देवयानी कौन थी
राजस्थान में एक सरोवर हैं जिसका नाम हैं देवदानी। इसका असली नाम हैं देवयानी।देवयानी का नाम क्यों पड़ा तथा देवयानी कौन थी ? यह निश्चित रूप से जिज्ञासा का विषय हैं। प्राचीन समय की बात हैं देव और दानवो में युद्ध चल रहा था। देवताओ के गुरु वृहस्पतिजी और दानवो के गुरु शुक्राचार्य अपनी अपनी सेना का प्रतिनिधत्व कर रहे थे युद्ध में दोनों और से प्रतिदिन देव और दानवो का वध हो रहा था , किन्तु राक्षस सेना में कोई भी कमी न होते देख देवताओ को चिंता हुई। दैत्य गुरु अपनी मृत संजीवनी विद्या से तुरंत जीवित कर लेते थे। देव गुरु वृहस्पतिजी के पास ऐसी कोई विद्या नहीं थी , ऐसे में चिंतित देवता एकत्रित होकर वृस्पतिजी के पुत्र कच के पास गए। उन्होंने प्राथर्ना की कि और कहा -हे गुरु पुत्र हम सब आपकी शरण में हैं , आपको विदित हैं की शुक्राचर्य पास मृत संजीवनी विद्या हैं जिसके कारण राक्षस दुबारा जीवित जाते हैं। आपको देवताओ के सम्मान , प्रतिष्ठा और रक्षा हेतु उनकी शरण में जाकर यह विद्या सीखनी होगी।
देवताओ के आग्रह को स्वीकार करते हुए कच दैत्य गुरु की शरण में गए और विनती की-हे दैत्य गुरु मैं वृहस्पति का पुत्र कच हूँ , आपसे विद्या प्राप्ति का संकल्प लेकर उपस्थित हुआ हूँ। मैं एक हजार वर्ष तक ब्रह्मचार्य का पालन करते हुए आपसे विद्या प्राप्त करने का संकल्प लेकर आया हूँ। शुक्राचर्य ने कच को अपने आश्रम में रहने व् विद्या प्राप्त करने की अनुमति दे दी , कच शुक्राचार्य के साथ घोर -साधना में लीन हो गए।
लगभग ५०० वर्ष व्यतीत होने पर देत्यो को कच के आगमन और विद्या प्राप्ति का पता चल गया। देत्यो ने गुरु के समक्ष अपने संदेह व कच के उद्देश्य को उजागर किया पर दैत्य गुरु मौन रहे। राक्षस कच को मारने का षड्यंत्र रचने लगे। योजना के अनुसार जब कच जंगल में गाय चराने गए तो देत्यो ने उनकी हत्या करके उनके शव के टुकड़े करके भेडियो को खिला दिया
संध्या के समय गाय के साथ कच को न देख शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी चिंता व्यक्त की। पुत्री की चिंता को देखते हुए शुक्राचार्य ने तपस्या के द्वारा सब बातो का पता लगा लिया। शुक्राचार्य ने भेड़िये के पेट से कच के शरीर के टुकड़ो को निकाल कर मृतसंजीवनी विद्या के द्वारा उसको जीवित कर लिया। ऐसा छल देत्यो ने दो बार किया परन्तु गुरु की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए दोनों बार जीवित कर दिया।
एक बार फिर देत्यो ने षड्यंत्र के तहत कच के शव को जला दिया और उसकी भस्म को शराब में मिलाकर गुरु शुक्राचर्य को ही पिला दिया। शुक्राचार्य ने कच को न पाकर उसका आव्हान किया तो कच ने बताया कि मैं आपके पेट में हूँ। तब शुक्राचार्य ने कहा कि तुम ध्यानपूर्वक यह विद्या सीखो और मेरे पेट को फाड़कर बाहर निकल कर मुझे भी जीवित कर देना। कच ने यही किया।शेष कल:–
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जय श्री राधे