/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: जनवरी 2023

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शनिवार, 7 जनवरी 2023

।। राम जी का सहारा ||

                          ।। राम जी का सहारा |



   कथा उस समय की है, जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए पूरी वानर सेना सेतु निर्माण के कार्य में लगी थी| सभी वानर दूर-दूर से शिलाएँ लेकर आ रहे थे। नल-नील को मिला श्राप वरदान साबित हो रहा था। 

वे प्रभु श्रीराम का नाम ले-लेकर सभी शिलाओं को सागर में ड़ाल रहे थे। प्रभु श्रीराम के नाम के प्रताप से ड़ाली गयी सभी शिलायें सागर जल में डूबने की ज़गह तैर रही थीं। शीध्रता से सेतु निर्माण का कार्य चल रहा था। 

लक्ष्मण, विभीषण तथा सुग्रीव जहा सेतु निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रहे थे, वही श्री रामचन्द्र जी भी समीप ही एक शिला पर बैठे इस कार्य को देख रहे थे। उनके मन में विचार आया कि सभी सेतु निर्माण में व्यस्त हैं किन्तु मैं यहाँ खाली बैठ कर देखता रहूँ, यह तो उचित नहीं है।

 वे चुपके से उठे और सबसे नजरें बचा कर एक शिला को उठाकर उन्होंने भी सागर जल में छोड़ दिया। 

किन्तु यह क्या,

जहाँ सभी शिलायें सागर जल में तैर रही थी, प्रभु श्रीराम द्वारा छोड़ी गई शिला तुरन्त जल में डूब गई। 

यह देख श्रीरामजी को बहुत आत्मग्लानि हुई और उन्होने इस क्रिया को दोहराया| दूसरी शिला भी राम जी के हाथ से छूटते ही सागर की असीम गहराई मे समा गयी|

वे बिलकुल भी नही समझ पाये कि उनकी छोड़ी शिला क्यों जल में डूब गयी। वे चुपचाप आकर वापस एक प्रस्तर शिला पर बैठ गये। शिला के डूब जाने से वे बहुत उदास थे। हनुमानजी उन्हें उदास देख उनके पास आये तथा उदासी का कारण पूछा। तब श्रीरामजी ने पूरी बात उन्हें बताई।

  श्रीरामजी की पूरी व्यथा सुनने के बाद हनुमानजी ने कहा- "प्रभु !  जिन्हें श्रीराम नाम का सहारा मिल जाये, वे इस सागर में तो क्या भवसागर में भी तैर जायेंगे, 

किन्तु इसके उलट, जिसे श्रीराम ही छोड़ दें, वे भवसागर तो क्या इस सागर में भी एक-पल नहीं तैर सकते।"

हनुमानजी के मुख से ये वचन सुन, श्रीरामजी की आँखों में प्रेम के आँसू छलक आये| उन्होंने भावविभोर हो हनुमानजी को ह्रदय से लगा लिया।                               

 !! जय सिया राम, जय जय सिया राम!!

भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने के लिए माता कैकयी का त्याग

 भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने के लिए  माता कैकयी का त्याग 


एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं, तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत सब एक साथ हाथ जोड़ के आते हैं और उनसे कहते हैं कि 'हे माता कैकेयी, हम सब आपकी शरण में हैं, महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गयी है तभी वो राम को राजा का पद दे रहे हैं, अगर प्रभु राजगद्दी पर बैठ गए तब उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जायेगा। 

माता, सम्पूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आपमें ही ये साहस है की आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं, कृपया प्रभु को जंगल भेज के सुलभ करिये, युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं, त्रिलोक स्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है अगर वनवास ना हुआ तो राम इस लोक के 'प्रभु' ना हो पाएंगे माता' ये कहते-कहते देवता घुटनों पर आ गए, माता कैकेयी के आँखों से आँसू बहने लगे। 

माता बोलीं-'आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया लेकिन असल में मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूँ, मुझे मालूम है, इस निर्णय के बाद भरत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।' 

रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है। जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं, 

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। 

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।। 

हे भरत सुनो भविष्य बड़ा बलवान् है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में है, बीच में केवल माध्यम आते हैं। 

प्रभु इस लीला को जानते थे इसीलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास ही पहुँच कर प्रणाम करते हैं। क्यूंकि उनको पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं लेकिन उनको 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।

माता सीता को मुँह -दिखाई में कनक भवन देने वाली, सनातन धर्म को अपने त्याग से सिंचित करने वाली, सम्पूर्ण रामायण में आदर्श से ज्यादा वस्तुनिष्ठ रहने वाली श्रेष्ठ विदुषी, काल-खंड विजयी और युगों-युगों से अपयश का विष पी रही माता कैकेयी को  शत् शत् प्रणाम है।।

।। जय श्री राम, जय जय श्री राम ।।

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