।
     

परमार्थ क पत्र - पुष्प भाग 1

                                                                                                 ( परमार्थ के पत्र - पुष्प) हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।





हमारे गुरुदेव पुज्य श्री मलूक पीठाधीश्वर  परम पूज्य श्री राजेन्द्र दासजी महाराज जी ने हमें एक पुस्तक दी, जिसमे हमारे दादा गुरु    श्री भक्ततमाली जी द्वारा  सत्संग  के कुछ   अंश  हैं जो मैं आपके समक्ष रख रही हूँ। जिसके द्वारा हमे जीवन में कई महत्व पूर्ण सन्देश मिलेंगे।

हमारे दादा गुरु कहते हैं कि भारतीय जनता कर्म भूमि में जन्म पाकर धन्य- धन्य हो जाती हैं। हम लोग जंक्शन पर खड़े  हैं। सब और को जाने वाली गाड़ियाँ खड़ी हैं (ब्रह्म लोक , विष्णु लोक, साकेत वैकुण्ठ ,  रमावैकुंठ , गोलोक,शिवलोक , पितृलोक , नरक भी हैं। )जहाँ जाना चाहो  वहाँ  का टिकट लो अथार्त उसी प्रकार के कर्म करो। कर्मो के अनुसार नरक -स्वर्ग को हम जा सकते हैं। मोक्ष यानि ब्रह्मलीन भी हो सकते हैं। जिसकी जैसी रूचि हो वह वैसा पुण्य करे या पाप करें। वेद पुराण और शास्त्र कहते हैं यदि दुसरो को दुःख दोगे  तो नरक में जाना पड़ेगा। सुख दोगें तो स्वर्ग वैकुण्ठ मिलेगा। संसार के सभी प्राणी परमात्मा की संतान हैं। अतः अपने  हैं। ऐसा समझ कर दया , सच्चाई के साथ व्यवहार करने से श्री सीतारामजी प्रसन्न होते हैं।

                                                                                 
 श्री सीताराम। 

बुधवार, 2 सितंबर 2015

आज का शुभ विचार

        




यदि आप हिम्मत का पहला कदम आगे बढ़ाएंगे , तो परमात्मा की सम्पूर्ण मदद मिल जायेगी।

सोमवार, 31 अगस्त 2015

आज का शुभ विचार

                                                                                    आज का शुभ विचार



प रमात्मा गुणों के सागर हैं । यदि आप किसी विकार की अग्नि में जल रहे हैं ,तो उस  सागर में डुबकी लगाइये ।


                                                                           ।।         ॐ गणपतये नमः ।।

बुधवार, 5 अगस्त 2015

शुभ नहीं अशुभ कार्यों को टालते रहो

संस्कृत में एक सुक्ति हैं कि 'शुभस्य शीघ्रम् ,अशुभस्य  कलहरणम 'अथार्त्त  शुभ कार्य को जितना जल्दी हो सके कर डाले , लकिन अशुभ कार्य  को टालते रहे ।यदि हम तत्क्षण किसी की मदद करने के लिए आगे आ जाते हैं तो उसकी मदद हो जाती हैं और एक नेक काम भी ,लकिन वह क्षण बीत गया तो सम्भव हैं हम उस अच्छे कार्य को करने के लिए जीवित ही न रहे अथवा हमारे विचार ही बदल जाये।बहुत सारी बातें हो सकती हैं ,लकिन इतना निश्चित हैं कि यदि हम उस क्षण को चूक गए तो हम किसी नेक काम करने से वंचित रह जायेगे।हमने अपने जीवन में कई बार यह महसूस किया होगा की अक्सर अच्छे कार्य को करने का हम अवसर चूक जातें हैं।तो ठीक ही कहा हैं कि शुभस्य शीघ्रम् अथार्त् शुभ कार्य अथवा अच्छे कार्य को शीघ्र कर लेना चाहिए ।
अशुभस्य  कालहरणम् अथार्त्  अशुभ अथवा पाप कर्म के लिए शीघ्रता न करें ।अपितु समय निकल जाने दे ।सम्भव  हैं कालान्तर में कहीं से सदबुद्धि मिल जाये  और हम पाप कर्म करने से बच जाएँ ।आज इस विश्व में ऐसे अणु परमाणु बम मौजूद हैंकि  पूरी धरती नष्ट हो जाये पर कुछ लोगो की सदबुद्धि  की वजह से हम सब जीवित हैं । वेदव्यास जी ने कहा हैं कि परोपकारःपुण्याय ,पापाय परपीडनम्  अथार्त दुसरो की सहायता करना ,परोपकार करना ही सबसे बड़ा धर्म हैं ।और दुसरो को कष्ट पहुँचाना ही अधर्म हैं चाहे वो मानसिक पीड़ा हो अथवा शारीरिक ।इस सन्दर्भ में महाभारत की दो कथा प्रचिलित हैं एक महऋषि गौतम के पुत्र चिरकारी की ,जिन्हे धीरे धीरे कार्य करने की आदत थी जिस वजह से उन्होंने अपने पिता की आज्ञा के बावजूद भी अपनी माँ को नहीं मारा ,और दूसरी गौतम ऋषि को अपनी  पत्नी पर क्रोध आया और उन्होंने बिना विचार किये अपने पुत्र को आज्ञा दे दी कि वह अपनी इस दुष्कर्म माता को मार दे ।चिरकारी के धीरे कार्य करने की वजह से व गौतम ऋषि को सदबुद्धि आ जाने के कारण एक बड़ा पाप होने से बच गया ।

इसी कारण कहा गया हैं कि शुभ कार्य को जल्दी कर लेना श्रेयस्कर होता हैं व अशुभ कार्य को टालने में ही भलाई होती हैं ।अतः जीवन में इस नीति का पालन जरूर करना चाहिए ।
जय श्री राधे ।
(कल्याण पत्रिका के सौजन्य से )

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

व्यक्ति के व्यक्तित्व के प्रकार (type of personailty )

     व्यक्ति में 6 प्रकार का व्यक्तित्व होता हैं ।



व्यक्तित्व षड्मुखी होता हैँ -अथार्त व्यक्ति की विचार धारा ६ प्रकार की होती हैं -

१ -शास्त्रमुखी -जिस के अंतर्गत व्यक्ति शास्त्र के अनुसार ही कार्य करता हैं वह यह ध्यान रखता हैं कि शास्त्र में क्या उचित हैं ,क्या अनुचित।

२ -गुरु मुखी-व्यक्ति गुरु के आधार पर ही कार्य करता हैं ।जो गुरु ने कह दिया उसी आज्ञा का पालन करता हैं।

३ -राजमुखी -इसमें व्यक्ति वाही कार्य करता हैं जो राजा कहे अथवा सत्ता कहे ।जिससे राजा खुश रहे।

४ -स्वमुखी -व्यक्ति अपनी चेतना से कार्य करता हैं।जो चेतना गुरु ने जगा दी ,उसी के अनुसार गुरु व शास्त्र को ध्यान में रखकर कार्य करता हैं ।

५ -मनमुखी -जो मन में आयेगा वही कार्य करेगा ।वह न गुरु की परवाह करता हैं न शास्त्र की।जो उसकी मर्जी होती हैं वही कार्य करता हैं।

६ -गोमुखी -व्यक्ति हमेशा स्मरण करता रहता हैं और कार्य  करता रहता हैं।निरन्तर स्मरणशील रहता हैं।

                            जय श्री राधे !

आज का शुभ विचार

                                                आज का शुभ विचार                                  





भागवत कथा सुनने से चार लाभ होते हैं -

१-तृप्ति ,अथार्त् कुछ और न पाने की लालसा ।

 २ -अपने प्रभु से प्रेम  ।

३ -निष्काम भावना  ।

४ -भक्त प्रेम अथार्त् जितने भी प्रभु भक्त हैं उन सबसे विशेष प्रेम ।

बुधवार, 27 मई 2015

आज का शुभ विचार

आदमी के मन को तीन चीजें कमज़ोर कर देती हैं-
1-व्यर्थ के वाद -विवाद
2-ग़लत राह पर चलना
3-ग़लत स्मृति (व्यर्थ की बातों को याद करना ।

मंगलवार, 26 मई 2015

आज का शुभ विचार

संत ,सदगुरु गण्डकी नदी की तरह होते हैं ,जिसमे पड़ा हुआ तेड़े से तेड़ा पत्थर भी घिस घिसकर शालिग्राम हो जाता हैं और पूजनीय बन जात

शनिवार, 23 मई 2015

जीवन में सफलता के सुत्र (भाग 2)

                                                       जीवन में सफलता के सूत्र 



7. आध्यात्मिक बनिए -

विलासिता भरा जीवन हमारे आध्यात्मिक मार्ग में बाधा उत्पन्न करता हैं ।इसलिए विलासिता से बचना चाहिए ।भौतिक पदार्थ कुछ समय के लिए होते हैं ,और यह हमे ज्यादा लम्बे समय तक सुख नहीं दे सकते ।किन्तु आध्यात्मिक उपलब्धियाँ स्थायी होती हैं ,जो हमेशा हमारे साथ रहती हैं ।तथा जीवन को आनन्द देती हैं ,सच्चा आनन्द ।

8.आत्मनियंत्रित करिये -

आत्मनियन्त्रण के द्वारा मनुष्य ऊंचाइयों के शिखर तक पहुँच सकता हैं ।प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ कर सकने की क्षमता होती हैं।उसकी उन्नति का सबसे बड़ा रहस्य हैं आत्मनियन्त्रण ।इसलिए जिस व्यक्ति ने आत्मनियन्त्रण कर लिया ,उसे अवश्य सफलता मिलती हैं ।जो व्यक्ति आत्मनियन्त्रण कर लेता हैं वही क्रोध पर नियंत्रण कर लेता हैं और क्रोध पर नियंत्रण मतलब हर क्षेत्र में तरक्की ।

9. आत्मनिरीक्षण करिये-

आत्मनिरीक्षण करके व आत्मसुधार करके अपनी छोटी -छोटी गलतियों को सुधारा जा सकता हैं ,और उन्हें दुबारा न करने का निर्णय ले लेना चाहिए ।आप हर सप्ताह अपनी प्रगति का मूल्यांकन करिये तथा मालूम करिये की आपने कब कौन सी गलती करी और भविष्य में उसे न करने का संकल्प ले लें ।

10 .आवश्यकता कम करिये -

दुसरो की देखा देखी अपनी इच्छाओं को बढ़ाकर आय से अधिक खर्च करना क्या उचित हैं ? हमे यह ध्यान रखना चाहिये जितनी हमारी आवश्यकता कम होंगी ,उतनी हमारी चिंता कम होगी और संतोष अधिक होगा ।

11. आदर्श मित्र चुनें -

मित्र क्या हैं ? वह एक ऐसा व्यक्ति हैं ,जिसके साथ आप स्वंय निडर हो जाते हैं ।उसके सामने आप अपने दिल की सभी बातें कर सकते हैं ।जीवन में सभी को मित्र की आवश्यकता होती हैं ।मित्र ऐसा होना चाहिए जो विश्वसनीय हो ,आदर्श हो ,आपके सुख दुःख की चिंता करने वाला हो ।आपका केवल सुख में ही साथ न दे अपितु दुःख में भी साथ खड़ा रहे ।

 

आज का शुभ विचार

जो हम अभी अनुभव कर रहे हैं ,वह अतीत का फल हैं ,भविष्य में जो अनुभव करेंगे वो इस बात पर निर्भर करता हैं कि हम अभी क्या करते हैं ।

शुक्रवार, 22 मई 2015

जीवन में सफलता के सूत्र (भाग 1)

जीवन में सफलता के सूत्र 


1 . जीवन का उद्देश्य निर्धारित करें -

उद्दे श्य के बिना व्यक्ति  के  जीवन का कोई  महत्व नहीं रखता ।मनुष्य का जीवन यूँ ही जीने के लिए नहीं हुआ हैं, यह तो कुछ करने के लिए हुआ हैं  ,जिससे उसका स्मरण मरने के बाद भी लोग कर सकें ।जीवन का उद्देश्य निश्चित करके उसको पूरा करने के लिए सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए ।

2 . नित्य प्रभु -स्मरण करें -

प्रतिदिन प्रार्थना , स्तुति ,प्रभु के ध्यान के लिए कुछ समय अवश्य दें ।प्रतिदिन कार्य आरम्भ करने से पूर्व माता -पिता ,गुरु को अवश्य प्रणाम करें ;क्योंकि प्रभु की कृपा और माता -पिता के आशीर्वाद  के बिना सफलता सम्भव नहीं हैं ।

3. अपने काम को श्रेष्ठ मानें -

अक्सर ऐसा होता हैं जो जिस काम में हैं ,  वो उस काम में खुश नहीं होता ।नौकरी वाले को व्यवसाय और व्यवसाय वाले को नौकरी में अधिक लाभ दिखाई देता हैं ।नौकरी वाले  जीवन पराधीन लगता लगता हैं ।व्यापार  वाले को व्यापार में हर समय घाटे  
की चिंता बनी रहती हैं । किसान को खेती में मेहनत अधिक और आय कम  दिखती हैं ।किन्तु यदि आप पूरे  जीवन में ख़ुशी चाहते हैं तो अपने काम से प्यार करें ,अपने काम को ही श्रेष्ठ मानें ।

4 . कर्तव्य पालन जरुरी हैं -

माता -पिता के प्रति , भाई -बहन के प्रति ,पति के प्रति ,पत्नी के प्रति ,मित्र के प्रति ,बच्चो के प्रति क्या कर्तव्य हैं ?यह जानना  तथा उस पर  आचरण करना बुद्धिमानी हैं तथा जीवन को उन्नत बनाने के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं ।

5 . समय का सदुपयोग करें -

समय का सदुपयोग प्रत्येक कार्य को समय पर पूर्ण करके किया जा सकता हैं ।आलस्य या व्यर्थ की बातों में समय का   दुरूपयोग होता हैं ।अतः समय का सदुपयोग करना चाहिए ।वर्तमान समय को इतना खूबसूरत बना लें कि इन सुनहरे दिनों को कभी भूला न सके ।

6 . अपने कार्य में व्यस्त रहें -

एकाकीपन को दूर करने का सर्वोत्तम तरीका हैं -अपने आप को कार्य में व्यस्त रखना ।सदा किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखने से खुशी  मिलती हैं । जितने भी महापुरुष हुएं वह सभी अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहे हैं व् सतर्क रहे । उनकी कार्य के प्रति समर्पित भावना से ही उन्हें कठिन कार्यो में भी सफलता प्राप्त हो  सकी ।

आज का शुभ विचार

यदि आप बहुत अधिक लोगों पर निर्भर रहते हैं तो इससे आपको निराश होने के अवसर बढ़ जाते हैं ।

बुधवार, 20 मई 2015

आज का शुभ विचार

                        ।।   श्री कृष्णा  ।।



हम सभी को समस्याओ का सामना करना पड़ता हैं ,परन्तु महत्वपूर्ण बात यह हैं कि हम इसका सामना किस ढंग से करते हैं । 

मंगलवार, 19 मई 2015

जीवन में मिठास

.           
                  मिठास
             〰〰〰〰
        चाय का कप लेकर आप
        खिड़की के पास बैठे हों
    और बाहर के सुंदर नज़ारे का
आनंद लेते हुए चाय की चुस्की लेते हैं
.....अरे चीनी डालना तो भूल ही गये..;
  और तभी फिर से किचन मेँ जाकर
   चीनी डालने का आलस आ गया....
    आज फीकी चाय को जैसे तैसे
      पी गए,कप खाली कर दिया
     तभी आपकी नज़र कप के तल
      में पड़ी बिना घुली चीनी पर
                पडती है..!!
  मुख पर मुस्कुराहट लिए सोच में पड
    गये...चम्मच होता तो मिला लेता
   हमारे जीवन मे भी कुछ ऐसा ही है...
       सुख ही सुख बिखरा पड़ा है
            हमारे आस पास...
                    लेकिन,
     बिन घुली उस चीनी की तरह !!
           थोड़ा सा ध्यान दें-
किसी के साथ हँसते-हँसते उतने ही
   हक से रूठना भी आना चाहिए !
       अपनो की आँख का पानी
     धीरे से पोंछना आना चाहिए !
     रिश्तेदारी और दोस्ती में कैसा
              मान अपमान ?
      बस अपनों के दिल मे रहना
             आना चाहिए...!
     प्यार एवं सत्संग रूपी चम्मच
  से जीवन में मिठास घोलनी चाहिए!!
               

आज का शुभ विचार

अगर अँधेरे से बहुत डर लगता हैं तो अपनी आँखे बंद कर लेना कोई समझ दारी नहीं हैं ।

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

 भागवत धर्म केसे अपनाये

                         भागवत धर्म को अपनाने के लिए क्या करे !




जहाँ -जहाँ भगवान ने भगवत प्राप्ति के लिए अपने श्री मुख से जो भी उपाय बताये हैं ,उन्ही का नाम हैं भागवत धर्म । भागवत धर्म माने भगवान की भक्ति ।ये ऐसा सरल मार्ग हैं कि  इस पर कमजोर से कमजोर ,अनपढ़ से अनपढ़  आदमी आँख मुंद कर चल पड़ेगा तो गिरेगा नहीं और वो रास्ता भी नहीं भूलेगा ।वो भटकने वाला नहीं हैं ।गो स्वामीजी कहते हैं -

तुलसी सीताराम भजु दृढ़ राखहु विश्वास ।
कबहुं  बिगड़त न सुने श्री रामचन्द्र के दास ।।

इसमें कुछ विशेष नहीं करना पड़ता ।जो कुछ आप करते रहे हो वो सब आप कर सकते हो ।खाना -पीना ,बाल -बच्चे ,घर ,मकान । लेकिन यह समझ करके कि यह प्रभु का काम हैं और प्रभु के लिए हैं ।मैं जो कुछ कर रहा हूँ अपने प्रभु के लिए कर रहा हूँ ।उनकी प्रसन्नता के लिए कर रहा हूँ ।
भगवान के अतिरिक्त कही भी मन इधर -उधर ले जाएगा ,भटकायेगा तो उसे भय होगा ,गिरने का डर रहेगा ।भगवान की भक्ति करने वाला ,भगवत धर्म का पालन करने वाला प्रभु के नाम ,रूप ,गुण ,लीला आदि को कानो से सुनते हैं ,वाणी से गायन करते हैं और गाते समय उन्हें किसी बात की चिंता नहीं होती कि कोई उनपर हँसेगा ।उनमे कोई बनावट नहीं होती ।ये भगवान के भक्तो के लक्षण हैं ।भक्ति करते -करते उनकी दृष्टि इतनी परिमार्जित हो जाती हैं कि  जहाँ भी दृष्टि जाए सब जगह उन्हें भगवान  ही भगवान नजर आते हैं ।
भक्ति करने से क्या होता हैं ?जैसे भोजन करने से क्षुधा  की निवृति हो जाती हैं स्वाद से तुष्टि होती हैं ,रस से पुष्टि होती हैं ,कमजोरी दूर होती हैं ।ऐसे ही भगवान की भक्ति करने से संसार से वैराग्य होता हैं ,प्रभु के स्वरूप का बोध होता हैं ,सबके प्रति प्रेम की दृढ़ता आती हैं ।
भगवान के धर्म का पालन करने वाले कितनी तरह के भक्त होते हैं ? तब हरिजी बताते हैं भक्त तीन तरह के होते हैं -उत्तम भक्त ,मध्यम भक्त ,प्राकृत भक्त ।
उत्तम भक्त वो हैं जो सबमे भगवान की सत्ता का अनुभव करे ।जैसे श्री प्रह्लाद जी से पूछा गया की तुम्हारे भगवान कहाँ हैं ?वे बोले -
       
             हममे ,तुममे ,खड़ग खम्भ में ,घट -घट व्यापत  राम ।।
मध्यम भक्त वो होते हैं जो समस्त चेतना को चार भागो में विभक्त करदे वो मध्यम श्रेणी में आता हैं और बाकि तीसरी श्रेणी के भक्त कहलाते हैं ।उत्तम भक्त के लक्षण भी बतलाये गए हैं -शेष कल !        …।             जय श्री राधे !

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

जीवन में परम कल्याण कैसे हो ?

  जीवन में परम कल्याण कैसे       हो ?



एक बार श्री कबीरजी रोने लगे और उनके पुत्र श्री कमालजी  हंसने लग गए ।कबीर जी ने पूछा -बेटा तू हँस क्यों रहा हैं ? कमालजी  बोले -पिताजी ! पहले आप बताइए  कि  आप रो क्यों रहे हैं ? कबीर जी बोले -

  चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय ।
दो पाटन  के बीच में ,साबुत बचा न कोय।।

एक चक्की चल रही  हैं ,और इसमें जो भी पड़ा वो पिस  गया ,यही देख कर रोना आया ।कमाल बोलें -
  (वही) 
 चलती चक्की देख कर हँसा  कमाल ठठाय ।
 कील सहारे जो रहे ,सो कैसे पिस  जाए ।।

चक्की के दो पाट  होते हैं और ऊपर  वाला पाट  उठाकर  देखे तो बीच वाली  मोटी    
कील के चार- छः अंगुल इर्द -गिर्द वाला अनाज सुरक्षित रहता हैं ।इन दोनों का भाव गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने एक दोहे में बताया -
 माया चक्की कीलहरि,जीव चराचर नाज। तुलसी जो उबरो चहे ,कील  शरण को भाज ।।

माया की चक्की हैं ।माया की चक्की रूपी दो पाट  हैं ,एक विद्या और एक अविद्या ।बीच में जो   कील  हैं ,जिसके सहारे चक्की घूमती हैं वे भगवान हैं ।जीव अनाज हैं।जो जीव माया रूपी चक्की में पड़  गया ,वह पीस डाला गया।लेकिन माया रूपी चक्की में पड़ने के बाद भी जो जीव भगवान रूपी कील से चिपके रह गए ,उनको माया रूपी चक्की नहीं पीस सकती।उदहारण  के लिए -रावण के एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे ,ये भगवान से विमुख हो गए और इनको चक्की ने पीस दिया।
तो रावण घर दिया न बाती और विभीषण जी भगवान रूपी कील से चिपके रह गए शरणागत हो करके ,तो श्री विभीषणजी को  माया रूपी कील नहीं पीस सकी ।
द्वापर के अंतिम चरण में दुर्योधन को गुमान था ,हम सौ भाई हैं।सौ को पीस डाला माया ने,क्योंकि वो भगवान से विमुख हो गए थे और पांच पांडव भगवान श्री कृष्ण  रूपी  कील से चिपके रह गए ,इसलिए सुरक्षित रहे ।
इस प्रकार से जो भगवान से सलंग्न रहेंगे, चिपके रहेंगे ,उसी का नाम हैं उपासना ।"उप" समीप के अर्थ में और "आसना "स्थिति के अर्थ में।जो भगवान के समीप स्थित रहेगा उसका माया कुछ नहीं बिगाड़ सकती।ये परम कल्याण का स्वरूप बताया भागवत धर्म में ।(संत मामाजी महाराज के द्वारा श्री मद भागवत का सरस विवेचन के एकादश अध्याय में से लिया गया कुछ अंश )
जय श्री राधे !

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

महाभारत की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां


                  महाभारत की महत्वपूर्ण जानकारियां

              




पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन
4. नकुल। 5. सहदेव

( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )

यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।

वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह
4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम
7. सह 8. विंद 9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु। 12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण। 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान
19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र
22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद। 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द। 32. उपनन्द 33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा 36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग 42. भीमबल
43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर
49. चित्रायुध 50. निषंगी 51. पाशी
52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति 56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी
64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष
68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी 75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि 78. क्रथन। 79. कुण्डी
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर 82. वीरबाहु
83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी। 89. विरवि
90. चित्रकुण्डल 91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात। 97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी 99. विरज
100. युयुत्सु

( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )

"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-

ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी

ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद

अधूरा ज्ञान खतरना होता है।

33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।

कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,

कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।

हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...

कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-

12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!

8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।

एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।

कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी

                  जय श्री राधे 

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

                           मन में दो विचार क्यों आते हैं और किसकी सुने ?


अक्सर आपने देखा होगा कि हमारे मन में दो तरह के विचार आते हैं ,एक नकारात्मक और एक सकारात्मक ,हम इस दुविधा में रहते हैं कि किसकी सुने या फिर यह दो तरह के क्यों विचार आ रहे हैं ।मेने कही सुना था कि हम सभी के मन में दो तरह के विचार रमण करते हैं ,यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम किसको परोषित करते हैं ,या किसको अधिक  महत्व देते हैं ।यदि आप दुविचारो को अधिक महत्व देने लगोगे तो इस तरह कि विचारधारा आप पर हावी होने लगेगी व् आपके अंदर की सुविचार धारा धीरे -धीरे अपना दम तोड़ देगी और मृत हो जाएगी ।यह कही हद तक इस बात पर निर्भर करता हैं कि हमने किसी संत या सदगुरू का आश्रय लिया हैं या नहीं।हम जितना अपने ईश्वर के नजदीक होते जाएंगे या सदगुरू के सानिध्य में आ जाएगे हमारी विचारधारा उतनी ही सकारात्मक होती चली जाएगी ।हमारे मन में कितने ही नकारात्मक विचार आ जाए वह हम पर हावी नही हो सकते ।हमारे ईश्वर के प्रति आस्था जेसे जेसे बढ़ती जाएगी ,हमारी सोच उतनी ही सकारात्मक होती जाएगी ।यदि कभी विपरीत परिस्थिति में हमारा मन गलत मार्ग में जाने भी लगता हैं तो देर से ही सही लेकिन हमारी आस्था हमारा सात्विक मन हमे गलत मार्ग से बचा कर सही दिशा पर ले ही आता हैं ।इसलिए हमारा मन हमेशा सकरात्मक विचार ही रखे उसके लिए हमे प्रयास करना पड़ेगा ,अभी भी कोशिश करेगे तो भी सफल हो ही जाएंगे-

१  ईश्वर के प्रति लगन लगा लो ,इस सत्य को स्वीकार कर लो कि ईश्वर हैं और वो ही मेरा हैं ।

२  हमारे मन में हमेशा दो तरह के विचार आते हैं एक गलत ,एक सही ।हमेसा सही को अपनाओ ,ईश्वर से प्रार्थना करो कि वो आपका साथ दे ।

३ हमारा खान -पान का भी हमारे विचारो पर असर पड़ता हैं इसलिये कौशिश करे हमेशा सात्विक भोजन ही करे।

४  हमारी संगत  का भी हमारी सोच पर विशेष असर पड़ता हैं , इसलिए हमे  सात्विक विचारधारा वाले लोगो के बीच ही बेठना चाहिए।

५  हमेशा कौशिश करे कि संतो की वाणियों को सुने , धार्मिक विचारो में अपनी रूचि को बढ़ाए, क्योकि जैसी रूचि हमारी होगी वेसी ही हमारी विचारधारा होगी ।

६  जब आप मन में उठने वाली नकारात्मक सोच को या कुविचारों को ज्यादा महत्व नही दोंगे तो वह धीरे धीरे कमज़ोर पड़ने लगेगी और आप पर प्रभावी नहीं हो सकेगी ।

अंत में मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि ईश्वर हम सब को सदबुद्धि दे व् सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा दे व् हमेशा हमारे साथ रहे ताकि हम से अनजाने में भी कोई भूल  न  हो ।
श्री राधे !

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

gopi chadan





गोपी चंदन क्या है ?
गोपी तिलक क्यो लगाया जाता है ?
कौनसे भक्त गोपी तिलक करते है?
यु तो हम सभी ने देखा है कि सभी भक्त अपने माथे पर
अलग अलग प्रकार के तिलक करते है| कोई लाल तिलक
करता है तो कोई मिट्टी के रंग का तिलक करता है |और
उनका लगाने का प्रकार भी सभी परम्पराओं मे भिन्न भिन्न
प्रकार का होता है|
जो भक्त भगवान श्री कृृष्ण को मानते है और वैष्णव सनातन
धर्म पर चलते है | वे भक्त सदैव अपने मस्तक पर
गोपीचंदन के तिलक का उपयोग करते है|
गोपी तिलक क्यो किया जाता है ? एक तो अगर हम संसारिक
दृष्टिकोण से देखेगे तो ,उसे हम ऐसे देख सकते है, कि जिस
प्रकार हर देश का अपनी अपनी एक पहचान होती है, अर्थात
उनके झंडे के रुप में| जैसे हम अगर किसी क
झंडा दिखायेगे तो सामने वाला व्यक्ति समझ जायेगा कि हम
भारत से है| ऐसे ही जब कोई भक्त वैष्णव परम्परा ग्रहण
करता है तो गोपी तिलक करता है | या दुसरे उदारण से हम
इसे ऐसे समझ सकते है , कि जैसे हर एक स्कुल की अपनी एक
अलग युनिर्फाम होती है | जिसे हमे पता चलता है कि ये
बच्चा किस स्कुल का है| बस इसी प्रकार गोपीचंदन
का तिलक भी वैष्णव परम्परा की पहचान है|
ये तो हमने भौतिक दृष्टिकोण से जाना कि गोपीचंदन
का तिलक क्यो किया जाता है| अब इस बात को हम
आध्यतामिक दृष्टिकोण से जानते है एक भक्त जब भगवान
की शरण ग्रहण करता है और ठाकुर जी को अपने ह्दय कमल
में विराजमान करता है तो उस भक्त का ये शरीर एक मंदिर
के समान हो जाता है और वो गोपी चंदन से अपने इस मंदिर
को सजाता है | अर्थात श्रृगाँर करता है|
जय-जय श्री राध

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

देवराहा बाबा के अमृत वचन सेवा,सहानुभूति और उदारता

   देवराहा बाबा के अमृत वचन सेवा,सहानुभूति और उदारता 


                         (ब्रह्मलीन योगिराज श्रीदेवराहा बाबाजी के अमृत वचन )

        प्रेम ही सृष्टि हैं , सबके प्रति प्रेम भाव रखो। 
       
       भूखो को रोटी देने में और दुखियों के आसूं पोछने में जितना पुण्य लाभ होता हैं और , उतना वर्षो के जप तप भी नहीं होता। 

       परमात्मा  पृथक कुछ भी नहीं हैं। यह सर्व्यापक ईश्वर प्रकृति के कण -कण  व्याप्त हैं। अतः चराचर को भगवत स्वरूप मानकर सबकी सेवा करो। 

       गीता का सार हैं , दुखी को सांत्वना तथा कष्ट में सहायता देना एवं उन्हें दुःख भय  से मुक्त करना। 

        आत्मचिंतन , दैन्य -भाव और सदगुरु  की सेवा इन तीनो बातों को कभी मत भूलो। 

       प्रतिदिन  यथासाध्य कुछ- न -कुछ दान अवश्य करों ,इससे त्याग की प्रवृति जागेगी। 

      प्रेम एंव स्नेह से दुसरो की सेवा करना ही सर्वोच्च धर्म हैं , उससे ऊँचा कोई नहीं। 

     सम्पूर्ण जप और तप दरिद्रनारायण की सेवा और उनके प्रति करुणा के समान हैं। 

     अठारह पुराणो में व्यासदेव के दो ही वचन हैं -परोपकार  पुण्य हैं और दुसरो को पीड़ा पहुँचाना  पाप हैं। 

      अतिथि सत्कार श्रद्धा पूर्वक करो ;अतिथि का गुरु और देवता की तरह सम्मान करों। 

     जिस घर में गरीबों का आदर होता हैं और न्याय द्वारा अर्जित सम्पति हैं  वैकुण्ठ के सदृश हैं। 

      जब चलो तो समझो कि मैं भगवान की परिक्रमा कर रहा हूँ ,  जब पियो तो समझो कि मैं भगवान का चरणामृत पान कर रहा हूँ। भोजन करो तो समझो कि मैं भगवान का प्रसाद पा रहा हूँ ,सोने लगो तो समझो मैं उन्ही की गोद में विश्राम कर रहा हूँ.

     प्रत्येक कर्म को ईश्वर की सेवा और परिणाम को भगवत्प्रसाद समझना। सबके प्रति शिष्ट एंव समान भाव रखना , क्रोध -लोभ का परित्याग करना ही प्रभु  की सेवा हैं। 

     सभी मनुष्यों से मित्रता करने से ईष्या की निवृति हो जाती हैं। दुखी मनुष्यों पर दया करने से दुसरो का बुरा करने की इच्छा समाप्त हो जाती हैं। पुण्यात्मा को देखकर प्रसन्नता होने से असूया की निवृति हो जाती हैं। पापियों की उपेक्षा करने से अमर्ष , घृणा आदि के भाव समाप्त हो जाते हैं। यह साधको के लिए आचार हैं। 

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

राम रक्षा स्तोत्र हिदी में

         प्रभु हमारी हर संकट से रक्षा करें
एक मात्र केवल और केवल उन्ही का सहारा हैं      
                 राम रक्षा स्तोत्र हिदी में
                                
आज मैं आप सबके सामने एक ऐसे स्तोत्र के रखना चाहती हूँ, जिसके महत्व की जानकारी  मेने जाने कितनी बार विभिन्न पत्रिकाओ में एवं ,गुरु जी के .श्री मुख से सुनी हैं। बहुत से लोगो ने अपने साथ होने वाले आश्चर्यजनक अनुभव के बारे में भी बताया हैं जो कि बिलकुल सत्य थी। बल्कि मैंने स्वंय महसूस किया कि अगर इस  पाठ को पूरी निष्ठा के साथ किया जाए  तो यह चमत्कार दिखलाता हैं। किसी को भी जब कोई समस्या का समाधान न मिल रहा हो तो एक बार जरूर विश्वास के साथ इस पाठ  को करें, अवश्य ही लाभ होगा।  यह मैं हिंदी में ही करने की सलाह दूँगी , ताकि कोई गलती न हो। पाठ इस प्रकार हैं -                                           
                                                                                   
  .                         राम रक्षा स्तोत्र
                                                            
                                                                                      विनियोगः 

इस रामरक्षा स्तोत्र -मंत्र के बुध कौशिक ऋषि हैं , सीता और रामचन्द्र देवता हैं , अनुष्टप् छन्द हैं , सीता शक्ति हैं , श्रीमान हनुमानजी कीलक हैं तथा श्री रामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिए रामरक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं। 
      
                                                                                         ध्यानम् :-
जो धनुष -बाण धारण किए हुए हैं , बद्ध पद्मासन से विराजमान हैं , पीतांबर पहने हुए हैं , जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमल दल से स्पर्धा करते तथा वामभाग में विराजमान श्री सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं , उन आजानुबाहु , मेघश्याम , नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्री रामचन्द्र जी का  ध्यान करे। 

                                                                                   स्तोत्रम :-

                     श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला हैं और उसका एक -एक अक्षर भी महान पापो को नष्ट करने वाला हैं।।१।।

जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण , कमलनयन , जटाओं के मुकुट से सुशोभित , हाथों में खड्ग , तूणीर , धनुष और बाण धारण करने वाले , राक्षसों के संहारकरी  तथा  संसार की रक्षा के लिए अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं , उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान रामजी , जानकीजी और लक्ष्मणजी के सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षा का पाठ करे। मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज रक्षा करे।।२-४ ।।

कौसल्यानन्दन नेत्रों की रक्षा करें , विश्वामित्र प्रिय कानों को सुरक्षित रखे तथा यज्ञ रक्षक घ्राण की और  सौ मित्रिवत्सल  मुख की रक्षा करें।।५।।

मेरी जिव्हा की विद्यानिधि , कंठ की भरतवन्दित , कंधो की दिव्यायुध और भुजाओं की भग्नेशकार्मुक (महादेव जी का धनुष तोड़ने वाले )रक्षा करें।।६।।

हाथों की सीतापति , हृदय की जामदग्न्यजित (परशुरामजी को जीतने वालें  ), मध्यभाग की खरध्वंसी (खर नाम के राक्षस का नाश करने वाले )और नाभि की जाम्ब्वदाश्रय रक्षा करें।।७।।

कमर की सुग्रीवेश , सक्थियों की हनुमत्प्रभुः और उरुओं की राक्षसकुल विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें।।८।।

जानुओं की सेतुकृत् , जंघाओं की दशमुखान्तक (रावण को मारने वाले ), चरणों की विभीषण श्रीद (विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले )और सम्पूर्ण शरीर की श्री राम रक्षा करें।।९।।

जो पुण्यवान् पुरुष रामबल से सम्पन्न  इस रक्षा का पाठ करता हैं , वह दीर्घायु , सुखी , पुत्रवान , विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता हैं।।१०।।

जो जीव पताल , पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और छद्मवेश से घूमते रहते हैं , वे राम नाम से सुरक्षित पुरुष को देख भी नहीं सकते।।११।।

'राम','रामभद्र ','रामचन्द्र 'इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य पापों में लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं।।१२।।

जो पुरुष जगत को विजय करने वाले एकमात्र मन्त्र राम नाम से सुरक्षित इस स्त्रोत को कंठ में धारण कर लेता हैं , सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं।।१३।।

जो मनुष्य वज्रपंजर नामक  इस राम कवच का स्मरण करता हैं , उसकी आज्ञा का  कहीं भी उल्लघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगल की प्राप्ति होती हैं।।१४।।

श्री शंकरजी ने रात्रि के समय स्वप्न में इस राम रक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था , उसी  प्रकार प्रातः काल जागने पर बुध कौशिक जी ने इसे लिख दिया।।१५।।

जो मानो कल्पवृक्ष के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अंत करने वाले हैं , जो तीनो लोक में परम सुंदर हैं , वे श्री राम हमारे प्रभु हैं।।१६।।

जो तरुण अवस्था वाले , रूपवान , सुकुमार , महाबली , कमल के सामान विशाल नेत्रों वाले , चीर वस्त्र और कृष्ण मृगचर्म धारी ,फल -मूल  आहार वाले , संयमी , तपस्वी , ब्रह्मचारी , सम्पूर्ण जीवो को शरण देने वाले , समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करने वाले हैं , वे रघुश्रेष्ठ दसरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करे।।१७ -१९।

जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा हैं , जो बाण का स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिए हुए हैं , वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मार्ग में सदा ही मेरे आगे चले।।२०।।

सर्वदा उद्यत , कवचधारी , हाथ में खड्ग लिए , धनुष बाण धारण किये तथा युवा अवस्था वाले भगवान राम लक्ष्मण जी सहित आगे -आगे  चलकर  हमारे मनोरथों की रक्षा  करें।।२१।।

(भगवान का कथन हैं कि )राम , दशरथि ,शूर , लक्ष्मणानुचर , बलि , काकुत्स्थ , पुरुष , पूर्ण , कौसल्येय , रघुत्तम , वेदान्तवेद्य ,यज्ञेश ,पुराण पुरुषोत्तम , जानकी वल्ल्भ , श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम - इन नाम का नित्य प्रति श्रद्धा पूर्वक जप करने से मेरा भक्त  अश्वमेध  यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता हैं -इसमें कोई संदेह नहीं हैं।।२२ -२४।

जो लोग दूर्वादल के समान श्याम वर्ण , कमल नयन , पीताम्बरधारी भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं , वे संसार चक्र में नहीं पड़ते।।२५।।

लक्ष्मणजी के पूर्वज , रघुकुल में श्रेष्ठ , सीताजी के स्वामी , अतिसुन्दर , ककुत्स्थ कुलनन्दन , करुणा सागर , गुणनिधान , ब्राह्मणभक्त , परमधार्मिक , राजराजेश्वर , सत्यनिष्ठ , दशरथ पुत्र , श्याम  और शांतिमूर्ति , सम्पूर्ण लोको में सुंदर , रघुकुल तिलक , राघव और रावणारी  भगवा न राम की मैं वंदना करता /करती हूँ।।२६।।

राम , रामभद्र , रामचन्द्र , विधार्त स्वरूप , रघुनाथ , प्रभु सीतापति को नमस्कार हैं।।२७।।

हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान राम ! हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइये।।२८।।

मैं श्री राम चन्द्र के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ , श्री रामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ , श्री रामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्री रामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ।।२९।।

राम मेरी माता हैं , राम मेरे पिता हैं , राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं , दयामय राम ही मेरे सर्वस्व हैं , उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानती।।३०।।

जिनकी दायीं और लक्ष्मणजी , बाएँ और जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं , उन रघुनाथजी की मैं वंदना करता हूँ।।३१।।

जो सम्पूर्ण लोकों में सुंदर , रणक्रीडा में धीर , कमलनयन , रघुवंश नायक , करुणामूर्ति और करुणा के भंडार हैं, उन श्री रामचन्द्र जी की मैं शरण लेता हूँ।।३२।।

जिनकी  मन के सामान गति और वायु के सामान वेग हैं , जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानो में श्रेष्ठ हैं। उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्री रामदूत मैं शरण लेता हूँ।।३३।।

कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरो वाले राम -राम इस मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकिरूप  कोकिल की मैं वंदना करता हूँ।।३४।।

आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की सम्पति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवान राम को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ।।३५।।

'राम -राम 'ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों  को भून डालनेवाला , समस्त सुख -सम्पति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करनेवाला हैं।।३६।।

राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजय को प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान राम का भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजी ने सम्पूर्ण राक्षस सेना का ध्वंस कर दिया था , मैं उनको प्रणाम करता हूँ। राम से बड़ा और कोई आश्रय नहीं हैं। मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा चित्त सदा राम में ही लीन रहें ;हे राम !आप मेरा उद्धार कीजिये।।३७।।

(श्री महादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं -)हे सुमुखि !रामनाम विष्णु सहस्त्रनाम के तुल्य हैं। मैं सर्वदा 'राम-राम , राम 'इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ।।३८।।
         
                              इति श्री बुधकौशिकमुनिविरचितं श्री राम रक्षास्तोत्रं सम्पुर्णम्। 
( यह पाठ करते समय ध्यान रखे की शुद्ध स्थान और शुद्ध आसन होना चाहिए। मन में पूर्ण विश्वास , श्रद्धा होनी चाहिए। )


गुरुवार, 22 जनवरी 2015

हम अपने बने।





                                                        अपने बने                                        

दुखी व्यक्ति के लिए वास्तव में यह संसार दुःख का जंगल हैं। दुःख  से घिरे  हुए व्यक्ति के अंदर केवल एक ही विचार कार्य करता हैं कि  वह अकेला हैं और सब और से घृणा से भरा हैं। उसे ऐसा लगता हैं कि  कोई भी व्यक्ति को उससे संवेदना नहीं हैं और न ही उसके प्रति कोई आकृष्ट नहीं हैं। और तो और उसका स्वंय पर से भी विश्वास उठ जाता हैं। पर उसके मन से यह बात अलग नहीं होती कि शायद किसी अन्य के द्वारा उसे दुःख से छुट्टी मिल जाए। 
             दुःख के समय मन से किसी प्रकार की सहायता नही मिलती ;क्योंकि उसकी अनर्गल  इच्छाएisही दुःख उत्पन्न करती हैं.इच्छाओ से उत्पन्न सुख को तो वह गले लगा लेता हैं, पर दुःख के उपस्थित होने पर उसकी कुछ सुने बिना ही वह उसे भगा  देना चाहता हैं। परिस्थितियों के अनुकूल होने पर उसे कभी -कभी सफलता मिल भी जाती हैं और ऐसे में बुद्धि निस्सहाय होकरसुषुप्ति -अवस्था में चली जाती हैं और दुःख के विषय में गंभीर विचार करने में असमर्थ हो जाती हैं। मन के चक्र में फंस कर मनुष्य अधिक समय तक दुःख भोगता रहता हैं। ऐसे ही कितने जीवन दुःख के कारण नष्ट हो जाते हैं। 
           कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दुःख की घड़ी आने पर उस पर कुछ विचार करते भी हैं और सत्संग का आश्रय लेते हैं। लकिन अधूरे विचार और बाहरी सत्संग से उन्हें विशेष लाभ नहीं होता , क्योंकि दुःख पर विचार करते समय या सत्संग के अवसर पर उसका मन पूरी तरह से वहाँ नहीं रहता। उसका  सदा इधर -उधर भटकता रहता हैं और दुसरो की बातों में दुःख  छुटकारा पाने के लिए समाधान ढूँढता हैं , जो उसे कभी नहीं मिलता। कारण , वह अपने इन्द्रिय -सुख को कभी छोड़ना  नही चाहता। दुःख के अवसर मनुष्य के जीवन में बार -बार आते हैं और हर बार  गहरी चोट पहुँचाते हैं। मनुष्य उससे तिलमिलाता हैं , रोता हैं , चिल्लाता हैं , पश्चाताप करता हैं और उसके मन में भोगो से मुँह मोड़ने की इच्छा होती हैं , लेकिन पुरानी आदत अवसर आने पर उसे फिर भोगों की और आकर्षित कर देती हैं और फिर से मनुष्य दुखो में घिर कर रोना शुरू कर देता हैं। यदि मनुष्य खुद नहीं संभला तो ऐसी कोई ताकत नहीं हैं जो उसे सही पथ पर ला सके। 
           जिस मनुष्य ने जिंदगी की बातों को या उसके सुख -दुःख को समझ लिया हैं और उसके अंदर दुखों से तीव्र छुटकारा पाने की इच्छा हो गई हैं उसे सुखी होने से फिर कोई नहीं रोक सकता। ऐसे व्यक्ति को किसी सत्संग की जरूरत नहीं क्योंकि मनुष्य को अल्पकाल के लिए सत्संग से लाभ हो सकता हैं परन्तु पूर्ण लाभ तो तभी होगा जब वह अपने को समझा सकेगा। मनुष्य का जीवन एक सुंदर रंग बिरंगे  फूलों का उपवन हैं अगर इसमें कोई सुंदरता को नष्ट करने वाली कोई चीज़ उग जाती हैं तो उसे उखाड़ फेंको। अपनी व्यर्थ की इच्छाओं  को पूरा करने की होड़ में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि  हमे मालूम ही नहीं चलता कि जीवन के कितने अनमोल पल हमने अपनी  व्यर्थ के भविष्य के सुख प्राप्ति के कारण नष्ट कर दिए। इसलिए  दुःख की अवस्था में होश में रहकर अवसर को हाथ से न जाने दो , जितनी जल्दी हो सके अपने दुःख को दूर कर देना चाहिए। मनुष्य को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि इच्छा कभी पूरी नहीं होती और उम्र पूरी हो जाती हैं। इसलिए आपके  पास जितना भी  हैं उसी में संतुष्ट रहने की आदत डालो।  शेष कल : 
जय श्री राधे !

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

मेरे मन की आवाज

                                                                           


                                                                           आपका दिन मंगलमय हो !



मैं  एक  पेज़  और शु रू  करने जा रही हूँ। जिसमे कभी -कभी मेरे अंतर्मन में कुछ विचार उठते हैं जिनको मैं आपके साथ शेयर करना  चाहती हूँ।
इस पेज़ को मैं नाम दे रही हूँ -मेरे अंतर्मन की आवाज !


                                 आजकल धर्म को लेकर बहुत चर्चाए चल रही हैं। धर्म परिवर्तन हो रहे हैं। जगह -जगह धर्म के नाम पर दुखी लोगो का फायदा उठाकर अपनी तिजोरी को भरा जा रहा हैं।

हम आप से यह पूछते हैं कि जब हमे कोई दुःख या कष्ट होता हैं। तो हम उस परमपिता परमेश्वर की ही शरण में क्यों नहीं जाते। हमे उनके पास अपनी बात को पहुंचाने के लिए किसी midiater की ही जरूरत क्यों पड़ती हैं। हम सीधे ही अपने माँ- पिता से सीधे ही बात क्यों नहीं करते। एक बार आप उस परमेश्वर से कोई रिश्ता बना कर तो देखिये। मैं पुरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि फिर आपको किसी अन्य के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कोई भी आपका फायदा नहीं उठा पायगा। लकिन शर्त एक ही हैं कि  आपको अपने आपको पूरी तरह से समर्पित करना पड़ेगा। (यहाँ पर मैं समर्पण किसी
इंसान के आगे करने के लिए नहीं कह रही हूँ बल्कि
ईश्वर के आगे समर्पण करने के लिए कह रही हूँ। )मुझेभी कई बार ऐसी उलझन हुई हैं कि मन ने कहाँ कि किसी ज्योतिषी की शरण में चला जाए , लकिन तभी मेरी अंतरात्मा मुझे रोक लेती हैं। जो इस सारे विश्व की देखभाल कर रहा हैं , वो क्या हमको नजरअंदाज करेंगे। हम तो उन्ही की संतान हैं।

अगर आपने कभी गोर किया हो तो जाना होगा की अक्सर हमारे मन में दो विचार आते हैं एक गलत होता हैं व एक सही। यह हमे  निर्णय लेना हैं कि  हम किस को चुने।

एक बात और कोई भी धर्म छोटा या बड़ा नहीं होता। मेरा सिर तो जितने आस्था के साथ मंदिर में झुकता हैं। उसी आस्था के साथ मस्जिद में , गुरूद्वारे में , चर्च में भी झुकता हैं। मेरे माता -पिता के रूप में अगर मेरे भोले बाबा व गोऱा माँ हैं, तो वही जीसस , नानक देव , व पीर मोहम्मद भी मेरे माता -पिता ही हैं।
आपके कारण किसी को दुःख न पहुंचे। हर असहाय  की तुम सहायता करो। तुम्हारे पास कोई भी वस्तु ज्यादा हैं उसे किसी जरूरत मंद को दे दो।
 आप जब किसी के होठों पर मुस्कान लाओगे  तब जो खुशी आपको मिलेगी वो सब से हट कर होगी।

!

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

जीवन में आन्नद चाहते हो तो करो


जीवन में आन्नद चाहते हो तो 





सुबह उठकर धरती माँ को प्रणाम करो , माता -पिता को प्रणाम करो , प्रभु को याद करो। माता -पिता को  कष्ट देंगे तो दुखी रहेंगे

अतः हमेशा उनकी सेवा करो व् उनको सुखी रखो। 

अपनी शक्ति के अनुसार गरीबो की ,जरूरतमंद की , असहायों की मदद करो। उसी समय आनंद की अनुभूति हो जाायेगी।

किसी से प्यार करोगे, तो प्यार पाओगे , गाली दोगे तो गाली पाओगे। तो क्यों न प्यार का माहौल बना कर रहा जाए। आनंद ही आनंद का अनुभव होगा।

जीवन में ऐसा कोई भी कार्य या कर्म न करे कि दिन का चैन व् रातो की नींद चली जाए।

दुसरो की अच्छाई देखे , कमी अपनी देखें और उसे दूर करने का प्रयास करे।

चरित्र बहुत बड़ी पूंजी हैं। धन गया तो वापिस आ जाएगा लेकिन चरित्र गया तो, सब कुछ चला जाएगा।

परोपकार सिर्फ धन से ही नहीं होता बल्कि इसके और भी रूप हैं प्यासे को पानी , भूखे को रोटी , असमर्थ व्यक्ति को उसके निवास तक पंहुचा कर आदि तरीके से भी परोपकार किया जा सकता हैं।

मनुष्य आता अकेले हैं व् जाता भी अकेले हैंI ईसलिए ऐसा कर्म कर के जाए कि सभी हमारी अनुपस्थिति में हमे याद करे।

गलती इंसान से ही होती हैं ,गलती होना स्वभाविक भी हैं, किन्तु गलती करने के बाद उस गलती को मान लेना महानता हैं। ऐसा प्रयास करे कि फिर वो गलती दुबारा न हो। जीवन मंगलमय बनेगा।

मानव शरीर के अंन्दर विकार ही विकार हैं और. प्रभु उसे किसी न किसी माध्यम से बाहर निकलते रहते हैं जैसे -कान से गन्दा wax , आँख से कीचड़ , मुख से बलगम , त्वचा से पसीना आदि। पर एक हम हैं जो मन और बुद्धि के विकार बाहर नहीं निकाल सकते।

धन से अधिक परिवार में बच्चो को अच्छे संस्कार देने की आवश्यकता हैं , यदि संस्कार अच्छे नहीं होगे तो बच्चे सारी सम्पति बर्बाद कर देंगे। जिस परिवार में अच्छे संस्कार हैं , उस परिवार में किसी चीज का आभाव नहीं हो सकता। परिवार हमेशा सुखी रहेगा।
राधे-राधे

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