/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: परमार्थ के पत्र पुष्प भाग 2

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बुधवार, 15 जुलाई 2020

परमार्थ के पत्र पुष्प भाग 2

( दादा गुरु श्री गणेश दास भक्तमाली जी महाराज के श्री मुख से कुछ प्रवचन हमारे जीवन का उद्धार करने के लिए)



सत्संग करते रहोगे,सत्संग में आते-जाते रहोगे, सत्संग करते-करते सब कुछ का ज्ञान हो जाएगा। सत्संग से जुड़े रहो।सत्संग से जुड़े रहोगे तो  आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए? इस बात का ज्ञान आपको हो जाएगा। आपके कर्तव्य का ज्ञान, आपका क्या कर्तव्य है?आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। सत्संग में आते-आते तरह-तरह की कथाएं आपको सुनने को मिलेंगीं। उससे आपको सब कुछ ज्ञान हो जाएगा। हम भगवान के शरण में हैं। अहंकार का त्याग होना जरूरी है।अहंकार का त्याग, जिसमें मैं राजा हूं,मैं धनी -मानी हूं,मैं बलवान हूं ,मैं रूपवान हूं। इस तरह से जाति में, उत्तम जाति में हूं। यह सब अहंकार छोड़ने के लिए होते हैं।एक अहंकार रहना चाहिए केवल, कि मैं भगवान का दास हूं। यह अहंकार नहीं छोड़ा जाएगा। वैष्णव के लक्षण, वैष्णव या भक्तों के लक्षण सभी रामायण, गीता, श्रीमद् भागवत सभी में बड़े-बड़े, लंबे चौड़े वाक्य में कहे गए हैं। मुख्य चार लक्षण श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि प्राणियों पर दया करनी चाहिए ।दया में सब धर्म आ जाते हैं। जिसके हृदय में दया होगी ,वह किसी की चोरी नहीं करेगा क्योंकि चोरी करेगा,तो उसे उसे लगेगा कि किसी को कष्ट होगा।किसी को कष्ट ना देना ,यह भक्तों का लक्षण है। सब के ऊपर दया करना प्राणी मात्र के ऊपर दया करना, व्यवहार करना है।जगत में सब प्रकार का व्यवहार करना है, लेना है, देना है। लेकिन उसमें दया रहनी चाहिए। दया होगी तो हम दूसरों को ठगेंगे नहीं। उचित व्यवहार करेंगे। धोखा नहीं देंगे क्योंकि धोखा देने से उसके मन में कष्ट हो जाएगा, इस प्रकार दया पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यह वैष्णव का मुख्य लक्षण है। चलते फिरते पैर के नीचे जीव मर जाते हैं, या अनजानें में हो जाता है। तो सायः काल को या प्रातः काल को भगवान के आगे नमस्कार करने से, कीर्तन करने से ,वह अपराध दूर हो जाता है। जानबूझकर के हत्या नहीं करनी चाहिए और अनजाने में जो हो जाती है तो भगवान का नाम लेने से, प्रणाम करने से वह अपराध  दूर हो जाता है।जीवों के प्रति दया का भाव बना रहना चाहिए। भगवान के नाम में रुचि रखना,चलते-फिरते उठते बैठते जिस भी नाम में आपको रुचि है, उसका जाप करते रहना चाहिए। गीता का कहना है कि भगवान ने अर्जुन को कहा तुम युद्ध भी करो और मेरा स्मरण भी करो। तो अर्जुन ने कहाँ कि दोनों काम तो नहीं हो सकते हैं, युद्ध भी करूँ और स्मरण भी करूँ। दोनों काम अगर नहीं हो सकते तो कृष्ण नहीं कहते। तो जो कृष्ण ने अर्जुन को कहा वह सिर्फ अर्जुन को ही नहीं कहा, हम सब को भी कहा है कि संसार में रहकर जाप भी करों। यह संसार भी एक प्रकार का युद्ध है संसार का व्यापार ,व्यवहार जो है। यह एक युद्ध ही है। इसको करते-करते भी भगवान का नाम जपते रहना चाहिए। नाम के वियोग होने पर दुख होना, यह भक्तों का दूसरा लक्षण है ।भगवान का ज्यादा से ज्यादा नाम लेते रहे। मनसे, वाणी से स्वयं भी लेना चाहिए और दूसरा कोई सामने पड़ जाए तो भक्ति का दान करना चाहिए, भक्ति का दान क्या है? सामने कोई आपके आ गया- श्री कृष्ण का नाम लिया, जय श्री कृष्ण, जय श्री सीताराम,जय श्री राधे, तो आपने एक नाम का दान कर दिया।नाम का दान किया तो, तो आपको कोई दुख दरिद्रता नहीं आएगी।

1 टिप्पणी:

  1. aadarniy Renu Didi saptrem dandwat pranam muze aapka parmatma aur jivan yah blog bahoot hi achha gyanvardhak laga hai. muze iska part 1bhi padhna hai. kya yah muze watsapp par milega agar ho sake to mera mob. no. 9822867386 hai isspar bhejiye. iss anokhe kary ke liye aapko dher sari shunh kamnaye jay jay shri radhe

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जय श्री राधे

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