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बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है

🌕 करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है?


करवा चौथ का पर्व भारतीय स्त्रियों की श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का सबसे पवित्र प्रतीक है

🔹 1. चंद्रमा “सौभाग्य और दीर्घायु” का प्रतीक है

हिंदू ज्योतिष में चंद्रमा मन, सौंदर्य, शीतलता और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करता है।
व्रत रखने वाली स्त्रियाँ मानती हैं कि —

"जैसे चंद्रमा अमर और शीतल है, वैसे ही मेरे पति का जीवन दीर्घ और सुखमय हो।"
इसलिए चंद्रमा को जल चढ़ाकर वे पति की दीर्घायु का आशीर्वाद माँगती हैं।

🔹 2. जल = शुद्ध भावना और अर्पण

जल हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तत्व माना गया है।
जब जल चढ़ाया जाता है, तो उसका अर्थ होता है —

“मैं अपने मन, वचन और कर्म से चंद्रदेव को नमन कर रही हूँ।”
यह जल भावना और भक्ति का प्रतीक है — जैसे हम अपनी पवित्र नीयत चंद्रमा तक पहुँचा रहे हों।

🔹 3. चंद्रमा मन का कारक ग्रह है।


ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा मन और भावनाओं का स्वामी ग्रह है।
व्रत के पूरे दिन स्त्रियाँ संयम, श्रद्धा और प्रेम से अपने मन को स्थिर रखती हैं।
चंद्रमा को जल चढ़ाना, अपने मन को शुद्ध और शांत करने का संकेत है —

“अब मेरा मन संतुलित है, मैं अपने पति के मंगल और सुख के लिए प्रार्थना करती हूँ।”

🔹 4. कथा से संबंध – वेदवती और सावित्री का संकेत

करवा चौथ की पौराणिक कथा में भी चंद्रमा का महत्व है।
कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति के जीवन के लिए यमराज से संघर्ष किया और चंद्रमा को साक्षी मानकर संकल्प लिया।
इसलिए चंद्रमा को जल चढ़ाना उस साक्षी देवता को नमन करने जैसा है।

🔹 5. खगोलिक (Scientific) कारण भी है

रात को जब महिलाएँ चाँद को छलनी से देखती हैं, तो वे एकाग्रता और ध्यान की अवस्था में होती हैं।
चंद्रमा की ठंडी किरणें मन को शांत और संतुलित करती हैं।
जल चढ़ाने का यह कार्य ध्यान और ऊर्जा का समन्वय करता है।

🌸 संक्षेप में:

करवा चौथ पर चंद्रमा को जल चढ़ाना
प्रेम, श्रद्धा, सौभाग्य और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है।
यह चंद्रदेव से प्रार्थना है कि —
“मेरे पति का जीवन दीर्घ आयु हो,स्वस्थ रहे, उनको कोई कष्ट न हो।

इसी कामना की पूर्ति हो ,इसी विश्वास को अपने हृदय में रखकर वह निर्जल व्रत रखती है।❤️

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

गोवर्धन राधा कुंड का भी आज के दिन प्राकट्य हुआ था

      🌸 राधा कुंड प्राकट्य कथा (अहोई अष्टमी विशेष)




✨ परिचय

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी, जिसे हम अहोई अष्टमी के रूप में जानते हैं, केवल मातृ व्रत का दिन ही नहीं, बल्कि भक्ति जगत का एक दिव्य पर्व भी है।
इसी दिन श्रीधाम वृंदावन के समीप गोवर्धन पर्वत के पाद में स्थित राधा कुंड और श्याम कुंड का प्राकट्य हुआ था।
यह स्थान इतना पवित्र है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने इसे “तीर्थराज” की उपाधि दी।

🌺 कथा – राधा कुंड और श्याम कुंड का प्राकट्य


एक बार श्रीकृष्ण ने अरीष्टासुर नामक असुर का वध किया। यह असुर बैल के रूप में आया था और श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिए उसका संहार किया।
किन्तु जब वे गोपियों के बीच गए, तो उन्होंने कहा —

“कृष्ण! तुमने बैल का वध किया है। बैल गोवंश में आता है, इसलिए तुम अपवित्र हो गए हो। पहले प्रायश्चित्त करो।”

तब श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले —

“यदि यह पाप है, तो मैं अभी सभी पवित्र तीर्थों को यहीं बुलाकर स्नान करूंगा।”

ऐसा कहते हुए उन्होंने अपने पग से भूमि पर प्रहार किया। उसी क्षण सभी पवित्र तीर्थ वहाँ प्रकट हो गए और जल का एक अद्भुत सरोवर बन गया — यही श्याम कुंड कहलाया।

यह देखकर श्रीमती राधारानी और उनकी सखियाँ बोलीं —

“हम भी अपना कुंड बनाएंगी, जो आपसे श्रेष्ठ होगा।”

उन्होंने अपने कंगन और बालों की पिन से भूमि खोदनी प्रारंभ की, और शीघ्र ही एक दूसरा कुंड बना लिया। श्रीकृष्ण ने अपने तीर्थों से जल भर दिया, और वह स्थान राधा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


🕉️ तिथि और आध्यात्मिक महत्व

यह दिव्य घटना कार्तिक कृष्ण अष्टमी (अहोई अष्टमी) के दिन हुई थी।
इसलिए यह दिन न केवल अहोई माता व्रत के लिए, बल्कि राधा-कृष्ण भक्ति के साधकों के लिए भी अत्यंत पवित्र माना गया है।

  • इस दिन राधा कुंड में स्नान करने से सहस्रों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • भक्तजन इस दिन रात्रि में दीपदान और जप-कीर्तन करते हैं।
  • कहा गया है कि राधा कुंड दर्शन मात्र से ही मनुष्य प्रेममय भक्ति को प्राप्त करता है

🌼 भावार्थ

राधा कुंड हमें यह सिखाता है कि प्रेम और भक्ति का संगम ही परम पवित्रता है
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं —

“राधा कुंड मेरे लिए भी प्रिय है, जो भक्त राधा कुंड का दर्शन करता है, वह मुझे अत्यंत प्रिय होता है।”

इसलिए अहोई अष्टमी के दिन केवल व्रत या स्नान ही नहीं, बल्कि राधारानी के चरणों में प्रेमपूर्ण स्मरण ही सच्चा पूजन है।


🌷 निष्कर्ष

अहोई अष्टमी का दिन दोहरा आशीर्वाद लेकर आता है —
एक ओर मातृत्व की मंगलकामना, और दूसरी ओर राधा-कृष्ण प्रेम की प्राप्ति
इस दिन यदि मन से “राधा राधा” जपा जाए, तो जीवन में शांति, सौभाग्य और भक्ति का अमृत स्वयं बरसने लगता है।



🪔 जय श्री राधे कृष्णा 🪔


अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami)

                   अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) 

एक अत्यंत पवित्र व्रत है, जो मुख्य रूप से संतान की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, अर्थात दीपावली से लगभग 8 दिन पहले

नीचे विस्तार से इसकी जानकारी दी गई है 👇

🌙 अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत विशेषकर माताएँ अपने पुत्रों की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य और सुख के लिए रखती हैं। पहले यह व्रत केवल पुत्रवती स्त्रियाँ करती थीं, परंतु अब कई महिलाएँ संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी करती हैं।

इस दिन माँ अहोई माता की पूजा होती है, जिन्हें अहोई भगवती, पार्वती माता का ही रूप माना गया है।

📅 2025 में अहोई अष्टमी की तिथि

  • तारीख: 13 अक्टूबर 2025
  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर, सुबह 1:42 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर, सुबह 4:10 बजे
  • पूजन का उत्तम समय: संध्या (सूर्यास्त के बाद सितारे दिखने तक)

🕉️ अहोई अष्टमी की कथा (कहानी)

बहुत समय पहले एक साहूकार था जिसकी सात पुत्रियाँ थीं। कार्तिक माह में वे अपनी झाड़ू लेकर जंगल में मिट्टी लाने गईं। वहाँ एक सिंहनी का बच्चा (सियार या शेर का शावक) गलती से मिट्टी निकालते समय मर गया। सिंहनी क्रोधित होकर साहूकार के घर पहुँची और बोली, “जिसने मेरे बच्चे को मारा है, मैं उसके बच्चे को ले जाऊँगी।”

धीरे-धीरे हर साल साहूकार के घर एक-एक करके बच्चे मरते गए। साहूकार दंपत्ति दुखी होकर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अंत में जब उन्होंने एक साध्वी से कारण पूछा तो साध्वी ने कहा — “तुम कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई माता की पूजा करो, और सच्चे मन से क्षमा माँगो।”

उन्होंने वैसा ही किया और माता प्रसन्न हुईं। तब से उनके घर सुख-शांति लौट आई।

इसलिए इस व्रत में सिंहनी या सियार के बच्चे की आकृति बनाकर पूजा की जाती है।

🌸 व्रत की विधि

  1. सुबह स्नान कर संकल्प लें — “मैं अहोई माता का व्रत अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए कर रही हूँ।”
  2. पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है (कुछ महिलाएँ जल या फल ग्रहण करती हैं)।
  3. शाम को सूर्यास्त के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है।
  4. दीवार या कागज पर अहोई माता, सिंहनी (या बिल्ली) और सात संतानों का चित्र बनाएं।
  5. चित्र के सामने दीपक जलाएं, जल, दूध, हलवा-पूरी, सिंघाड़े और फल रखें।
  6. अहोई माता की कथा सुनें।
  7. सितारे (तारों) की पूजा करें — तारे को “संतान का प्रतीक” माना गया है।
  8. तारे को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।

🙏 अहोई माता की आरती

जय अहोई माता जय जय अहोई माता।
तुमको निशि दिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता॥
सिंहवाहिनी वरदायिनी, माँ जगदंबा भवानी।
जो माँ तुम्हे ध्यावत है, पावे सुख-खजाना॥
जय अहोई माता जय जय अहोई माता॥

💫 व्रत के लाभ

  • संतान की रक्षा और लंबी आयु होती है।
  • घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
  • माता पार्वती की कृपा बनी रहती है।
  • निष्काम भाव से व्रत करने पर संतान सुख की प्राप्ति भी होती है।

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

कार्तिक माह 2025: महत्व, व्रत, नियम और दीपदान का धार्मिक रहस्य | Parmatma Aur Jivan

  1. माह का महत्व और नियम – जानिए इस पवित्र महीने का रहस्य
  2. कार्तिक स्नान, दीपदान और व्रत का महत्व – पूर्ण जानकारी
  3. क्यों कहा गया है कार्तिक मास को भगवान विष्णु का प्रिय महीना
  4. कार्तिक माह में क्या करें और क्या न करें – धार्मिक नियम व लाभ
  5. कार्तिक पूर्णिमा तक का विशेष पूजन विधि और कथा

✍️ ब्लॉग का परिचय (Introduction)

यह जो अब चल रहा है यह महीना कार्तिक ही है।

कार्तिक माह हिंदू पंचांग का आठवाँ महीना है, जो शरद ऋतु में आता है।
यह महीना भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की उपासना का समय है।
इस दौरान स्नान, दीपदान, दान और व्रत करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
कार्तिक माह को “धर्म, दान और दीप का महीना” भी कहा गया है।


🌸 कार्तिक माह का धार्मिक महत्व

  • कार्तिक मास में भगवान विष्णु शयनावस्था से जागते हैं (देवउठनी एकादशी)
  • तुलसी विवाह इसी महीने में होता है।
  • दीपदान से अंधकार दूर होता है और घर में सुख-शांति आती है।
  • इस माह में स्नान, विशेषकर तीर्थ स्नान, अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।

🌼 कार्तिक माह में किए जाने वाले मुख्य कार्य

  1. प्रातःकाल स्नान (विशेषकर ब्रह्ममुहूर्त में)।
  2. दीपदान – घर, मंदिर, तुलसी के पास, नदी किनारे दीप जलाना।
  3. भगवान विष्णु, लक्ष्मी, शिव और तुलसी पूजन।
  4. दान – भोजन, वस्त्र, तिल, दीप, और अन्न का दान करना।
  5. व्रत और कथा श्रवण।
  6. तुलसीजी की 108 या 4 परिक्रमा करें।
  7. वैष्णव ग्रन्थ को पढ़े या सुने।
  8. अधिक से अधिक नाम जप करें।
  9. गो सेवा व संत सेवा करें।
  10. राधा कृपा कटाक्ष का पाठ करें।
  11. https://www.blogger.com/blog/post/edit/7240407276943048193/7899315568702213349
  12. अगर आपके पास सुखी हुई तुलसी जी है तो उनको गाय के घी में भिगो कर ठाकुर जी की आरती उतारें।

🚫 कार्तिक माह में क्या न करें

  • प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, और तामसिक भोजन से परहेज करें।
  • क्रोध, झूठ, चुगली और आलस्य न करें।
  • किसी का अपमान या अहित न सोचें।

🌙 कार्तिक माह की प्रमुख तिथियाँ (2025 के अनुसार)

तिथि पर्व / उत्सव
22 अक्टूबर कार्तिक अमावस्या (दीपावली)
23 अक्टूबर गोवर्धन पूजा
24 अक्टूबर भैया दूज
4 नवंबर देवउठनी एकादशी
6 नवंबर तुलसी विवाह
7 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा (गंगा स्नान और दीपदान का विशेष दिन)

💫 कार्तिक स्नान का महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार,

“कार्तिके स्नानदानं च यत्कृतं तेन सर्वं भवेत् फलम्।”
अर्थात — कार्तिक माह में स्नान और दान करने से सभी कर्मों का फल प्राप्त होता है।

🪔 निष्कर्ष

कार्तिक मास भक्ति, आत्मशुद्धि और दान का महीना है।
यदि इस महीने में नियमित रूप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करें, तो जीवन में शांति, समृद्धि और दिव्यता आती है।


शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

“भीड़ में अकेलापन — आत्मा की पुकार | जीवन का आध्यात्मिक सत्य”

 🌸 भीड़ में अकेलापन — आत्मा की पुकार

            (लेख: Parmatma Aur Jivan)


🌿 प्रस्तावना

आज का मनुष्य हर ओर से जुड़ा हुआ लगता है —

मोबाइल, सोशल मीडिया, काम, और समाज से।

फिर भी भीतर एक गहरी खामोशी है।

एक ऐसी चुप्पी, जो सबसे ज़्यादा सुनाई देती है।

भीड़ में रहने के बाद भी, इंसान अकेलापन महसूस करता है।

क्यों?

क्योंकि आज के युग में संबंध मन से नहीं, माध्यमों से बने हैं।


🌼 बाहरी जुड़ाव, भीतर का खालीपन

हमारे पास हजारों “फ्रेंड्स” हैं,

पर कोई एक भी ऐसा नहीं,

जिसे हम दिल खोलकर सब कुछ कह सकें।

हम हँसते हैं, बातें करते हैं, फोटो डालते हैं,

पर भीतर एक शून्य बैठा रहता है।

वो शून्य, जो हमें याद दिलाता है —

कि “सच्चा जुड़ाव आत्मा से होता है, लोगों से नहीं।”


🔥 प्रतिस्पर्धा ने रिश्तों की ऊष्मा छीन ली

पहले रिश्तों में अपनापन था,

अब तुलना और स्वार्थ ने जगह ले ली है।

हर कोई आगे बढ़ने की दौड़ में लगा है,

पर किसी का हाथ पकड़ने का समय नहीं।

सफलता की चमक के पीछे मनुष्य अपने

“अस्तित्व की शांति” खो चुका है।


🌷 मन की बात — अब मौन हो चुकी है

हम अपने दिल की सच्ची बातें अब शब्दों में नहीं कहते,

बल्कि “स्टेटस” या “पोस्ट” के जरिए जताते हैं।

लोगों से बात करते हुए भी,

दिल को कोई समझ नहीं पाता।

यही असली अकेलापन है —

जब इंसान खुद को भी नहीं सुन पाता।


🌸 आत्मा की पुकार


यह अकेलापन दरअसल एक संकेत है —

कि आत्मा हमें पुकार रही है।

वो कह रही है —

“अब बाहर मत ढूंढो, भीतर आओ।”

जब हम परमात्मा से दूर हो जाते हैं,

तो मन शोर में भी खाली लगता है।

क्योंकि सच्ची संगति तो परमसंगति है —

वो जो आत्मा को ईश्वर से जोड़ती है।


🕉️ समाधान — भीतर के परमात्मा से मिलन


1. हर दिन कुछ समय मौन में बैठें।

मौन में ही ईश्वर बोलते हैं।

2. मंत्र जपें या प्रार्थना करें —

“हे प्रभु, मुझे आपसे जुड़ने की शक्ति दें।”

3. किसी अपने की सच्ची बात सुनें।

सुनना भी एक भक्ति है।

4. प्रकृति से जुड़ें —

सूरज, हवा, और पेड़ों में वही परमात्मा बसता है।

5. अपने भीतर प्रेम जगाइए —

क्योंकि जहाँ प्रेम है, वहाँ अकेलापन नहीं होता।

🌞 निष्कर्ष

भीड़ में अकेलापन इस युग की सच्चाई है,

पर यह कोई अभिशाप नहीं, एक अवसर है।

यह हमें भीतर झाँकने और परमात्मा से मिलने का

आमंत्रण देता है।

जब मनुष्य अपने भीतर ईश्वर को पा लेता है,

तो फिर भीड़ हो या सन्नाटा —

वो कभी अकेला नहीं रहता।


क्योंकि तब आत्मा फुसफुसाती है:

> “अब तू अकेला नहीं, मैं तेरे साथ हूँ।” 💫

😊🙏

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

गोवर्धन पर्वत | कथा, पूजा, परिक्रमा और महत्व

गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व, श्रीकृष्ण की दिव्य लीला, गोवर्धन पूजा और 21 किमी परिक्रमा की सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पढ़ें। मथुरा स्थित इस पावन स्थल की यात्रा गाइड।


🌿 गोवर्धन पर्वत: श्रीकृष्ण की दिव्य लीला, पूजा, परिक्रमा और महत्व

✨ प्रस्तावना

भारत की पावन भूमि पर अनेकों तीर्थ स्थल हैं, लेकिन गोवर्धन पर्वत का स्थान अनोखा और दिव्य है। मथुरा के समीप स्थित यह पर्वत न केवल एक धार्मिक धरोहर है, बल्कि श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला का जीवंत प्रतीक भी है। भक्तों का विश्वास है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण आज भी गोवर्धन पर्वत में निवास करते हैं।


📖 गोवर्धन पर्वत की कथा

भागवत पुराण और श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित है कि जब इन्द्र देव ने गोकुलवासियों पर निरंतर वर्षा कर उनका जीवन संकट में डाल दिया, तब नन्हें बालक कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सम्पूर्ण वृज को सुरक्षा दी। सात दिन तक पर्वत धारण कर भगवान ने यह संदेश दिया कि प्रकृति और धरती माता की पूजा सर्वोच्च है।
यही कारण है कि आज भी गोवर्धन को "श्रीकृष्ण का स्वरूप" मानकर पूजा जाता है।


🌸 गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव



दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन अन्नकूट का विशेष आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों प्रकार के पकवान बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है।

  • गोबर से गोवर्धन पर्वत का स्वरूप बनाया जाता है।
  • उस पर फूल, दीपक और तरह-तरह के व्यंजन सजाए जाते हैं।
  • परिवार और समुदाय मिलकर यह पूजा करते हैं।

इस दिन भक्त भगवान को यह संदेश देते हैं कि हम प्रकृति, अन्न और धरती की महत्ता को कभी नहीं भूलेंगे।

🚶 गोवर्धन परिक्रमा का महत्व

गोवर्धन यात्रा का मुख्य आकर्षण है 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा। भक्तगण नंगे पाँव चलते हुए पर्वत की परिक्रमा करते हैं और “जय श्री गोवर्धनधारी” का उद्घोष करते हैं।
परिक्रमा मार्ग में कई पवित्र स्थल आते हैं, जैसे –

  • दानघाटी – जहाँ से परिक्रमा प्रारंभ होती है।
  • मुखारविंद – गोवर्धन का मुख स्वरूप, जहाँ विशेष पूजा होती है।
  • राधाकुंड और श्यामकुंड – यह सरोवर अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।
  • पुनर्स्थलियाँ – जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाएँ कीं।

भक्त मानते हैं कि गोवर्धन परिक्रमा करने से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और भक्ति-भाव बढ़ता है।


🙏 धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  • गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।
  • यह प्रकृति पूजन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
  • यहाँ आकर हर भक्त अनुभव करता है कि भक्ति ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।

🏞️ पर्यटन दृष्टिकोण


गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है।

  • कैसे पहुँचें?
    • मथुरा से दूरी: लगभग 22 किमी
    • वृंदावन से दूरी: लगभग 26 किमी
    • दिल्ली से दूरी: लगभग 150 किमी
  • रुकने की व्यवस्था: मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन कस्बे में धर्मशालाएँ और होटल उपलब्ध हैं।
  • यात्रियों के लिए सुझाव:
    • परिक्रमा प्रातःकाल या संध्या में करना उत्तम है।
    • गर्मी के दिनों में जल, टोपी और छाता साथ रखें।
    • स्थानीय नियमों और परंपराओं का पालन करें।

🌺 निष्कर्ष

गोवर्धन पर्वत न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा, अन्न का सम्मान और ईश्वर पर विश्वास ही जीवन का सार है।
यदि आपने अभी तक गोवर्धन यात्रा नहीं की है, तो एक बार अवश्य जाएँ और श्रीकृष्ण के उस दिव्य स्वरूप का अनुभव करें।

👉 क्या आपने गोवर्धन परिक्रमा की है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें


मंगलवार, 30 सितंबर 2025

दुर्गा नवमी 2025 का महत्व, पूजा विधि और व्रत नियम जानें। मां सिद्धिदात्री की पूजा, कन्या पूजन और दान का विशेष महत्व। महानवमी से प्राप्त करें सुख-समृद्

🌺 दुर्गा नवमी (महानवमी) – महत्व, पूजा विधि और व्रत




✨ दुर्गा नवमी क्या है?

  • दुर्गा नवमी, शारदीय नवरात्रि का नवां दिन है।
  • इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
  • मान्यता है कि इसी दिन महिषासुर का वध हुआ और देवी दुर्गा ने धर्म की पुनः स्थापना की।

🕉️ दुर्गा नवमी का महत्व

  1. इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
  2. मां सिद्धिदात्री की कृपा से विद्या, बुद्धि और आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
  3. इस दिन कन्या पूजन (कन्या भोज) का विशेष महत्व है।
  4. नवमी का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

🌼 दुर्गा नवमी पूजा विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर घर को स्वच्छ करें और पूजास्थल को सजाएँ।
  2. देवी मां की मूर्ति या चित्र स्थापित कर गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
  3. लाल फूल, चुनरी, नारियल, फल और मिठाई अर्पित करें।
  4. दुर्गा सप्तशती या देवी के 108 नामों का पाठ करें।
  5. कन्या पूजन करें – 9 छोटी कन्याओं और 1 छोटे बालक (लंगूर) को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराएँ और उपहार दें।
  6. दीपक जलाकर आरती करें और प्रसाद बाँटें।

🌸 दुर्गा नवमी पर क्या करें?

  • गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान करें।
  • कन्याओं को उपहार (कपड़े, चुनरी, कुमकुम, फल, खिलौने) दें।
  • परिवार के साथ देवी माँ के भजन व स्तुति करें।

📖 निष्कर्ष

दुर्गा नवमी नवरात्रि का परम पवित्र दिन है। इस दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में शांति, समृद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है।

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