यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 23 दिसंबर 2024

महिषासुर मर्दिनी का दूसरा एवं तीसरे हिंदी में अर्थ

 


महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् का हर श्लोक देवी दुर्गा के अलग-अलग नामों को बताता है। इसकी गहराई से संकेत के लिए हर श्लोक का विश्लेषण किया जा सकता है। यहां "अयि गिरिनन्दिनी" के अगले कुछ श्लोकों का भावार्थ प्रस्तुत है

सुरवर वर्षिणि दुर्धर वर्षिणी दुर्मुखमर्षणि हर्षरते 

त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।

दनुजनिरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते।।

भावार्थ :

1. सुरवर वर्षिणि: हे देवी, आप देवताओं पर कृपा की वर्षा करने वाली हैं।

2. दुर्धरधर्षिणि: जो दुर्जेय शत्रुओं का दमन करता है।

3. दुर्मुखमर्षणि: दुष्टों और उनके आचरण को नष्ट करने वाली।

4. त्रिभुवनपोषिणि: त्रिलोकों की रक्षा और पोषण करने वाली।

5. शंकर तोषिणी: भगवान शिव को भी प्रसन्न करने वाली।

6. किल्बिष मोषिनि: पापों को हरने वाली।

7. दनुजनिरोषिणि: राक्षसों के प्रति क्रोध से दंड वाली।

8. दितिसुत रोषिणि: दैत्य माता दिति के पुत्रों को स्थापित करने वाली।

9. दुर्मदशोषिणि: दुष्टों का नाश करने वाली।

10. सिन्धुसुते: शुभ कार्य में आनंदित होने वाली।

इस श्लोक में बताया गया है कि देवी दुर्गा दुष्टों का नाश करके धर्म की रक्षा करती हैं और देवताओं और भक्तों पर कृपा करती हैं।

तीसरा श्लोक:


अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनी हासरते।

शिखिर शिरोमणि तुङमहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते।

मधुमधुरे मधुकैटभ गंजिनी कैटभ भंजिनी रासरतें।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते॥

भावार्थ :


1. अयि जगदंब मदम्ब: हे जगत की माता और मेरी मां!

2.कदंबवनप्रियवासिनी: आप कदंब के वनों में रहने वाली हैं।

3. हासरते: आप आनंद और हंसी-खुशी में रमने वाली हैं।

4. शिखरशिरोमणि: हिमालय पर्वत के शिखर पर।

5. मधुमधुरे: मधुर आपकी वाणी और प्रिय है।

6. मधुकैटभ गंजिनी: मधु और कैटभ राक्षसों को मारने वाली।

7. रासरते: आप आनंदमयी लीलाओं में लीन रहती हैं।

यह देवी श्लोक के प्रेममयी, आनंदमयी दुष्ट और संहारक स्वरूप के उदाहरण हैं।

भावार्थ का सार:


महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् में देवी दुर्गा के अद्भुत, अजेय और करुणामय स्वरूप के गान हैं। वे त्रिलोकी की माता, पापों का नाश करने वाली, दुष्टों का संहार करने वाली, और भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करने वाली हैं। हर श्लोक में देवी के सौंदर्य, शक्ति और करुणा का एक नया दर्शन होता है।

देवी दुर्गा की इस स्तुति का उद्देश्य यह है कि भक्त अपने जीवन से भय, कष्ट और असुरता को समाप्त कर, शक्ति, शांति और संतोष को प्राप्त कर सके।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे

Featured Post

लेपाक्षी मंदिर

                                  लेपाक्षी मंदिर दक्षिण भारत का एक ऐतिहासिक और वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है, जो आंध्र ...