/ google.com, pub-1197897201210220, DIRECT, f08c47fec0942fa0 "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: श्री राधा कृपा कटाक्ष स्रोत हिंदी में

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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

श्री राधा कृपा कटाक्ष स्रोत हिंदी में

               श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत हिंदी में

  भावार्थ- मुनींद्र वृंद जिनके चरणों की वंदना करते हैं तथा जो तीनों लोकों का शौक दूर करने वाली है मुस्कान युक्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली निकुंज भवन में विलास करने वाली, राजा वृषभानु की राजकुमारी ,श्री बृज राजकुमार की हृदयेश्वरी श्री राधिके! कब मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र बनाओगी?
 भावार्थ -अशोक की वृक्ष लताओं से बने हुए 'लता मंदिर' में विराजमान और  मूँगे अग्नि तथा नवीन लाल पल्लवों के समान अरुण कांति युक्त कोमल चरणों वाली, भक्तों को अभीष्ट वर दान देने वाली तथा अभय दान देने के लिए उत्सुक रहने वाले कर- कमलो वाली अपार ऐश्वर्या की स्वामिनी श्री राधे मुझे कब अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी।

भावार्थ -प्रेम क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में बाँकी भृकुटी करके, आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहसा कटाक्ष रूपी बाणों की वर्षा से श्री नंद नंदन को निरंतर बस में करने वाली ,हे सर्वेश्वरी अपने कृपा कटाक्ष का पात्र मुझे कब बनाओगी ?

 भावार्थ- बिजली, स्वर्ण तथा चंपा के पुष्प के समान सुनहरी कांति से देदीप्यमान गोरे अंगो वाली अपने मुखारविंद की चांदनी से करोड़ों शरद चंद्र को जीतने वाली क्षण क्षण में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर के बच्चे के सदृश विलोचनो वाली, हे जग जननी! क्या कभी मुझे अपने कृपा कटाक्ष का अधिकारी बनाओगी।

भावार्थ- अपने अत्यंत रूप यौवन के मद से मत्त रहने वाली आनंद भरा मान ही जिनका सर्वोत्तम भूषण है, प्रीतम के अनुराग से रंगी हुई, विलास की प्रवीण अनन्य भक्त गोपीकाओं से धन्य हुए निकुंज राज्य की प्रेम कौतुक विद्या की विद्वान श्री राधिके! मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र कब बनाओगी?
भावार्थ- संपूर्ण हाव भावरुपी श्रृंगारों  तथा धीरता एवं हीरे की हारों से विभूषित अंगों वाली शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान गयनंदिनी के गण्ड स्थल के समान मनोहर पयोधरो वाली प्रशंसित मंद मुस्कान से परिपूर्णानंद सिंधु के सदृश श्री राधा! क्या मुझे अपनी कृपा से कृतार्थ करोगी?

भावार्थ- जल की लहरों से हिलते हुए कमल के नवीन नाल के समान जिनकी कोमल भुजाएं हैं, पवन से जैसे लता का एक अग्र भाग नाचता है ऐसे चंचल लोचनों से नीलिमा झलकाते हुए जो अवलोकन करती हैं ।ललचाने वाले, लुभाकर पीछे पीछे फिरने वाले, मिलन में मन को हरने वाले, मुग्ध मनमोहन को आश्रय देने वाली, हे वृषभानु किशोरी! कब अपने कृपा अवलोकन द्वारा मुझे मायाजाल से छुड़ाओगी ।

भावार्थ- स्वर्ण की मालाओं से विभूषित तथा तीन रेखाओं वाले शंख की छटा सदृश सुंदर कंठ वाली तथा जिनके कंठ में मंगलमय सूत्र बंधा हुआ है जिसमें तीन रंगों के रत्नों का भूषण लटक रहा है रत्नों से देदीप्यान किरणे निकल रही हैं (यह मंगल त्रसुत्र नव वधु को गले में बनाया जा रहा है) यह बृज की प्राचीन प्रथा है, दक्षिण में अभी यह प्रथा प्रचलित है तथा दिव्य पुष्पों के गुच्छे से हुए काले घुंघराले लहराते केशों वाली हे सर्वेश्वरी श्री राधे! कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से देखकर अपने चरण कमलों के दर्शन का अधिकारी बनाओगी

 भावार्थ- कटिमण्डल में मणिमय किंकणी सुशोभित है जिसमें सोने के फूल रत्नों से जड़े हुए लटक रहे हैं तथा उसकी प्रशंसनीय झंकार अत्यंत मनोहर गजेंद्र की सूंड के समान जिनकी जंघाये अत्यंत सुंदर है। ऐसी श्री राधे महारानी मुझ पर कृपा करके सब संसार सागर से पार लगाओगी?

 भावार्थ- अनेकों वेद मंत्रों की सुमधुर झंकार करने वाले स्वर्ण मय नूपुर चरणों में ऐसे प्रतीत होते हैं, मानो मनोहर हंसों की पंक्ति गूंज रही है, चलते समय अंगों की छवि ऐसे लगती है मानो, स्वर्ण लता लहरा रही हो। हे जगदीश्वरी श्री राधे !क्या कभी मैं आपके चरण कमलों का दास हो सकूंगा?

 भावार्थ -अनंत कोटी वैकुंठ की स्वामिनी श्री लक्ष्मी जी, आप की पूजा करती हैं तथा  श्री पार्वती जी, इंद्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी पूजा कर वरदान पाया है। आपके चरण कमलों की एक उंगली के नख का भी ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धियां का समूह बढ़ने लगता है। हे करुणामयी !आपकब मुझको वात्सल्य रस भरी दृष्टि से देखोगी?

भावार्थ- सब प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी है संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी, स्वधा देवी की स्वामिनी, सब देवताओं की स्वामिनी , तीनों वेदों की वाणी की स्वामिनी प्रमाण शासन शास्त्र की स्वामिनी, श्री रमा देवी की स्वामिनी ,श्री क्षमा देवी के स्वामिनी और( अयोध्या के )प्रमोद वन की स्वामिनी अथार्त श्री सीता जी आप ही हैं,हे राधिके !कब मुझे कृपा कर अपनी शरण में स्वीकार कर पराभक्ति प्रदान करोगी ? हे बृजेश्वरी! हे बृज की अधिष्ठात्री श्री राधिके! आप को मेरा बारंबार प्रणाम है।

 भावार्थ- हे वृषभानु नंदिनी !मेरी इस विचित्र स्तुति को सुनकर सर्वदा के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि का अधिकारी बना लो ,बस आपकी दया ही से तो मेरे प्रारब्ध, संचित और क्रिया मान इन तीनों प्रकार के कर्मों का नाश हो जाएगा और उसी क्षण श्री कृष्ण चंद्र के नित्य मंडल दिव्य धाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा।

 भावार्थ -पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त स्त्रोत का पाठ करेगा, वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होगा ,अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्री राधा जी की दया दृष्टि से परा भक्ति प्राप्त होगी।

 भावार्थ- इस स्रोत से श्री राधा कृष्ण का साक्षात्कार होता है। उसकी विधि इस प्रकार है कि गोवर्धन पर्वत के निकट श्री राधा कुंड के जल में जंघाओ तक या नाभि पर्यंत या छाती तक या कंठ तक ,जल में खड़े होकर स्त्रोत का 100 बार पाठ करें ।इस प्रकार कुछ दिन पाठ करने पर संपूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। ईश्वर की प्राप्ति होती है। दर्शनाथी भक्तों की इन्हीं से साक्षत श्री राधा जी का दर्शन होता है। श्री राधा जी प्रकट होकर प्रसन्नता पूर्वक महान वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं ।वरदान में केवल "अपनी प्रिय वस्तु दो" यही मांगना चाहिए। तत्काल ही श्यामसुंदर प्रकट होकर दर्शन देते हैं ,प्रसन्न होकर श्री ब्रिज राजकुमार अपने नित्य लीलाओं  में प्रवेश प्रदान करते हैं । इससे बढ़कर वैष्णव के लिए कोई भी वस्तु नहीं है ।किसी किसी को  अपने घर में ही 100 पाठ नित्य प्रति करने से कुछ ही दिनों में इसकी प्राप्ति हो जाती है। ।।जय श्री राधे।।

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