/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: 2017

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मंगलवार, 8 अगस्त 2017

प्रभु के नाम लेने से लाभ


प्रभु के सभी नाम परम कल्याण कारक है। राम,कृष्ण ,हरि,नारायण ,दामोदर ,शिव, खुदा ,जीसस ,वाहे गुरु आदि नामों  की बड़ी महिमा है। भगवान को किसी भी नाम से पुकारो ,वे सबकी भाषा समझते है। पुकारने वाले मे श्रद्धा और विशवास होना चाहिए। पुकारने वाले को यह बात ध्यान होनी चाहिए कि मेै भगवान को पुकार रहा / रही हूँ। फिर नाम चाहे कोई भी हो । जल,पानी ,नीर,वाटर आदि कुछ भी पुकारने पर उसे जल ही मिलेगा ।इतना होने पर भी साधक को जिस नाम मे विशेष रुचि ,प्रेम, विशवास हो  ,उसके लिए वही लाभप्रद होता है। राम और कृष्ण मे कोई अन्तर नही है जैसे तुलसीदास जी को 'राम 'नाम प्रिय है और सुरदास जी को 'कृष्ण' नाम।
इसलिए भगवान के किसी भी नाम का जप ,किसी भी काल,किसी भी निमित्त से,किसी के भी द्वारा ,केैसे भी किया जाए वह परम कल्याण करने वाला है। 
यह शरीर बहुत ही दुर्लभ है और  नाशवान और सुखरहित है।
दुर्लभ इसलिए है क्योंकि  इस शरीर  से ही परम कल्याण हो सकता है। केवल मनुष्य योनि ही है जिसे  जप करने का लाभ मिलता है और वो कर भी सकता है। 
(परम श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका )


शनिवार, 5 अगस्त 2017

कलयुग में आसान है भगवत्त प्राप्ति


सतयुग मे ध्यान करने से,त्रेता युग मे यज्ञ करने से,द्वापर मे पुजा करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल कलियुग मे केवल श्री केशव के,राम,भोलेनाथ के  कीर्तन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है।
हरे  राम हरे राम ,राम राम हरे हरे
हरे  कृष्ण हरे कृष्ण ,कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

सत्संग का प्रभाव

                                                                                                           सत्संग से क्या होता हैं
                            
                     जब हमारे मे भक्ति का छोटा पोधा पनपने लगता है तो बकरी रुपी काम,लोभ ,मोह,गुस्साआदि भक्ति रुप पोध को खाने के लिए तैयार रहता है। हमे इसको बचाने के लिए अपने चारो और सतसंग का आवरण कर देना चाहिए ,ताकि कोई  भी  इसे नष्‍ट न कर सके। यदि  एक बार यह बड़ा पेड़ बन गया ,फिर कितना आस पास का वातावरण खराब हो पर आपकी परिपक्व भक्ति को कोई हानि नहीं  हो सकती , सतसंग के आवरण का अर्थ है-  कथा , सतसंग ,मन  न  चिन्तन सब इश्वर के लिए हो। यह सतसंग आपको    जिन्दगी मे  कभी निराश नहीं  होने देगा।आपके अनदर  एक सकारात्मक सोच   उत्पन्न करेगा जिसके कारण आप जिन्दगी मे   ऊंचाई  पर आगे बढते जाएँगे,   वेैसे भी  कहते है कि जिसको इश्वर  का  सहारा होता है वो सबको सहारा देने वाला बन जाता है।
जय  श्री  राधे।

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

मन शांत कैसे हो ?

कलयाण


कहते हैकि बवंडर-(चकर्वात) के ठीक बीच में एक ऐसा  स्थान भी रहता है,जँहा कोई हलचल नही। वँहा वायू का थोडा सा भी प्रकोप नही है,बल्कि इतनी शान्ति रहती है कि यदि किसी छोटे शिशु को वहाँ  सुला दिया जाए तो वह सुख की नींद सोता रहेगा ।ठीक इसी प्रकार इस संसार के कोलाहल के मध्य मे प्रभु विराजित हैं तथा जहाँ वे हैं वहाँ न तो जगत की हलचल है और न ही त्रिताप की विषमयी ज्वाला ,वँहा सर्वदा ,हर जगह सुख शान्ति बनी रहती हैं।
हम अपने जीवन पर विचार करके देखे तो पता चलेगा कि उसमे न जाने कितने उतार चढाव हुए हैं कितनी बार हम हँसें है ,कितनी बार रोये है । संसार के इस प्रवाह मे बहते जा रहे हैं,अब तक एसा कोई स्थान नही मिला जँहा हमे शान्ति मिली हो हम अपनी थकान मिटा सके।शान्ति के लिये जिसका भी सहारा लेने लगते है ,पता लगता है वो भी हमारी तरह हलचल मे है और विचलित हैं।इन्द्रिया हर जगह सुख की तलाश में भटकती रहती हैं पर सुख या तो मिलता नही हैं या फिर थोडे से समय के लिये ही मिलता हैं । मन अनुकुलता ढुढँने के लिये भटकता रहता हैं,अमुक परििस्थति मेरे अनुकूल बन जाये ,अमुक व्यक्ति एसा बन जाये ,आपके अनुसार कोई बदल नही सकता और आप कुंठित होकर मानसिक तनाव में जीना शुरू कर देते हैं।इस प्रकार हमारा जीवन इस संसार के बवंडर में भर्मण करता रहता हैं और सदा अशांत बना रहता हैं।किन्तु हम अगर इस बवडंर से खिसककर , बीच में स्थापित प्रभु से जुड जायें ,उनकी छत्रछाया में विश्राम करने की ठान लें तो निश्चय ही हमें उनका सान्निध्य प्राप्त हो जायेगा और हमें शान्ति ,सु ख की प्राप्ति हो जायेगी ।साधना में, सत्संग में लग जाये फिर चाहे वो जिह्वा से राम नाम लेकर हो, कानो से कथा,लीला सुन कर हो,अच्छे लोगों का संग करने से हो।आप प्रभु की शरण हो जायें,तब संसार की हलचल कितनी प्रबल क्यों न हो हम उससे कभी विचलित नही हो सकते ,क्योंकि हमें प्रभु का सहारा मिल जाता हैं और जिसके पास सहारा हैं वो कैसे घबरा सकता हैं,और सहारा भी परमपिता का।

।।जय श्री राधे।।

सोमवार, 17 जुलाई 2017

भक्त और भगवान की लीला

                 
                                                       वामन भगवान के चरित्र में यह बात पता लगती हैं कि प्रभु ने कृपा करके  सर्वस्व ले लिया।बलि राजा को तो कुछ क्षण के लिए बंधन में बांधा गया पर प्रभु तो राजा बलि के बंधन से सर्वथा बंध गए , द्वार पर हाजिर रहते हैं। उस चरित्र में शिक्षा यही हैं कि बलि की तरह प्रभु में विश्वास करके उनके द्वारा दिए गए कष्टों में भी कृपा का अनुभव करे। हमारा तन मन सर्वस्व प्रभु ले ले , बंधन में डाले , मारे या रक्षा करे वे ही हमारी गति हैं। प्रभु प्रेमी को अपना जो पथ और दृढ़ विचार हैं उसका त्याग नहीं करना चाहिए।

द्रोपदी का चीर दुःशासन खींच रहा था उस समय द्रोपदी को पूर्ण विश्वास था कि सभा में बैठे हुए उसके अपने उसकी रक्षा जरूर करेंगे उसने पुकार पुकार कर सबसे सहायता मांगी , गुरु द्रोण आपका शिष्य अन्याय कर रहा हैं , पितामह भीष्म आपकी पुत्र बहु को भरी सभा में निवस्त्र किया जा रहा हैं मेरी रक्षा करो , पर किसी ने नहीं सुना यहाँ तक कि उसके पति पांचो पांडव भी नोचे आँखे करके बैठे रहे।

उधर द्वारका में प्रभु रुकमणीजी के साथ चौसर खेल रहे थे पर बीच बीच में व्याकुल होकर खड़े हो जाते , तो रुकमणीजी ने पूछा क्या बात हैं हारने का डर लग रहा हैं ? बोले नहीं , द्रोपदी पर संकट हैं दुष्ट लोग उसे निवस्त्र कर रहे  हैं। अरे ! तो तुम उसे बचाते क्यों नहीं ?  प्रभु बोले वो मुझे पुकार ही नहीं रही हैं। यह सुनकर श्री जी ने अपने हांथ का नील कमल फेंका , तब द्रोपदी को प्रेरणा हुई , श्रीजी की कृपा से श्री कृष्ण को पुकारने की सुधि आई। तब उन्होंने पुकारा हे नाथ द्वारका वासी ! सुनते ही श्री कृष्ण ने वस्त्रा अवतार लिया। श्री कृष्ण शरणम ममः 

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

कौन सर्वश्रेष्ठ है भक्ति या भगवान्

                                                                                                         (परमार्थ के पत्र पुष्प )

                                                                                                       भगवद्भक्ति

सच्चा स्मरण उसे कहते हैं कि जब अपने नेत्र , त्वचा , मन , बुद्धि आदि के विषय केवल अपने इष्ट देव  ही हो। नेत्र से यदि स्वान दिखाई  पड़ा तो हमने उसे नीच समझकर उसको मारा , तिरस्कृत  किया तो हमारा स्मरण खंडित हो गया। .प्रभु ही सब रूपो में हैं फिर चाहे वह स्थावर हो या जंगम। श्री प्रह्लाद जी स्मरण भक्ति के आचार्य हैं। महाभागवत प्रह्लाद के उपदेशो का सार यही हैं  कि जब से सुधि बुधि हो तभी से वैष्णव धर्म का आचरण करना। वृद्धावस्था में भजन करूँगा ऐसा नहीं सोचना। देह नाशवान हैं इससे अविनाशी प्रभु  प्रेम प्राप्त करना ही समझदारी हैं। उत्तम बारह गुणों से युक्त कोई ब्राह्मण  परन्तु उसमे भक्ति नहीं है  तो उससे वह चांडाल श्रेष्ठ हैं जिसने अपने मन , वाणी , कर्म ,लोक , परलोक प्राण आदि को भगवदर्पण कर दिया  हैं स्वंय अपने लाभ से पूर्ण आप आत्माराम हैं। इतने पर भी जो आपका पूजन , सम्मान करते हैं उसका लाभ उस पूजन करने वाले को अवश्य मिलता हैं। जैसे मुख   का श्रृंगार करने पर दर्पण के प्रतिबिम्ब का श्रृंगार अपने आप हो जाता हैं।

नित्य जहाँ भगवान् की कथा , सत्संग चर्चा आदि होती हैं   वहाँ  कलियुग का प्रभाव नहीं होता हैं। श्रद्धा पूर्वक भगवान् की पूजा करने वाले यहाँ भी भगवद्धाम में हैं और शरीर का त्यागकर अन्त में भी हरी धाम में वास करेंगे। जो काम , क्रोध , मोह आदि के वश में होकर मर्यादा का उल्लंघन करते हैं , दुसरो को पीड़ा पहुँचाते हैं , ऐसे विमुख लोग यहाँ नरक में हैं और मरने के बाद भी  वे लोग नरक में कष्ट भोगेंगे।
शास्त्रो में प्रभु भक्ति के भिन्न भिन्न उपाय बताये हैं उनमे से चार मुख्य हैं -कर्म, योग , ज्ञान , भक्ति। इस संबंध में बहुत ही विचार विमर्श करने के बाद गुरुजनो ने भागवत पुराण आदि के आधार पर यह निर्णय किया कि इनमे से भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ हैं। भक्ति ही श्री कृष्ण के नजदीक लाती  हैं , उनका दर्शन और अनुभव कराती हैं भक्ति के वश में श्री कृष्ण रहते हैं और भक्ति ही श्रेष्ठ हैं।
जय श्री राधे 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

विचारों को पवित्र कैसे बनाएं

                    विचारो को पवित्र बनाने के उपाय


बिना विचारे जो करे , सो पाछे पछिताय। 
काम बिगारै आपनो  , जग में होय हंसाय।।

                                 -गिरिधर कविराय 
किसी भी कार्य को करने से पहले उसके परिणाम को भलीभांति सोच ले।यह अच्छी तरह विचार कर ले  कि आपने जो उपाय सोचे हैं उसका परिणाम शुभ होगा कि  नहीं। बिना विचार किये ऐसा कोई कार्य न करे जिससे बाद में पछताना पड़े। 

विचारो को पवित्र बनाने के लिए सबसे पहले आपकी संगति शुद्ध होनी चाहिए , क्योंकि हमारी संगत या हमारा संग पवित्र व् सात्विक , धार्मिक विचारो वाला होगा तभी हमारा व्यवहार भी वैसा ही बन जायेगा और हमारे विचार भी पवित्र ही हो जायेंगे। 

हमारे विचार हमारे खान -पान पर भी निर्भर करते हैं ,संत हमेशा इसी बात पर जोर देते हैं कि आप जब भी भोजन करे , अपने प्रभु को अर्पित करके ही ग्रहण करे। जब आप प्रसादरूपी भोजन को ग्रहण करेंगे तो आप के विचार भी स्वयं पवित्र हो जायेंगे। 

हम जो भी सुने या श्रवण करे वो धार्मिक हो, religious हो ,या फिर ऐसी पुस्तक हो जो हमे शुद्ध मार्ग की और लेकर जाये न कि  हमारे विचारो को ,हमारे व्यवहार को कलुषित करदे। हम स्वयं हमारी नजरों में न गिर जाएँ। अतः हम जो भी सुने , पढे  वो भी सात्विक होना आवश्यक हैं। 
कहने का तात्पर्य यह हैं कि अपने विचारों को पवित्र बनाने के लिए बहुत जरुरी हैं की हम अपनी आँखों से अच्छा देखे अपने प्रभु को देखे , कान से जो भी सुने वो हमारे प्रभु की सुन्दर लीला या सुन्दर  विचारधारा को ही सुने.अपने मुख से जो भी बोले वो पवित्र, सूंदर , मीठा , निर्मल ही बोले। मन को अपने काबू में रखे। मन चंचल होता हैं उसे हर समय खींच  कर सात्विक विचारों की और लाना पड़ता हैं। धीरे -धीरे मन शुद्ध हो जायेगा और विचार भी शुद्ध व् पवित्र हो जायेगें। 
जय श्री राधे।।

aaj ka shubh vichar

                                                                                                 आज का शुभ विचार

                   व्यर्थ कर्म भारीपन व थकान लाते  हैं जबकि श्रेष्ठ कर्म हमे प्रसन्न व हल्का बनाकर ताजगी प्रदान करते हैं। 
इसलिए हमेशा श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए ताकि हम प्रसन्न रहें।            

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