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मंगलवार, 16 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 7

                              लघु गीता अध्याय 7


सैकंडों में कोई एक बिरला ही होता है जो सही तरह से सिद्धि प्राप्त करता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन व बुद्धि से सब प्राणी को ईश्वर उत्पन्न करता है और फिर प्रलय हो जाती है। जल में रस, चंद्रमा में शीतलता, सूर्य में प्रकाश, पृथ्वी में सुगंध, प्राणियों में जीवन व सनातन बीज , आकाश में शब्द, अग्नि में तेज, बुद्धिमानों में बुद्धि, सब ईश्वर के रूप हैं या ईश्वर का शरीर ही है और उसी में सब कलपुर्जे कार्यरत है। सात्विक, तामसिक, राजस ईश्वर से पैदा होते है परंतु ईश्वर उसमें नहीं रहता और इन तीनों गुणों से सारा संसार मोहित है परंतु जो ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं व इस माया से परे उतर जाते है। चार प्रकार के लोग ईश्वर को याद करते हैं दुखिया, जिज्ञासु व ऐश्वर्या प्रिय व ज्ञानी परंतु एकाग्र चित्त से भजने वाला ही ईश्वर को सर्व प्रिय हैं।

              कुछ अल्प बुद्धि उन फलों का चाहना करते हुए संबंधित देवताओं की पूजा करते हैं और ईश्वर उनको दृढ़ कर देता है और फिर वही फल भी पाते है परंतु फल भोगने के पश्चात फिर वापिस योनियों में आता है और ईश्वर से मिल नहीं पाता।

।।जय श्री राधे।।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

श्राद्ध क्या है? पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

                               श्राद्ध क्या है? 

           पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि


श्राद्ध (श्रद्ध + अ) का अर्थ है — श्रद्धा और आस्था के साथ किया गया कर्म।

श्राद्ध एक धार्मिक कर्मकांड है जो मुख्य रूप से पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से पितृपक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक के 16 दिन) में किया जाता है।

श्राद्ध का उद्देश्य

  1. पितरों को स्मरण और तृप्त करना – अन्न, जल और तिल अर्पित करके।
  2. पितृ ऋण से मुक्ति – हमारे ऊपर तीन ऋण बताए गए हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। श्राद्ध से पितृ ऋण की पूर्ति होती है।
  3. परिवार की उन्नति और सुख-शांति – मान्यता है कि पितर प्रसन्न होने पर परिवार को आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध में क्या किया जाता है

  • आचमन, संकल्प और पूजा।
  • पितरों को जल (तर्पण), तिल और पिंड (चावल के लड्डू) अर्पण।
  • ब्राह्मणों को भोजन व दान देना।
  • गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।

श्राद्ध का महत्व

  • हिंदू धर्म में विश्वास है कि देहांत के बाद आत्मा सूक्ष्म लोक में रहती है और पिंडदान तथा तर्पण से उसे शांति और तृप्ति मिलती है।
  • श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद, समृद्धि और आयु प्रदान करते हैं।

 

मैं आपको पितृपक्ष में श्राद्ध करने की सरल विधि स्टेप-बाय-स्टेप बता देती हूँ, ताकि आप घर पर भी श्रद्धा से कर सकें:

🕉 पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

1. तैयारी

  • सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहाँ कुशा (यदि उपलब्ध हो), जल का पात्र, तिल, चावल, पुष्प, धूप-दीप रखें।
  • पूर्वजों का स्मरण करें (जैसे— पिता, दादा, माता आदि)।

2. संकल्प

हाथ में जल, तिल और अक्षत (चावल) लेकर संकल्प करें:
"मैं अपने पितरों की तृप्ति के लिए यह श्राद्ध कर रहा/रही हूँ।"

3. तर्पण

  • एक पात्र में जल लें।
  • उसमें तिल और कुश डालें।
  • सूर्य की ओर मुख करके पितरों के नाम का उच्चारण करें और तीन बार जल अर्पित करें।
    (उदाहरण: "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः")

4. पिंडदान (यदि संभव हो)

  • उबले चावल के छोटे-छोटे लड्डू (पिंड) बनाएँ।
  • तिल, पुष्प और घी मिलाकर पितरों के नाम से अर्पित करें।

5. ब्राह्मण भोजन / दान

  • परंपरा है कि ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दी जाए।
  • यदि संभव न हो तो गरीब, गौ, गाय, कौआ, कुत्ते या जरूरतमंद को भोजन दें।

6. पितरों को स्मरण

  • अंत में दीप जलाकर प्रार्थना करें:
    "हे पितृगण! आप इस अन्न-जल से तृप्त हों और हमें आशीर्वाद दें।"

👉 आसान तरीका (अगर विधि-विधान संभव न हो)

अगर सब कर्मकांड करना कठिन लगे, तो केवल तिल और जल से तर्पण और गाय, कुत्ते, कौवे को भोजन कराना भी पितरों को तृप्त करता है।


शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 6


                           लघु गीता अध्याय 6 



योग की प्राप्ति कर्म से ही हैं और जब मनुष्य विषय और वासनाओं से छूट जाता है तो योगी कहलाता है।मन को जीतना व मन के वश में होना –इस प्रकार मनुष्य अपना मित्र व शत्रु स्वयं ही है और मन जीतने वाले की आत्मा, शीत–उष्ण, दुख–सुख, मान –अपमान होने पर स्थिर रहती हैं और मिट्टी ,पत्थर, सोने को समान मानता है, मित्र और शत्रु, साधु और पापी के लिए समान दृष्टि रखता है।

योगी को किसी एकांत व नर्म व साफ स्थान पर बैठकर निरंतर ध्यान योग लगाना चाहिए और मन व इंद्रियों को एकाग्र कर,गर्दन को सीधा कर,ब्रह्मचर्य को पालन करते हुए ही ध्यान लगाना चाहिए।जो लोग अधिक उपवास या अधिक खाना या अधिक सोना व जागना करते हैं उनको योग प्राप्त नहीं होता, और जो नियम अनुसार जागते, सोते, खाते–पीते व कर्मों का सही पालन करते है वहीं योगी है,तथा परमानंद और मोक्ष प्राप्त करते है। इसके बाद कोई और बड़ा लाभ और सुख नहीं है।

        जैसा कि मन बहुत चंचल है और इसे वश में रखना बहुत कठिन है परंतु अभ्यास और उपाय ही इसे वश में कर सकते है।

    उत्तम काम करने वालो की कभी दुर्गति नहीं होती है और भले ही योग में असफल रहा हो और वह सुख भोगता हुआ पुनः किसी बुद्धिमान योगी व उत्तम व धनवान,पवित्र मनुष्य के घर जन्म लेता है और पूर्व जन्म की बुद्धि ,संस्कार, आत्मज्ञान को प्राप्त करता है।

।।जय श्री राधे।।

लघु गीता अध्याय 5

                          लघु गीता अध्याय 5


 

ईश्वर में मन को लगाते हुए – ज्ञान द्वारा–कर्म को करते हुए –उसमें लिप्त न होना ,किसी से द्वेष न होना,फल की इच्छा न करना ,मन तथा इंद्रियों को जीतने वाला , सब में अपनी जैसी आत्मा देखने वाला ही मोक्ष को सीधा प्राप्त होता है। और कर्मयोग को करते हुए,सुनते हुए,सूंघते हुए,स्पर्श करते हुए,खाते हुए,सांस लेते हुए भी अपने को निमित्त मात्र मानता है वह शीघ्र मोक्ष को प्राप्त होता है।जो प्रिय वस्तु को प्राप्त करने से प्रसन्न नहीं होते व अप्रिय वस्तु को पाकर दुखी नहीं होते वे ब्रह्म ज्ञानी है।जो ईश्वर में निष्ठा करके सदा चिंतन करते हैं और ज्ञान द्वारा जिनके सब पाप नाश हो गए है, काम व क्रोध काबू में है; इंद्रियों के भोगों से रहित है वे जीव मात्र के हितकारी है और भय से रहित है वहीं मोक्ष प्राप्त करते है।

।।श्री राधे।।


बुधवार, 13 अगस्त 2025

लघु गीता अध्याय 4

                         लघु गीता अध्याय 4


भगवान कृष्ण ने कहा कि कई बार मैंने धर्म स्थापना हेतु और पापियों के नाश करने के लिए जन्म लिए, ताकि साधुओं की रक्षा हो सके।

 जो मनुष्य जन्म-मरण के तत्व को समझ लेता है और मोह,भय, क्रोध को त्याग कर मेरी शरण मे आता है उसे मोक्ष मिल जाता है।

इस संसार में मनुष्य जिस भावना से, जिस देवता की भक्ति करता है वह ईश्वर की ही भक्ति है और शीघ्र फल प्राप्त होता है। जो लोग द्रव्य यज्ञ, तप यज्ञ, स्वाध्याय यज्ञ, व ज्ञान यज्ञ व आहार कम करके रहते हैं वह सब  यज्ञवेत्ता है व इन सब यज्ञों से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और जो यज्ञ नहीं करते उन्हें लोक व परलोक दोनों प्राप्त नहीं होते।

ज्ञान यज्ञ सबसे उत्तम है। श्रद्धा रहित व मन में संदेह बना रहा ऐसे लोग नरक को ही जाते हैं। इसलिए ज्ञान से अपने संदेह को मिटाकर कर्म को करना ही  मोक्ष दिला सकता है।


मंगलवार, 12 अगस्त 2025

आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता (मराठी) हिन्दी में अर्थ के साथ

आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता (मराठी) हिन्दी में अर्थ के साथ


सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदूराची
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ॥१॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥

रत्नखचित फरा तुझे मस्तक शोभे
सुंदर दोन डोळा सुरवंटाचे लोभे
वीसावा तुझा वंदन करितो लोळे
संपत्तीचा भांडार तूचि रे ॥२॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥

कर्णीकर्णिके मुकुट शोभतो भारी
तारक हार वागे गरगर भारी
पद्मासना वर बसलासवारी
चरणी लोटांगण वंदितो आम्ही ॥३॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥


हिंदी अर्थ

पहला पद:
जो सुख देने वाले और दुख दूर करने वाले हैं, विघ्नों की सारी बातें मिटा देते हैं,
जो प्रेम और कृपा से सबकी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं।
जिनका संपूर्ण शरीर सुंदर है, जिन पर लाल चंदन (सिंदूर) का उटी लगी है,
गले में मोतियों की माला शोभा देती है।

ध्रुव पंक्ति:
जय हो, जय हो, हे मंगलमूर्ति गणेशजी!
आपके दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

दूसरा पद:
रत्न जड़े हुए मुकुट आपके मस्तक पर शोभा पाते हैं,
आपकी सुंदर दो आंखें मोरपंख के समान आकर्षक हैं।
जो आपकी शरण आते हैं, उन्हें विश्राम और सुख मिलता है।
आप संपत्ति और समृद्धि का भंडार हैं।

तीसरा पद:
आपके कानों में सुंदर झुमके और सिर पर शोभायमान मुकुट है,
गले में तारों से बनी माला है जो अद्भुत है।
आप कमलासन पर विराजमान हैं,
हम आपके चरणों में लोट कर वंदना करते हैं।

।।गणपति बप्पा मोरया ।।

गणेश चतुर्थी का इतिहास,धार्मिक mahtav

गणेश चतुर्थी का इतिहास,धार्मिक महत्व


1. गणेश चतुर्थी का इतिहास

  • प्राचीन मान्यता – गणेश चतुर्थी का उल्लेख मुद्गल पुराण और गणेश पुराण में मिलता है।
  • लोकमान्य तिलक का योगदान – 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाने की परंपरा शुरू की, ताकि लोगों में एकता और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति जागरूकता फैले।
  • तब से यह केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी बन गया।

2. धार्मिक महत्व

  • भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और सिद्धि-विनायक कहा जाता है।
  • उन्हें बुद्धि, विवेक और सौभाग्य का देवता माना जाता है।
  • गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की मूर्ति स्थापित कर 10 दिनों तक पूजा की जाती है।
  • अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा मोरया, पुढ़च्या वर्षी लवकर या (अगले साल जल्दी आना) कहते हुए विसर्जन किया जाता है।

3. उत्सव की विशेषताएं


  • भव्य मूर्तियां – छोटी घर की मूर्तियों से लेकर 15–20 फीट ऊंची सार्वजनिक मूर्तियां।
  • थीम पंडाल – पौराणिक कथाएं, सामाजिक संदेश, या ऐतिहासिक स्थल की झलक।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम – भजन, आरती, नृत्य, रंगोली और कला प्रदर्शन।
  • भोग – मोदक, लड्डू, पूरणपोली, और नारियल से बनी मिठाइयां।

4. मुंबई में विशेष रंग

  • लालबागचा राजा – सबसे प्रसिद्ध और चमत्कारी गणपति माने जाते हैं।
  • गिरगांव चौपाटी का विसर्जन – लाखों लोग शामिल होते हैं।
  • दगडूशेठ गणपति – पुणे का प्रसिद्ध गणपति, लेकिन मुंबई से भी बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने जाते हैं।

5. आध्यात्मिक संदेश

गणेश चतुर्थी हमें यह सिखाती है कि जीवन की हर शुरुआत में हम ईश्वर का स्मरण करें, अपने भीतर के अहंकार को दूर करें, और प्रेम व सद्भावना के साथ समाज में रहना सीखें।


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