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सोमवार, 17 जुलाई 2017

भक्त और भगवान की लीला

                 
                                                       वामन भगवान के चरित्र में यह बात पता लगती हैं कि प्रभु ने कृपा करके  सर्वस्व ले लिया।बलि राजा को तो कुछ क्षण के लिए बंधन में बांधा गया पर प्रभु तो राजा बलि के बंधन से सर्वथा बंध गए , द्वार पर हाजिर रहते हैं। उस चरित्र में शिक्षा यही हैं कि बलि की तरह प्रभु में विश्वास करके उनके द्वारा दिए गए कष्टों में भी कृपा का अनुभव करे। हमारा तन मन सर्वस्व प्रभु ले ले , बंधन में डाले , मारे या रक्षा करे वे ही हमारी गति हैं। प्रभु प्रेमी को अपना जो पथ और दृढ़ विचार हैं उसका त्याग नहीं करना चाहिए।

द्रोपदी का चीर दुःशासन खींच रहा था उस समय द्रोपदी को पूर्ण विश्वास था कि सभा में बैठे हुए उसके अपने उसकी रक्षा जरूर करेंगे उसने पुकार पुकार कर सबसे सहायता मांगी , गुरु द्रोण आपका शिष्य अन्याय कर रहा हैं , पितामह भीष्म आपकी पुत्र बहु को भरी सभा में निवस्त्र किया जा रहा हैं मेरी रक्षा करो , पर किसी ने नहीं सुना यहाँ तक कि उसके पति पांचो पांडव भी नोचे आँखे करके बैठे रहे।

उधर द्वारका में प्रभु रुकमणीजी के साथ चौसर खेल रहे थे पर बीच बीच में व्याकुल होकर खड़े हो जाते , तो रुकमणीजी ने पूछा क्या बात हैं हारने का डर लग रहा हैं ? बोले नहीं , द्रोपदी पर संकट हैं दुष्ट लोग उसे निवस्त्र कर रहे  हैं। अरे ! तो तुम उसे बचाते क्यों नहीं ?  प्रभु बोले वो मुझे पुकार ही नहीं रही हैं। यह सुनकर श्री जी ने अपने हांथ का नील कमल फेंका , तब द्रोपदी को प्रेरणा हुई , श्रीजी की कृपा से श्री कृष्ण को पुकारने की सुधि आई। तब उन्होंने पुकारा हे नाथ द्वारका वासी ! सुनते ही श्री कृष्ण ने वस्त्रा अवतार लिया। श्री कृष्ण शरणम ममः 

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जय श्री राधे

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