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शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

कागभुसुंडि जी कौन थे?

कागभुसुंडि जी कौन है?


 जब भोले बाबा मां गोरा को श्री रामचरितमानस की कथा सुना रहे थे तब अंत में गौरा मां ने प्रश्न किया कि मैं यह जानना चाहती हूं कि यह काग भुसुंडि जी कौन थे? जिनसे आपने कथा सुनी। हे कृपालु ! बताइए उसको इन्हीं प्रभु का यह पवित्र सुंदर चरित्र कहां पाया और हे कामदेव के शत्रु यह भी बताइए आपने इसे किस प्रकार सुना? मुझे बड़ा भारी कौतूहल हो रहा है।

 तब महादेव ने प्रसंग सुनाया। महादेव बोले हे सुमुखी! है सुलोचना ! प्रसंग सुनो, पहले तुम्हारा अवतार दक्ष के घर में हुआ था, तब तुम्हारा नाम सती था। दक्ष के यज्ञ में तुम्हारा अपमान हुआ। तब तुम ने अत्यंत विरोध करके प्राण त्याग दिए और फिर मेरे से सेवकों ने यज्ञ विध्वंस कर दिया।यह सब तुम जानती हो। तब मेरे मन में बड़ा सोच हुआ और हे प्रिय! मैं तुम्हारी वियोग से दुखी हो गया,मैं विरक्त भाव से सुंदरवन पर्वत नदी और तालाबों का दृश्य देखता फिरता था। सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में और भी दूर एक बहुत ही सुंदर नील पर्वत है। उसकी सुंदर स्वर्ण में शिखर है। उनमें से चार सुंदर शिखर मेरे मन को बहुत ही अच्छे लगे। उनमें से एक बरगद, पीपल, पाकर और आम का एक एक विशाल वृक्ष है। पर्वत के ऊपर एक सुंदर तालाब शोभित है; जिसकी मणियों की सीढ़ियां देखकर मेरा मन मोहित हो जाता है। उसका जल निर्मल और मीठा है। उसमें रंग-बिरंगे कमल खिले हुए हैं। संगम मधुर स्वर से बोल रहे हैं और भौंरे सुन्दर गुंजार कर रहे हैं। उस सुंदर पर्वत पर वही पक्षी का भूसुंडी बसता है उसका नाश के कल्प के अंत में भी नहीं होता। माया रचित अनेक गुण ,दोषों मुकाम आदि  अविवेक जो सारे जगत में जा रहे हैं। उस पर्वत के पास भी नहीं फटकते।वहां बस कर जिस प्रकार वह काक हरि को  भजता है।हे उमा!उसे प्रेम से सुनो। पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करता है। पाकर के नीचे जप यज्ञ करता है, आम की छाया के नीचे मानसिक पूजा करता है। श्री हरि के भजन को छोड़करउसे कोई दूसरा काम नहीं है। बरगद के नीचे वह श्री हरि की कथाओं के प्रसंग कहता है वहां अनेकों पक्षी आते हैं और कथा सुनते हैं। वह विचित्र रामचरित्र को अनेक प्रकार से प्रेम सहित आदर पूर्वक गान करता है। सब निर्मल बुद्धि वाले हंस जो सदा उस तालाब पर बसत हैं, उसे सुनते हैं। जब मैंने वहां जाकर यह दृश्य देखा तब मेरे हृदय में विशेष आनंद उत्पन्न हुआ ।तब मैंने हंस का शरीर धारण कर कुछ समय वहां निवास किया और श्री रघुनाथ जी के गुणों का आदर सहित सुनकर फिर कैलाश को लौट आया।

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जय श्री राधे

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