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बुधवार, 27 नवंबर 2019

क्या आप जल्दी ही सभी दुखों से मुक्ति चाहते हैं तो श्री रामायण मनका 108 का हफ्ते में एक बार पाठ जरूर करें।

     जिनके पास पूरी रामायण पढ़ने का समय नहीं है, वह यह रामायण मनका पढ़कर लाभ उठा सकते हैं।                                                       श्री रामायण मनका 108

रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
जय रघुनंदन जय घनश्याम। पतित पावन सीताराम।।
भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दुख हमारे।।
दशरथ के घर जन्मे राम। पतित पावन सीताराम।।
विश्वामित्र मुनीश्वर आये। दशरथ भूप से वचन सुनाए।।
संग में भेजें लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम।।
वन में जाए ताड़का मारी। चरण छू आए अहिल्या तारी।।
ऋषियों के दुख हरते राम। पतित पावन सीताराम।
जनकपुरी रघुनंदन आए। नगर निवासी दर्शन पाए।।
सीता के मन भाए राम। पतित पावन सीताराम।।
रघुनंदन ने धनुष चढ़ाया। सब राजों का मान घटाया।।
सीता ने वर पाए राम। पतित पावन सीताराम।।
परशुराम क्रोधित हो आए। दुष्ट भूप में मन में हरषायें।।
जनक राय ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
बोले लखन सुनो मुनि ज्ञानी। संत नहीं होती अभिमानी।।
मीठी वाणी बोले राम। पतित पावन सीताराम।।
लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो। जो कुछ दंड दास को दीजो।।
धनुष तुड़इया मै हूं राम। पतित पावन सीताराम।।
लेकर के यह धनुष चढ़ाओं। अपनी शक्ति मुझे दिखाओ।। छुवत चाप चढ़ाए राम। पतित पावन सीताराम।।
हुई उर्मिला लखन की नारी।श्रुति कीर्ति रिपुसूदन प्यारी।।
हुई मांडवी भरत केबाम।पतित पावन सीता राम।।
अवधपुरी रघुनंदन आए घर घर नारी मंगल गायें।।
12 वर्ष बिताए राम। पतित पावन सीताराम।।
गुरु वशिष्ट से आज्ञा लीनी।  राज तिलक तैयारी कीनी।।
कल को होंगे राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
कुटिल मंथरा ने बहकाई। कैकई ने यह बात सुनाई।।
दे दो मेरे दो वरदान। पतित पावन सीताराम।।
मेरी विनती  तुम सुन ली जो। भरत पुत्र को गद्दी दीजो।।
होत प्रात वन भेजो राम। पतित पावन सीताराम।।
धरनी गिरे भूप तत्काल। लगा दिल में शूल विशाल।।
तब सुमंत बुलवाएं राम। पतित पावन सीता राम।।
राम पिता को शीश नवाए। मुख से वचन कहा नहीं जाए।।
कैकई वचन सुनायो राम। पतित पावन सीताराम।।
राजा के तुम प्राणों प्यारे। इनके दुख हरोगे सारे।।
अब तुम वन में जाओ राम। पतित पावन सीता राम।।
वन में 14 वर्ष बिताओ ।रघुकुल रीत नीति अपनाओ।।
आगे इच्छा तुम्हरी राम। पतित पावन सीता राम।।
सुनत वचन राघव हर्षाए। माता जी के मंदिर आए।।
चरण कमल में किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
माताजी में तो वन जाऊं।14 वर्ष बाद फिर आऊँ।।
चरण कमल देखूँ सुखधाम। पतित पावन सीताराम।।
सुनी शूल सम जब यह बानी। भू पर गिरी कौशिला रानी।।
धीरज बना रहे श्री राम। पतित पावन सीता राम।।
सीता जी जब यह सुन पाई ।रंग महल से नीचे आई।
कौशल्या को किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
मेरी चूक क्षमा कर दीजो। वन जाने की आज्ञा दीजो।।
सीता को समझाते राम। पतित पावन सीताराम।।
मेरी सीख सिया सुन लीजो। सास-ससुर की सेवा कीजो।। मुझको भी होगा विश्राम। पतित पावन सीताराम।।
मेरा दोष बता प्रभु दीजो। संग मुझे सेवा मे लीजो।।
अर्धांगिनी तुम्हारी राम। पतित पावन सीताराम।।
समाचार सुनि लक्षमण आए। धनुष बाण संग परम सुहाए।। बोले संग चलूंगा श्री राम। पतित पावन सीताराम।।
राम लखन मिथिलेश कुमारी। वन जाने की करी तैयारी।।
रथ में बैठ गए सुखधाम। पतित पावन सीताराम।।
अवधपुरी के सब नर नारी। समाचार  सुन व्याकुल भारी।। मचा अवध में अति कोहराम। पतित पावन सीताराम।। श्रृंगवेरपुर रघुवर आए। रथ को अवधपुरी लौटाए।।
गंगा तट पर आए राम। पतित पावन सीता राम।।
केवट कहे चरण धूल वाओ। पीछे नौका में चढ़ जाओ।।
पत्थर कर दी नारी राम। पतित पावन सीताराम।।
लाया एक कठोता पानी। चरण कमल धोए सुखमानी।।
नाव चढ़ाए लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम।।
उतराई में मुद्री दीन्ही। केवट ने यह विनती कीन्ही।।
उतराई नहीं लूंगा राम। पतित पावन सीताराम।।
तुम आए हम घाट उतारे। हम आएंगे घाट तुम्हारे।।
तब तुम पार लगाओ राम। पतित पावन सीताराम।।
भारद्वाज आश्रम पर आए ।राम लखन ने शीश नवाए।।
एक रात कीन्हा विश्राम।  पतित पावन सीताराम।।
भाई भरत अयोध्या आए।  कैकई को कटु वचन सुनाए।।
क्यों तुमने वन भेजे राम। पतित पावन सीताराम।।
चित्रकूट रघुनंदन आए।वन को देख सिया सुख पाए।।
मिलें भरत से भाई राम। पतित पावन सीता राम।।
अवधपुरी को चलिए भाई ।यह सब कैकई की कुटीलाई ।।तनिक दोष नहीं मेरा राम ।पतित पावन सीता राम।।
चरण पादुका तुम ले जाओ। पूजा कर दर्शन फल पावो।।
भरत को कंठ लगाए राम ।पतित पावन सीताराम।।
आगे चले राम रघुराई। निशाचर को वशं मिटाया।।
ऋषियों के हुए पूर्ण काम। पतित पावन सीताराम ।।
अनसूया की कुटिया आए ।दिव्य वस्त्र सीता माँ ने पाए।।
था यह  अत्रि  मुनि  का  धाम। पतित पावन सीताराम।।
मुनि स्थान आए रघुराई। सुपनखा की नाक कटाई।।
खर दूषण को मारे राम। पतित पावन सीताराम।।
पंचवटी रघुनंदन आए। कनक मृगा के संग में धाए।।
लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम। पतित पावन सीताराम।।
रावण साधु वेश में आया। भूख ने मुझको बहुत सताया।। भिक्षा दो यह धर्म का काम। पतित पावन सीताराम।।
भिक्षा लेकर सीता आई। हाथ पकड़ रथ में बैठाई।।
सुनी कुटिया देखी राम ।पतित पावन सीताराम।।
धरनी गिरे राम रघुराई। सीता के बिन व्याकुलता आई।।
हे प्रिय सीते,चीखे राम। पतित पावन सीताराम।।
लक्ष्मण, सीता छोड़ ना आते। जनक दुलारी को नहीं गवांते।। बने बनाए बिगड़े काम। पतित पावन सीताराम।।
कोमल बदन सुहासिनी सीते। तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते।।
लगे चांदनी- जैसे घाम। पतित पावन सीताराम।।
सुन री मैना, सुन रे तोता। मैं भी पंखों वाला होता।।
वन वन लेता ढूंढ तमाम। पतित पावन सीताराम।।
श्यामा हिरनी तू ही बता दे । जनक नंदिनी मुझे मिला दे।।
तेरे जैसी आंखें श्याम ।पतित पावन सीताराम।।
वन वन ढूंढ रहे रघुराई। जनक दुलारी कहीं ना पाई।।
गिद्धराज ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
चखकर के फल शबरी लाई।प्रेम सहित खाए रघुराई।।
ऐसे मीठे नहीं है आम। पतित पावन सीताराम।।
विप्र रुप धरि हनुमंत आए।चरण कमल में शीश नवाए।।
कंधे पर बैठाए राम। पतित पावन सीताराम।।
सुग्रीव से करी मिताई। अपनी सारी कथा सुनाई।।
वाली पहुंचाया निजधाम ।पतित पावन सीताराम।।
सिहासन सुग्रीव बिठाया । मन में यह अति ही हर्षाया।।
वर्षा ऋतु आई है राम।पतित पावन सीताराम।।
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ। वानर पति को यू समझाओ।। सीता बिन व्याकुल है राम। पतित पावन सीताराम।।
देश देश वानर भिजवाई ।सागर के सब तट पर आए।।
सहते भूख प्यास और घाम।पतित पावन सीताराम।।
संपाती ने पता बताया। सीता को रावण ले आया।।
सागर कूद गए हनुमान। पतित पावन सीताराम।।
कोने कोने पता लगाया। भगत विभीषण का घर पाया।
हनुमान ने किया प्रणाम ।पतित पावन सीताराम।।
अशोक वाटिका हनुमान आए।वृक्ष तलें सीता को पाएं।।
आंसू बरसे आठो याम ।पतित पावन सीताराम।।
रावण संग निशाचरी लाके। सीता को बोला समझा के।।
मेरी ओर तो देखो बाम ।पतित पावन सीताराम।।
मंदोदरी बना दूं दासी। सेवा में सब लंका वासी।।
करो भवन चलकर विश्राम। पतित पावन सीताराम।।
चाहे मस्तक कटे हमारा। मैं देखूं ना बदन तुम्हारा।।
 मेरे तन मन धन है राम। पतित पावन सीताराम।।
ऊपर से मुद्रिका गिराई ।सीता जी ने कंठ लगाई।।
हनुमान ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
मुझको भेजा है रघुराया। सागर कूद यँहा में आया।।
मैं हूं दास राम हनुमान।पतित पावन सीताराम।।
भूख लगी फल खाना चाँहू।जो माता की आज्ञा पाऊं।।
सबके स्वामी है श्री राम। पतित पावन सीताराम।।
सावधान होकर फल खाना।रख वालों को भूल ना जाना।। निशाचरों का है यह धाम। पतित पावन सीताराम।।
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े।देख देख माली ललकारे।।
मार मार पहुंचाए धाम। पतित पावन सीताराम।।
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया। इंद्रजीत फांसी ले आया।। ब्रहम फाँस में फँसे हनुमान। पतित पावन सीताराम।।
सीता को तुम लुटा दीजो। उनसे क्षमा याचना कीजो।।
तीन लोक के स्वामी राम। पतित पावन सीताराम।।
भगत विभीषण ने समझाया। रावण ने उस को धमकाया।।
सन्मुख देख रहे हनुमान। पतित पावन सीताराम।।
रुई तेल घृत वसन मँगाई। पूछ बांधकर आग लगाई है।।
पूंछ घुमाई है हनुमान। पतित पावन सीता राम।।
लंका में आग लगाई। सागर में जा पूछ बुझाई।।
हृदय कमल में राखे राम। पतित पावन सीताराम।।
सागर कूद लौट कर आए। समाचार रघुवर ने पाए।।
जो मांगा सो दिया इनाम। पतित पावन सीताराम।।
वानरी रीछ संग में लाए।लक्ष्मण सहित सिंधु तटआए।।
लगे सुखाने सागर राम। पतित पावन सीताराम।।
सेतु कपि नल नील बनावे।राम राम लिख सिला तेरावें।।
लंका पहुंचे राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
अंगद चल लंका में आया। सभा बीच में पांव जमाया।।
बाली पुत्र महाबल धाम।पतित पावन सीता राम।।
रावण पांव हटाने आया।अंगद ने फिर पांव उठाया।।
क्षमा करे तुझको श्री राम। पतित पावन सीताराम।।
निशाचरों की सेना आई।गरज़ गरज़ फिर हुई लड़ाई।।
वानर बोले जय सिया राम। पतित पावन सीताराम।।
इंद्रजीत ने शक्ति चलाई। धनी गिरे लखन मुरझाए।।
चिंता करके रोए राम। पतित पावन सीता राम।।
जब मैं अवधपुरी से आया। हाय पिता ने प्राण गंवाया।।
बन में गई चुराई बाम। पतित पावन सीताराम।।
भाई तुमने भी छिटकाया। जीवन में कुछ सुख नहीं पाया।। सेना में भारी कोहराम।पतित पावन सीताराम।।
जो संजीवनी बूटी को लाए। तो भाई जीवित हो जाए।।
बूटी लाए तब हनुमान।पतित पावन सीताराम।।
जब बूटी का पता ना पाया। पर्वत ही ले कर के आया।।
काल नेम पहुंचाया धाम। पतित पावन सीता राम।।
भक्त भरत ने बाण चलाया।चोट लगी हनुमत लंगडाया।।
मुख से बोले जय सिया राम। पतित पावन सीता राम।।
बोले भरत बहुत पछता कर। पर्वत सहित बाण बैठाकर।।
तुम्हें मिला दूं राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
बूटी लेकर हनुमत आया।लखन लाल उठ शीश नवाया।। हनुमत कंठ लगाए राम।पतित पावन सीताराम।।
कुंभकरण उठ कर तब आया ।एक बाण से उसे गिराया।। इंद्रजीत पहुंचाया धाम।पतित  पावन सीताराम।।
दुर्गा पूजन रावण कीनो। 9 दिन तक आहार न लीनो।।
आसन बैठ किया है ध्यान। पतित पावन सीता राम।।
रावण का व्रत खंडित कीना। परमधाम पहुंचा ही देना।।
वानर बोले जय सियाराम।पतित पावन सीताराम।।
सीता ने हरी दर्शन कीना। चिंता शोक सभी तज दीना।।
हंस कर बोले राजाराम। पतित पावन सीताराम।।
पहले अग्निपरीक्षा पाओ। पीछे निकट हमारे आओ।।
तुम हो पतिव्रता हे बाम। पतित पावन सीताराम।।
करी परीक्षा कंठ लगाई।सब वानर सेना हरषाई।।
राज्य विभीषण दीना राम। पतित पावन सीताराम।।
फिर पुष्पक विमान मंगवाया। सीता सहित बैठे रघुराया।। दंडक वन में उतरे राम। पतित पावन सीताराम।।
ऋषिवर सुन दर्शन को आए। स्तुति कर मन में हर्ष आए।।
तब गंगा तट आए राम। पतित पावन सीताराम।।
नंदीग्राम पवनसुत आए। भगत भरत को वचन सुनाए।।
लंका से आए हैं राम। पतित पावन सीता राम।।
कहो विप्र तुम कहाँ से आए। ऐसे मीठे वचन सुनाएं।।
मुझे मिला दो भैया राम। पतित पावन सीताराम।।
अवधपुरी रघुनंदन आए ।मंदिर मंदिर मंगल छायो।।
माताओं को किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम।।
भाई भरत को गले लगाया। सिहासन बैठे रघुराया।।
जग ने कहा राजा राम । पतित पावन सीताराम।
सब भूमि विप्रो को दीनी।विप्रो ने वापस दे दीन्ही।।
हम तो भजेंगे राजाराम।पतित पावन सीताराम।।
लव कुश हुए दो भाई ।धीर वीर ज्ञानी बलवान।।
जय सियाराम ,जय सियाराम ,जय सियाराम ,जय सियाराम पतित पावन सीताराम, जय सियाराम, जय सियाराम ,पतित पावन सीताराम ,जय सियाराम, जय सियाराम ,पतित पावन सीताराम, जय सियाराम, जय सियाराम ,जय सियाराम( यहां पर हम श्री राम जी और सीता जी के विरह के विषय में बात नहीं करेंगे क्योंकि वह क्षण मुझे पसंद नहीं है।)
"यह माला पूरी हुई मनका 108, मनोकामना पूर्ण हो नित्य करे जो पाठ।।"

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