> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: श्री कृष्ण दीवाने रसखान जी

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बुधवार, 6 नवंबर 2019

श्री कृष्ण दीवाने रसखान जी

                   श्री कृष्ण दीवाने रसखान जी

 हमारे बांके बिहारी कोई -ना -कोई  अहेतु की लीला करते ही रहते हैं। उनकी माया का कोई पार नहीं पा सकता, ना जाने कब किस पर रीझ जायँ, ना जाने कब किस जीव पर कृपा हो जाए। बुलाने पर तो वह कभी आते नहीं ,चाहे सिर पटक पटक कर मर जाए। ना तप से मिलते हैं, ना जप से, न ध्यान से ।यदि इन्हें इस प्रकार मिलना हो तो योगी, यति, ऋषि, ध्यान करते रहते हैं, परंतु यह उनकी ओर देखते तक नहीं। जब कृपा करते हैं, तो अचानक करते हैं।
 कृष्ण के दीवाने रसखान जी एक मुसलमान थे। एक बार की घटना है  वे अपने उस्ताद के साथ मक्का मदीना जा रहे थे। उनके उस्ताद ने कहा- देखो, रास्ते में हिंदुओं का तीर्थ वृंदावन आएगा ,वहां एक काला नाग रहता है। तू आगे- पीछे मत देखना ,नहीं तो वह तुझे डस लेगा, तू मेरे पीछे-पीछे चला आ।अपने दाएं- बाएं भी मत देखना, वरना जब मौका दिखेगा तुझेडँस लेगा।  बस रसखान जी के मन में एक उत्कंठा सी जाग गई ,क्या मुझे वहां काला नाग दिखाई देगा। वह यही सोचते जा रहे थे उनके लो लग गई, हमारी श्री बांके बिहारी से। फिर क्या था जैसे ही आप वृंदावन आए ,उस्ताद ने पुणः कहाँ, रसखान अब सावधानी से चलना यह हिंदुओं का तीर्थ है, यही वह काला नाग रहता है। उस्ताद का इतना कहना था कि हमारी लीलाधारी ने अपनी लीला आरंभ कर दी। कभी दाएं, कभी बाएं, मीठी मीठी बांसुरी का धुन बजाने शुरू कर दी ।दूसरी और नूपुर की मधुर झंकार होने लगी -सुनकर बेचारे रसखान जी मुक्त हो गए। दोनों और मधुर तान तथा झंकार सुनकर बौरा से गए, उनसे दाएं बाएं देखे बिना न रहा गया ।अंत में जब यमुना किनारे पहुंचे तो एक और देख ही तो लिया। वहां प्रिया जी के साथ श्री बांके बिहारी जी की सुंदर छवि के दर्शन किये और वह मोहित हो गए।भूल गए अपने उस्ताद को और निहारते ही रहे उस प्यारी छवि को। अपनी सुध बुध खो बैठे, अपना ध्यान ही ना रहा कि मैं कहां हूं, वही ब्रज में लोटपोट हो गए। उनके मुख से झाग निकल रहा था, वह तो ढूंढ रहे थे उस मनोहर छवि को, पर अब तक तो प्रभु जी  अंतर्ध्यान हो चुके थे ।
थोड़ी दूर जाकर उस्ताद जी ने पीछे मुड़कर देखा, रसखान दिखाई नहीं दिए। वापस आए ,रसखान की दशा देखकर समझ गए इसे वही काला नाग डस गया, अभी हमारे मतलब का नहीं रहा ।उस्ताद आगे बढ़ गए। होश आया तो वह प्यारी मनमोहक छवि ढूंढ रहे थे अपने चारों ओर सबसे पूछा सांवरा सलोना मूर्ति वाला अपनी बेगम के साथ कहां रहता है? कोई तो बता दो किसी ने बिहारी जी के मंदिर का पता बता दिया। वहां गए किसी ने अंदर जाने नहीं दिया। 3 दिन तक भूखे प्यासे वहीं पड़े रहे। तीसरे दिन बिहारी जी अपना प्रिय दूध- भात, चांदी के कटोरे में लेकर आए और अपने हाथ से खिलाया। प्रातःकाल लोगों ने देखा कटोरा पास में पड़ा है। रसखान जी के मुख पर दूध भात लगा हुआ है।  कटोरे पर बिहारी जी लिखा है। रसखान जी को उठाया, लोग उनके चरणों की रज़, माथे पर लगाने लगे। गली-गली गाते फिरते -बंसी बजा के, सूरत दिखा कर, क्यों कर लिया किनारा.... आज भी रसखान जी की मजार पर बहुत से लोग जाकर उनके दिव्य कृष्ण प्रेम की याद करते हैं।[ श्रीमती भगवती जी गोयल]

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