जीवन में परम कल्याण कैसे हो ?
एक बार श्री कबीरजी रोने लगे और उनके पुत्र श्री कमालजी हंसने लग गए ।कबीर जी ने पूछा -बेटा तू हँस क्यों रहा हैं ? कमालजी बोले -पिताजी ! पहले आप बताइए कि आप रो क्यों रहे हैं ? कबीर जी बोले -
चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय ।
दो पाटन के बीच में ,साबुत बचा न कोय।।
एक चक्की चल रही हैं ,और इसमें जो भी पड़ा वो पिस गया ,यही देख कर रोना आया ।कमाल बोलें -
(वही)
चलती चक्की देख कर हँसा कमाल ठठाय ।
कील सहारे जो रहे ,सो कैसे पिस जाए ।।
चक्की के दो पाट होते हैं और ऊपर वाला पाट उठाकर देखे तो बीच वाली मोटी
कील के चार- छः अंगुल इर्द -गिर्द वाला अनाज सुरक्षित रहता हैं ।इन दोनों का भाव गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने एक दोहे में बताया -
माया चक्की कीलहरि,जीव चराचर नाज। तुलसी जो उबरो चहे ,कील शरण को भाज ।।
माया की चक्की हैं ।माया की चक्की रूपी दो पाट हैं ,एक विद्या और एक अविद्या ।बीच में जो कील हैं ,जिसके सहारे चक्की घूमती हैं वे भगवान हैं ।जीव अनाज हैं।जो जीव माया रूपी चक्की में पड़ गया ,वह पीस डाला गया।लेकिन माया रूपी चक्की में पड़ने के बाद भी जो जीव भगवान रूपी कील से चिपके रह गए ,उनको माया रूपी चक्की नहीं पीस सकती।उदहारण के लिए -रावण के एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे ,ये भगवान से विमुख हो गए और इनको चक्की ने पीस दिया।
तो रावण घर दिया न बाती और विभीषण जी भगवान रूपी कील से चिपके रह गए शरणागत हो करके ,तो श्री विभीषणजी को माया रूपी कील नहीं पीस सकी ।
द्वापर के अंतिम चरण में दुर्योधन को गुमान था ,हम सौ भाई हैं।सौ को पीस डाला माया ने,क्योंकि वो भगवान से विमुख हो गए थे और पांच पांडव भगवान श्री कृष्ण रूपी कील से चिपके रह गए ,इसलिए सुरक्षित रहे ।
इस प्रकार से जो भगवान से सलंग्न रहेंगे, चिपके रहेंगे ,उसी का नाम हैं उपासना ।"उप" समीप के अर्थ में और "आसना "स्थिति के अर्थ में।जो भगवान के समीप स्थित रहेगा उसका माया कुछ नहीं बिगाड़ सकती।ये परम कल्याण का स्वरूप बताया भागवत धर्म में ।(संत मामाजी महाराज के द्वारा श्री मद भागवत का सरस विवेचन के एकादश अध्याय में से लिया गया कुछ अंश )
जय श्री राधे !
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जय श्री राधे