/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: dukho ka ant kese ho

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मंगलवार, 23 सितंबर 2014

dukho ka ant kese ho





दुखो का अंत कैसे हो 

मनुष्य की स्वभाविक इच्छा हैं ,दुखो से छुटकारा और सुख की प्राप्ति। 
जिस मार्ग पे सुख पाना चाहते हो प्राय: गलत मार्ग होता हैं जिससे दुःख अशांति बढ़ती हैं। आज मनुष्य के अंदर सदाचार नियम तथा नियम का आभाव हैं तथा कलुषित बुराइयो का भंडार हैं। सुखासक्ति इतनी तीव्र हें कि कोई कर्म कुकर्म करने में संकोच नहीं हैं | आज मानव धर्म और नीति का चोला पहन रखा हैं ,परन्तु व्यवहार में अधर्म और अनीति के कार्य करतेहैं |यदि मनुष्य सचमें दुखो का अंत और सुख की प्राप्ति चाहता हैं तो उसे सही मार्ग अपनाना पड़ेगा |उसका उपाय यह हैं कि वह दुसरो के दुखो को अपना ले ,स्वयं दुःख लेकर दुसरो को सुख देने लगे तो उसे निश्चय ही परम सुख की प्राप्ति होगी |
अपने आप से भिन्न दुसरो से सुख की आशा करना ही दुःख का मूल कारण हैं |परमात्मा से विमुख होना भी दुःख का कारण हैं |मनुष्य को यह मन में बिठा लेना चाहिय की ईश्वर ही मेरे हैं ,यह चिंता नहीं करनी चाहिय की मैं उनका हूँ कि नहीं ,वे मुझसे प्यार करते हैं या नहीं -यह संदेह तो संसार के जीवो से करना चाहिए |गीता में कहा हैं कि जो जीव जिस भाव से जितनी मात्रा में भगवान से प्यार करता हैं ,भगवान भी  उस जीव से उसी भाव में उतनी ही मात्रा में प्यार करते हैं |अत: हमे भगवान से जितना प्यार चाहिए हमे उतना ही प्यार उन्हें करना होगा |भगवान हमारे इतने निकट हैं जितना आखों में लगा काजल | लेकिन काजल को हम बिना दर्पण के नहीं देख सकते उसी प्रकार अपने भगवान को हम बिना संत सदगुरु रूपी दर्पण के बिना नहीं देख सकते |
ऐसे महान प्रभु के ह्रदय में होते हुए भी हम आज घोर दुखी व् अशांत हैं  क्यों ? मात्र न जानने के कारण |वस्तुत : ईश्वर तर्क के नहीं ,बल्कि श्रद्धा व् विश्वास के विषय हैं |जब तक विश्वास नहीं होगा ,तब तक सुख शांति भला केसे मिल सकती हैं |

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जय श्री राधे

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