श्रीमद् भागवत का सूक्ष्म रूप
मूल भागवत हिंदी में
ॐ श्री परमात्मने नमः
श्री भगवान बोले– ब्रह्मा जी! मेरा जो अत्यंत गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान है, वह तथा रहस्य सहित उसके अंग मेरे द्वारा कहे गए हैं, उसको तुम ग्रहण करो, धारण करो।
मैं जितना हूं, जिन जिन भाव वाला हूं, जिन जिन रूपों, गुणों और कर्मों वाला हूं, उस मेरे सभी रूप के तत्व का यथार्थ अनुभव तुम्हें मेरी कृपा से ज्यों का त्यों हो जाए।
सृष्टि से पहले भी मैं था, मेरे सिवा और कुछ भी नहीं था और सृष्टि उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह संसार दिखता है, वह भी मैं ही हूं। सत् (चेतन,अविनाशी), असत (नाशवान) तथा सत व असत से परे जो कुछ कल्पना की जा सकती है, वह भी मैं ही हूं।सृष्टि के सिवाय जो कुछ है वह मैं ही हूं और सृष्टि का नाश होने पर जो शेष है वह भी मैं ही हूं।
जैसे कोई वस्तु बिना होते हुए भी अज्ञान रूपी अंधकार के कारण प्रतीत होती है, ऐसे ही संसार न होते हुए भी मेरे में प्रतीत होता है और ज्ञान प्रकाश होते हुए भी उधर दृष्टि ना रहने से प्रतीत नहीं होता, अनुभव में नहीं आता। ऐसे ही मैं होते हुए भी नहीं दिखता, यह दोनों संसार का विद्यमान ना होते हुए भी दिखना और मेरा विद्यमान होते हुए भी ना देखना, मेरी माया है, ऐसा समझना चाहिए।
जिस तरह पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश यह पांचों महाभूत प्राणियों के छोटे बड़े, अच्छे बुरे, सभी शरीरों में होते हुए भी वास्तव में नहीं है,अर्थात वे ही वे हैं उसी तरह मैं उन प्राणियों में होते हुए भी वास्तव में उनमें नहीं हूं। अर्थात मैं ही मैं हूं।
मुझ परमात्मा के तत्व को जानने की इच्छा वाले साधक को अनुभव और व्यतिरेक रीति से अर्थात संसार में मैं हूं और मेरे में संसार है, ऐसे रीति से तथा ना संसार में मैं हूं और ना मेरे में संसार है, बल्कि मैं ही मैं हूं। ऐसे तरीके से रीति से इतना ही जानना आवश्यक है कि सब जगह और सब समय में परमात्मा ही विद्यमान है अर्थात मेरी सिवाय कुछ भी नहीं है।
ब्रह्मा जी! तुम मेरे इस मत के अनुसार सर्वश्रेष्ठ समाधि में भलीभांति स्थित हो जाओ। फिर तुम कल्प कल्पांतर तक मोह को प्राप्त नहीं होगे ।
श्रीमद्भागवत 2/9 (30 से 36 तक)
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जय श्री राधे