गुरु कैसा होना चहिए ?
"गुरु" का अर्थ है—जो अंधकार (अज्ञान) को दूर कर ज्ञान का प्रकाश दे। एक सच्चा गुरु केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं देता, बल्कि जीवन को दिशा, उद्देश्य और आत्मबोध भी देता है।
गुरु कैसा होना चाहिए – इसके कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं:
🔹 1. आत्मज्ञानी और अनुभवी हो
गुरु को स्वयं आत्मबोध हुआ हो—वह जो केवल शास्त्रों से नहीं, अनुभव से जानता हो।
उदाहरण: श्री रामकृष्ण परमहंस, जिन्होंने अनुभव के द्वारा ज्ञान पाया।
🔹 2. निर्मोही और निस्वार्थ
गुरु का उद्देश्य शिष्य का कल्याण हो, न कि धन, यश या मान-सम्मान।
वह कभी भी शिष्य पर अपना स्वामित्व न जताए।
🔹 3. वाणी में संयम और सत्यता
गुरु की वाणी प्रेरणादायक, सच्ची और मार्मिक हो। वह कठोर सत्य भी प्रेमपूर्वक कहे।
🔹 4. शांत और धैर्यवान
गुरु को शिष्य की गलतियों पर क्रोध नहीं आता, वह उसे प्रेम से सुधारता है।
🔹 5. उपदेशक नहीं, जीता-जागता आदर्श
गुरु स्वयं जैसा जीवन जीता है, वैसा ही शिष्य को भी जीने को कहता है। उसका आचरण ही शिक्षा है।
🔹 6. शिष्य के हृदय को जानने वाला
गुरु केवल बाहरी बातें नहीं देखता, वह शिष्य की आत्मा में झांककर उसकी योग्यतानुसार मार्गदर्शन करता है।
🔹 7. मुक्त कराने वाला, बाँधने वाला नहीं
सच्चा गुरु अपने शिष्य को अपने में बाँधता नहीं, बल्कि उसे स्वतंत्र और स्वावलंबी बनाता है।
श्री गुरु के लिए शास्त्रों में कहा गया है:
“गु” का अर्थ है अंधकार, “रु” का अर्थ है उसका नाश करने वाला।
जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाए, वही गुरु है।
(– स्कंद पुराण)
यदि आप चाहें तो मैं आपको संतों द्वारा गुरु के गुणों पर कही गई प्रमुख बातें (जैसे कबीर, तुलसी, रामकृष्ण, विवेकानंद आदि की) भी भेज सकती हूँ।
।।जय श्री राधे।।
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जय श्री राधे