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शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

श्री राम जी के द्वारा भक्तों के जन्म मरण को मिटाने वाले वचन

 श्री राम जी के द्वारा भक्तों के जन्म मरण को मिटाने वाले वचन

एक बार श्री राम जी ने अयोध्या में अपने समस्त नगरवासियों को बुलाया और उनको अपने हृदय की बात सुनाई और सब को कहा कि आप मेरी बातों को सुन लो और यह जो तुम्हें अच्छी लगे तो उसके अनुसार ही करो। वही मेरा सेवक है और वही मेरा प्रियतम है, जो मेरी आज्ञा माने।

 बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिला है सब ग्रंथों में यही कहा है कि यह शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। कठिनाई से मिलता है। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पा कर भी जिसने पढ़ लो ना बना लिया वह परलोक में दुख पाता है सिर पीट पीटकर पछताता है तथा अपने दोष ना समझ कर काल पर,कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है। हे भाई इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषय भोग नहीं है, इस जगत के लोगों की तो बात ही क्या, स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुख देने वाला है। जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषय में मन लगा देते हैं। वह मूर्ख अमृत को बदलकर विष ले लेते हैं। जो पारस मणि को खोकर बदले में घुं धनघची ले लेता है। उसको कभी कोई  बुद्धिमान नहीं कहता। यह अविनाशी जीव चार खानों और 8400000 योनियों में चक्कर लगाता रहता है। माया की प्रेरणा से काल, कर्म, स्वभाव और उन से घिरा हुआ वह सदा भटकता रहता है।बिना ही कारण स्नेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके मनुष्य का शरीर देते हैं। यह मनुष्य का शरीर भवसागर के लिए बड़ा जहाज है, पार करने वाला है। मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है सतगुरु इस जहाज के मजबूत कर्णधार हैं। इस प्रकार दुर्लभ साधन सुलभ हो कर भी उसे प्राप्त हो जाती है। जो मनुष्य ऐसे साधन को पाकर भी भवसागर ना करें वह कृतघ्न और मंदबुद्धि है । 

यदि परलोक में और यहां दोनों जगह सुख चाहते हो तो मेरे वचन सुनकर उन्हें हृदय में दृढ़ता से पकड़ कर रखो, यह मेरी भक्ति का मार्ग सुलभ और सुख दायक है। पुराणों और वेदों ने इसे गाया है। भक्ति स्वतंत्र और सब सुखों की खान है।परंतु संतो के संग के बिना प्राणी इसे नहीं पा सकते और पुण्य समूह के बिना संत नहीं मिलते। सत्संगति जन्म मरण के चक्र का अंत करती है। मैं सबसे हाथ जोड़कर कहता हूं कि शंकर जी के भजन के बिना मनुष्य मेरी भक्ति नहीं पाता।

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जय श्री राधे

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