नाम जप में रुचि कैसे हो?
नाम जप में रुचि के लिए कुछ विशेष सावधानियां रखनी जरूरी है -उनमें सबसे पहली है सत्संग । ज्यादा सत्संग करना चाहिए जिसमें भगवान की लीला का श्रवन करना चाहिए ,अध्ययन करना चाहिए और मनन करना चाहिए ।जब हमारी ईश्वर की लीला को सुनने में रुचि होने लगेगी तो जप भी होने लगेगा । दूसरा है भोजन यानी अन्न कहावत भी है कि जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन। इसलिए हमें सात्विक अन्न ही खाना चाहिए ,पहले अपने इश्वर को भोग लगाकर फिर प्रसाद रूप में हमें उसे स्वीकार करना चाहिए ।तो हमारी जप में रूचि बढ़ने लगेगी। तीसरा है कुसंग का त्याग। जैसा हमारा संग होगा वैसा ही हमारे विचार होंगे और हमारा मन रहेगा ।इसलिए हमें कुसंग से दूर रहना चाहिए। हमारे ना जाने कितने जन्मों के कुसंग हमारी भीतर रहते हैं यदि हम सत्संग का आश्रय लेंगे तो कुसंग बाहर निकल जाएगा। लेकिन यदि हमने कुसंग को दोबारा अपना लिया तो हमारे अंदर का सत्संग चला जाएगा। संत कहते हैं वैसे ही इस कलयुग में दुष्टता का बहुत प्रभाव है यदि हम दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को अपनाएंगे तो हम भी वैसे ही हो जाएंगे । तो हमें उनसे दूर रहना चाहिए और ईश्वर का चिंतन मनन करना चाहिए और हमारी साधना पुष्ट हो जाएगी हमें संग महापुरुषों का करना चाहिए ,जिससे हमारे विचार शुद्ध और सात्विक हो जाए। अपनी दिनचर्या में हमें एक समय ऐसा निकालना चाहिए कि हम अपने प्रभु का ध्यान लगाएं शांत चित्त होकर चिंतन करें ,तो नाम जप में रुचि हो जाए ।हमारा खानपान शुद्ध, चित्त शुद्ध हो , शास्त्र अध्ययन में रुचि बढें तो निश्चित ही जप में रुचि बढ़ जाएगी। जिस प्रकार घड़े में कितना ही पानी भरा हो उसमें थोड़ा सा भी छेद हो तो धीरे-धीरे सारा पानी निकल जाता है ,उसी प्रकार अगर हमारे अंदर थोड़ा कुसंग भी प्रवेश कर जाए तो हमने कितना ही जप किया हो ,कितनी साधना की हो, वह धीरे धीरे निष्फल हो कर खत्म हो जाते हैं इसलिए कुसंग से दूर रहो ,गलत खान-पान से दूर रहो ,नाम जप में तभी आनंद मिलेगा जब आप परहेज़ करोगे।
।।ऊँ।।
नाम जप में रुचि के लिए कुछ विशेष सावधानियां रखनी जरूरी है -उनमें सबसे पहली है सत्संग । ज्यादा सत्संग करना चाहिए जिसमें भगवान की लीला का श्रवन करना चाहिए ,अध्ययन करना चाहिए और मनन करना चाहिए ।जब हमारी ईश्वर की लीला को सुनने में रुचि होने लगेगी तो जप भी होने लगेगा । दूसरा है भोजन यानी अन्न कहावत भी है कि जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन। इसलिए हमें सात्विक अन्न ही खाना चाहिए ,पहले अपने इश्वर को भोग लगाकर फिर प्रसाद रूप में हमें उसे स्वीकार करना चाहिए ।तो हमारी जप में रूचि बढ़ने लगेगी। तीसरा है कुसंग का त्याग। जैसा हमारा संग होगा वैसा ही हमारे विचार होंगे और हमारा मन रहेगा ।इसलिए हमें कुसंग से दूर रहना चाहिए। हमारे ना जाने कितने जन्मों के कुसंग हमारी भीतर रहते हैं यदि हम सत्संग का आश्रय लेंगे तो कुसंग बाहर निकल जाएगा। लेकिन यदि हमने कुसंग को दोबारा अपना लिया तो हमारे अंदर का सत्संग चला जाएगा। संत कहते हैं वैसे ही इस कलयुग में दुष्टता का बहुत प्रभाव है यदि हम दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को अपनाएंगे तो हम भी वैसे ही हो जाएंगे । तो हमें उनसे दूर रहना चाहिए और ईश्वर का चिंतन मनन करना चाहिए और हमारी साधना पुष्ट हो जाएगी हमें संग महापुरुषों का करना चाहिए ,जिससे हमारे विचार शुद्ध और सात्विक हो जाए। अपनी दिनचर्या में हमें एक समय ऐसा निकालना चाहिए कि हम अपने प्रभु का ध्यान लगाएं शांत चित्त होकर चिंतन करें ,तो नाम जप में रुचि हो जाए ।हमारा खानपान शुद्ध, चित्त शुद्ध हो , शास्त्र अध्ययन में रुचि बढें तो निश्चित ही जप में रुचि बढ़ जाएगी। जिस प्रकार घड़े में कितना ही पानी भरा हो उसमें थोड़ा सा भी छेद हो तो धीरे-धीरे सारा पानी निकल जाता है ,उसी प्रकार अगर हमारे अंदर थोड़ा कुसंग भी प्रवेश कर जाए तो हमने कितना ही जप किया हो ,कितनी साधना की हो, वह धीरे धीरे निष्फल हो कर खत्म हो जाते हैं इसलिए कुसंग से दूर रहो ,गलत खान-पान से दूर रहो ,नाम जप में तभी आनंद मिलेगा जब आप परहेज़ करोगे।
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जय श्री राधे