/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: मार्च 2020

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शनिवार, 28 मार्च 2020

शिव तांडव कब और कैसे शुरू हुआ?

                  शिव तांडव  कैसे शुरू हुआ?
                     शिव तांडव नृत्य की कथा




दारूक नामक एक दैत्य असुरों में उत्पन्न हुआ। तपस्या से पराक्रम प्राप्त करके वह असुर देवताओं तथा सभी को पीड़ित करने लगा। उस समय वह दारुक, ब्रह्मा, ईशान, कुमार ,विष्णु, यम, इंद्र आदि के पास पहुंच कर उनको सताने लगा। इससे वह देवता बहुत पीड़ित हुए,वह असुर स्त्रीवध्य है, ऐसा सोचकर स्त्रीरूप धारी तथा युद्ध के लिए स्थित ब्रह्मा जी आदि के साथ में ,असुर युद्ध करने लगा। तब उसके द्वारा पीड़ित किए गए सभी देवता  ब्रह्मा जी के पास पहुंचकर उनसे सबकुछ निवेदन करके , उमापति  के पास जाकर ,पितामह को आगे करके (शिव) की स्तुति करने लगे।इसके बाद देवेश के निकट जाकर अत्यन्त विन्रम भाव से विनती करने लगे-" हे भगवन् ! दारुक महाभयंकर है; हम लोग उससे पहले ही पराजित हो चुके है।स्त्री के द्वारा वध्य उस दारुक का संहार करके आप हम लोगों की रक्षा कीजियें ।।"
बह्मा जी की प्रार्थना सुनकर महादेव ,देवी गिरिजा से हँसते हुए कहा-'हे शुभे ! मैं सभी लोगो के हित के लिए इस स्त्री वध्य दारुक के वध हेतु आज आपसे प्रार्थना करता हूँ।'
तब उनका वचन सुनकर संसार को उत्पन्न करने वाली उन देवेश्वरी ने जन्म के लिए तत्पर होकर शिव के शरीर में प्रवेश किया। वे ( पार्वती) देवताओं मे श्रेष्ठ देवेश्वर में अपने सोलहवें अंश से प्रविष्ट हुई, उस समय ब्रह्मा तथा  इंद्र आदि प्रधान देवता भी इसे नहीं समझ पाए। मंगलमय पार्वती जी को शंभू के समीप देखकर सब कुछ जानने वाले ब्रह्मा भी उनके माया से मोहित हो गए थे। उन महादेव के शरीर में पदस्थ हुए उन पार्वती ने उनके कंठ में स्थित विष से अपने शरीर को बनाया। इसके बाद उन पार्वती को विषभूता जानकर  शिव ने अपने तीसरे नेत्र से  कृष्ण वर्ण के  कंठ वाली काली का प्रादुर्भाव हुआ । उस समय विपुल विजयश्री भी उत्पन्न हुई । अब असिद्धि के कारण देत्यों की  पराजय निश्चित है, इससे भवानी तथा परमेश्वर शिव को प्रसंता हुई। विष से अलंकृत कृष्ण वर्ण के कंठ वाली तथा अग्नि के सदृश स्वरूप वाली  काली को देखकर सभी देवता  और विष्णु, ब्रह्मा, देवता भी उस समय भय के कारण भागने लगे।
 उनके ललाट में शिव की भांति तीसरा नैत्र था तथा मस्तक पर अति तीव्र चंद्र रेखा थी,कंठ में कालकूट विष था, एक हाथ में  विकराल त्रिशूल  था और वे सर्पों के हार आदि धारण किए हुए थी।
 काली के साथ दिव्य वस्त्र धारण किए हुए तथा आभूषणों से विभूषित देवियां, सिद्धों के स्वामी, सिद्धगण तथा पिशाच भीउत्पन्न हुए।
 तब उन पार्वती की आज्ञा से परमेश्वरी काली ने  असुर दारुक का वध कर दिया।।
 उनके अतिशय वेग तथा क्रोध की अग्नि से  संपूर्ण जगत व्याकुल हो उठा। तब ईश्वर भव भी माया से बाल रूप धारण कर उस काली की क्रोधाग्नि को पीने के लिए काशी में शमशान में जाकर रोने लगे।
 उन बालरुप ईशान को देखकर उनके माया से  मोहित उन काली ने  उन्हे उठाकर, मस्तक सुघँकर ,अपना दूध ग्रहण कराया।
 बाल रूप शिव दूध के साथ उनका क्रोध भी पी गये और इस प्रकार वे इस क्रोध से क्षेत्रों की रक्षा करने वाले हो गए। उन बुद्धिमान क्षेत्रपाल (भैरव) की भी आठ मूर्तियां हो गई। इस प्रकार काली उस बालक के द्वारा क्रोधमूर्छित अर्थात क्रोध से मुक्त कर दी गई।
 इसके बाद महादेव ने काली की प्रसन्नता के लिए संध्याकाल में श्रेष्ठ भूतों प्रेतों के साथ तांडव नृत्य किया।
 शंभू के नृत्यामृत का कण्ठ तक पान करके वे परमेश्वरी  श्मशान में नाचने लगी और योगनियाँ भी उनके साथ नाचने लगी ।
वहां पर ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने सभी और से काली को तथा  पार्वती जी को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की।
 इस प्रकार मैंने संक्षेप में शूल धारी प्रभु के तांडव नृत्य का वर्णन कर दिया; योग के आनंद के कारण शिव तांडव होता है '-ऐसा अन्य लोग कहते हैं।
।। इस प्रकार श्री लिंग महापुराण के अंतर्गत पूर्व भाग में "शिवतांडव कथन "नामक एक सौ छठा अध्याय पूर्ण हुआ

सोमवार, 23 मार्च 2020

(आध्यात्मिक बोध कथा)श्रेष्ठतम का सहारा ही श्रेष्ठ होता है

 जो सब में श्रेष्ठ हो का सहारा लेना है श्रेष्ठ होता है


बहुत सी भेड़ बकरियां जंगल में चरने गई । उनमें से एक बकरी चरते चरते एक लता में उलझ गई ।उसको उस लता में निकलने में बहुत देर लगी ,तब तक अन्य सब भेड़ बकरियां अपने घर पहुंच गयें। अंधेरा भी हो रहा था वह बकरी घूमते घूमते एक सरोवर किनारे पहुंची। वहां किनारे की गीली जमीन पर सिंह का एक चरण चिन्ह अंकित था ,उस चरण चिन्ह के शरण होकर उसके पास बैठ गई। रात में जंगली सियार, भेड़िया ,बाघ आदि प्राणी बकरी को खाने के लिए पास में आए तो, उस बकरी ने बता दिया कि पहले देख लेना कि मैं किसके शरण में हूं,, तब मुझे खाना वह चिन्ह को देखकर कहने लगे अरे यह तो सिंह के चरण चिन्ह है। जल्दी भागो यहां से,आ जाएगा तो हम को मार डालेगा। इस प्रकार सभी प्राणी भयभीत होकर भाग गए। अंत में जिसका चरण चिन्ह था, वह  आया और बकरी से बोला तू जंगल में अकेले कैसे बैठी है ।बकरी ने कहा यह चरण चिन्ह देख लेना, फिर बात करना। जिसका यह चरण चिन्ह है उसी के में शरण हुए बैठी हूं। सिंह ने कहा कि वह तो मेरा ही चरण चिन्ह है ,यह बकरी तो मेरे शरण हुई ।सिंह ने बकरी को आश्वासन दिया कि अब तुम डरो मत अराम से रहो। रात में जब  जल पीने के लिए हाथी आया तो उसने हाथी से कहा - "इस बकरी को अपनी पीठ पर चढ़ा लो, इसको जंगल में चरा कर लाया कर, पर हरदम अपनी पीठ पर ही रखा कर, नहीं तो तू जानता  नहीं कि मैं कौन हूंँ? मार डालूंगा!" सिंह की बात सुनकर हाथी थर थर कांपने लगा। उसने अपने सूडं से ऊपर चढ़ा लिया अब  बकरी निर्भय होकर, हाथी की पीठ पर बैठे-बैठे ही वृक्षों की ऊपर की कोंपलें ऊपर खाया करती, मस्त रहती।
 ऐसे ही जब मनुष्य भगवान की शरण हो जाता है उनके चरणों का सहारा ले लेता है। संपूर्ण प्राणियों से,विघ्न बाधाओं से निर्भय हो जाता है। उसको कोई भी भयभीत नहीं कर सकता । उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
 जो जाजो जा को शरण रहे ताकहँ ताकि लाज।
 उल्टे जल मछली चले, ब्रह्माे जात गजराज।।

सोमवार, 2 मार्च 2020

एक खूबसूरत उपहार प्रभु भक्तों के लिए

 नमस्कार ,जय श्री राधे मुझे आज ही किसी ने यह खूबसूरत नोट फॉरवर्ड किया  जो कि प्रभु भक्तों के लिए बहुत ही सुंदर उपहार है। वही मैं आप सब लोगों को भी भेज रही हूं ।इस उपहार का लाभ जरूर उठाइएगा ।बहुत ही सुंदर तरीके से यह आईआईटी कानपुर  ने तैयार किया है



IIT Kanpur has develped a website on our treasures of Vedas, Shahstras etc. Finally someone from today's science & technology field, is pursuing this seriously in india.

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