प्रभु हमारी हर संकट से रक्षा करें
एक मात्र केवल और केवल उन्ही का सहारा हैं
राम रक्षा स्तोत्र हिदी में
आज मैं आप सबके सामने एक ऐसे स्तोत्र के रखना चाहती हूँ, जिसके महत्व की जानकारी मेने जाने कितनी बार विभिन्न पत्रिकाओ में एवं ,गुरु जी के .श्री मुख से सुनी हैं। बहुत से लोगो ने अपने साथ होने वाले आश्चर्यजनक अनुभव के बारे में भी बताया हैं जो कि बिलकुल सत्य थी। बल्कि मैंने स्वंय महसूस किया कि अगर इस पाठ को पूरी निष्ठा के साथ किया जाए तो यह चमत्कार दिखलाता हैं। किसी को भी जब कोई समस्या का समाधान न मिल रहा हो तो एक बार जरूर विश्वास के साथ इस पाठ को करें, अवश्य ही लाभ होगा। यह मैं हिंदी में ही करने की सलाह दूँगी , ताकि कोई गलती न हो। पाठ इस प्रकार हैं -
. राम रक्षा स्तोत्र
विनियोगः
इस रामरक्षा स्तोत्र -मंत्र के बुध कौशिक ऋषि हैं , सीता और रामचन्द्र देवता हैं , अनुष्टप् छन्द हैं , सीता शक्ति हैं , श्रीमान हनुमानजी कीलक हैं तथा श्री रामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिए रामरक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं।
ध्यानम् :-
जो धनुष -बाण धारण किए हुए हैं , बद्ध पद्मासन से विराजमान हैं , पीतांबर पहने हुए हैं , जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमल दल से स्पर्धा करते तथा वामभाग में विराजमान श्री सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं , उन आजानुबाहु , मेघश्याम , नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्री रामचन्द्र जी का ध्यान करे।
स्तोत्रम :-
श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला हैं और उसका एक -एक अक्षर भी महान पापो को नष्ट करने वाला हैं।।१।।
जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण , कमलनयन , जटाओं के मुकुट से सुशोभित , हाथों में खड्ग , तूणीर , धनुष और बाण धारण करने वाले , राक्षसों के संहारकरी तथा संसार की रक्षा के लिए अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं , उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान रामजी , जानकीजी और लक्ष्मणजी के सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षा का पाठ करे। मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज रक्षा करे।।२-४ ।।
कौसल्यानन्दन नेत्रों की रक्षा करें , विश्वामित्र प्रिय कानों को सुरक्षित रखे तथा यज्ञ रक्षक घ्राण की और सौ मित्रिवत्सल मुख की रक्षा करें।।५।।
मेरी जिव्हा की विद्यानिधि , कंठ की भरतवन्दित , कंधो की दिव्यायुध और भुजाओं की भग्नेशकार्मुक (महादेव जी का धनुष तोड़ने वाले )रक्षा करें।।६।।
हाथों की सीतापति , हृदय की जामदग्न्यजित (परशुरामजी को जीतने वालें ), मध्यभाग की खरध्वंसी (खर नाम के राक्षस का नाश करने वाले )और नाभि की जाम्ब्वदाश्रय रक्षा करें।।७।।
कमर की सुग्रीवेश , सक्थियों की हनुमत्प्रभुः और उरुओं की राक्षसकुल विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें।।८।।
जानुओं की सेतुकृत् , जंघाओं की दशमुखान्तक (रावण को मारने वाले ), चरणों की विभीषण श्रीद (विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले )और सम्पूर्ण शरीर की श्री राम रक्षा करें।।९।।
जो पुण्यवान् पुरुष रामबल से सम्पन्न इस रक्षा का पाठ करता हैं , वह दीर्घायु , सुखी , पुत्रवान , विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता हैं।।१०।।
जो जीव पताल , पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और छद्मवेश से घूमते रहते हैं , वे राम नाम से सुरक्षित पुरुष को देख भी नहीं सकते।।११।।
'राम','रामभद्र ','रामचन्द्र 'इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य पापों में लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं।।१२।।
जो पुरुष जगत को विजय करने वाले एकमात्र मन्त्र राम नाम से सुरक्षित इस स्त्रोत को कंठ में धारण कर लेता हैं , सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं।।१३।।
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं , उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगल की प्राप्ति होती हैं।।१४।।
श्री शंकरजी ने रात्रि के समय स्वप्न में इस राम रक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था , उसी प्रकार प्रातः काल जागने पर बुध कौशिक जी ने इसे लिख दिया।।१५।।
जो मानो कल्पवृक्ष के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अंत करने वाले हैं , जो तीनो लोक में परम सुंदर हैं , वे श्री राम हमारे प्रभु हैं।।१६।।
जो तरुण अवस्था वाले , रूपवान , सुकुमार , महाबली , कमल के सामान विशाल नेत्रों वाले , चीर वस्त्र और कृष्ण मृगचर्म धारी ,फल -मूल आहार वाले , संयमी , तपस्वी , ब्रह्मचारी , सम्पूर्ण जीवो को शरण देने वाले , समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करने वाले हैं , वे रघुश्रेष्ठ दसरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करे।।१७ -१९।
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा हैं , जो बाण का स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिए हुए हैं , वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मार्ग में सदा ही मेरे आगे चले।।२०।।
सर्वदा उद्यत , कवचधारी , हाथ में खड्ग लिए , धनुष बाण धारण किये तथा युवा अवस्था वाले भगवान राम लक्ष्मण जी सहित आगे -आगे चलकर हमारे मनोरथों की रक्षा करें।।२१।।
(भगवान का कथन हैं कि )राम , दशरथि ,शूर , लक्ष्मणानुचर , बलि , काकुत्स्थ , पुरुष , पूर्ण , कौसल्येय , रघुत्तम , वेदान्तवेद्य ,यज्ञेश ,पुराण पुरुषोत्तम , जानकी वल्ल्भ , श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम - इन नाम का नित्य प्रति श्रद्धा पूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता हैं -इसमें कोई संदेह नहीं हैं।।२२ -२४।
जो लोग दूर्वादल के समान श्याम वर्ण , कमल नयन , पीताम्बरधारी भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं , वे संसार चक्र में नहीं पड़ते।।२५।।
लक्ष्मणजी के पूर्वज , रघुकुल में श्रेष्ठ , सीताजी के स्वामी , अतिसुन्दर , ककुत्स्थ कुलनन्दन , करुणा सागर , गुणनिधान , ब्राह्मणभक्त , परमधार्मिक , राजराजेश्वर , सत्यनिष्ठ , दशरथ पुत्र , श्याम और शांतिमूर्ति , सम्पूर्ण लोको में सुंदर , रघुकुल तिलक , राघव और रावणारी भगवा न राम की मैं वंदना करता /करती हूँ।।२६।।
राम , रामभद्र , रामचन्द्र , विधार्त स्वरूप , रघुनाथ , प्रभु सीतापति को नमस्कार हैं।।२७।।
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान राम ! हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइये।।२८।।
मैं श्री राम चन्द्र के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ , श्री रामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ , श्री रामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्री रामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ।।२९।।
राम मेरी माता हैं , राम मेरे पिता हैं , राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं , दयामय राम ही मेरे सर्वस्व हैं , उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानती।।३०।।
जिनकी दायीं और लक्ष्मणजी , बाएँ और जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं , उन रघुनाथजी की मैं वंदना करता हूँ।।३१।।
जो सम्पूर्ण लोकों में सुंदर , रणक्रीडा में धीर , कमलनयन , रघुवंश नायक , करुणामूर्ति और करुणा के भंडार हैं, उन श्री रामचन्द्र जी की मैं शरण लेता हूँ।।३२।।
जिनकी मन के सामान गति और वायु के सामान वेग हैं , जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानो में श्रेष्ठ हैं। उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्री रामदूत मैं शरण लेता हूँ।।३३।।
कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरो वाले राम -राम इस मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिल की मैं वंदना करता हूँ।।३४।।
आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की सम्पति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवान राम को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ।।३५।।
'राम -राम 'ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालनेवाला , समस्त सुख -सम्पति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करनेवाला हैं।।३६।।
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजय को प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान राम का भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजी ने सम्पूर्ण राक्षस सेना का ध्वंस कर दिया था , मैं उनको प्रणाम करता हूँ। राम से बड़ा और कोई आश्रय नहीं हैं। मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा चित्त सदा राम में ही लीन रहें ;हे राम !आप मेरा उद्धार कीजिये।।३७।।
(श्री महादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं -)हे सुमुखि !रामनाम विष्णु सहस्त्रनाम के तुल्य हैं। मैं सर्वदा 'राम-राम , राम 'इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ।।३८।।
इति श्री बुधकौशिकमुनिविरचितं श्री राम रक्षास्तोत्रं सम्पुर्णम्।
( यह पाठ करते समय ध्यान रखे की शुद्ध स्थान और शुद्ध आसन होना चाहिए। मन में पूर्ण विश्वास , श्रद्धा होनी चाहिए। )
एक मात्र केवल और केवल उन्ही का सहारा हैं
राम रक्षा स्तोत्र हिदी में
आज मैं आप सबके सामने एक ऐसे स्तोत्र के रखना चाहती हूँ, जिसके महत्व की जानकारी मेने जाने कितनी बार विभिन्न पत्रिकाओ में एवं ,गुरु जी के .श्री मुख से सुनी हैं। बहुत से लोगो ने अपने साथ होने वाले आश्चर्यजनक अनुभव के बारे में भी बताया हैं जो कि बिलकुल सत्य थी। बल्कि मैंने स्वंय महसूस किया कि अगर इस पाठ को पूरी निष्ठा के साथ किया जाए तो यह चमत्कार दिखलाता हैं। किसी को भी जब कोई समस्या का समाधान न मिल रहा हो तो एक बार जरूर विश्वास के साथ इस पाठ को करें, अवश्य ही लाभ होगा। यह मैं हिंदी में ही करने की सलाह दूँगी , ताकि कोई गलती न हो। पाठ इस प्रकार हैं -
. राम रक्षा स्तोत्र
विनियोगः
इस रामरक्षा स्तोत्र -मंत्र के बुध कौशिक ऋषि हैं , सीता और रामचन्द्र देवता हैं , अनुष्टप् छन्द हैं , सीता शक्ति हैं , श्रीमान हनुमानजी कीलक हैं तथा श्री रामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिए रामरक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं।
ध्यानम् :-
जो धनुष -बाण धारण किए हुए हैं , बद्ध पद्मासन से विराजमान हैं , पीतांबर पहने हुए हैं , जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमल दल से स्पर्धा करते तथा वामभाग में विराजमान श्री सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं , उन आजानुबाहु , मेघश्याम , नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्री रामचन्द्र जी का ध्यान करे।
स्तोत्रम :-
श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला हैं और उसका एक -एक अक्षर भी महान पापो को नष्ट करने वाला हैं।।१।।
जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण , कमलनयन , जटाओं के मुकुट से सुशोभित , हाथों में खड्ग , तूणीर , धनुष और बाण धारण करने वाले , राक्षसों के संहारकरी तथा संसार की रक्षा के लिए अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं , उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान रामजी , जानकीजी और लक्ष्मणजी के सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षा का पाठ करे। मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज रक्षा करे।।२-४ ।।
कौसल्यानन्दन नेत्रों की रक्षा करें , विश्वामित्र प्रिय कानों को सुरक्षित रखे तथा यज्ञ रक्षक घ्राण की और सौ मित्रिवत्सल मुख की रक्षा करें।।५।।
मेरी जिव्हा की विद्यानिधि , कंठ की भरतवन्दित , कंधो की दिव्यायुध और भुजाओं की भग्नेशकार्मुक (महादेव जी का धनुष तोड़ने वाले )रक्षा करें।।६।।
हाथों की सीतापति , हृदय की जामदग्न्यजित (परशुरामजी को जीतने वालें ), मध्यभाग की खरध्वंसी (खर नाम के राक्षस का नाश करने वाले )और नाभि की जाम्ब्वदाश्रय रक्षा करें।।७।।
कमर की सुग्रीवेश , सक्थियों की हनुमत्प्रभुः और उरुओं की राक्षसकुल विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें।।८।।
जानुओं की सेतुकृत् , जंघाओं की दशमुखान्तक (रावण को मारने वाले ), चरणों की विभीषण श्रीद (विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले )और सम्पूर्ण शरीर की श्री राम रक्षा करें।।९।।
जो पुण्यवान् पुरुष रामबल से सम्पन्न इस रक्षा का पाठ करता हैं , वह दीर्घायु , सुखी , पुत्रवान , विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता हैं।।१०।।
जो जीव पताल , पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और छद्मवेश से घूमते रहते हैं , वे राम नाम से सुरक्षित पुरुष को देख भी नहीं सकते।।११।।
'राम','रामभद्र ','रामचन्द्र 'इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य पापों में लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं।।१२।।
जो पुरुष जगत को विजय करने वाले एकमात्र मन्त्र राम नाम से सुरक्षित इस स्त्रोत को कंठ में धारण कर लेता हैं , सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं।।१३।।
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं , उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगल की प्राप्ति होती हैं।।१४।।
श्री शंकरजी ने रात्रि के समय स्वप्न में इस राम रक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था , उसी प्रकार प्रातः काल जागने पर बुध कौशिक जी ने इसे लिख दिया।।१५।।
जो मानो कल्पवृक्ष के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अंत करने वाले हैं , जो तीनो लोक में परम सुंदर हैं , वे श्री राम हमारे प्रभु हैं।।१६।।
जो तरुण अवस्था वाले , रूपवान , सुकुमार , महाबली , कमल के सामान विशाल नेत्रों वाले , चीर वस्त्र और कृष्ण मृगचर्म धारी ,फल -मूल आहार वाले , संयमी , तपस्वी , ब्रह्मचारी , सम्पूर्ण जीवो को शरण देने वाले , समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करने वाले हैं , वे रघुश्रेष्ठ दसरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करे।।१७ -१९।
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा हैं , जो बाण का स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिए हुए हैं , वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मार्ग में सदा ही मेरे आगे चले।।२०।।
सर्वदा उद्यत , कवचधारी , हाथ में खड्ग लिए , धनुष बाण धारण किये तथा युवा अवस्था वाले भगवान राम लक्ष्मण जी सहित आगे -आगे चलकर हमारे मनोरथों की रक्षा करें।।२१।।
(भगवान का कथन हैं कि )राम , दशरथि ,शूर , लक्ष्मणानुचर , बलि , काकुत्स्थ , पुरुष , पूर्ण , कौसल्येय , रघुत्तम , वेदान्तवेद्य ,यज्ञेश ,पुराण पुरुषोत्तम , जानकी वल्ल्भ , श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम - इन नाम का नित्य प्रति श्रद्धा पूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता हैं -इसमें कोई संदेह नहीं हैं।।२२ -२४।
जो लोग दूर्वादल के समान श्याम वर्ण , कमल नयन , पीताम्बरधारी भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं , वे संसार चक्र में नहीं पड़ते।।२५।।
लक्ष्मणजी के पूर्वज , रघुकुल में श्रेष्ठ , सीताजी के स्वामी , अतिसुन्दर , ककुत्स्थ कुलनन्दन , करुणा सागर , गुणनिधान , ब्राह्मणभक्त , परमधार्मिक , राजराजेश्वर , सत्यनिष्ठ , दशरथ पुत्र , श्याम और शांतिमूर्ति , सम्पूर्ण लोको में सुंदर , रघुकुल तिलक , राघव और रावणारी भगवा न राम की मैं वंदना करता /करती हूँ।।२६।।
राम , रामभद्र , रामचन्द्र , विधार्त स्वरूप , रघुनाथ , प्रभु सीतापति को नमस्कार हैं।।२७।।
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान राम ! हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइये।।२८।।
मैं श्री राम चन्द्र के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ , श्री रामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ , श्री रामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्री रामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ।।२९।।
राम मेरी माता हैं , राम मेरे पिता हैं , राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं , दयामय राम ही मेरे सर्वस्व हैं , उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानती।।३०।।
जिनकी दायीं और लक्ष्मणजी , बाएँ और जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं , उन रघुनाथजी की मैं वंदना करता हूँ।।३१।।
जो सम्पूर्ण लोकों में सुंदर , रणक्रीडा में धीर , कमलनयन , रघुवंश नायक , करुणामूर्ति और करुणा के भंडार हैं, उन श्री रामचन्द्र जी की मैं शरण लेता हूँ।।३२।।
जिनकी मन के सामान गति और वायु के सामान वेग हैं , जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानो में श्रेष्ठ हैं। उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्री रामदूत मैं शरण लेता हूँ।।३३।।
कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरो वाले राम -राम इस मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिल की मैं वंदना करता हूँ।।३४।।
आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की सम्पति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवान राम को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ।।३५।।
'राम -राम 'ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालनेवाला , समस्त सुख -सम्पति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करनेवाला हैं।।३६।।
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजय को प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान राम का भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजी ने सम्पूर्ण राक्षस सेना का ध्वंस कर दिया था , मैं उनको प्रणाम करता हूँ। राम से बड़ा और कोई आश्रय नहीं हैं। मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा चित्त सदा राम में ही लीन रहें ;हे राम !आप मेरा उद्धार कीजिये।।३७।।
(श्री महादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं -)हे सुमुखि !रामनाम विष्णु सहस्त्रनाम के तुल्य हैं। मैं सर्वदा 'राम-राम , राम 'इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ।।३८।।
इति श्री बुधकौशिकमुनिविरचितं श्री राम रक्षास्तोत्रं सम्पुर्णम्।
( यह पाठ करते समय ध्यान रखे की शुद्ध स्थान और शुद्ध आसन होना चाहिए। मन में पूर्ण विश्वास , श्रद्धा होनी चाहिए। )
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जय श्री राधे