वृन्दावन वास
मन श्री वृन्दावन में रहे। प्रारब्धवश शरीर बाहर हैं, तो यह वृन्दावन वास ही हैं और यदि शरीर वृन्दावन में हैं ,मन बाहर हैं तो यह उत्तम धाम वास नहीं कहा जायेगा। धाम से बाहर रहने से मन में प्रभु का ध्यान बना हुआ हैं तो प्रभु आपके पास ही हैं। आनन्दमय भगवदधाम में भगवान के नाम , रूप , लीला के सर्वत्र दर्शन होते हैं। अनन्य भक्त अपने घर में रहकर नाम , रूप , लीला का अनुभव करते हैं। उनका घर का निवास , धाम निवास के तुल्य हैं।
अनंत गुण संपन्न परमात्मा आप सबका कल्याण करे। भगवदभक्तों के दोनों लोक सुखमय होते हैं। जब तक यहाँ रहते हैं , शास्त्र मर्यादा के अनुकूल सुखों को भोगते हैं। अंत में शरीर त्यागकर भगवद्धाम में जाते हैं। भक्त के लिए यह लोक भी वैकुंठ के तुल्य हैं क्योंकि यहाँ नित्य भगवत सेवा में रहता हैं।
अपने प्रभु के निकट जाने के लिए -
इसके लिए प्रथम अपने इष्ट देव के नाम , रूप , चरित्र , धाम के कीर्तन में अपनी जिह्नवा को और मन को लगा देना चाहिए। अपने निवास में प्रभु का चित्र विराजमान करें वही भगवतधाम बन जायेगा। हम धाम में ही हैं यही मान कर सेवा में लग जाना चाहिए। कृष्ण कृष्ण कहने से कृष्ण का सानिध्य मिलता हैं।
धाम की उपासना का रहस्य यहीहैं कि मै धाम में हूँ और धाम मुझमे हैं। मै श्री धाम का हूँ श्री धाम हमारा हैं। मै श्री कृष्ण का हूँ और श्री कृष्ण मेरे हैं। ऐसा स्वीकार कर लेना चाहिए तो उसे अंतिम कल्याण की प्राप्ति हो जाती हैं। श्री राधा रानी आप सबका कल्याण करें। (सौजन्य परमार्थ के पत्र -पुष्प मलूक पीठ वृन्दावन)
'आशा जाकी जँह बसी तँह ताहि को वास '
मन श्री वृन्दावन में रहे। प्रारब्धवश शरीर बाहर हैं, तो यह वृन्दावन वास ही हैं और यदि शरीर वृन्दावन में हैं ,मन बाहर हैं तो यह उत्तम धाम वास नहीं कहा जायेगा। धाम से बाहर रहने से मन में प्रभु का ध्यान बना हुआ हैं तो प्रभु आपके पास ही हैं। आनन्दमय भगवदधाम में भगवान के नाम , रूप , लीला के सर्वत्र दर्शन होते हैं। अनन्य भक्त अपने घर में रहकर नाम , रूप , लीला का अनुभव करते हैं। उनका घर का निवास , धाम निवास के तुल्य हैं।
अनंत गुण संपन्न परमात्मा आप सबका कल्याण करे। भगवदभक्तों के दोनों लोक सुखमय होते हैं। जब तक यहाँ रहते हैं , शास्त्र मर्यादा के अनुकूल सुखों को भोगते हैं। अंत में शरीर त्यागकर भगवद्धाम में जाते हैं। भक्त के लिए यह लोक भी वैकुंठ के तुल्य हैं क्योंकि यहाँ नित्य भगवत सेवा में रहता हैं।
अपने प्रभु के निकट जाने के लिए -
इसके लिए प्रथम अपने इष्ट देव के नाम , रूप , चरित्र , धाम के कीर्तन में अपनी जिह्नवा को और मन को लगा देना चाहिए। अपने निवास में प्रभु का चित्र विराजमान करें वही भगवतधाम बन जायेगा। हम धाम में ही हैं यही मान कर सेवा में लग जाना चाहिए। कृष्ण कृष्ण कहने से कृष्ण का सानिध्य मिलता हैं।
धाम की उपासना का रहस्य यहीहैं कि मै धाम में हूँ और धाम मुझमे हैं। मै श्री धाम का हूँ श्री धाम हमारा हैं। मै श्री कृष्ण का हूँ और श्री कृष्ण मेरे हैं। ऐसा स्वीकार कर लेना चाहिए तो उसे अंतिम कल्याण की प्राप्ति हो जाती हैं। श्री राधा रानी आप सबका कल्याण करें। (सौजन्य परमार्थ के पत्र -पुष्प मलूक पीठ वृन्दावन)