/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: जून 2023

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सोमवार, 26 जून 2023

चाहे मन लगे या न लगे, यदि भगवान्‌का नाम जीभसे निरन्तर लेने लग जाइयेगा

                                    ॥ श्री हरिः ॥

जीभ से निरन्तर भगवान्‌का नाम लीजिये —


भगवान्ने कहा है—‘सभी धर्मोका आश्रय छोड़कर केवल एकमात्र मेरी शरणमें चले आओ। फिर मैं तुम्हें सब पापोंसे मुक्त कर दूँगा, तुम चिन्ता मत करो।' 

सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा  शुचः ॥ 

(गीता १८ । ६६ )

जरूर पढ़े–

https://www.parmatmaaurjivan.co.in/2022/02/blog-post.html

मनकी कैसी भी अवस्था क्यों न हो, कोई परवाह नहीं । केवल जीभसे निरन्तर भगवान्‌का नाम लीजिये, फिर सारी जिम्मेवारी भगवान् सँभाल लेंगे। केवल जीभसे नाम - स्मरण, और कोई शर्त नहीं । 

चाहे मन लगे या न लगे, यदि भगवान्‌का नाम जीभसे निरन्तर लेने लग जाइयेगा तो फिर न तो कोई शंका उठेगी, न कोई चाह रहेगी । थोड़े ही दिनोंमें शान्तिका अनुभव करने लगियेगा। इससे सरल उपाय कोई नहीं है । पूर्वके पापोंके कारण नाम लेनेकी इच्छा नहीं होती । यदि एक बार हठसे निरन्तर नाम लेकर नियम लेकर ४-६ महीने बैठ जायँगे, तो फिर किसीसे कुछ भी पूछनेकी जरूरत नहीं रहेगी । स्वयं सत्य वस्तुका प्रकाश मिलने लगेगा, संदेह मिटने लगेंगे। इस प्रकार जिस दिन भजन करते-करते सर्वथा शुद्ध होकर भगवान्‌ को चाहियेगा, उसी क्षण भगवान् से मिलकर कृतार्थ हो जाइयेगा। 

पहले ऐसा कीजिये कि कम-से-कम बोलकर जरूरी - जरूरी काम निबटा लीजिये, बाकी का समय पूरा - का - पूरा जीभ से नाम लेते हुए बिताइये । यह खूब आसानी से हो सकता है । करना नहीं चाहियेगा तो उसकी कोई दवा होनी बड़ी कठिन है । यदि मनुष्य भजन करना चाहे तो जरूर कर सकता है। यदि कोई कहता है - ' हमसे भजन नहीं होता' तो समझ लीजिये कि सचमुच वह भजन करना चाहता नहीं । आपके चाहने पर भजन अवश्य हो सकता है। बिना परिश्रम ही सब हो जायगा । यह कलियुग है, मन लगना बड़ा ही कठिन है । बिरले ऐसे होते हैं, जिनका मन सचमुच भगवान्‌ में लग गया हो। पर यदि कोई जीभ से नाम लेने लगे तो फिर बिना मन लगे ही अन्त तक अवश्य कल्याण हो जायगा । 

 -परमपूज्य श्री राधाबाबा।

रविवार, 25 जून 2023

जब मन दुखी हो तो क्या करें?

                           जब मन दुखी हो तो क्या करें?


जब मन दुखी होता है, तो कई तरह की चीजें करके आप अपने मन को शांत कर सकते हैं। यहां कुछ सुझाव हैं जो आपको मदद कर सकते हैं:


अपने भावनाओं को व्यक्त करें: वक्त निकालें और अपनी भावनाओं को लिखें, चित्र बनाएं, या दूसरों के साथ बातचीत करें। अपनी मन की स्थिति को साझा करने से आपको राहत मिल सकती है और आपका दुख कम हो सकता है।

व्यायाम करें: शारीरिक गतिविधि और व्यायाम आपके मन को स्थिरता देने में मदद कर सकते हैं। योग, प्राणायाम, या किसी अन्य व्यायाम तकनीक का अभ्यास करना आपके मानसिक स्थिति को सुधार सकता है।

संगीत सुनें: संगीत आपके मन को शांति और आनंद प्रदान कर सकता है। आपकी पसंद के गाने सुनें या स्वयं गायें, जो आपको खुशी महसूस कराते हैं।

मनोरंजन करें: किसी अपने पसंदीदा गतिविधि में समय बिताएं, जैसे कि किताब पढ़ना, फिल्म देखना, कला या शौक के साथ समय बिताना। यह आपको मनोरंजन का मौका देता है और दुख को भुलाने में मदद कर सकता है। समय के साथ दुख को स्वीकार करें: दुख भाग्य का हिस्सा है और यह सभी के जीवन में आता है। जब हम अपने दुःख को स्वीकार करते हैं, तो हम उसे संघर्ष के बजाय स्वीकार करने और उसके साथ जीने का तरीका ढूंढ़ते हैं।

यदि आपका दुःख बहुत गंभीर है और आपको लगता है कि आप में अकेले  नहीं सामर्थ्य हैं, तो इससे बाहर एक पेशेवर, जैसे कि मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक, से सलाह लेने की सलाह दी जाती है। वे आपको सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं।

अंत में, मैं तो यही कहूंगी कि अगर संसार में आपका अपना कोई ऐसा साथी नहीं है जिससे आप अपने सुख दुख बांट सकते हैं। तो ईश्वर को अपना साथी बना ले। जो भी आपको पसंद हो कृष्णा, शिव राधे मां, गौरा मां। ईश्वर, अल्लाह जो भी पसंद हो, उसे साथी बनाएं और उनके साथ अपनी सारी दिनचर्या शेयर करें, आपको बहुत शांति मिलेगी।असीम सुख की अनुभूति होगी।

।।जय श्री राधे।।


शनिवार, 10 जून 2023

कैलाश पर्वत और चंद्रमा का रहस्य.....

                    कैलाश पर्वत और चंद्रमा का रहस्य.....


कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य, कैलाश पर्वत के इन रहस्यों से नासा भी हो चुका है चकित..

कैलाश पर्वत, इस एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी भारतीय लोग शिव का निवास स्थान मानते हैं। शास्त्रों में भी यही लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है।

किन्तु वहीं नासा जैसी वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमयी जगह है। नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट दी है।

उन सभी का मानना है कि कैलाश वास्तव में कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहाँ शिव देखे गये हैं किन्तु यह सभी मानते हैं कि, यहाँ पर कई पवित्र शक्तियां जरूर काम कर रही हैं। तो आइये आज हम आपको कैलाश पर्वत से जुड़े हुए कुछ रहस्य बताते हैं।

कैलाश पर्वत के रहस्य.

रहस्य 1– रूस के वैज्ञानिको का ऐसा मानना है कि, कैलाश पर्वत आकाश और धरती के साथ इस तरह से केंद्र में है जहाँ पर चारों दिशाएँ मिल रही हैं। वहीं रूसी विज्ञान का दावा है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है और इसी स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है। धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली स्थान है।

रहस्य 2 - दावा किया जाता है कि आज तक कोई भी व्यक्ति कैलाश पर्वत के शिखर पर नहीं पहुच पाया है। वहीं 11 सदी में तिब्बत के योगी मिलारेपी के यहाँ जाने का दावा किया जाता रहा है। किन्तु इस योगी के पास इस बात के प्रमाण नहीं थे या फिर वह स्वयं प्रमाण प्रस्तुत नहीं करना चाहता था। इसलिए यह भी एक रहस्य है कि इन्होंने यहाँ कदम रखा या फिर वह कुछ बताना नहीं चाहते थे..

रहस्य 3 - कैलाश पर्वत पर दो झीलें हैं और यह दोनों ही रहस्य बनी हुई हैं। आज तक इनका भी रहस्य कोई खोज नहीं पाया है। एक झील साफ़ और पवित्र जल की है। इसका आकार सूर्य के समान बताया गया है। वहीं दूसरी झील अपवित्र और गंदे जल की है तो इसका आकार चन्द्रमा के समान है। 

रहस्य 4 - यहाँ के आध्यात्मिक और शास्त्रों के अनुसार रहस्य की बात करें तो कैलाश पर्वत पे कोई भी व्यक्ति शरीर के साथ उच्चतम शिखर पर नहीं पहुच सकता है। ऐसा बताया गया है कि, यहाँ पर देवताओं का आज भी निवास हैं। पवित्र संतों की आत्माओं को ही यहाँ निवास करने का अधिकार दिया गया है।

रहस्य 5 - कैलाश पर्वत का एक रहस्य यह भी बताया जाता है कि जब कैलाश पर बर्फ पिघलती है तो यहाँ से डमरू जैसी आवाज आती है। इसे कई लोगों ने सुना है। लेकिन इस रहस्य को आज तक कोई हल नहीं कर पाया है.

रहस्य 6 – कई बार कैलाश पर्वत पर *सात तरह के प्रकाश* आसमान मेंदेखे गये हैं। इस पर नासा का ऐसा मानना है कि यहाँ चुम्बकीय बल है और आसमान से मिलकर वह कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण करता 

रहस्य 7 - कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मों का केंद्र माना गया है। यहाँ कई साधू और संत अपने देवों से टेलीपैथी से संपर्क करते हैं। असल में यह आध्यात्मिक संपर्क होता है।

रहस्य 8 - कैलाश पर्वत का सबसे बड़ा रहस्य खुद विज्ञान ने साबित किया है कि यहाँ पर प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहाँ से *ॐ* की आवाजें सुनाई देती हैं।

समझ गये होंगे कि, कैलाश पर्वत क्यों आज भी इतना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व रखे हुए है। हर साल यहाँ दुनियाभर से कई लोग अनुभव लेने आते हैं, और सनातन धर्म के लिए कैलाश सबसे बड़ा आदिकालीन धार्मिक स्थल भी बना हुआ 

यहाँ पर सूर्य और चंद्रमा के संधि काल (सायं काल) प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहाँ से *ॐ* की आवाजें सुनाई देती है।

मंगलवार, 6 जून 2023

परमार्थ के पत्र पुष्प (हृदय अशांत रहेगा)

           परमार्थ के पत्र पुष्प ( हृदय अशांत रहेगा)



अपने मन में सबके प्रति सद्भाव बनाए रखना चाहिए। दूसरे लोग मेरे प्रति ईर्ष्या द्वेष रखें, तो उससे हमारा कुछ भी ना बिगड़ेगा। ईर्ष्या क्रोध जिसके मन में है, उसी की हानि होगी। हृदय अशांत हो जाएगा। क्रोध ईर्ष्या से हृदय का रोग भी पैदा हो जाता है। मन शांत रहने से शरीर स्वस्थ रहेगा। शांत रहकर दूसरे को शांत रख सकेंगे। हम क्रोध करेंगे तो दूसरे को भी क्रोध की प्रेरणा मिलेगी। सभी जीव ईश्वर के अंश है। इसलिए सब के प्रति सद्भाव बना कर रखना चाहिए।इसी से प्रभु प्रसन्न होंगे, यही सच्ची भक्ति है। बिना कारण के उपकार करने वाले दो हैं –1.ईश्वर और 2.भक्त। शेष सब स्वार्थी हैं।

।।दादा गुरु के श्री मुख से।।

परमार्थ के पत्र पुष्प(जो लोग भगवान में अपने मन को लगाते है

          जो लोग अपने मन को भगवान में लगाते हैं।

जो लोग अपने मन को भगवान में लगाते हैं, वाणी से नाम गुणों का कीर्तन करते हैं। शरीर से मंदिर में सेवा करते हैं, वह भाग्यशाली हैं। इन्हीं कामों को प्रेम पूर्वक करते-करते भगवान के रूपों का, हृदय में साक्षात्कार कर लेते हैं। संसार में प्राणी निरंतर सुखी नहीं रह सकता है कभी सुख, कभी दुख प्रारब्ध के अनुसार मिलते हैं। इनसे घबराना नहीं चाहिए। सच्चाई के साथ व्यवहार करते हुए किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए। अपने साथ बुराई करने वाले को भी सज्जन शाप नहीं देते हैं। ऐसे परोपकारी पर भगवान प्रसन्न होते हैं। कष्ट के समय भक्तों की परीक्षा होती है, परीक्षा समझकर बुद्धि को स्थिर करना चाहिए। इतिहास देखने से पता चलता है कि बड़े-बड़े भक्तों को अवतार काल में परमात्मा को कष्ट सहन करते देखा जाता है। काल में भी अपने धर्म का त्याग करके जो उपकार करता है वही धन्य है।

दादा गुरु भक्तमाली श्री गणेशदास जी के श्री मुख से

श्रीमद् भागवत का सूक्ष्म रूप

                     श्रीमद् भागवत का सूक्ष्म रूप

                           मूल भागवत हिंदी में

                           ॐ श्री परमात्मने नमः

 श्री भगवान बोले– ब्रह्मा जी! मेरा जो अत्यंत गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान है, वह तथा रहस्य सहित उसके अंग मेरे द्वारा कहे गए हैं, उसको तुम ग्रहण करो, धारण करो।

 मैं जितना हूं, जिन जिन भाव वाला हूं, जिन जिन रूपों, गुणों और कर्मों वाला हूं, उस मेरे सभी रूप के तत्व का यथार्थ अनुभव तुम्हें मेरी कृपा से ज्यों का त्यों हो जाए।

सृष्टि से पहले भी मैं था, मेरे सिवा और कुछ भी नहीं था और सृष्टि उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह संसार दिखता है, वह भी मैं ही हूं। सत् (चेतन,अविनाशी), असत (नाशवान) तथा सत व असत से परे जो कुछ कल्पना की जा सकती है, वह भी मैं ही हूं।सृष्टि के सिवाय जो कुछ है वह मैं ही हूं और सृष्टि का नाश होने पर जो शेष है वह भी मैं ही हूं।

 जैसे कोई वस्तु बिना होते हुए भी अज्ञान रूपी अंधकार के कारण प्रतीत होती है, ऐसे ही संसार न होते हुए भी मेरे में प्रतीत होता है और ज्ञान प्रकाश होते हुए भी उधर दृष्टि ना रहने से प्रतीत नहीं होता, अनुभव में नहीं आता। ऐसे ही मैं होते हुए भी नहीं दिखता, यह दोनों संसार का विद्यमान ना होते हुए भी दिखना और मेरा विद्यमान होते हुए भी ना देखना, मेरी माया है, ऐसा समझना चाहिए।

जिस तरह पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश यह पांचों महाभूत प्राणियों के छोटे बड़े, अच्छे बुरे, सभी शरीरों में होते हुए भी वास्तव में नहीं है,अर्थात वे ही वे हैं उसी तरह मैं उन प्राणियों में होते हुए भी वास्तव में उनमें नहीं हूं। अर्थात मैं ही मैं हूं।

मुझ परमात्मा के तत्व को जानने की इच्छा वाले साधक को अनुभव और व्यतिरेक रीति से अर्थात संसार में मैं हूं और मेरे में संसार है, ऐसे रीति से तथा ना संसार में मैं हूं और ना मेरे में संसार है, बल्कि मैं ही मैं हूं। ऐसे तरीके से रीति से इतना ही जानना आवश्यक है कि सब जगह और सब समय में परमात्मा ही विद्यमान है अर्थात मेरी सिवाय कुछ भी नहीं है।

ब्रह्मा जी! तुम मेरे इस मत के अनुसार सर्वश्रेष्ठ समाधि में भलीभांति स्थित हो जाओ। फिर तुम कल्प कल्पांतर तक मोह  को प्राप्त नहीं होगे ।

श्रीमद्भागवत 2/9 (30 से 36 तक)

पंचामृत जीवन में एक बार इसको अपना लो फिर सुख ही सुख है

 पंचामृत जीवन में एक बार इसको अपना लो फिर जीवन में सुख ही सुख है।


1  हम भगवान के ही हैं

2  हम जहां भी रहते हैं भगवान के ही दरबार में रहते हैं।

3  हम जो भी शुभ काम करते हैं भगवान का ही काम करते हैं।

4  शुद्ध सात्विक जो भी पाते हैं भगवान का ही प्रसाद पाते हैं।

5  भगवान के दिए प्रसाद से, भगवान के ही जनों की सेवा करते हैं।

सोमवार, 5 जून 2023

महामृत्युंजय मंत्र की रचना

      महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?

   किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना?


शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.

मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.

मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.

महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.

ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.

मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.

मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे, जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.

मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.

              ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

             उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था।

यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।

इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया।

यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं।

शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?

यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है।

भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते।

यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।

महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उवके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है।

।।ॐ नमः शिवाय।।

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