लघु गीता अध्याय 7
सैकंडों में कोई एक बिरला ही होता है जो सही तरह से सिद्धि प्राप्त करता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन व बुद्धि से सब प्राणी को ईश्वर उत्पन्न करता है और फिर प्रलय हो जाती है। जल में रस, चंद्रमा में शीतलता, सूर्य में प्रकाश, पृथ्वी में सुगंध, प्राणियों में जीवन व सनातन बीज , आकाश में शब्द, अग्नि में तेज, बुद्धिमानों में बुद्धि, सब ईश्वर के रूप हैं या ईश्वर का शरीर ही है और उसी में सब कलपुर्जे कार्यरत है। सात्विक, तामसिक, राजस ईश्वर से पैदा होते है परंतु ईश्वर उसमें नहीं रहता और इन तीनों गुणों से सारा संसार मोहित है परंतु जो ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं व इस माया से परे उतर जाते है। चार प्रकार के लोग ईश्वर को याद करते हैं दुखिया, जिज्ञासु व ऐश्वर्या प्रिय व ज्ञानी परंतु एकाग्र चित्त से भजने वाला ही ईश्वर को सर्व प्रिय हैं।
कुछ अल्प बुद्धि उन फलों का चाहना करते हुए संबंधित देवताओं की पूजा करते हैं और ईश्वर उनको दृढ़ कर देता है और फिर वही फल भी पाते है परंतु फल भोगने के पश्चात फिर वापिस योनियों में आता है और ईश्वर से मिल नहीं पाता।
।।जय श्री राधे।।