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रविवार, 19 जुलाई 2020

भगवान की भक्ति में खो जाने से लाभ

            भगवान की भक्ति में खो जाने से लाभ


भगवान में लीन हो जाने की प्रक्रिया । नानक लीन भयो  गोविंद संग ,ज्यों पानी संग पानी। तो मोक्ष पांच प्रकार के बताए गए हैं। तो इसमें जो एक मोक्ष है "एक्त"- तो इसमें मुक्ति है। भगवान में विलीन हो जाना अथवा एक निर्वाण  केवल्य पद कहलाता है। यह ज्ञान पद के सिद्धों को , साधकों को प्राप्त होता है ।वहां पहुंचने के बाद संसारी दुख और संसारी सुख दोनों से आप  किनारे होना जाएंगे। यह ज्ञान पथ के पथिको का गंतव्य और चरम उपलब्धि है और भक्ति पथ के पथिको को स्वर्ग से ऊपर -तो ज्ञान है, मोक्ष है और मोक्ष से ऊपर भी भगवान का धाम बताया गया है। जहां प्रभु अपने मित्र सिद्ध साधकों, सिद्ध परिकरों के सहित निवास करते हैं और विभिन्न प्रकार के आमोद-प्रमोद अपनी लीलाओं के द्वारा भक्तों को सुख प्रदान करते रहते हैं। भक्त अपनी सेवाओं के द्वारा भगवान को सुख प्रदान करते हैं और भगवान अपनी लीलाओं के द्वारा, अपनी कृपा दृष्टि के पोषण द्वारा उनको आनंद प्रदान करते रहते हैं। तो यह जो भगवत धाम है  उसको वैदिक भाषा मे त्रिपाक  विभूति कहां गया है। पौराणिक भाषा में भक्तों की भावना और उपासना के अनुसार साकेत, गोलाेक और वैकुंठ इत्यादि कहा जाता है। वह एक ऐसा स्थान है, जहां पहुंचना सबके बस की बात नहीं है और जहां भगवान के भक्ति मार्ग के जो पथिक हैं, भक्ति पथ के जो पथिक हैं, वह भगवान की कृपा द्वारा ही वहां पहुंच पाते हैं और वहां पहुंचने के बाद, ब्रह्मा जी उनके भाग्य में यह जबरदस्ती नहीं लिखेंगे , कि तुमने पिछले जन्म में ऐसा कर्म किया था, तो तुमको बैल बनना पड़ेगा, गधा बनना पड़ेगा, मनुष्य बनना पड़ेगा, बीमार पड़ोगे और कोड़ फूटेगा यह सब भगवान के धाम में जो पहुंच गए अब उनके लिए ब्रह्माजी शासन नहीं कर सकते और ब्रह्मा जी के, देवराज इंद्र जी के, यमराज जी के विभाग से बहुत ऊपर पहुंच गए हो। इसके लिए भगवान श्यामसुंदर गीता जी में कहते हैं कि जहां भक्ति मार्ग पर चलकर के  पहुंचा जा सकता है और जहां पहुंचने के बाद, जहां भगवान की कृपा के बाद, ही वहां पहुंचा जा सकता है। वहां पहुंचने के बाद फिर संसार में पुनरावर्तन नहीं होता है। वह है मेरा धाम। वहां मैं ही अपने मित्र सिद्ध-प्रसाधन  सिद्ध परिकरो के साथ निवास करता हूं। लक्ष्मी जी रहती हैं, भूदेवी रहती हैं और लीलादेवी निवास करती हैं और भगवान के सेवक,जय-विजय, नंद-सुनंद. विश्वतसैन इत्यादि पार्षद। अथवा जिन भक्तों ने भगवान की भक्ति की उनको भी, जटायु जी ने भगवान की भक्ति की और इनको अपना सा स्वरूप प्रदान करके, चतुर्भुज प्रभु ने अपने धाम में भेजा। गजराज ने  प्रभु की स्मरण भक्ति की और उनकी स्तुति की, उनकी प्रार्थना की, भगवान ने प्रसन्न होकर उनको  अपना चतुर्भुज रूप प्रदान करके, विमान पर बिठा करके और उनको सीधा धाम में पहुंचाया। वह भगवान का धाम, भक्ति पथ के पथिको को मिला करता है।

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जय श्री राधे

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