ज्वाला देवी
ज्वाला देवी मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी नामक स्थान पर स्थित है और हिंदू धर्म में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यहाँ प्रकट होने वाली अनन्त ज्वालाएँ हैं, जो बिना किसी ईंधन के निरंतर जलती रहती हैं।
मंदिर का पौराणिक महत्व
ज्वाला देवी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव ने उनके शव को उठाकर तांडव नृत्य किया। इस दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया, और जहाँ-जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए।
कहा जाता है कि सती की जिह्वा (जीभ) इस स्थान पर गिरी थी, जिसके कारण यहाँ माता ज्वाला देवी की उपासना होती है।
मंदिर की विशेषता
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अनन्त ज्वालाएँ –
मंदिर में सात मुख्य ज्वालाएँ जलती हैं, जिन्हें विभिन्न देवियों का रूप माना जाता है:- महाकाली
- अन्नपूर्णा
- चंडी
- हिंगलाज
- विंध्यवासिनी
- महालक्ष्मी
- सरस्वती
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बिना किसी ईंधन के जलती अग्नि –
मंदिर में जलने वाली ज्वालाएँ बिना किसी ज्ञात स्रोत के प्रकट होती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ज्वालाएँ भूमिगत प्राकृतिक गैस स्रोतों के कारण जलती हैं, लेकिन धार्मिक मान्यता इसे देवी का चमत्कार मानती है। -
कोई मूर्ति नहीं –
अन्य मंदिरों की तरह यहाँ कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि स्वयं प्रकट हुई ज्वालाओं को ही देवी का स्वरूप माना जाता है।
मंदिर का इतिहास
- कहा जाता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
- मुगल शासक अकबर ने इस मंदिर की परीक्षा लेने के लिए इसे बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। बाद में उसने यहाँ सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन वह रहस्यमय रूप से गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया।
- महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और यहाँ सोने की परत चढ़ाई।
मुख्य उत्सव और मेलों
- नवरात्रि महोत्सव – इस दौरान यहाँ विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और विशाल भंडारे का आयोजन होता है।
- श्रावण मास (सावन) – इस महीने में भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में माता के दर्शन करने आते हैं।
कैसे पहुँचे?
- निकटतम रेलवे स्टेशन: कांगड़ा रेलवे स्टेशन (लगभग 30 किमी)
- निकटतम हवाई अड्डा: कांगड़ा एयरपोर्ट (गग्गल)
- सड़क मार्ग: यह मंदिर धर्मशाला, कांगड़ा, और पठानकोट से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
मंदिर दर्शन का समय
- सुबह 5:00 बजे से रात 10:00 बजे तक
- विशेष अवसरों और त्योहारों पर समय में बदलाव हो सकता है।
निष्कर्ष
ज्वाला देवी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी एक रहस्यमय स्थल है। यहाँ प्रकट होने वाली ज्वालाएँ माता के दिव्य चमत्कार का प्रतीक मानी जाती हैं, और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
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जय श्री राधे