/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: पवित्र जीवन जीने के साधन कौन-कौन से हैं

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बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

पवित्र जीवन जीने के साधन कौन-कौन से हैं


                                                                                                        पवित्र जीवन का जीने की कला



विचारो की पवित्रता -
                              मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे
                               बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे।
                        जब तक कि तन में जान रंगों में लहू रहे ,
                        तेरा  ही जिक्र हो और तेरी जुस्तजू रहे।।

हमारा कर्तव्य है कि हम प्रत्येक कार्य को प्रभु की  इच्छा समझ कर करें। इस प्रकार की भावना करते करते हम देखेंगे कि हमारा  सारा जीवन प्रभुसेवा मय हो रहा हैं।इस भावना से हमारे सारे कार्य पवित्र होते जायेंगे। उस आनन्द का तो कहना  क्या ? मालिक की मर्जी  को अपनी मर्जी बना लेने वाला सत्पुरुष कहलाता हैं। कितना सूंदर  होगा वो समय जब हमारी विचार धारा  ऐसी हो जाएगी।
       पशु किसी कार्य के परिणाम को नहीं जानता , मनुष्य जान लेता हैं। जो मनुष्य शुभ परिणाम वाले कार्य करता हैं वह सत्पुरुष कहलाता हैं और विपरीत  कार्य करने वाले को असत -पुरुष कहते हैं । भले और बुरे में यही फर्क हैं। दो व्यक्ति प्रार्थना करते हैं। एक को शांति प्राप्त होती  हैं , दूसरे को नहीं। कारण हैं एक सच्चे दिल से प्रार्थना करता हैं जबकि दूसरा प्रार्थना तो कर रहा हैं लकिन उसका मन बाहर न जाने   कहाँ -कहाँ घूम रहा हैं। उसकी प्रार्थना में कोई दिलचस्पी नहीं हैं वह केवल दिखावा कर रहा हैं तो उसे शांति कैसे मिलेगी। नाटकों में झूठे आंसुओं से भी कभी ह्र्दय  द्रवित होता हैं ? हम जानते हैं कि वो कल्पित हैं।

 वह तो चींटी की भी आवाज सुनता हैं फिर चिल्लाने की क्या आवश्यकता हैं? तुम सच्चे हृदय से पुकारो वो जरूर सुनेगा , क्यों नहीं सुनेगा। घबराने की आवश्यकता नहीं हैं।

      पर उसके दरबार में ढोंग के लिए स्थान नहीं हैं। तुम्हारी पुकार पहुँचने की देर हैं वो दौड़ा चला आएगा। तुम उसे सच्चे हृदय से पुकारो तो सही। वो तुम्हारे पास हैं , आस पास ही हैं। 

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जय श्री राधे

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