श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज
— जिन्हें आमतौर पर वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज कहा जाता है — एक अत्यंत पूज्य और लोकप्रिय संत हैं, जो श्री राधा-कृष्ण की भक्ति में पूर्णत: लीन हैं। वे राधावल्लभ संप्रदाय के प्रचारक और 'सहचारी भाव' के सिद्ध साधक माने जाते हैं।
प्रारंभिक जीवन
- जन्म: वर्ष 1972, गाँव अखरी, ज़िला कानपुर, उत्तर प्रदेश
- पूर्व नाम: अनिरुद्ध कुमार पांडे
- परिवार: धार्मिक वातावरण, दादा और पिता ब्रह्मचारी थे, माता का नाम रामा देवी
- बचपन से ही वैराग्य और भक्ति की झलक उनमें दिखने लगी थी।
संन्यास और साधना
- मात्र 13 वर्ष की उम्र में संसार का त्याग कर लिया और काशी (वाराणसी) में कठोर तपस्या की।
- काशी में दिन में 3 बार गंगा स्नान, एक बार भोजन और संपूर्ण दिन का अधिकतर समय रामायण, श्रीमद्भागवत, उपनिषद के अध्ययन में व्यतीत होता था।
- बाद में वृंदावन पहुंचे और हित गौरांग शरण जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की।
भक्ति का मार्ग
- वे राधा रानी की सखी भाव भक्ति के उपासक हैं।
- उनका जीवन संपूर्ण रूप से राधा-कृष्ण की लीलाओं में समर्पित है।
- उन्होंने श्री हित हरिवंश महाप्रभु की परंपरा में सहचारी भाव के रस को जन-जन तक पहुँचाया।
- वे कहते हैं: "यह जीवन केवल सेवा और रास के लिए मिला है, भोग के लिए नहीं।"
आश्रम और सेवा कार्य
- श्री राधा केली कुंज ट्रस्ट, वृंदावन:
- निर्धनों को भोजन, शिक्षा, वस्त्र और चिकित्सा सेवा।
- भक्तों के लिए नि:शुल्क सत्संग और प्रवचन।
रचनाएँ और प्रवचन
- उन्होंने कई ग्रंथों और प्रवचनों के माध्यम से भक्ति का प्रसार किया, जैसे:
- ब्रह्मचर्य
- हित सद्गुरु वचनामृत
- अष्टयाम सेवा पद्धति
- यूट्यूब पर उनके सत्संग, जैसे “राधा नाम की महिमा”, अत्यंत लोकप्रिय हैं।
विशेष बातें
- पूर्ण ब्रह्मचारी जीवन
- भजन, कीर्तन, लीलाएं और रास पर आधारित सत्संग
- बालकों, युवाओं और गृहस्थों को चरित्र निर्माण और ईश्वर सेवा का मार्ग दिखाते हैं।
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जय श्री राधे