/ google.com, pub-1197897201210220, DIRECT, f08c47fec0942fa0 "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप

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शनिवार, 25 अप्रैल 2020

ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप

                   (  ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप, संभल ना कहीं तुम्हारे जीवन में रात ना हो जाए?


एक दंपत्ति दिवाली की खरीदारी करने की हड़बड़ी में थे। पति ने पत्नी से जल्दी करने को कहा और कमरे में बाहर निकल गया, तभी बाहर लॉन में बैठी 'मां' पर उसकी नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए पति वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला 'शालू! तुमने मां से पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए? शालिनी बोली, नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा, दो वक्त की रोटी और 2 जोड़ी कपड़े। इसमें पूछने वाली क्या बात है?
 वह बोला 'यह बात नहीं है शालू... मां पहली बार दिवाली पर हमारे घर रुकी हुई है, वरना तो हर बार गांव में ही रहती हैं, तो औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती ।
' अरे, इतना ही मां पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यों नहीं पूछ लेते',झल्लाकर चीखी थी शालू, और कंधे पर हैंड बैग लटकाकर हुए तेजी से बाहर निकल आई।
 सूरज मां के पास जाकर बोला,' मां हम लोग दिवाली की खरीदारी करने के लिए बाजार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो बताइए। माँ बीच में ही बोल पड़ी,' मुझे कुछ नहीं चाहिए ।बेटा- सोच लो कुछ चाहिए, तो बता दीजिए।
 सूरज के बहुत जोर देने पर मां बोली, ठीक है तुम रुको, मैं लिख कर देती हूं ।तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ। कहकर सूरज की मां अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्टसूरज को थमा दी। सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, 'देखा मां को भी कुछ चाहिए था ,पर बोल नहीं रही थी। मेरी जिद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक जिंदा रहता है रोटी और कपड़े के अलावा भी उसे बहुत कुछ चाहिए होता है।
 अच्छा बाबा ठीक है, पहले मैं अपनी जरूरत का सामान लूंगी, बाद में आप अपनी मां की लिस्ट देखते रहना। पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली,' अब मैं बहुत थक गई हूं ,मैं कार में एसी चालू करके बैठी हूं। आप मांजी का समान देख लो। अरे चलते हैं ,अच्छा देखता हूं माँ ने इस दिवाली पर क्या मंगवाया है , कहकर मां की लिखी पर्ची जेब से निकालता है ,पता नहीं क्या-क्या मंगाया होगा। जरूर अपने गांव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगवाए होंगे। 'और बनो श्रवण कुमार,'के गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी, यह क्या सूरज की आंखों में आंसू और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते से काँप रहे थे ,पूरा शरीर कांप रहा था।
शालिनी बहुत घबरा गई,' क्या हुआ, ऐसा क्या मांग लिया है तुम्हारी मां ने?' कहकर हाथ से पर्ची झपट ली, हैरान थी शालिनी, की इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे। पर्ची में लिखा था... बेटा सूरज! मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम जिद कर रहे हो तो तुम्हारी शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ पल ले आना। ढलती हुई शाम हूं मैं, मुझे गहराते अंधेरे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है ,हर पल पर अपनी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर... जानती हूँ कि टाला नहीं जा सकता ,पूर्ण सत्य है, पर अकेलेपन में बहुत घबराहट होती है। सूरज! तो जब तक तुम्हारे घर पर हूं, कुछ पल बैठकर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही, मेरे बुढ़ापे का अकेलापन बांट लिया करो। बिन दीप जलाए ही रोशन हो जाएगी मेरे जीवन की सांझ। कितने साल हो गए हैं बेटा, तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हाथी तेरे सर को सहलाऊँ। एक बार फिर से इतराए हुए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पाकर।और  मुस्कुराए और फिर मैं मौत के गले मुस्कुराती हुई लगूँ। क्या पता अगली दिवाली तक रहूं या ना रहूं। पर्ची की आखिरी लाइन पढ़ते-पढ़ते शालीनी फफक कर रो पड़ी।
 ऐसी होती है माँ। हम लोग अपने घर के विशाल हृदय वाले लोग, जिनको हम बूढ़े और बुुद्या श्रेणी में रखते हैं, वे हमारी जीवन के कल्पतरु हैं। उनको यथोचित सम्मान आदर और देखभाल करें। यकीन मानिए हमारे भी बूढ़े होने के दिन नजदीक ही हैं। उनकी तैयारियां आज से ही कर ले। इसमें कोई शक नहीं है ,हमारे अच्छे बुरे कर्म देर सवेरे हमारे पास ही लौट कर आते हैं।
जय श्री राधे।।

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जय श्री राधे

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