/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: सितंबर 2019

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शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

आज का शुभ विचार

                        आज का शुभ विचार

जीवन मे कैसा भी दुख और कष्ट आये पर भक्ति मत छोडिए। क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड देते है। क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड देते है, नही ना।

       फिर जरा सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ? कभी भी दो चीज मत छोडिए भजन और भोजन।

        भोजन छोड दोगे तो ज़िंदा नही रहोगे। भजन छोड दोगे तो कही के नही रहोगे सही मायने में भजन ही भोजन है। "दिल" कहता हैं की लिख दू ये जिन्दगी तेरे नाम की कृष्ण तुझे खुश ना कर पाऊ, तो ये ज़िन्दगी किस काम की "मेरे कृष्ण

 जय श्री राधे

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

पितृपक्ष में श्राद्ध का महत्व

         पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व



हिंदू धर्म में व्यक्ति के कर्म और उसके पुनर्जन्म का विशेष संबंध देखा जाता है। यही वजह है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसका श्राद्ध कर्म करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति के द्वारा उसके पूर्वजों का पूरे विधि-विधान से श्राद्ध अथवा तर्पण ना किया जाए तो उस जीव की आत्मा को मुक्ति प्राप्त नहीं होती और वह इस संसार में ही रह जाती है और अपने वंशजों से बार-बार यह उम्मीद रहती है कि वह उसके मुक्ति के मार्ग को खोलने के लिए श्राद्ध कर्म करें।
यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि विशेष रूप से जौ और चावल में मेधा की प्रचुरता होने के कारण और ये दोनों ही सोम से संबंधित होने के कारण पितृ पक्ष में यदि इन्ही से पिंडदान किया जाए तो पितृ अपने 28 अंश रेतस को पाकर तृप्त हो जाते हैं और उन्हें प्रचुर शक्ति मिलती है और इसके बाद वे सोम लोक में ये रेतस के अंश देकर अपने लोक में चले जाते हैं।
श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌।

अर्थात जो पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाये, वही श्राद्ध है। पितृ पक्ष के दौरान जब किसी जातक द्वारा अपने पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि किया जाता है उसके कारण वह पितृ स्वयं ही प्रेरित होकर आगे बढ़ता है। जब पिंडदान होता है तो उस दौरान परिवार के सदस्य जो या चावल का पिंडदान करते हैं इसी मे रेतस का अंश माना जाता है और पिंडदान के बाद वह पितृ उस अंश के साथ सोम अर्थात चंद्र लोक में पहुंच कर अपना अम्भप्राण का ऋण चुकता कर देता है।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितृ चक्र ऊपर की ओर गति करने लगता है जिसके कारण 15 दिन के बाद पितृ अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितृ लोक की ओर रवाना हो जाते हैं। यही पितृपक्ष है और इसी वजह से इसका इतना महत्व है। सुषुम्ना नाड़ी जिसका संबंध सूर्य से माना गया है उसी के द्वारा अन्य दिनों में श्राद्ध किया जाता है। इसी नाड़ी के द्वारा श्रद्धा मध्यान्ह काल में पृथ्वी पर प्रवेश करती है और यहां से पितृ के भाग को लेकर चली जाती है जबकि पितृ पक्ष के दौरान पितृप्राण की स्थिति चंद्रमा के उर्ध्व प्रदेश में होती है और वे स्वयं ही चंद्रमा की परिवर्तित स्थिति होने के कारण पृथ्वी लोक पर व्याप्त होते हैं। यही वजह है जो पितृ पक्ष में तर्पण को इतना अधिक महत्व दिलाती है।
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥29॥

गीता सार के अनुसार इस श्लोक का अर्थ यह है कि भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! संसार के विभिन्न नागों में मैं शेषनाग और जलचरों में वरुण हूं, पितरों में अर्यमा तथा नियमन करने वालों में यमराज हूं। इस प्रकार अर्यमा को भगवान श्री कृष्ण द्वारा महिमामंडित किया गया है। अब आइए जानते हैं कि अर्यमा का पितृपक्ष अथवा पितरों से क्या संबंध है।
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।
ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।

इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि सभी पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ हैं। अर्यमा ही सभी पितरों के देव माने जाते हैं। इसलिए अर्यमा को प्रणाम। हे पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें। इसलिए वैशाख मास के दौरान सूर्य देव को अर्यमा भी कहा जाता है।
सर्वास्ता अव रुन्धे स्वर्ग: षष्ट्यां शरत्सु निधिपा अभीच्छात्।।

अथर्ववेद में अश्विन मास के दौरान पितृपक्ष के बारे में कहा गया है कि शरद ऋतु के दौरान जब छोटी संक्रांति आती है अर्थात सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तो इच्छित वस्तुओं में पितरों को प्रदान की जाती हैं, यह सभी वस्तुएँ स्वर्ग प्रदान करने वाली होती है।
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि के दौरान पितृ प्राण ऊपरी किरण अर्थात अर्यमा के साथ पृथ्वी पर व्याप्त होते हैं। इन्हें महर्षि कश्यप और माता अदिति का पुत्र माना गया है और देवताओं का भाई। इसके अतिरिक्त उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास स्थान माना गया है। कुछ स्थानों पर इन्हें प्रधान पितृ भी माना गया है। यदि यह प्रसन्न हो जाएं तो पितरों की तृप्ति हो जाती है इसी कारण  इनके नाम को लेकर जल दान किया जाता है।

श्राद्ध में कुछ विशेष(आखिर क्या होता है व्यक्ति की मृत्यु के बाद?)

        आखिर क्या होता है व्यक्ति की मृत्यु के बाद?




पृथ्वी लोक पर जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है और वह अपना शरीर त्यागता है तो वह 3 दिन के अंदर पितृ लोक पहुँचता है। इसलिए मृत्यु के तीसरे दिन तीजा मनाया जाने का विधान है। कुछ आत्माएं अधिक समय लेती हैं और लगभग 13 दिन में पितृ लोक पहुँचती हैं, उन्हीं की शांति के लिए तेरहवीं या त्रियोदशाकर्म किया जाता है। कुछ ऐसी भी आत्माएं होती हैं जिन्हें पितृ लोक पहुंचने में 37 से 40 दिन लग जाते हैं अर्थात लगभग सवा महीने में वो ये सफर तय करती है। इसलिए महीने भर के बाद मृत्यु की तिथि पर पुनः तर्पण किया जाता है और इसके पश्चात एक वर्ष (12 मास) के बाद तर्पण द्वारा बरसी की जाती है। इसके पश्चात उन्हें उनके कर्मानुसार पुनर्जन्म प्राप्त होने की संभावना होती है और उनका न्याय होता है।
जिन लोगों ने सत्कर्म किया होता है और अच्छे कर्मों की संख्या अधिक होती है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है अर्थात बार-बार जन्म लेने के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। यजुर्वेद के अनुसार तप और ध्यान करने वाले सद्चरित्र प्राणी ब्रह्मलोक पहुँचकर ब्रह्मलीन हो जाते हैं अर्थात उन्हें पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता। जिन लोगों ने सत्कर्म किया है और ईश्वर भक्ति में ध्यान लगाया है उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और वे दैवीय बन जाते हैं। जो प्राणी अत्यंत ही निकृष्ट प्रकृति के कार्य करते हैं उन्हें सद्गति प्राप्त नहीं होती और वह प्रेत योनि में भटकते हैं अर्थात उनकी आत्मा को शांति प्राप्त नहीं होती है।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी आत्माएं भी होती हैं जिन्हें किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए या उनके कर्मों के आधार पर इसी धरती पर पुनर्जन्म प्राप्त होता है। यहां पर यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सभी को धरती पर जन्म लेने पर भी मनुष्य योनि मिले, यह आवश्यक नहीं, वे पशु योनि में भी जा सकते हैं। ये सभी हमारे पूर्वज होते हैं और चाहे ये किसी भी योनि में जाएं हमारे पूर्वज ही रहेंगे इसलिए इनको सद्गति प्राप्त हो इसलिए श्राद्ध कर्म पूरे विधि-विधान के अनुसार करना चाहिए।
‘विदूर्ध्वभागे पितरो वसन्त: स्वाध: सुधादीधीत मामनन्ति'

पितृ लोक की स्थिति चंद्र अर्थात सोम लोक के उर्ध्व भाग में होती है। इसीलिए चंद्र लोक का पितृ लोक से गहरा संबंध होता है। मानव शरीर पंच महाभूतओं अर्थात पंच तत्वों से मिलकर बना होता है। जैसे पृथ्वी, वायु, जल, आकाश और अग्नि। इन पंच तत्वों में से सर्वाधिक रूप से जल और फिर वायु तत्व मुख्य रूप से मानव देह के निर्माण में सहायक होते हैं। यही दोनों तत्व सूक्ष्म शरीर को पूर्ण रूप से पुष्ट करते हैं और यही वजह है कि इन तत्वों पर अधिकार रखने वाला चंद्रमा और उसका प्रकाश मुख्य रूप से सूक्ष्म शरीर से भी संबंधित होता है।
जल तत्व को ही सोम भी कहा जाता है और सोम को रेतस भी कहते हैं। यही रेतस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी में सूक्ष्म शरीर को पुष्ट करने हेतु चन्द्रमा से संबंधित अन्य सभी तत्व मौजूद रहते हैं।
जब मानव शरीर निर्मित होता है तब उसमें 28 अंश रेतस उपस्थित होता है। जब देह का त्याग करने के बाद आत्मा चंद्र लोक पहुँचती है तो पुनः उसे यही 28 अंश रेतस पर वापस लौट आना होता है और वास्तव में यही पितृ ऋण है। इसे चुकाने के पश्चात वह आत्मा अपने लोक में चली जाती है जहां सभी उसके स्वजातीय रहते हैं।
अब स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि वास्तव में यह 28 अंश रेतस आत्मा कैसे लेकर जाती है। तो यह जानिए कि जब भी किसी प्राणी की देह का अंत होता है तो इस पृथ्वी लोक पर उस आत्मा की शांति के लिए वंशजों द्वारा जो भी पुण्य और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं उससे उस आत्मा का मार्ग प्रशस्त होता है। जब श्रद्धा मार्ग से पिंड तथा जल आदि का दान श्राद्ध स्वरूप किया जाता है तो यही 28 अंश रेतस के रूप में आत्मा को प्राप्त होते हैं। क्योंकि यह श्रद्धा मार्ग मध्याह्नकाल के दौरान पृथ्वी लोक से संबंधित हो जाता है इसलिए इस इस समय अवधि के दौरान पितृपक्ष में श्राद्ध किया जाता है।

मां का एक मंदिर जहां अखंड ज्योति से टपकता है कि केसर

मां का एक मंदिर जहां अखंड ज्योति से टपकता है केसर


भारत में वैसे तो बहुत से मंदिर हैं लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसे हैं जो अपने चमत्कारों और रहस्यों की वजह से ख़ासा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। धर्म के नाम पर होने वाले चमत्कारों को कई बार अंधविश्वास का नाम भी दिया जाता है, लेकिन विशेष रूप कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो वास्तव में अपने चमत्कारों की वजह से वैज्ञानिक तथ्यों को भी झूठा साबित कर देते हैं। आज हम आपको मुख्य रूप से माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ चैबीसों घंटे अखंड ज्योत जलती है और उस ज्योत से केसर टपकता है। आइये जानते हैं कहाँ स्थित है ये चमत्कारी मंदिर और क्या है इसके पीछे का रहस्य।

आई जी माता के मंदिर में ज्योति से केसर टपकता है

आपको बता दें कि जहाँ आमतौर पर दीये से कालिक टपकती है वहीं राजस्थान के जोधपुर के निकट स्थित बिलाड़ा नाम के गांव में आई जी माता के मंदिर में अखंड ज्योत से केसर टपकता है। यहाँ आने वाले भक्तों का ऐसा मानना है इस ज्योत से निकलने वाले केसर को आँखों में डालने से आँख से संबंधित सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है। आई जी माता मुख्य रूप से राजस्थान के सीरवी समाज की आराध्य देवी हैं। बता दें कि, राजस्थान के बिलाड़ा स्थित इस मंदिर को मुख्य रूप से देश का सबसे चमत्कारी मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में जिस देवी की मूर्ति स्थापित है उन्हें देवी दुर्गा का ही रूप माना जाता है। इस मंदिर का नाम आई जी माता इसलिए पड़ा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि एक बार देवी माँ स्वयं यहाँ आकर रुकी थी। यहाँ आकर देवी माँ ने अपने भक्तों को ज्ञान दिया था और उसके बाद वो हमेशा के लिए अखंड ज्योति में विलीन हो गयी थी। इसलिए इस मंदिर में आज भी अखंड ज्योत जलती आ रही है जिसकी ख़ासियत ये है कि इससे कालिक नहीं बल्कि केसर टपकता है।

इस मंदिर से जुड़े कुछ महत्वूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं

इस मंदिर के बार में ऐसा कहा जाता है कि, ये आज से करीबन पांच सौ वर्ष पुरानी मंदिर है।
यहाँ माता के अखंड ज्योत के दर्शन के लिए प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में भक्त आते हैं।
आई जी माता के इस मंदिर में रोजाना घी से देवी माँ के लिए अखंड ज्योत जलाई जाती है।
नवरात्रि के नौ दिनों में मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है। इस दौरान यहाँ दर्शन के लिए आने वाले भक्तों की संख्या भी दोगुनी हो जाती है।
मंदिर का मुख्य परिसर विशेष रूप से ढाई हज़ार स्क्वायर फ़ीट में फैला है।
बेहद चमत्कारी इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।
मंदिर परिसर में आई जी माता को समर्पित एक छोटी झोपड़ी का भी निर्माण किया गया है, ऐसी मान्यता है कि देवी माँ यहाँ आकर विश्राम करती हैं। 

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

महामृत्युंजय मंत्र और लघु मृत्युंजय मंत्र के लाभ

महामृत्युंजय मंत्र और लघु मृत्‍युंजय मंत्र के जप का लाभ



महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है.शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित ये महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है.स्वयं या परिवार में किसी अन्य व्यक्ति के अस्वस्थ होने पर मेरे पास अक्सर बहुत से लोग इस मन्त्र की और इसके जप विधि की जानकारी प्राप्त करने के लिए आते हैं. इस महामंत्र के बारे में जहांतक मेरी जानकारी है,वो मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.

|| महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

>ॐ त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात् !!

||संपुटयुक्त महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

||लघु मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ। किसी दुसरे के लिए जप करना हो तो-ॐ जूं स (उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए अनुष्ठान हो रहा हो) पालय पालय स: जूं ॐ

|| महा मृत्‍युंजय जप की विधि ||

महा मृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख है और लघु मृत्युंजय मंत्र की 11 लाख है.मेरे विचार से तो कोई भी मन्त्र जपें,पुरश्चरण सवा लाख करें.इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर सोमवार से शुरू किया जाता है.जप सुबह १२ बजे से पहले होना चाहिए,क्योंकि ऐसी मान्यता है की दोपहर १२ बजे के बाद इस मंत्र के जप का फल नहीं प्राप्त होता है.आप अपने घर पर महामृत्युंजय यन्त्र या किसी भी शिवलिंग का पूजन कर जप शुरू करें या फिर सुबह के समय किसी शिवमंदिर में जाकर शिवलिंग का पूजन करें और फिर घर आकर घी का दीपक जलाकर मंत्र का ११ माला जप कम से कम ९० दिन तक रोज करें या एक लाख पूरा होने तक जप करते रहें. अंत में हवन हो सके तो श्रेष्ठ अन्यथा २५ हजार जप और करें.ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, रोग, जमीन-जायदाद का विवाद, हानि की सम्भावना या धन-हानि हो रही हो, वर-वधू के मेलापक दोष, घर में कलह, सजा का भय या सजा होने पर, कोई धार्मिक अपराध होने पर और अपने समस्त पापों के नाश के लिए महामृत्युंजय या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया या कराया जा सकता है.

|| महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ ||

त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वालायजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देयसुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधितपुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णतावर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है,स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा मालीउर्वारुकम= ककड़ीइव= जैसे, इस तरहबंधना= तनामृत्युर = मृत्यु सेमुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति देंमा= नअमृतात= अमरता, मोक्ष

||महा मृत्‍युंजय मंत्र का अर्थ ||

समस्‍त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्‍व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।|| इस मंत्र का विस्तृत रूप से अर्थ ||हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं,उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए.जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

|| महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव ||

मेरे विचार से महामृत्युंजय मंत्र शोक,मृत्यु भय,अनिश्चता,रोग,दोष का प्रभाव कम करने में,पापों का सर्वनाश करने में अत्यंत लाभकारी है.महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना या करवाना सबके लिए और सदैव मंगलकारी है,परन्तु ज्यादातर तो यही देखने में आता है कि परिवार में किसी को असाध्य रोग होने पर अथवा जब किसी बड़ी बीमारी से उसके बचने की सम्भावना बहुत कम होती है,तब लोग इस मंत्र का जप अनुष्ठान कराते हैं.
ऊँ नमः शिवाय ।

बहुत मजबूत रिश्ता है मेरा और मेरे परमेश्वर का

                  बहुत मजबूत रिश्ता है मेरा और मेरे परमेश्वर का


एक सेठ के यहां नौकर काम करता था 1 दिन नौकर अनुपस्थित हो गया, तो सेठ ने सोचा इसकी तनख्वाह बढ़ा देता हूं तो यह रोज काम पर आने लगेगा । जब महीने की आखिरी तारीख को सेठ ने तनख्वाह बढ़ा कर दी ,तो उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा चुपचाप तनख्वाह ले ली। कुछ टाइम बाद उसने फिर छुट्टी कर ली , तो सेठ को बहुत गुस्सा आया उसने सोचा कि इस पर कोई असर नहीं हुआ ,मैं इस की तनख्वाह बढ़ाई फिर भी इसने छुट्टी कर ली। तो उसने  सोचा ,मैं इसकी तनख्वाह कम कर देता हूं ।महीने के आखिरी तारीख को जब सेठ में तनख्वाह कम कर ,कर दी तो भी उस व्यक्ति ने चुपचाप ले ली, कुछ नहीं कहा तो सेठ को बहुत हैरानी हुई ,उसने उससे पूछा कि मैंने जब तुम तुम्हारी तनख्वाह बढ़ाई तब भी तुमने कुछ नहीं कहा और जब कम करदी, तब भी तुमने कुछ नहीं कहा तो नौकर बोला मैंने जब पहले छुट्टी ली थी तो मेरे घर मे बच्चे ने जन्म लिया था तो मैंने सोचा ईश्वर ने उसके भाग्य का पैसा मुझे दे दिया, और जब आप ने दूसरी बार मेरी तनख्वाह कम कर दी, उस समय मैंने जब छुट्टी ली तो मेरी मां का देहांत हो गया था तो मैंने सोचा मां अपने भाग्य का पैसा अपने साथ ले गई । तो इसमें चिंता किस बात की। मेरा ईश्वर मेरा ध्यान रखता है तो फिर मैं क्यों चिंता करूं। मेरा ईश्वर मेरी तनख्वाह का सब हिसाब रखता है।
 बहुत मजबूत रिश्ता है मेरा और मेरे परमेश्वर का,ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वह देता नहीं ।

।।जय श्री राधे ,जय सियाराम।।

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

श्री राधा के 32 प्रमुख नाम

 श्री राधा जी के 32 प्रमुख नाम जिनका श्रवण करने से सभी दुख ~कष्ट दूर हो जाते हैं-


  1. मृदुल भाषणी राधा राधा 
  2. सौंदर्य राषिणी  राधा राधा 
  3. परम पुनीता राधा राधा 
  4. नित्य नवनीता राधा राधा 
  5. रास विलासिनी राधा राधा
  6.  दिव्य सुवासिनी राधा राधा 
  7. नवल किशोरी राधा राधा 
  8. अति ही भोरी राधा राधा 
  9. कंचन वर्णी राधा राधा 
  10. नित्य सुख कर्णी राधा राधा
  11.  सुभग भामिनी  राधा राधा
  12.  जगत स्वामिनी राधा राधा
  13.  कृष्ण आनंदनी राधा राधा
  14.  आनंद कन्दिनी राधा राधा
  15.  प्रेम मूर्ति राधा राधा 
  16. रस आपूर्ति राधा राधा
  17.  नवल बृजेश्वरी राधा राधा
  18.  नित्या रासेश्वरी राधा राधा
  19.  कोमल अंगनी राधा राधा
  20.  कृष्ण संगिनी राधा राधा 
  21. कृपा वर्षिनी राधा राधा
  22.  परम हर्षिनी राधा राधा 
  23. सिंधु स्वरूपा राधा राधा
  24.  परम अनूपा राधा राधा
  25.  परम हितकारी राधा राधा 
  26. कृष्ण सुख कारी राधा राधा
  27.  निकुंज स्वामिनी राधा राधा 
  28. नवल भामिनी राधा राधा
  29.  रास रासेश्वरी राधा राधा
  30.  स्वंय परमेश्वरी राधा राधा 
  31. सकल गुणीता राधा राधा 
  32. रसिकिनी पुनीता राधा राधा

कर जोरी वंदन करूं मैं नित नित करू प्रणाम, रचना से गाती /गाता रहूँ -श्री राधा राधा नाम!!
जो भी श्रद्धा पूर्वक श्री राधा नाम का आश्रय लेता है वह श्रीकृष्ण का स्नेह पाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री विष्णु जी ने कहा है कि जो व्यक्ति अनजाने में ही श्री राधा नाम का उच्चारण कर लेता है उसके आगे मैं स्वयं सुदर्शन चक्र लेकर चलता हूं और उसके पीछे भगवान शिव त्रिशूल लेकर चलते हैं उसके दाएं ओर इंद्र वज्र लेकर चलते हैं और वरुण देव छत्र लेकर चलते हैं।
!!जय जय श्री राधे!!

बुधवार, 4 सितंबर 2019

19 ऊँटो की कहानी हम पर आधारित हैं।

                        *19 ऊंट की कहानी 




एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे।एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी।मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:
मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।
सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?
19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार. फिर?
सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।
वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।
सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।
19+1=20 हुए।20 का आधा 10, बेटे को दे दिए।20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए।20 का पांचवाँ हिस्सा 4, नौकर को दे दिए।
10+5+4=19
बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।
इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया।
सो हम सब के जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।
5 ज्ञानेंद्रियाँ-(आँख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)
5 कर्मेन्द्रियाँ-(हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)
5 प्राण-(प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान) और 4 अंतःकरण-(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)कुल 19 ऊँट होते हैं।
सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊँटो के बँटवारे में उलझा रहता है।
और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।
यह है 19 ऊंट की कहानी...😌🙏🏽
श्री राम।।
         🙏🏽 *ॐ* 🙏🏽

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