/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: मई 2021

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मंगलवार, 4 मई 2021

भए प्रगट कृपाला (हिन्दी में अर्थ)

                   भए प्रगट कृपाला (हिन्दी में अर्थ)


 भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी

 हर्षित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी

 लोचन अभिरामा तनु घनश्याम निज आयुध भुज चारी

 भूषन वनमाला नयन विशाला शोभा सिंधु खरारी।।

 दीनों पर दया करने वाले कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाले, मेघ के समान श्याम शरीर था; चारों भुजाओं में अपने खास आयुध धारण किए हुए थे दिव्या भूषण और वनमाला पहने थे। बड़े बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए ।

 कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता

 करुणा सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंताा।।

दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी हे अनन्त! में किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूं।वेद और पुराण तुमको माया, गुण और ज्ञान से परे परिमाण रहित बतलाते हैं। श्रुतियां और संत जन दया और सुख का समंदर, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं। वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरी कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।


ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,रोम रोम प्रति बेद कहै।

मम उर सो बासी, यह उपहासी,सुनत धीर मति थिर न रहै॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांडो के समूह भरे हैं। वे (तुम) मेरे घर में रहे, (इस हंसी के बाद के) सुनने पर  विवेकी पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती है, विचलित हो जाती है। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए। वह बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। उन्होंने पूर्व जन्म की सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्राप्त हो।भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाए।
माता पुनि बोली, सो मति डोली,तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,ते न परहिं भवकूपा॥
माता की वह बुद्धि बदल गई। तब वह फिर बोली है यह रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय बाल लीला करो। मेरे लिए यह सुख परम अनुपम होगा। यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक के रूप को कर, रोना शुरू कर दिया।तो तुलसी दास जी कहते हैं जो इस चरित्र का गान करते हैं वे श्रीहरि का पद पाते हैं और फिर संसार रूपी कुंऐ में नहीं गिरते हैं।
बिप्र धेनु सुर संत हित,लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु,माया गुन गो पार ॥

ब्राह्मण देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया है। वह माया और उसके गुण सत ,रज और तम और बाहरी और भीतरी इंद्रियों से परे हैं। उनका दिव्य शरीर अपनी इच्छा से ही बना है।किसी कर्म बंधन से प्रवेश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं।

।।राम।।


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