ऐसा न हो फिर देर हो जाऐ
जब सारे शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है, उसका चलना फिरना, उठना बैठना --- सब दूभर हो जाता है । खटिया पर पड़े पड़े वह पश्चाताप करता रहता है कि हाय - हाय सारा जीवन बेकार चला गया । अब उसे ईश्वर का ध्यान आता है, उनसे प्रार्थना करता है, किंतु तब तक तो बहुत देर हो चुकी होती है ----
इतने पर भी करुणा वरुणालय प्रभू उस पर कृपा कर कहते है ---- वत्स! अभी भी कुछ नही बिगड़ा है, तुम्हारी जिभ्हा अभी भी काम कर रही है, तुम चाहो तो अभी भी लोक - परलोक बना सकते हो ।
इसलिये तुम " नारायण " नाम रुपी अमृत का निरंतर पान करो ।
जब सारे शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है, उसका चलना फिरना, उठना बैठना --- सब दूभर हो जाता है । खटिया पर पड़े पड़े वह पश्चाताप करता रहता है कि हाय - हाय सारा जीवन बेकार चला गया । अब उसे ईश्वर का ध्यान आता है, उनसे प्रार्थना करता है, किंतु तब तक तो बहुत देर हो चुकी होती है ----
इतने पर भी करुणा वरुणालय प्रभू उस पर कृपा कर कहते है ---- वत्स! अभी भी कुछ नही बिगड़ा है, तुम्हारी जिभ्हा अभी भी काम कर रही है, तुम चाहो तो अभी भी लोक - परलोक बना सकते हो ।
इसलिये तुम " नारायण " नाम रुपी अमृत का निरंतर पान करो ।
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जय श्री राधे