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रविवार, 21 जुलाई 2024

भक्ति की इच्छा कैसे बढ़े?

                      भक्ति की इच्छा कैसे बढ़े?


सद्गुरु शरणागत को तिलक, कंठी, मंत्र आदि देकर उपासना मार्ग पर चलना सीखाते हैं फिर चलकर प्रभु के निकट पहुंचा देते हैं। गुरुदेव की प्राप्ति श्री कृष्ण की प्राप्ति है। गुरु वही है जो भक्त को भक्ति का उपदेश दे। लोक धर्म में कपट छोड़कर सत्य, दया, क्षमा, उदारता का जनता के साथ व्यवहार करना सिखावे। सभी देवों को श्री कृष्ण का अंग अर्थात भक्ति मान उनका भी आदर करना सिखाए। वही सदगुरु देव है। बिना भक्तमाल भक्ति रूप अती दूर है। हमारे सदगुरु का मुख्य उद्देश्य है भक्तमाल में लोक शिक्षा का भी वर्णन है। सदगुरु देव में श्रद्धा बढ़ाना, किसी भी कारण से श्रद्धा कम ना हो।जब प्रेम में कपट या स्वार्थ का लेश होता है। तब प्रेम घटने लगता है। निस्वार्थ सच्चा प्रेम दिन दिन बढ़ता रहता है। गुरुदेव में श्रद्धा बढ़ेगी तो साथ ही साथ श्री कृष्णा में भक्ति बढ़ेगी। भक्त,भक्ति, भगवान और गुरुदेव यह चारों एक हैं। एक का हृदय में निवास हो जाए तो चारों की प्राप्ति हो जाएगी। बार-बार सत्संग में उपदेशों का श्रवण करने से भक्ति करने की इच्छा बढ़ती ही जाएगी।

स्वामी विवेकानंद जी पर उनके गुरु की कृपा हुई तो वह नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हो गए।

        स्वामी विवेकानंद जी पर उनके गुरु की कृपा हुई तो वह नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हो गए।


विवेकानंद जी का नाम नरेंद्र था पूरे नास्तिक थे। वह कहते थे कि पत्थर की जड़ मूर्तियों में चैतन्य आत्मा को लगाने से क्या लाभ। श्री रामकृष्ण देव परमहंस को पागल समझते थे। किसी दिन मन में आया कि देखे उसे पागल को। जब परमहंस जी के पास आए तो उन्होंने कहा– क्यों नरेंद्र! तुम इतनी देर से आए? नरेंद्र के मन में आया इन्हें मेरा नाम कैसे पता चला। इन्होंने कहा कि पत्थर की मूर्ति के सामने मां मां करने से क्या लाभ? परमहंस जी ने कहा बेटा! यह साक्षात माता है, प्यार करती हैं, बातचीत करती हैं। कृपा करके परमहंस ने कहा तुम माता जी के सामने बैठ ध्यान लगाकर मां पुकारो। नरेंद्र ने ऐसा ही किया। इस बालक पर दया करो। परमहंस की प्रार्थना पर माता ने ध्यान में दर्शन दिया सर पर हाथ रखा। उसी पल नरेंद्र के मन में विवेक की जागृति हो गई और गुरु चरण रज के सिर पर लगाते ही विवेकानंद हो गए। हाय-हाय! कर पछताने लगे कि गुरु चरणों से अलग रहकर कितना समय व्यर्थ गया।

शरणागति का क्या स्वरूप होता है।

              शरणागति का क्या स्वरूप होता है।

भूल जान यह जीव का स्वभाव है। कन्या अपने पति का वरण कर लेती है तो उसे दृढ़ विश्वास होता है कि यह मेरे पति हैं। बार-बार वह ना कहे तो कोई आपत्ति नहीं है। पर जीव शरणागत होकर भी दृढ़ विश्वास नहीं कर पाता है संसार के संबंध अपनी और खींचते हैं अतः उसे बार-बार शरणागति का स्मरण करना चाहिए। मन को नाम, रूप, लीला में अनन्य भाव से लगा लिया जाए तो उस भक्त का स्मरण भगवान अपने आप करते हैं। भक्त बार-बार ना भी कहे कि मैं शरण में हूं तो कोई आपत्ति नहीं है। पर नए साधक को बार-बार स्मरण करना ही है। जब तक जीव भगवान की शरण में नहीं जाएगा, तब तक उसे शांति नहीं मिलेगी। आज नहीं तो आगे घूम फिर कर भगवान के पास अवश्य पहुंचेंगे। इस प्रकार पहुंचने में विलंब होगा अनेक बार 84 लाख योनियों में भटकना पड़ेगा अतः प्रयत्न करके साधन को भजन करके शीघ्र से शीघ्र अपने प्रभु के पास पहुंच जाना चाहिए। इससे वह प्रभु अति प्रसन्न होंगे। जीव के विमुख होने पर ईश्वर को कष्ट होता है।

 आवत निकट हंसहि प्रभु भाजत रुदन कराही 

जब  भक्त निकट आता है तो भगवान प्रसन्न होकर हंसने लगते हैं भगवान से दूर भागता है तो बाल गोविंद भगवान रोने लगते हैं। इसलिए इष्ट को प्रसन्न रखने के लिए प्रभु की ओर जाना चाहिए भगवान की ओर पीठ करके उनसे अलग नहीं जाना चाहिए।

दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प पुस्तक में से

बुधवार, 17 जुलाई 2024

भगवान की प्राप्ति का उपाय

                   भगवान की प्राप्ति का उपाय

                  परमार्थ के पत्र पुष्प में से


रामो विग्रहवान धर्मः।’ श्री राम धर्म की मूर्ति है। 

             श्री राम जय राम जय जय राम 

यह भगवन्न नाम है और वैदिक मंत्र भी है। कम से कम 22 बार जप करने वाला धन्य है।राम नाम से बढ़कर दूसरा कोई नाम नहीं है। इसका जापक भक्ति मुक्ति आदि अभीष्ट पदार्थ पता है। भगवत प्राप्ति का उपाय क्या है इसे जीव नहीं जानता, स्वयं ही भगवान आकर बताते है।

सदा जप ,तप ,अनुष्ठान में निमग्न रहकर विश्व कल्याण की मांग करनी चाहिए 

मन में नाम लेने से मुक्ति प्राप्त होती हैं। और वाणी द्वारा उच्च स्वर से  कीर्तन करने वाले को भक्ति प्राप्त होती है। उच्च स्वर से किया गया कीर्तन अपने साथ दूसरों के भी कानों को पवित्र कर देता हैं। अतः भक्तजन गौरांग प्रभु आदि ने उच्च स्वर से कीर्तन करने को ही श्रेष्ठ बताया।

दादा गुरु भक्त माली जी  के श्री मुख से, परमार्थ के पत्र पुष्प में से

पापों का नाश कैसे हो?

                       पापों का नाश कैसे हो?
                     परमार्थ के पत्र पुष्प से



दुष्ट चित्त से भी स्मरण किया गया भगवान का नाम पापों का नाश करता है। जैसे अग्नि अनजाने में भी स्पर्श करने पर जला देती है। अतः हरि यह नाम हैं।सभी के पाप तापों को हरते है।अपने श्रवण कीर्तन द्वारा भक्तों के मन को हरते हैं। अतः उसका नाम हरा हैं जो कृष्ण के मन को भी हरता है।इसलिए ’हरे राम हरे राम’ मंत्र में  प्रयुक्त हरे का अर्थ है हे राधे । ’कृष’ आकर्षण करने वाला ’ण’ आनंददायक हैं।
रा का उच्चारण करने से पाप बाहर निकल जाते हैं।फिर का उच्चारण करने से कपाट बंद हो जाते हैं,फिर मुख के बंद हो जाने पर पाप प्रवेश नहीं कर पाते हैं। अतः  हरे राम यह महामंत्र विधि ,अवधि जैसे भी जपा जाए कलियुग में विशेष फलप्रद है।

(दादा गुरु भक्तमाली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प से)

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