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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

श्राद्ध में कुछ विशेष(आखिर क्या होता है व्यक्ति की मृत्यु के बाद?)

        आखिर क्या होता है व्यक्ति की मृत्यु के बाद?




पृथ्वी लोक पर जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है और वह अपना शरीर त्यागता है तो वह 3 दिन के अंदर पितृ लोक पहुँचता है। इसलिए मृत्यु के तीसरे दिन तीजा मनाया जाने का विधान है। कुछ आत्माएं अधिक समय लेती हैं और लगभग 13 दिन में पितृ लोक पहुँचती हैं, उन्हीं की शांति के लिए तेरहवीं या त्रियोदशाकर्म किया जाता है। कुछ ऐसी भी आत्माएं होती हैं जिन्हें पितृ लोक पहुंचने में 37 से 40 दिन लग जाते हैं अर्थात लगभग सवा महीने में वो ये सफर तय करती है। इसलिए महीने भर के बाद मृत्यु की तिथि पर पुनः तर्पण किया जाता है और इसके पश्चात एक वर्ष (12 मास) के बाद तर्पण द्वारा बरसी की जाती है। इसके पश्चात उन्हें उनके कर्मानुसार पुनर्जन्म प्राप्त होने की संभावना होती है और उनका न्याय होता है।
जिन लोगों ने सत्कर्म किया होता है और अच्छे कर्मों की संख्या अधिक होती है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है अर्थात बार-बार जन्म लेने के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। यजुर्वेद के अनुसार तप और ध्यान करने वाले सद्चरित्र प्राणी ब्रह्मलोक पहुँचकर ब्रह्मलीन हो जाते हैं अर्थात उन्हें पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता। जिन लोगों ने सत्कर्म किया है और ईश्वर भक्ति में ध्यान लगाया है उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और वे दैवीय बन जाते हैं। जो प्राणी अत्यंत ही निकृष्ट प्रकृति के कार्य करते हैं उन्हें सद्गति प्राप्त नहीं होती और वह प्रेत योनि में भटकते हैं अर्थात उनकी आत्मा को शांति प्राप्त नहीं होती है।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी आत्माएं भी होती हैं जिन्हें किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए या उनके कर्मों के आधार पर इसी धरती पर पुनर्जन्म प्राप्त होता है। यहां पर यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सभी को धरती पर जन्म लेने पर भी मनुष्य योनि मिले, यह आवश्यक नहीं, वे पशु योनि में भी जा सकते हैं। ये सभी हमारे पूर्वज होते हैं और चाहे ये किसी भी योनि में जाएं हमारे पूर्वज ही रहेंगे इसलिए इनको सद्गति प्राप्त हो इसलिए श्राद्ध कर्म पूरे विधि-विधान के अनुसार करना चाहिए।
‘विदूर्ध्वभागे पितरो वसन्त: स्वाध: सुधादीधीत मामनन्ति'

पितृ लोक की स्थिति चंद्र अर्थात सोम लोक के उर्ध्व भाग में होती है। इसीलिए चंद्र लोक का पितृ लोक से गहरा संबंध होता है। मानव शरीर पंच महाभूतओं अर्थात पंच तत्वों से मिलकर बना होता है। जैसे पृथ्वी, वायु, जल, आकाश और अग्नि। इन पंच तत्वों में से सर्वाधिक रूप से जल और फिर वायु तत्व मुख्य रूप से मानव देह के निर्माण में सहायक होते हैं। यही दोनों तत्व सूक्ष्म शरीर को पूर्ण रूप से पुष्ट करते हैं और यही वजह है कि इन तत्वों पर अधिकार रखने वाला चंद्रमा और उसका प्रकाश मुख्य रूप से सूक्ष्म शरीर से भी संबंधित होता है।
जल तत्व को ही सोम भी कहा जाता है और सोम को रेतस भी कहते हैं। यही रेतस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी में सूक्ष्म शरीर को पुष्ट करने हेतु चन्द्रमा से संबंधित अन्य सभी तत्व मौजूद रहते हैं।
जब मानव शरीर निर्मित होता है तब उसमें 28 अंश रेतस उपस्थित होता है। जब देह का त्याग करने के बाद आत्मा चंद्र लोक पहुँचती है तो पुनः उसे यही 28 अंश रेतस पर वापस लौट आना होता है और वास्तव में यही पितृ ऋण है। इसे चुकाने के पश्चात वह आत्मा अपने लोक में चली जाती है जहां सभी उसके स्वजातीय रहते हैं।
अब स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि वास्तव में यह 28 अंश रेतस आत्मा कैसे लेकर जाती है। तो यह जानिए कि जब भी किसी प्राणी की देह का अंत होता है तो इस पृथ्वी लोक पर उस आत्मा की शांति के लिए वंशजों द्वारा जो भी पुण्य और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं उससे उस आत्मा का मार्ग प्रशस्त होता है। जब श्रद्धा मार्ग से पिंड तथा जल आदि का दान श्राद्ध स्वरूप किया जाता है तो यही 28 अंश रेतस के रूप में आत्मा को प्राप्त होते हैं। क्योंकि यह श्रद्धा मार्ग मध्याह्नकाल के दौरान पृथ्वी लोक से संबंधित हो जाता है इसलिए इस इस समय अवधि के दौरान पितृपक्ष में श्राद्ध किया जाता है।

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जय श्री राधे

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