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सोमवार, 5 दिसंबर 2022

पैर और चरण में अंतर

                   पैर और चरण में अंतर :-

रावण भगवान का शिव का बहुत बड़ा भक्त था,

हम तो यदि भगवान शिव के ऊपर एक लोटा दूध भी चढाते है,तो वो भी पानी मिला होता है।

रावण ने तो १० शीश चढा दिए,हम तो ठीक-ठीक प्रकार वेद का पाठ भी नहीं कर सकते,एक वेद को पढ़ने के लिए १२ वर्ष लगते है,यदि उम्र भी बीत जाए तब भी हम चारो वेद को ठीक प्रकार से नहीं पढ़ सकते,रावण चारो वेदों का ज्ञाता था और वेदों पर भाष्य रावण ने लिखा.

नवग्रह से लेकर समस्त देवी-देवता उसके यहाँ नौकरी करते थे,काल रावण के वश में था.ब्रह्मा जी स्वयं उसके आँगन में आकर पाठ करते थे,स्वर्ग लोक से लेकर कैलाश तक रावण की पहुँच थी.इतना सब कुछ होने पर भी रावण की कोई पूजा नहीं करता.कोई अपने बेटे का नाम रावण नहीं रखता.क्यों ?

उसका एक ही कारण था.सब कुछ होने पर भी रावण "आचरणहीन" था.जिसके जीवन में आचरण की शुद्धता नहीं वह चाहे कितना भी ऊँचा क्यों न हो,उसका जीवन शून्य है,जीवन में आचरण की शुद्धता बहुत जरुरी है.चरण उनके पूजनीय हो सकते है जिसका आचरण अच्छा हो.

पैर और चरण में बहुत बड़ा अंतर है. हम सभी के पैर होते है,और संतो के, महात्माओ के, माता-पिता के, भगवान के चरण होते है.आचरण अर्थात लोग चेहरा बाद में देखे पहले चरणों की ही पूजा करे.

जब व्यक्ति के एक-एक चरण से चरित्र टपके,उसकी अच्छाई, उसका शील,सिर से लेकर चरणों तक में आकर बैठ जाए तब उसके पैर नहीं रह जाते, चरण हो जाते है. उसे ही आ+चरण कहते है.भगवान श्रीराम का आचरण अच्छा था,उनमे तीन गुण प्रमुख थे, उन्होंने अपने "रूप से" जनकपुरी को, "बल से" लंका को,और "शील से" , अयोध्या को जीता.

"प्रातकाल उठि कै रघुनाथा,मातु पिता गुरु नावहिं माथा

आयुस मागि करहिं पुर काजा,देखि चरित हरषइ मन राजा"

अर्थात - श्री रघुनाथ जी प्रात:काल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते है और आज्ञा लेकर नगर का काम करते है उनके चरित्र देख देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते है.

रघुनाथ जी बडो से पूछकर कार्य करते थे,जवान के पास जोश हो सकता है पर होश तो बडो के पास ही होता है इसलिए अपने जोश और बुजुर्गो के होश लेकर जो जीवन में आगे बढ़ता है उस व्यक्ति को किसी भी कार्य में असफलता नहीं मिलती.

"कोसलपुर बासी नर नारि ब्रद्ध अरू बाल

प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहूँ राम कृपाल"

अर्थात - कोसलपुर के रहने वाले स्त्री पुरुष बूढ़े और बालक सभी को कृपालु श्री रामचंद्र जी प्राणों से भी बढकर प्रिय लगते है. बच्चो से लेकर वृद्धो तक को क्यों प्रिय थे? क्योकि उनका शील स्वभाव है, आचरण शुद्ध है. इसलिए अपने आचरण को अच्छा बनाये,तभी हम सबके प्रिय होगे.

।।जय श्री राधे।।

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