/ google.com, pub-1197897201210220, DIRECT, f08c47fec0942fa0 "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: भगवान के नाम की महिमा

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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

भगवान के नाम की महिमा

.                       जय श्री सीताराम
                        कल्याण 86/8
                     गीता प्रेस गोरखपुर



                         नाम--महिमा
                         °°°°°°°°°°°°

          भगवान के नाम की अमित महिमा है । वह कही नहीं जा सकती। स्वयं भगवान भी अपने नाम के गुणों का पार नहीं पा सकते---

कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।

         भूल से लोग नाम और नामी को दो विभिन्न वस्तु तथा नाम को नामी से छोटा मानते हैं। नाम का माहात्म्य अपार है,  असीम है,  अनन्त है ।
       नाम और नामी में छोटे-बड़े की बुद्धि नहीं करनी चाहिए।  नाम के विना नामी की पहचान ही नहीं हो सकती ।हमारे मन में यह भाव घुसा हुआ है कि नाम की जो इतनी महिमा शास्त्रों और संतों ने गायी है,  उसमें तथ्य कुछ नहीं है;  हमें केवल भुलाने में डालने के लिए ही यह इन्द्रजाल रचा गया है ।
          जगज्जननी पार्वती ने एक बार शिव जी से पूछा---'महाराज! आप इतना राम-राम जपते हैं और इसका इतना माहात्म्य बतलाते हैं। संसार के लोग भी इस नाम को रटते रहते हैं; फिर क्या कारण है,  उनका उद्धार नहीं होता?' महादेव जी बोले---'उनका राम-नाम की महिमा में विश्वास नहीं है ।' परीक्षा के लिए वे दोनों काशी के एक घाट पर बैठ गये, जहाँ से लोग गंगा स्नान करके राम नाम रटते हुये लौट रहे थे। योजनानुसार महादेव जी ने वृद्ध शरीर बनाया और फिर एक कीचड़ भरे गड्ढे में गिर पड़े तथा वृद्धा के वेष में पार्वती जी ऊपर बैठी रहीं। जो भी व्यक्ति उस मार्ग से गुजरता,  पार्वती जी उससे कहतीं---'मेरे पति को गड्ढे से निकाल दो।' जो निकालने जाता, उससे कहतीं---'जो निष्पाप हो, वही निकाले; अन्यथा इन्हें छूते ही भस्म हो जायगा ।' एक पर एक कई लोग आये, पर शर्त सुनकर लौट गये। सायंकाल हो आया; पर ऐसा कोई निष्पाप व्यक्ति न मिला। अन्ततः गोधूलि की वेला में गंगा स्नान करके एक व्यक्ति आया और राम नाम रटता हुआ वहाँ पहुंचा । माँ पार्वती ने उससे भी वही बात कही।
वह निकालने के लिए बढ़ा तो पार्वती जी ने एक बार फिर दोहराया---'निष्पाप व्यक्ति होना चाहिए;  अन्यथा भस्म हो जायगा।'
        इस पर वह बोला---'गंगा स्नान कर चुका हूँ और राम नाम ले रहा हूँ,  फिर भी पाप लगा ही है?  पाप तो एक बार के नाम स्मरण से छूट जाता है । मैं सर्वथा निष्पाप हूँ ।' कहकर वह गड्ढे में कूद पड़ा और बूढ़े बाबा को निकाल लाया। गौरीशंकर अब उससे कैसे छिपे रहते? वह दर्शन पाकर कृतार्थ हो गया।
        एक हम हैं। गंगा स्नान करते हैं,  राम नाम लेते हैं; परंतु अपने को सर्वथा निष्पाप नहीं मानते। नाम में और गंगा में हमारा पूर्ण विश्वास नहीं है । जितनी शक्ति नाम में पाप नाश की है,  उतनी शक्ति महापापी में भी पाप करने की नहीं है ।
        हम तो निरंतर भगवान के नामों को बेचते हैं; परंतु नाम की महिमा इतनी अधिक है कि उसका संस्कार मिट नहीं सकता। भगवान का नाम भगवान की ही भांति चेतन है और उसकी शक्ति भी अपरम्पार है ।
स्वामी रामसुखदास जी के श्रीमुख से
            ---हरिः शरणम्---

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