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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

कर्माबाई का खिचड़ी भोग (सत्य घटना)

                            कर्मा बाई का खिचड़ी भोग




भगवान श्रीकृष्ण की परम उपासक कर्मा बाई जी जगन्नाथ पुरी में रहती थी और भगवान को बचपन से ही पुत्र रुप में भजती थीं । ठाकुर जी के बाल रुप से वह रोज ऐसे बातें करतीं जैसे ठाकुर जी उनके पुत्र हों और उनके घर में ही वास करते हों। 

एक दिन कर्मा बाई की इच्छा हुई कि ठाकुर जी को फल-मेवे की जगह अपने हाथ से कुछ बनाकर खिलाऊँ । उन्होंने जगन्नाथ प्रभु को अपनी इच्छा बतलायी । भगवान तो भक्तों के लिए सर्वथा प्रस्तुत हैं । प्रभु जी बोले - "माँ ! जो भी बनाया हो वही खिला दो, बहुत भूख लगी है ।"

कर्मा बाई ने खिचड़ी बनाई थी । ठाकुर जी को खिचड़ी खाने को दे दी । प्रभु बड़े चाव से खिचड़ी खाने लगे और कर्मा बाई ये सोचकर भगवान को पंखा झलने लगीं कि कहीं गर्म खिचड़ी से मेरे ठाकुर जी का मुँह ना जल जाये । संसार को अपने मुख में समाने वाले भगवान को कर्मा बाई एक माता की तरह पंखा कर रही हैं और भगवान भक्त की भावना में भाव विभोर हो रहे हैं ।

भक्त वत्सल भगवान ने कहा - "माँ ! मुझे तो खिचड़ी बहुत अच्छी लगी । मेरे लिए आप रोज खिचड़ी ही पकाया करें । मैं तो यही आकर खाऊँगा ।"

अब तो कर्मा बाई जी रोज सुबह उठतीं और सबसे पहले खिचड़ी बनातीं, बाकि सब कुछ बाद में करती थी । भगवान भी सुबह-सवेरे दौड़े आते । आते ही कहते - माँ ! जल्दी से मेरी प्रिय खिचड़ी लाओ ।" प्रतिदिन का यही क्रम बन गया । भगवान सुबह-सुबह आते, भोग लगाते और फिर चले जाते ।

एक बार एक महात्मा कर्मा बाई के पास आया । महात्मा ने उन्हें सुबह-सुबह खिचड़ी बनाते देखा तो नाराज होकर कहा - "माता जी, आप यह क्या कर रही हो ? सबसे पहले नहा धोकर पूजा-पाठ करनी चाहिए । लेकिन आपको तो पेट की चिन्ता सताने लगती है ।"

कर्मा बाई बोलीं - "क्या करुँ ? महाराज जी ! संसार जिस भगवान की पूजा-अर्चना कर रहा होता है, वही सुबह-सुबह भूखे आ जाते हैं । उनके लिए ही तो सब काम छोड़कर पहले खिचड़ी बनाती हूँ ।"

महात्मा ने सोचा कि शायद कर्मा बाई की बुद्धि फिर गई है । यह तो ऐसे बोल रही है जैसे भगवान इसकी बनाई खिचड़ी के ही भूखे बैठे हुए हों ।

 महात्मा कर्मा बाई को समझाने लगे - "माता जी, तुम भगवान को अशुद्ध कर रही हो। सुबह स्नान के बाद पहले रसोई की सफाई करो। फिर भगवान के लिए भोग बनाओ "। 

 अगले दिन कर्मा बाई ने ऐसा ही किया । जैसे ही सुबह हुई भगवान आये और बोले - "माँ ! मैं आ गया हूँ, खिचड़ी लाओ ।"

कर्मा बाई ने कहा - "प्रभु ! अभी में स्नान कर रही हूँ, थोड़ा रुको । थोड़ी देर बाद भगवान ने फिर आवाज लगाई । जल्दी करो, माँ ! मेरे मन्दिर के पट खुल जायेंगे, मुझे जाना है ।"

वह फिर बोलीं - "अभी मैं रसोई की सफाई कर रही हूँ, प्रभु !" भगवान सोचने लगे कि आज माँ को क्या हो गया है ? ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ । फिर जब कर्मा बाई ने खिचड़ी परोसी तब भगवान ने झटपट करके जल्दी-जल्दी खिचड़ी खायी ।

 परंतु आज खिचड़ी में भी रोज वाले भाव का स्वाद भगवान को नहीं लगा था । फिर जल्दी-जल्दी में भगवान बिना पानी पिये ही मंदिर में भागे ।

भगवान ने बाहर महात्मा को देखा तो समझ गये - "अच्छा, तो यह बात है । मेरी माँ को यह पट्टी इसी ने पढ़ायी है ।"

अब यहां ठाकुर जी के मन्दिर के पुजारी ने जैसे ही मंदिर के पट खोले तो देखा भगवान के मुख पर खिचड़ी लगी हुई है । पुजारी बोले - "प्रभु जी ! ये खिचड़ी आप के मुख पर कैसे लग गयी है ?"

भगवान ने कहा - "पुजारी जी, मैं रोज मेरी कर्मा बाई के घर पर खिचड़ी खाकर आता हूँ। आप माँ कर्मा बाई जी के घर जाओ और जो महात्मा उनके यहाँ ठहरे हुए हैं, उनको समझाओ । उसने मेरी माँ को गलत कैसी पट्टी पढाई है ?"

पुजारी ने महात्मा जी से जाकर सारी बात कही कि भगवान भाव के भुखे है । यह सुनकर महात्मा जी घबराए और तुरन्त कर्मा बाई के पास जाकर कहा - "माता जी ! माफ़ करो, ये नियम धर्म तो हम सन्तों के लिये हैं । आप तो जैसे पहले खिचड़ी बनाती हो, वैसे ही बनायें । आपके भाव से ही ठाकुर जी खिचड़ी खाते रहेंगे ।"

 फिर एक दिन आया , जब कर्मा बाई के प्राण छूट गए । उस दिन पुजारी ने मंदिर के पट खोले तो देखा - भगवान की आँखों में आँसूं हैं ।और प्रभु रो रहे हैं ।

 पुजारी ने रोने का कारण पूछा तो भगवान बोले - "पुजारी जी, आज मेरी माँ कर्मा बाई इस लोक को छोड़कर मेरे निज लोक को विदा हो गई है । अब मुझे कौन खिचड़ी बनाकर खिलाएगा ?"

 पुजारी ने कहा - "प्रभु जी ! आपको माँ की कमी महसूस नहीं होने देंगे । आज के बाद आपको सबसे पहले खिचड़ी का भोग ही लगेगा ।" इस तरह आज भी जगन्नाथ भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है ।

*भगवान और उनके भक्तों की ये अमर कथायें अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं । ये कथायें प्रभु प्रेम के स्नेह को दरसाने के लिए अस्तित्व में आयीं हैं कि प्रभु सिर्फ सच्चे और पवित्र भाव के भुखे है । आप भी इन कथाओं के माध्यम से भक्ति के रस को चखते हुए आनन्द के सरोवर में डुबकी लगाएं । ईश्वर की शक्ति के आगे तर्कशीलता भी नतमस्तक हो जाती है । तभी तो चिकित्सा विज्ञान के लोग भी कहते हैं - "दवा से ज्यादा, दुआ काम आएगी ।"


प्रेम से बोलिये जय जगन्नाथ जी

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जय श्री राधे

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