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बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है

🌕 करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है?


करवा चौथ का पर्व भारतीय स्त्रियों की श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का सबसे पवित्र प्रतीक है

🔹 1. चंद्रमा “सौभाग्य और दीर्घायु” का प्रतीक है

हिंदू ज्योतिष में चंद्रमा मन, सौंदर्य, शीतलता और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करता है।
व्रत रखने वाली स्त्रियाँ मानती हैं कि —

"जैसे चंद्रमा अमर और शीतल है, वैसे ही मेरे पति का जीवन दीर्घ और सुखमय हो।"
इसलिए चंद्रमा को जल चढ़ाकर वे पति की दीर्घायु का आशीर्वाद माँगती हैं।

🔹 2. जल = शुद्ध भावना और अर्पण

जल हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तत्व माना गया है।
जब जल चढ़ाया जाता है, तो उसका अर्थ होता है —

“मैं अपने मन, वचन और कर्म से चंद्रदेव को नमन कर रही हूँ।”
यह जल भावना और भक्ति का प्रतीक है — जैसे हम अपनी पवित्र नीयत चंद्रमा तक पहुँचा रहे हों।

🔹 3. चंद्रमा मन का कारक ग्रह है।


ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा मन और भावनाओं का स्वामी ग्रह है।
व्रत के पूरे दिन स्त्रियाँ संयम, श्रद्धा और प्रेम से अपने मन को स्थिर रखती हैं।
चंद्रमा को जल चढ़ाना, अपने मन को शुद्ध और शांत करने का संकेत है —

“अब मेरा मन संतुलित है, मैं अपने पति के मंगल और सुख के लिए प्रार्थना करती हूँ।”

🔹 4. कथा से संबंध – वेदवती और सावित्री का संकेत

करवा चौथ की पौराणिक कथा में भी चंद्रमा का महत्व है।
कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति के जीवन के लिए यमराज से संघर्ष किया और चंद्रमा को साक्षी मानकर संकल्प लिया।
इसलिए चंद्रमा को जल चढ़ाना उस साक्षी देवता को नमन करने जैसा है।

🔹 5. खगोलिक (Scientific) कारण भी है

रात को जब महिलाएँ चाँद को छलनी से देखती हैं, तो वे एकाग्रता और ध्यान की अवस्था में होती हैं।
चंद्रमा की ठंडी किरणें मन को शांत और संतुलित करती हैं।
जल चढ़ाने का यह कार्य ध्यान और ऊर्जा का समन्वय करता है।

🌸 संक्षेप में:

करवा चौथ पर चंद्रमा को जल चढ़ाना
प्रेम, श्रद्धा, सौभाग्य और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है।
यह चंद्रदेव से प्रार्थना है कि —
“मेरे पति का जीवन दीर्घ आयु हो,स्वस्थ रहे, उनको कोई कष्ट न हो।

इसी कामना की पूर्ति हो ,इसी विश्वास को अपने हृदय में रखकर वह निर्जल व्रत रखती है।❤️

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

गोवर्धन राधा कुंड का भी आज के दिन प्राकट्य हुआ था

      🌸 राधा कुंड प्राकट्य कथा (अहोई अष्टमी विशेष)




✨ परिचय

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी, जिसे हम अहोई अष्टमी के रूप में जानते हैं, केवल मातृ व्रत का दिन ही नहीं, बल्कि भक्ति जगत का एक दिव्य पर्व भी है।
इसी दिन श्रीधाम वृंदावन के समीप गोवर्धन पर्वत के पाद में स्थित राधा कुंड और श्याम कुंड का प्राकट्य हुआ था।
यह स्थान इतना पवित्र है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने इसे “तीर्थराज” की उपाधि दी।

🌺 कथा – राधा कुंड और श्याम कुंड का प्राकट्य


एक बार श्रीकृष्ण ने अरीष्टासुर नामक असुर का वध किया। यह असुर बैल के रूप में आया था और श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिए उसका संहार किया।
किन्तु जब वे गोपियों के बीच गए, तो उन्होंने कहा —

“कृष्ण! तुमने बैल का वध किया है। बैल गोवंश में आता है, इसलिए तुम अपवित्र हो गए हो। पहले प्रायश्चित्त करो।”

तब श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले —

“यदि यह पाप है, तो मैं अभी सभी पवित्र तीर्थों को यहीं बुलाकर स्नान करूंगा।”

ऐसा कहते हुए उन्होंने अपने पग से भूमि पर प्रहार किया। उसी क्षण सभी पवित्र तीर्थ वहाँ प्रकट हो गए और जल का एक अद्भुत सरोवर बन गया — यही श्याम कुंड कहलाया।

यह देखकर श्रीमती राधारानी और उनकी सखियाँ बोलीं —

“हम भी अपना कुंड बनाएंगी, जो आपसे श्रेष्ठ होगा।”

उन्होंने अपने कंगन और बालों की पिन से भूमि खोदनी प्रारंभ की, और शीघ्र ही एक दूसरा कुंड बना लिया। श्रीकृष्ण ने अपने तीर्थों से जल भर दिया, और वह स्थान राधा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


🕉️ तिथि और आध्यात्मिक महत्व

यह दिव्य घटना कार्तिक कृष्ण अष्टमी (अहोई अष्टमी) के दिन हुई थी।
इसलिए यह दिन न केवल अहोई माता व्रत के लिए, बल्कि राधा-कृष्ण भक्ति के साधकों के लिए भी अत्यंत पवित्र माना गया है।

  • इस दिन राधा कुंड में स्नान करने से सहस्रों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • भक्तजन इस दिन रात्रि में दीपदान और जप-कीर्तन करते हैं।
  • कहा गया है कि राधा कुंड दर्शन मात्र से ही मनुष्य प्रेममय भक्ति को प्राप्त करता है

🌼 भावार्थ

राधा कुंड हमें यह सिखाता है कि प्रेम और भक्ति का संगम ही परम पवित्रता है
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं —

“राधा कुंड मेरे लिए भी प्रिय है, जो भक्त राधा कुंड का दर्शन करता है, वह मुझे अत्यंत प्रिय होता है।”

इसलिए अहोई अष्टमी के दिन केवल व्रत या स्नान ही नहीं, बल्कि राधारानी के चरणों में प्रेमपूर्ण स्मरण ही सच्चा पूजन है।


🌷 निष्कर्ष

अहोई अष्टमी का दिन दोहरा आशीर्वाद लेकर आता है —
एक ओर मातृत्व की मंगलकामना, और दूसरी ओर राधा-कृष्ण प्रेम की प्राप्ति
इस दिन यदि मन से “राधा राधा” जपा जाए, तो जीवन में शांति, सौभाग्य और भक्ति का अमृत स्वयं बरसने लगता है।



🪔 जय श्री राधे कृष्णा 🪔


अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami)

                   अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) 

एक अत्यंत पवित्र व्रत है, जो मुख्य रूप से संतान की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, अर्थात दीपावली से लगभग 8 दिन पहले

नीचे विस्तार से इसकी जानकारी दी गई है 👇

🌙 अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत विशेषकर माताएँ अपने पुत्रों की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य और सुख के लिए रखती हैं। पहले यह व्रत केवल पुत्रवती स्त्रियाँ करती थीं, परंतु अब कई महिलाएँ संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी करती हैं।

इस दिन माँ अहोई माता की पूजा होती है, जिन्हें अहोई भगवती, पार्वती माता का ही रूप माना गया है।

📅 2025 में अहोई अष्टमी की तिथि

  • तारीख: 13 अक्टूबर 2025
  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर, सुबह 1:42 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर, सुबह 4:10 बजे
  • पूजन का उत्तम समय: संध्या (सूर्यास्त के बाद सितारे दिखने तक)

🕉️ अहोई अष्टमी की कथा (कहानी)

बहुत समय पहले एक साहूकार था जिसकी सात पुत्रियाँ थीं। कार्तिक माह में वे अपनी झाड़ू लेकर जंगल में मिट्टी लाने गईं। वहाँ एक सिंहनी का बच्चा (सियार या शेर का शावक) गलती से मिट्टी निकालते समय मर गया। सिंहनी क्रोधित होकर साहूकार के घर पहुँची और बोली, “जिसने मेरे बच्चे को मारा है, मैं उसके बच्चे को ले जाऊँगी।”

धीरे-धीरे हर साल साहूकार के घर एक-एक करके बच्चे मरते गए। साहूकार दंपत्ति दुखी होकर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अंत में जब उन्होंने एक साध्वी से कारण पूछा तो साध्वी ने कहा — “तुम कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई माता की पूजा करो, और सच्चे मन से क्षमा माँगो।”

उन्होंने वैसा ही किया और माता प्रसन्न हुईं। तब से उनके घर सुख-शांति लौट आई।

इसलिए इस व्रत में सिंहनी या सियार के बच्चे की आकृति बनाकर पूजा की जाती है।

🌸 व्रत की विधि

  1. सुबह स्नान कर संकल्प लें — “मैं अहोई माता का व्रत अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए कर रही हूँ।”
  2. पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है (कुछ महिलाएँ जल या फल ग्रहण करती हैं)।
  3. शाम को सूर्यास्त के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है।
  4. दीवार या कागज पर अहोई माता, सिंहनी (या बिल्ली) और सात संतानों का चित्र बनाएं।
  5. चित्र के सामने दीपक जलाएं, जल, दूध, हलवा-पूरी, सिंघाड़े और फल रखें।
  6. अहोई माता की कथा सुनें।
  7. सितारे (तारों) की पूजा करें — तारे को “संतान का प्रतीक” माना गया है।
  8. तारे को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।

🙏 अहोई माता की आरती

जय अहोई माता जय जय अहोई माता।
तुमको निशि दिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता॥
सिंहवाहिनी वरदायिनी, माँ जगदंबा भवानी।
जो माँ तुम्हे ध्यावत है, पावे सुख-खजाना॥
जय अहोई माता जय जय अहोई माता॥

💫 व्रत के लाभ

  • संतान की रक्षा और लंबी आयु होती है।
  • घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
  • माता पार्वती की कृपा बनी रहती है।
  • निष्काम भाव से व्रत करने पर संतान सुख की प्राप्ति भी होती है।

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

कार्तिक माह 2025: महत्व, व्रत, नियम और दीपदान का धार्मिक रहस्य | Parmatma Aur Jivan

  1. माह का महत्व और नियम – जानिए इस पवित्र महीने का रहस्य
  2. कार्तिक स्नान, दीपदान और व्रत का महत्व – पूर्ण जानकारी
  3. क्यों कहा गया है कार्तिक मास को भगवान विष्णु का प्रिय महीना
  4. कार्तिक माह में क्या करें और क्या न करें – धार्मिक नियम व लाभ
  5. कार्तिक पूर्णिमा तक का विशेष पूजन विधि और कथा

✍️ ब्लॉग का परिचय (Introduction)

यह जो अब चल रहा है यह महीना कार्तिक ही है।

कार्तिक माह हिंदू पंचांग का आठवाँ महीना है, जो शरद ऋतु में आता है।
यह महीना भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की उपासना का समय है।
इस दौरान स्नान, दीपदान, दान और व्रत करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
कार्तिक माह को “धर्म, दान और दीप का महीना” भी कहा गया है।


🌸 कार्तिक माह का धार्मिक महत्व

  • कार्तिक मास में भगवान विष्णु शयनावस्था से जागते हैं (देवउठनी एकादशी)
  • तुलसी विवाह इसी महीने में होता है।
  • दीपदान से अंधकार दूर होता है और घर में सुख-शांति आती है।
  • इस माह में स्नान, विशेषकर तीर्थ स्नान, अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।

🌼 कार्तिक माह में किए जाने वाले मुख्य कार्य

  1. प्रातःकाल स्नान (विशेषकर ब्रह्ममुहूर्त में)।
  2. दीपदान – घर, मंदिर, तुलसी के पास, नदी किनारे दीप जलाना।
  3. भगवान विष्णु, लक्ष्मी, शिव और तुलसी पूजन।
  4. दान – भोजन, वस्त्र, तिल, दीप, और अन्न का दान करना।
  5. व्रत और कथा श्रवण।
  6. तुलसीजी की 108 या 4 परिक्रमा करें।
  7. वैष्णव ग्रन्थ को पढ़े या सुने।
  8. अधिक से अधिक नाम जप करें।
  9. गो सेवा व संत सेवा करें।
  10. राधा कृपा कटाक्ष का पाठ करें।
  11. https://www.blogger.com/blog/post/edit/7240407276943048193/7899315568702213349
  12. अगर आपके पास सुखी हुई तुलसी जी है तो उनको गाय के घी में भिगो कर ठाकुर जी की आरती उतारें।

🚫 कार्तिक माह में क्या न करें

  • प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, और तामसिक भोजन से परहेज करें।
  • क्रोध, झूठ, चुगली और आलस्य न करें।
  • किसी का अपमान या अहित न सोचें।

🌙 कार्तिक माह की प्रमुख तिथियाँ (2025 के अनुसार)

तिथि पर्व / उत्सव
22 अक्टूबर कार्तिक अमावस्या (दीपावली)
23 अक्टूबर गोवर्धन पूजा
24 अक्टूबर भैया दूज
4 नवंबर देवउठनी एकादशी
6 नवंबर तुलसी विवाह
7 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा (गंगा स्नान और दीपदान का विशेष दिन)

💫 कार्तिक स्नान का महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार,

“कार्तिके स्नानदानं च यत्कृतं तेन सर्वं भवेत् फलम्।”
अर्थात — कार्तिक माह में स्नान और दान करने से सभी कर्मों का फल प्राप्त होता है।

🪔 निष्कर्ष

कार्तिक मास भक्ति, आत्मशुद्धि और दान का महीना है।
यदि इस महीने में नियमित रूप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करें, तो जीवन में शांति, समृद्धि और दिव्यता आती है।


शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

“भीड़ में अकेलापन — आत्मा की पुकार | जीवन का आध्यात्मिक सत्य”

 🌸 भीड़ में अकेलापन — आत्मा की पुकार

            (लेख: Parmatma Aur Jivan)


🌿 प्रस्तावना

आज का मनुष्य हर ओर से जुड़ा हुआ लगता है —

मोबाइल, सोशल मीडिया, काम, और समाज से।

फिर भी भीतर एक गहरी खामोशी है।

एक ऐसी चुप्पी, जो सबसे ज़्यादा सुनाई देती है।

भीड़ में रहने के बाद भी, इंसान अकेलापन महसूस करता है।

क्यों?

क्योंकि आज के युग में संबंध मन से नहीं, माध्यमों से बने हैं।


🌼 बाहरी जुड़ाव, भीतर का खालीपन

हमारे पास हजारों “फ्रेंड्स” हैं,

पर कोई एक भी ऐसा नहीं,

जिसे हम दिल खोलकर सब कुछ कह सकें।

हम हँसते हैं, बातें करते हैं, फोटो डालते हैं,

पर भीतर एक शून्य बैठा रहता है।

वो शून्य, जो हमें याद दिलाता है —

कि “सच्चा जुड़ाव आत्मा से होता है, लोगों से नहीं।”


🔥 प्रतिस्पर्धा ने रिश्तों की ऊष्मा छीन ली

पहले रिश्तों में अपनापन था,

अब तुलना और स्वार्थ ने जगह ले ली है।

हर कोई आगे बढ़ने की दौड़ में लगा है,

पर किसी का हाथ पकड़ने का समय नहीं।

सफलता की चमक के पीछे मनुष्य अपने

“अस्तित्व की शांति” खो चुका है।


🌷 मन की बात — अब मौन हो चुकी है

हम अपने दिल की सच्ची बातें अब शब्दों में नहीं कहते,

बल्कि “स्टेटस” या “पोस्ट” के जरिए जताते हैं।

लोगों से बात करते हुए भी,

दिल को कोई समझ नहीं पाता।

यही असली अकेलापन है —

जब इंसान खुद को भी नहीं सुन पाता।


🌸 आत्मा की पुकार


यह अकेलापन दरअसल एक संकेत है —

कि आत्मा हमें पुकार रही है।

वो कह रही है —

“अब बाहर मत ढूंढो, भीतर आओ।”

जब हम परमात्मा से दूर हो जाते हैं,

तो मन शोर में भी खाली लगता है।

क्योंकि सच्ची संगति तो परमसंगति है —

वो जो आत्मा को ईश्वर से जोड़ती है।


🕉️ समाधान — भीतर के परमात्मा से मिलन


1. हर दिन कुछ समय मौन में बैठें।

मौन में ही ईश्वर बोलते हैं।

2. मंत्र जपें या प्रार्थना करें —

“हे प्रभु, मुझे आपसे जुड़ने की शक्ति दें।”

3. किसी अपने की सच्ची बात सुनें।

सुनना भी एक भक्ति है।

4. प्रकृति से जुड़ें —

सूरज, हवा, और पेड़ों में वही परमात्मा बसता है।

5. अपने भीतर प्रेम जगाइए —

क्योंकि जहाँ प्रेम है, वहाँ अकेलापन नहीं होता।

🌞 निष्कर्ष

भीड़ में अकेलापन इस युग की सच्चाई है,

पर यह कोई अभिशाप नहीं, एक अवसर है।

यह हमें भीतर झाँकने और परमात्मा से मिलने का

आमंत्रण देता है।

जब मनुष्य अपने भीतर ईश्वर को पा लेता है,

तो फिर भीड़ हो या सन्नाटा —

वो कभी अकेला नहीं रहता।


क्योंकि तब आत्मा फुसफुसाती है:

> “अब तू अकेला नहीं, मैं तेरे साथ हूँ।” 💫

😊🙏

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

गोवर्धन पर्वत | कथा, पूजा, परिक्रमा और महत्व

गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व, श्रीकृष्ण की दिव्य लीला, गोवर्धन पूजा और 21 किमी परिक्रमा की सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पढ़ें। मथुरा स्थित इस पावन स्थल की यात्रा गाइड।


🌿 गोवर्धन पर्वत: श्रीकृष्ण की दिव्य लीला, पूजा, परिक्रमा और महत्व

✨ प्रस्तावना

भारत की पावन भूमि पर अनेकों तीर्थ स्थल हैं, लेकिन गोवर्धन पर्वत का स्थान अनोखा और दिव्य है। मथुरा के समीप स्थित यह पर्वत न केवल एक धार्मिक धरोहर है, बल्कि श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला का जीवंत प्रतीक भी है। भक्तों का विश्वास है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण आज भी गोवर्धन पर्वत में निवास करते हैं।


📖 गोवर्धन पर्वत की कथा

भागवत पुराण और श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित है कि जब इन्द्र देव ने गोकुलवासियों पर निरंतर वर्षा कर उनका जीवन संकट में डाल दिया, तब नन्हें बालक कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सम्पूर्ण वृज को सुरक्षा दी। सात दिन तक पर्वत धारण कर भगवान ने यह संदेश दिया कि प्रकृति और धरती माता की पूजा सर्वोच्च है।
यही कारण है कि आज भी गोवर्धन को "श्रीकृष्ण का स्वरूप" मानकर पूजा जाता है।


🌸 गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव



दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन अन्नकूट का विशेष आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों प्रकार के पकवान बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है।

  • गोबर से गोवर्धन पर्वत का स्वरूप बनाया जाता है।
  • उस पर फूल, दीपक और तरह-तरह के व्यंजन सजाए जाते हैं।
  • परिवार और समुदाय मिलकर यह पूजा करते हैं।

इस दिन भक्त भगवान को यह संदेश देते हैं कि हम प्रकृति, अन्न और धरती की महत्ता को कभी नहीं भूलेंगे।

🚶 गोवर्धन परिक्रमा का महत्व

गोवर्धन यात्रा का मुख्य आकर्षण है 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा। भक्तगण नंगे पाँव चलते हुए पर्वत की परिक्रमा करते हैं और “जय श्री गोवर्धनधारी” का उद्घोष करते हैं।
परिक्रमा मार्ग में कई पवित्र स्थल आते हैं, जैसे –

  • दानघाटी – जहाँ से परिक्रमा प्रारंभ होती है।
  • मुखारविंद – गोवर्धन का मुख स्वरूप, जहाँ विशेष पूजा होती है।
  • राधाकुंड और श्यामकुंड – यह सरोवर अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।
  • पुनर्स्थलियाँ – जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाएँ कीं।

भक्त मानते हैं कि गोवर्धन परिक्रमा करने से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और भक्ति-भाव बढ़ता है।


🙏 धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  • गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।
  • यह प्रकृति पूजन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
  • यहाँ आकर हर भक्त अनुभव करता है कि भक्ति ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।

🏞️ पर्यटन दृष्टिकोण


गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है।

  • कैसे पहुँचें?
    • मथुरा से दूरी: लगभग 22 किमी
    • वृंदावन से दूरी: लगभग 26 किमी
    • दिल्ली से दूरी: लगभग 150 किमी
  • रुकने की व्यवस्था: मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन कस्बे में धर्मशालाएँ और होटल उपलब्ध हैं।
  • यात्रियों के लिए सुझाव:
    • परिक्रमा प्रातःकाल या संध्या में करना उत्तम है।
    • गर्मी के दिनों में जल, टोपी और छाता साथ रखें।
    • स्थानीय नियमों और परंपराओं का पालन करें।

🌺 निष्कर्ष

गोवर्धन पर्वत न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा, अन्न का सम्मान और ईश्वर पर विश्वास ही जीवन का सार है।
यदि आपने अभी तक गोवर्धन यात्रा नहीं की है, तो एक बार अवश्य जाएँ और श्रीकृष्ण के उस दिव्य स्वरूप का अनुभव करें।

👉 क्या आपने गोवर्धन परिक्रमा की है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें


मंगलवार, 30 सितंबर 2025

दुर्गा नवमी 2025 का महत्व, पूजा विधि और व्रत नियम जानें। मां सिद्धिदात्री की पूजा, कन्या पूजन और दान का विशेष महत्व। महानवमी से प्राप्त करें सुख-समृद्

🌺 दुर्गा नवमी (महानवमी) – महत्व, पूजा विधि और व्रत




✨ दुर्गा नवमी क्या है?

  • दुर्गा नवमी, शारदीय नवरात्रि का नवां दिन है।
  • इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
  • मान्यता है कि इसी दिन महिषासुर का वध हुआ और देवी दुर्गा ने धर्म की पुनः स्थापना की।

🕉️ दुर्गा नवमी का महत्व

  1. इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
  2. मां सिद्धिदात्री की कृपा से विद्या, बुद्धि और आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
  3. इस दिन कन्या पूजन (कन्या भोज) का विशेष महत्व है।
  4. नवमी का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

🌼 दुर्गा नवमी पूजा विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर घर को स्वच्छ करें और पूजास्थल को सजाएँ।
  2. देवी मां की मूर्ति या चित्र स्थापित कर गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
  3. लाल फूल, चुनरी, नारियल, फल और मिठाई अर्पित करें।
  4. दुर्गा सप्तशती या देवी के 108 नामों का पाठ करें।
  5. कन्या पूजन करें – 9 छोटी कन्याओं और 1 छोटे बालक (लंगूर) को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराएँ और उपहार दें।
  6. दीपक जलाकर आरती करें और प्रसाद बाँटें।

🌸 दुर्गा नवमी पर क्या करें?

  • गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान करें।
  • कन्याओं को उपहार (कपड़े, चुनरी, कुमकुम, फल, खिलौने) दें।
  • परिवार के साथ देवी माँ के भजन व स्तुति करें।

📖 निष्कर्ष

दुर्गा नवमी नवरात्रि का परम पवित्र दिन है। इस दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में शांति, समृद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है।

श्री हनुमान चालीसा का संपूर्ण पाठ, महत्व और लाभ जानें। भय, रोग और संकट दूर करने तथा सुख-समृद्धि पाने के लिए हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।

     श्री हनुमान चालीसा का संपूर्ण पाठ, महत्व और लाभ जानें। भय, रोग और संकट दूर करने तथा सुख-समृद्धि पाने के लिए हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।


🕉️ श्री हनुमान चालीसा – पाठ, अर्थ और लाभ

✨ परिचय

हनुमान चालीसा एक अमर काव्य है जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा। इसके पाठ से भय, रोग, संकट और नकारात्मकता दूर होती है। हनुमान जी को प्रसन्न करने का यह सबसे सरल और प्रभावी उपाय है।

🙏 श्री हनुमान चालीसा (पूरा पाठ)

  🙏 श्री हनुमान चालीसा 🙏

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥

चालीसा
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरी नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥

विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर संहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।
लिल्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही ।
जलधि लांघि गये अचरज नाही ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक ते काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥


🌸 हनुमान चालीसा का महत्व

  • हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से जीवन में साहस, बल और भक्ति का संचार होता है।
  • यह काव्य मन को शांत करता है और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
  • संकट के समय इसका पाठ करने से मार्ग सरल होता है।

🌺 हनुमान चालीसा पाठ के लाभ

  1. भय, रोग और संकट दूर होते हैं।
  2. मन, बुद्धि और आत्मबल की वृद्धि होती है।
  3. घर-परिवार में शांति और सुख-समृद्धि आती है।
  4. हनुमान जी की कृपा से कार्य सिद्ध होते हैं।
  5. नियमित पाठ से आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।


🪔 हनुमान चालीसा का पाठ कब और कैसे करें?

  • सुबह या शाम स्वच्छ होकर शांत मन से।
  • दीपक और अगरबत्ती जलाकर हनुमान जी के सामने बैठें।
  • कम से कम 11 बार या 108 बार पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
  • मंगलवार और शनिवार को पाठ का विशेष महत्व है।

📖 निष्कर्ष

हनुमान चालीसा का पाठ केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि आत्मबल और सकारात्मकता का स्रोत है। इसे जीवन में अपनाकर हम न सिर्फ़ आध्यात्मिक शांति पा सकते हैं बल्कि सांसारिक समस्याओं से भी मुक्ति पा सकते हैं।      

🌺 हनुमान चालीसा के लाभ

  1. भय, रोग और संकट दूर होते हैं।
  2. मन, बुद्धि और आत्मबल की वृद्धि होती है।
  3. घर-परिवार में शांति और सुख-समृद्धि आती है।
  4. हनुमान जी की कृपा से कार्य सिद्ध होते हैं।
  5. नियमित पाठ से आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

।।जय सियाराम ।।



शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

माँ दुर्गा के 108 नाम (संस्कृत + सरल अर्थ)

      माँ दुर्गा के 108 नाम (संस्कृत + सरल अर्थ)



१. दुर्गा – कठिनाइयों को दूर करने वाली
२. देवी – सबकी आराध्या शक्ति
३. त्र्यंबका – तीन नेत्रों वाली
४. काली – समय और मृत्यु की अधिष्ठात्री
५. कात्यायनी – ऋषि कात्यायन की पुत्री
६. चामुंडा – चंड और मुंड का वध करने वाली
७. महिषासुरमर्दिनी – महिषासुर का वध करने वाली
८. चंडिका – क्रोधमूर्ति
९. भवानी – संसार की माता
१०. भव्या – कल्याणमयी

११. जया – सदैव विजय देने वाली
१२. आद्या – आदिशक्ति
१३. विन्ध्यवासिनी – विंध्याचल में वास करने वाली
१४. रुद्राणी – रुद्र की अर्धांगिनी
१५. शिवा – मंगलमयी
१६. शर्वाणी – भगवान शंकर की शक्ति
१७. अम्बिका – सबकी माता
१८. आनन्दमयी – आनंद देने वाली
१९. भवप्रिया – भक्तों को प्रिय
२०. भद्रकाली – कल्याण करने वाली काली

२१. शूलधारिणी – त्रिशूल धारण करने वाली
२२. खड्गधारिणी – खड्ग (तलवार) वाली
२३. घण्टायुधध्वनि – घंटी की ध्वनि से दुष्टों को भयभीत करने वाली
२४. शंखिनी – शंख धारण करने वाली
२५. चक्रिणी – चक्र धारण करने वाली
२६. धनुर्धारिणी – धनुष वाली
२७. पिनाकधारिणी – पिनाक (शिवधनुष) धारण करने वाली
२८. शक्तिधारिणी – शक्ति (भाला) धारण करने वाली
२९. खड्गमुण्डधारिणी – खड्ग व मुण्ड धारण करने वाली
३०. सिंहवाहिनी – सिंह पर आरूढ़

३१. महालक्ष्मी – धन-समृद्धि देने वाली
३२. महाकाली – महान शक्ति रूपी काली
३३. महासरस्वती – ज्ञान की अधिष्ठात्री
३४. त्रिनेत्री – तीन नेत्रों वाली
३५. त्रिशूलिनी – त्रिशूल वाली
३६. खड्गिनी – तलवार धारण करने वाली
३७. भीषणा – भयानक रूप वाली
३८. भीमरूपा – अत्यंत प्रचंड रूप वाली
३९. स्कन्दमाता – स्कन्द (कार्तिकेय) की माता
४०. पार्वती – पर्वतराज हिमालय की पुत्री

४१. हेमवती – स्वर्ण के समान कान्तिवाली
४२. गिरिजा – पर्वत से उत्पन्न
४३. शैलजा – शैल (पर्वत) की पुत्री
४४. दक्षयज्ञविनाशिनी – दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाली
४५. सती – पतिव्रता
४६. भवानी – संसार की माता
४७. जगन्माता – जगत की जननी
४८. जगद्धात्री – जगत की धारिणी
४९. जगदम्बा – जगत की अम्बा
५०. जगद्गुरु – जगत को ज्ञान देने वाली

५१. त्रैलोक्यसुन्दरी – तीनों लोकों में सुन्दरी
५२. सर्वेश्वरी – सबकी अधीश्वरी
५३. सर्वमङ्गला – सर्वकल्याणमयी
५४. सर्वकारणरूपिणी – समस्त कारण की मूर्ति
५५. ब्रह्मस्वरूपिणी – ब्रह्म की स्वरूप
५६. विष्णुमाया – विष्णु की माया
५७. ईश्वरी – ईश्वर की शक्ति
५८. नारायणी – भगवान विष्णु की सहचरी
५९. वैष्णवी – विष्णु की शक्ति
६०. महादेवी – महान देवी

६१. महेश्वरी – महेश्वर की अर्धांगिनी
६२. चण्डेश्वरी – चण्ड रूपिणी
६३. कालरात्रि – अंधकार को हरने वाली
६४. शम्भवी – शंकर की शक्ति
६५. गौरी – गोरी, सौम्य स्वरूपा
६६. सौम्या – शान्त रूप वाली
६७. भीमा – भयंकर रूप वाली
६८. दुर्गातरणी – कठिनाइयों से पार लगाने वाली
६९. दुर्गनाशिनी – संकट दूर करने वाली
७०. दुर्गमप्रणाशिनी – कठिन बाधाओं का नाश करने वाली

७१. दुर्गदाहिनी – कष्टों का दहन करने वाली
७२. दुर्गमापहा – दुर्गम को हरने वाली
७३. दुर्गमार्तिनाशिनी – कठिन पीड़ा का नाश करने वाली
७४. दुर्गमदहनकरी – बाधाओं को जलाने वाली
७५. दुर्गसङ्घारिणी – बाधाओं को मिटाने वाली
७६. दुर्गतोद्धारिणी – दुर्गति से बचाने वाली
७७. दुर्गविनाशिनी – कष्ट हरने वाली
७८. दुर्गमापहा – दुष्टता मिटाने वाली
७९. दुर्गहन्त्री – दुष्टों का हरण करने वाली
८०. दुर्गमशमनी – संकट शान्त करने वाली

८१. शरण्ये – शरण देने वाली
८२. त्राहि – रक्षक रूपिणी
८३. भीतिहन्त्री – भय को हरने वाली
८४. भयप्रहा – भय मिटाने वाली
८५. मोक्षदायिनी – मुक्ति देने वाली
८६. कामदायिनी – मनोकामना पूर्ण करने वाली
८७. धर्मधारिणी – धर्म की रक्षिका
८८. धर्मसंरक्षिणी – धर्म की संरक्षिका
८९. सुखप्रदा – सुख देने वाली
९०. शान्तिदायिनी – शांति देने वाली

९१. सौख्यप्रदा – जीवन में आनन्द देने वाली
९२. आयुष्प्रदा – आयु देने वाली
९३. आरोग्यप्रदा – आरोग्य देने वाली
९४. ऐश्वर्यप्रदा – वैभव देने वाली
९५. पुत्रप्रदा – संतान देने वाली
९६. विद्यारूपिणी – ज्ञान स्वरूपिणी
९७. भोगप्रदा – भोग देने वाली
९८. यशस्विनी – यश देने वाली
९९. तेजस्विनी – तेजस्विनी
१००. कीर्तिदायिनी – कीर्ति देने वाली

१०१. वैरिनाशिनी – शत्रु नाशिनी
१०२. दुष्टदमनकरी – दुष्टों का दमन करने वाली
१०३. सौम्यरूपा – सौम्य स्वरूपिणी
१०४. करुणामयी – दयामयी
१०५. कृपामयी – कृपा की मूर्ति
१०६. भक्तवत्सला – भक्तों को स्नेह देने वाली
१०७. सर्वान्तर्यामिनी – सबके भीतर वास करने वाली
१०८. सर्वमङ्गला – सबका कल्याण करने वाली


इन नामों का माला जप (108 बार), या रोज़ केवल 11/21 नाम पढ़ना भी बहुत शुभ माना जाता है।
विशेषकर नवरात्रि, शुक्रवार या अष्टमी के दिन इनका पाठ करने से माँ की कृपा शीघ्र मिलती है।


कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित

          कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित


"कृष्ण कृपा कटाक्ष" का अर्थ है –
भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रहपूर्ण दृष्टि-पात (कृपापूर्ण नज़र डालना)।

यह वाक्यांश भक्ति-साहित्य में बहुत मिलता है। इसका भाव है –
जब भगवान कृष्ण अपनी कृपादृष्टि (कटाक्ष) भक्त पर डालते हैं, तो उसके जीवन के कष्ट मिट जाते हैं, मन में शांति आ जाती है और भक्ति का मार्ग सरल हो जाता है।

कभी इसे प्रार्थना के रूप में भी प्रयोग किया जाता है –
"हे नंदलाल! मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि डालो।"
इसका अर्थ है –
"हे कृष्ण! अपनी दयालु नज़र से मेरी ओर देखो और मेरे जीवन के अंधकार को दूर करो।"

श्लोक १
वन्दे नन्द व्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः।
यासां हरिकथोद्गीतं पुणाति भुवनत्रयम्॥
अर्थ:
मैं नन्दगाँव की गोपियों के चरणों की धूल को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
जिनके मुख से निकली श्रीकृष्ण लीला की कथाएँ तीनों लोकों को पवित्र कर देती हैं।

श्लोक २
कृष्ण कृपा कटाक्षेण भूरिभाग्यं प्रसिद्ध्यति।
तत्प्रसादात्सदा साम्यं स्वपदं प्राप्यते नरः॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि मात्र से ही जीव अत्यंत भाग्यशाली हो जाता है।
उनकी कृपा से मनुष्य अंत में श्रीकृष्ण के परम धाम को प्राप्त कर लेता है।

श्लोक ३
कृष्णेति नाम यः प्रोक्तं नारदेन पुरा हरेः।
तस्य सङ्कीर्तनादेव सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
अर्थ:
जिस "कृष्ण" नाम का उच्चारण स्वयं नारद मुनि ने किया था,
उस नाम का कीर्तन करने से मनुष्य सारे पापों से मुक्त हो जाता है।

श्लोक ४
दुःखदारिद्र्यविषमं हर्षमायुर्यशः श्रियः।
प्रददातु सदानन्दः कृष्णः कृपाकटाक्षतः॥
अर्थ:
हे सदानन्द कृष्ण! आपकी कृपा दृष्टि से
हमारा दुःख, दरिद्रता और विषम परिस्थिति दूर हो जाए,
हमें सुख, दीर्घायु, यश और लक्ष्मी प्राप्त हो।

श्लोक ५
सर्वे विष्णुमया देवा वसुन्ध्रा विष्णुमायिनी।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन विष्णुमेव समाश्रयेत्॥
अर्थ:
समस्त देवता विष्णु के ही रूप हैं, यह पृथ्वी भी विष्णु की शक्ति से चल रही है।
इसलिए हमें सम्पूर्ण प्रयत्न से केवल भगवान विष्णु (कृष्ण) का ही आश्रय लेना चाहिए।

श्लोक ६
कृष्णस्य दर्शनं पुण्यं जन्मकोटि सुखावहम्।
तस्य स्मरणमात्रेण मनुष्याणां विघ्ननाशनम्॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण का दर्शन जन्म-जन्मांतर के पुण्य से मिलता है,
और उनके स्मरण मात्र से ही मनुष्य के सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।

श्लोक ७
कृष्णस्य नाम सङ्कीर्त्य पापं नश्यति तत्क्षणात्।
गङ्गास्नानसहस्राणि फलं प्राप्नोति मानवः॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण का नाम जपते ही पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं।
मनुष्य को सहस्रों गंगास्नान के समान पुण्य प्राप्त हो जाता है।

श्लोक ८
य इदं पठते स्तोत्रं भक्त्या श्रद्धासमन्वितः।
कृष्णकृपाकटाक्षेण लभते मोक्षमुत्तमम्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तोत्र को श्रद्धा और भक्ति से पढ़ता है,
वह श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि से उत्तम मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

यह अर्थ समझकर यदि आप प्रतिदिन इसे प्रेम से पढ़ेंगे, तो न केवल मन को शांति मिलेगी बल्कि जीवन में सकारात्मकता और भक्ति भी बढ़ेगी।

यह एक ऐसा कुआं है जिसमें आदमी एक बार गिरता है तो-------

यह एक ऐसा कुआं है जिसमें आदमी एक बार गिरता है तो------





 एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?* *इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया। आखिर में राजा भोज ने राज पंडित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।* *छः दिन बीत चुके थे।राज पंडित को जबाव नहीं मिला था।निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?* *यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा?सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा।इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा - पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कल तक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।

 गड़रिया बोला मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।

 राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं ? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।

 गड़रिया बोला पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो। राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी । मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला।

 राज पंडित बोला ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है ? गड़रिया बोला अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।

राजपंडित ने कहा तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा ? तो जाओ, गड़रिया बोला राज पंडित बोला मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को।गड़रिया बोला वह बात गयी।अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।राजपंडित ने खूब विचार कर कहा है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।* *गड़रिया बोला मिल गया जवाब। यही तो कुआं है लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।

 जो प्राप्त है-पर्याप्त है 

जिसका मन मस्त है

 उसके पास समस्त है!!

मंगलवार, 23 सितंबर 2025

श्री कृष्ण के जीवन में आठ अंक का महत्व

           श्री कृष्ण के जीवन में आठ अंक का महत्व


कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते।

आठ का अंक

 कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।

कृष्ण के नाम

 नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।

कृष्ण के माता-पिता

 कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की प‍त्नी थीं।

कृष्ण के गुरु

 गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।

कृष्ण के भाई

कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।

कृष्ण की बहनें

कृष्ण की 3 बहनें थी : 

1.एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)।

2.सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।

3.द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्‍ण इसे अपनी मानस ‍भगिनी मानते थे।

4.देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।

कृष्ण की पत्नियां

 रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।

कृष्ण के पुत्र

रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…अर्थात प्रत्येक पत्नी से 10/ 10 पुत्र हुए।

कृष्ण की पुत्रियां

रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।

कृष्ण के पौत्र

प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।

कृष्ण की 8 सखियां 

 राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं-

 ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।

कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।

 इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर- ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। 

कृष्ण के 8 मित्र

 श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। 

इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे। ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।

कृष्ण के शत्रु

कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक। कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जा था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।

कृष्ण के शिष्य

कृष्ण ने किया जिनका वध : पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।

कृष्ण चिन्ह

 सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।

कृष्ण लोक

 वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।

कृष्ण ग्रंथ : महाभारत और गीता

कृष्ण का कुल

यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं। यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए। अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।

शाप के चलते सिर्फ यदु‍ओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया। इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए। वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा। जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था। बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुरा के मथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।

कृष्ण पर्व

 श्री कृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी। जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।

*मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं*

मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।

भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:

सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।

सन्त हरिदास जी ने जब पूरी इत्र की शीशी राधा जी को होली खेलने के लिए रेत में डाल दी।

 सन्त हरिदास जी ने जब पूरी इत्र की शीशी राधा जी को होली खेलने के लिए रेत में डाल दी।


एक व्यक्ति लाहौर से कीमती रूहानी इत्र लेकर आये थे। क्योंकि उन्होंने सन्त श्री हरिदास जी महाराज और बांके बिहारी के बारे में सुना हुआ था। उनके मन में आये की मैं बिहारी जी को ये इत्र भेंट करूँ। इस इत्र की खासियत ये होती है की अगर बोतल को उल्टा कर देंगे तो भी इत्र धीरे धीरे गिरेगा और इसकी खुशबु लाजवाब होती है। ये व्यक्ति वृन्दावन पहुँचा।

उस समय सन्त जी एक भाव में डूबे हुए थे। सन्त देखते है की राधा-कृष्ण दोनों होली खेल रहे हैं। जब उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में हैं तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर सन्त की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा।

तभी सन्त देखते हैं की राधा जी और कृष्ण जी एक दूसरे पर रंग डाल रहे हैं। पहले कृष्ण जी ने रंग से भरी पिचकारी राधा जी के ऊपर मारी। और राधा रानी सिर से लेकर पैर तक रंग में रंग गई। अब जब राधा जी रंग डालने लगी तो उनकी कमोरी (छोटा घड़ा) खाली थी। सन्त को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही हैं, क्योंकि उनका रंग खत्म हो गया है।


तभी सन्त ने तुरन्त वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की कमोरी में डाल दी और तुरन्त राधा जी ने कृष्ण जी पर रंग डाल दिया। हरिदास जी ने सांसारिक दृष्टि में वो इत्र भले ही रेत में डाला। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि में वो राधा रानी की कमोरी में डाला।


उस भक्त ने देखा की इन सन्त ने सारा इत्र जमीन पर गिरा दिया। उसने सोचा में इतने दूर से इतना महंगा इत्र लेकर आया था पर इन्होंने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया। मैंने तो इन सन्त के बारे में बहुत कुछ सुना था। लेकिन इन्होने मेरे इतने महंगे इत्र को मिट्टी में मिला दिया। वह कुछ भी ना बोल सका। थोड़ी देर बाद सन्त ने आँखें खोली उस व्यक्ति ने सन्त को अनमने मन से प्रणाम किया। अब वो व्यक्ति जाने लगा। तभी सन्त ने कहा- ”आप अन्दर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आएँ।” उस व्यक्ति ने सोचा कि अब दर्शन करें या ना करें क्या लाभ। इन सन्त के बारे में जितना सुना था सब उसका उल्टा ही पाया है। फिर भी चलो चलते समय दर्शन कर लेता हूँ।


क्या पता अब कभी आना हो या ना हो। ऐसा सोचकर वह व्यक्ति बांके बिहारी जी के मन्दिर में अन्दर गया तो क्या देखता है की सारे मन्दिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहाए हुए थे। उसकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे और वह सारी लीला समझ गया तुरन्त बाहर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा और उन्हें बार-बार प्रणाम करने लगा। और कहता है सन्त जी मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने आप पर अविश्वास दिखाया। सन्त ने उसे माफ कर दिया और कहा कि भैया तुम भगवान को भी सांसारिक दृष्टि से देखते हो लेकिन मैं संसार को भी आध्यात्मिक दृष्टि से देखता हूँ।

।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

नवरात्रि के नौ दिन और नौ देवी

                  🌺 नवरात्रि के नौ दिन,महत्व,रूप,भोग और नौ देवी



1️⃣ प्रथम दिन – माँ शैलपुत्री

  • रूप: पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
  • वाहन: वृषभ (बैल)।
  • महत्व: जीवन में स्थिरता और शांति देती हैं।
  • पूजा विधि: गंगाजल से शुद्धिकरण करें, फूल और धूप अर्पित करें।
  • भोग: घी।

2️⃣ द्वितीय दिन – माँ ब्रह्मचारिणी

  • रूप: तपस्विनी, हाथ में जपमाला और कमंडल।
  • महत्व: तप, संयम और इच्छाशक्ति देती हैं।
  • पूजा विधि: दीपक जलाएं, मां को पुष्प और रोली अर्पित करें।
  • भोग: शक्कर और फल।

3️⃣ तृतीय दिन – माँ चंद्रघंटा

  • रूप: मस्तक पर अर्धचंद्र, सिंह पर सवार।
  • महत्व: साहस और शत्रु नाश।
  • पूजा विधि: घंटे की ध्वनि से पूजा करें, शंख बजाएं।
  • भोग: दूध और मिठाई।

4️⃣ चतुर्थ दिन – माँ कूष्मांडा

  • रूप: आठ भुजाओं वाली, सूर्य की ऊर्जा से ब्रह्मांड रचने वाली।
  • महत्व: स्वास्थ्य और ऊर्जा देती हैं।
  • पूजा विधि: दीपक, धूप और फल अर्पित करें।
  • भोग: मालपुआ।

5️⃣ पंचम दिन – माँ स्कंदमाता

  • रूप: भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता।
  • महत्व: संतान सुख और परिवार की उन्नति।
  • पूजा विधि: पुष्प और धूप अर्पित करें।
  • भोग: केले।

6️⃣ षष्ठम दिन – माँ कात्यायनी

  • रूप: सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली।
  • महत्व: विवाह और रिश्तों में सुख-शांति।
  • पूजा विधि: पीले वस्त्र पहनें, मां को पीले फूल अर्पित करें।
  • भोग: शहद।

7️⃣ सप्तम दिन – माँ कालरात्रि

  • रूप: काले वर्ण की, रौद्र रूप, शत्रु संहारिणी।
  • महत्व: भय और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  • पूजा विधि: मां को गुड़ और सिंदूर अर्पित करें।
  • भोग: गुड़।

8️⃣ अष्टम दिन – माँ महागौरी

  • रूप: श्वेत वर्ण, बैल पर सवार।
  • महत्व: पवित्रता, शांति और मोक्ष की प्राप्ति।
  • पूजा विधि: चंदन और सफेद फूल अर्पित करें।
  • भोग: नारियल और मिठाई।

9️⃣ नवम दिन – माँ सिद्धिदात्री

  • रूप: सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली।
  • महत्व: ज्ञान, शक्ति और दिव्य सिद्धियाँ देती हैं।
  • पूजा विधि: मां को धूप, दीप और लाल फूल अर्पित करें।भोग: तिल और नारियल।

🌸 विशेष अनुष्ठान

  • अष्टमी/नवमी को कन्या पूजन करके 9 कन्याओं और 1 लांगुर (बालक) को भोजन कराया जाता है।
व्रत करने वाले इस दिन अपना उपवास तोड़ते हैं।

नवरात्रि के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी

                    नवरात्रि के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी 



🌺 नवरात्रि क्या है?

नवरात्रि का अर्थ है – नौ रातें। साल में चार नवरात्रियाँ आती हैं:

  1. चैत्र नवरात्रि (मार्च–अप्रैल)
  2. आषाढ़ नवरात्रि (जून–जुलाई) – गुप्त नवरात्रि
  3. आश्विन/शारदीय नवरात्रि (सितंबर–अक्टूबर) – सबसे प्रमुख
  4. माघ नवरात्रि (जनवरी–फरवरी) – गुप्त नवरात्रि

इनमें से चैत्र और शारदीय नवरात्रि सबसे अधिक मनाई जाती हैं।

🌼 नवरात्रि का महत्व

  • यह शक्ति की उपासना का पर्व है।
  • मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
  • माना जाता है कि इन दिनों उपासना से मन, शरीर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
  • भक्त व्रत रखते हैं और देवी का आशीर्वाद पाते हैं।

🙏 नवरात्रि के नौ स्वरूप (प्रति दिन वार पूजा)



  1. प्रथम दिन – शैलपुत्री माता 🌸
  2. द्वितीय दिन – ब्रह्मचारिणी माता
  3. तृतीय दिन – चंद्रघंटा माता
  4. चतुर्थ दिन – कूष्मांडा माता
  5. पंचम दिन – स्कंदमाता
  6. षष्ठम दिन – कात्यायनी माता
  7. सप्तम दिन – कालरात्रि माता
  8. अष्टम दिन – महागौरी माता
  9. नवम दिन – सिद्धिदात्री माता

🕉️ व्रत और पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • कलश स्थापना (घट स्थापना) की जाती है।
  • अखंड ज्योति जलाना शुभ माना जाता है।
  • मां दुर्गा को लाल फूल, चुनरी, अक्षत, और नारियल चढ़ाया जाता है।
  • व्रत में फलाहार, दूध, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा लिया जाता है।
  • माँ दुर्गा की कथा वाचन और दुर्गा सप्तशती/देवी महात्म्य का पाठ किया जाता है।

🌟 विशेष परंपराएँ

  • कन्या पूजन (अष्टमी या नवमी को)
  • गरबा और डांडिया (विशेषकर गुजरात और राजस्थान में)
  • दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल में भव्य आयोजन)

क्या आप चाहेंगे कि मैं हर दिन की देवी का महत्व और उनकी पूजा विधि भी नौ दिनों के अनुसार विस्तार से बताऊँ? तो please मुझे कमेंट करके लिखिए🌹

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 7

                              लघु गीता अध्याय 7


सैकंडों में कोई एक बिरला ही होता है जो सही तरह से सिद्धि प्राप्त करता है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन व बुद्धि से सब प्राणी को ईश्वर उत्पन्न करता है और फिर प्रलय हो जाती है। जल में रस, चंद्रमा में शीतलता, सूर्य में प्रकाश, पृथ्वी में सुगंध, प्राणियों में जीवन व सनातन बीज , आकाश में शब्द, अग्नि में तेज, बुद्धिमानों में बुद्धि, सब ईश्वर के रूप हैं या ईश्वर का शरीर ही है और उसी में सब कलपुर्जे कार्यरत है। सात्विक, तामसिक, राजस ईश्वर से पैदा होते है परंतु ईश्वर उसमें नहीं रहता और इन तीनों गुणों से सारा संसार मोहित है परंतु जो ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं व इस माया से परे उतर जाते है। चार प्रकार के लोग ईश्वर को याद करते हैं दुखिया, जिज्ञासु व ऐश्वर्या प्रिय व ज्ञानी परंतु एकाग्र चित्त से भजने वाला ही ईश्वर को सर्व प्रिय हैं।

              कुछ अल्प बुद्धि उन फलों का चाहना करते हुए संबंधित देवताओं की पूजा करते हैं और ईश्वर उनको दृढ़ कर देता है और फिर वही फल भी पाते है परंतु फल भोगने के पश्चात फिर वापिस योनियों में आता है और ईश्वर से मिल नहीं पाता।

।।जय श्री राधे।।

शनिवार, 13 सितंबर 2025

श्राद्ध क्या है? पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

                               श्राद्ध क्या है? 

           पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि


श्राद्ध (श्रद्ध + अ) का अर्थ है — श्रद्धा और आस्था के साथ किया गया कर्म।

श्राद्ध एक धार्मिक कर्मकांड है जो मुख्य रूप से पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से पितृपक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक के 16 दिन) में किया जाता है।

श्राद्ध का उद्देश्य

  1. पितरों को स्मरण और तृप्त करना – अन्न, जल और तिल अर्पित करके।
  2. पितृ ऋण से मुक्ति – हमारे ऊपर तीन ऋण बताए गए हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। श्राद्ध से पितृ ऋण की पूर्ति होती है।
  3. परिवार की उन्नति और सुख-शांति – मान्यता है कि पितर प्रसन्न होने पर परिवार को आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध में क्या किया जाता है

  • आचमन, संकल्प और पूजा।
  • पितरों को जल (तर्पण), तिल और पिंड (चावल के लड्डू) अर्पण।
  • ब्राह्मणों को भोजन व दान देना।
  • गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना, क्योंकि इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।

श्राद्ध का महत्व

  • हिंदू धर्म में विश्वास है कि देहांत के बाद आत्मा सूक्ष्म लोक में रहती है और पिंडदान तथा तर्पण से उसे शांति और तृप्ति मिलती है।
  • श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद, समृद्धि और आयु प्रदान करते हैं।

 

मैं आपको पितृपक्ष में श्राद्ध करने की सरल विधि स्टेप-बाय-स्टेप बता देती हूँ, ताकि आप घर पर भी श्रद्धा से कर सकें:

🕉 पितृपक्ष श्राद्ध की सरल विधि

1. तैयारी

  • सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहाँ कुशा (यदि उपलब्ध हो), जल का पात्र, तिल, चावल, पुष्प, धूप-दीप रखें।
  • पूर्वजों का स्मरण करें (जैसे— पिता, दादा, माता आदि)।

2. संकल्प

हाथ में जल, तिल और अक्षत (चावल) लेकर संकल्प करें:
"मैं अपने पितरों की तृप्ति के लिए यह श्राद्ध कर रहा/रही हूँ।"

3. तर्पण

  • एक पात्र में जल लें।
  • उसमें तिल और कुश डालें।
  • सूर्य की ओर मुख करके पितरों के नाम का उच्चारण करें और तीन बार जल अर्पित करें।
    (उदाहरण: "ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः")

4. पिंडदान (यदि संभव हो)

  • उबले चावल के छोटे-छोटे लड्डू (पिंड) बनाएँ।
  • तिल, पुष्प और घी मिलाकर पितरों के नाम से अर्पित करें।

5. ब्राह्मण भोजन / दान

  • परंपरा है कि ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दी जाए।
  • यदि संभव न हो तो गरीब, गौ, गाय, कौआ, कुत्ते या जरूरतमंद को भोजन दें।

6. पितरों को स्मरण

  • अंत में दीप जलाकर प्रार्थना करें:
    "हे पितृगण! आप इस अन्न-जल से तृप्त हों और हमें आशीर्वाद दें।"

👉 आसान तरीका (अगर विधि-विधान संभव न हो)

अगर सब कर्मकांड करना कठिन लगे, तो केवल तिल और जल से तर्पण और गाय, कुत्ते, कौवे को भोजन कराना भी पितरों को तृप्त करता है।


शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

लघु गीता अध्याय 6


                           लघु गीता अध्याय 6 



योग की प्राप्ति कर्म से ही हैं और जब मनुष्य विषय और वासनाओं से छूट जाता है तो योगी कहलाता है।मन को जीतना व मन के वश में होना –इस प्रकार मनुष्य अपना मित्र व शत्रु स्वयं ही है और मन जीतने वाले की आत्मा, शीत–उष्ण, दुख–सुख, मान –अपमान होने पर स्थिर रहती हैं और मिट्टी ,पत्थर, सोने को समान मानता है, मित्र और शत्रु, साधु और पापी के लिए समान दृष्टि रखता है।

योगी को किसी एकांत व नर्म व साफ स्थान पर बैठकर निरंतर ध्यान योग लगाना चाहिए और मन व इंद्रियों को एकाग्र कर,गर्दन को सीधा कर,ब्रह्मचर्य को पालन करते हुए ही ध्यान लगाना चाहिए।जो लोग अधिक उपवास या अधिक खाना या अधिक सोना व जागना करते हैं उनको योग प्राप्त नहीं होता, और जो नियम अनुसार जागते, सोते, खाते–पीते व कर्मों का सही पालन करते है वहीं योगी है,तथा परमानंद और मोक्ष प्राप्त करते है। इसके बाद कोई और बड़ा लाभ और सुख नहीं है।

        जैसा कि मन बहुत चंचल है और इसे वश में रखना बहुत कठिन है परंतु अभ्यास और उपाय ही इसे वश में कर सकते है।

    उत्तम काम करने वालो की कभी दुर्गति नहीं होती है और भले ही योग में असफल रहा हो और वह सुख भोगता हुआ पुनः किसी बुद्धिमान योगी व उत्तम व धनवान,पवित्र मनुष्य के घर जन्म लेता है और पूर्व जन्म की बुद्धि ,संस्कार, आत्मज्ञान को प्राप्त करता है।

।।जय श्री राधे।।

लघु गीता अध्याय 5

                          लघु गीता अध्याय 5


 

ईश्वर में मन को लगाते हुए – ज्ञान द्वारा–कर्म को करते हुए –उसमें लिप्त न होना ,किसी से द्वेष न होना,फल की इच्छा न करना ,मन तथा इंद्रियों को जीतने वाला , सब में अपनी जैसी आत्मा देखने वाला ही मोक्ष को सीधा प्राप्त होता है। और कर्मयोग को करते हुए,सुनते हुए,सूंघते हुए,स्पर्श करते हुए,खाते हुए,सांस लेते हुए भी अपने को निमित्त मात्र मानता है वह शीघ्र मोक्ष को प्राप्त होता है।जो प्रिय वस्तु को प्राप्त करने से प्रसन्न नहीं होते व अप्रिय वस्तु को पाकर दुखी नहीं होते वे ब्रह्म ज्ञानी है।जो ईश्वर में निष्ठा करके सदा चिंतन करते हैं और ज्ञान द्वारा जिनके सब पाप नाश हो गए है, काम व क्रोध काबू में है; इंद्रियों के भोगों से रहित है वे जीव मात्र के हितकारी है और भय से रहित है वहीं मोक्ष प्राप्त करते है।

।।श्री राधे।।


बुधवार, 13 अगस्त 2025

लघु गीता अध्याय 4

                         लघु गीता अध्याय 4


भगवान कृष्ण ने कहा कि कई बार मैंने धर्म स्थापना हेतु और पापियों के नाश करने के लिए जन्म लिए, ताकि साधुओं की रक्षा हो सके।

 जो मनुष्य जन्म-मरण के तत्व को समझ लेता है और मोह,भय, क्रोध को त्याग कर मेरी शरण मे आता है उसे मोक्ष मिल जाता है।

इस संसार में मनुष्य जिस भावना से, जिस देवता की भक्ति करता है वह ईश्वर की ही भक्ति है और शीघ्र फल प्राप्त होता है। जो लोग द्रव्य यज्ञ, तप यज्ञ, स्वाध्याय यज्ञ, व ज्ञान यज्ञ व आहार कम करके रहते हैं वह सब  यज्ञवेत्ता है व इन सब यज्ञों से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और जो यज्ञ नहीं करते उन्हें लोक व परलोक दोनों प्राप्त नहीं होते।

ज्ञान यज्ञ सबसे उत्तम है। श्रद्धा रहित व मन में संदेह बना रहा ऐसे लोग नरक को ही जाते हैं। इसलिए ज्ञान से अपने संदेह को मिटाकर कर्म को करना ही  मोक्ष दिला सकता है।


मंगलवार, 12 अगस्त 2025

आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता (मराठी) हिन्दी में अर्थ के साथ

आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता (मराठी) हिन्दी में अर्थ के साथ


सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदूराची
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ॥१॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥

रत्नखचित फरा तुझे मस्तक शोभे
सुंदर दोन डोळा सुरवंटाचे लोभे
वीसावा तुझा वंदन करितो लोळे
संपत्तीचा भांडार तूचि रे ॥२॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥

कर्णीकर्णिके मुकुट शोभतो भारी
तारक हार वागे गरगर भारी
पद्मासना वर बसलासवारी
चरणी लोटांगण वंदितो आम्ही ॥३॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥


हिंदी अर्थ

पहला पद:
जो सुख देने वाले और दुख दूर करने वाले हैं, विघ्नों की सारी बातें मिटा देते हैं,
जो प्रेम और कृपा से सबकी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं।
जिनका संपूर्ण शरीर सुंदर है, जिन पर लाल चंदन (सिंदूर) का उटी लगी है,
गले में मोतियों की माला शोभा देती है।

ध्रुव पंक्ति:
जय हो, जय हो, हे मंगलमूर्ति गणेशजी!
आपके दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

दूसरा पद:
रत्न जड़े हुए मुकुट आपके मस्तक पर शोभा पाते हैं,
आपकी सुंदर दो आंखें मोरपंख के समान आकर्षक हैं।
जो आपकी शरण आते हैं, उन्हें विश्राम और सुख मिलता है।
आप संपत्ति और समृद्धि का भंडार हैं।

तीसरा पद:
आपके कानों में सुंदर झुमके और सिर पर शोभायमान मुकुट है,
गले में तारों से बनी माला है जो अद्भुत है।
आप कमलासन पर विराजमान हैं,
हम आपके चरणों में लोट कर वंदना करते हैं।

।।गणपति बप्पा मोरया ।।

गणेश चतुर्थी का इतिहास,धार्मिक mahtav

गणेश चतुर्थी का इतिहास,धार्मिक महत्व


1. गणेश चतुर्थी का इतिहास

  • प्राचीन मान्यता – गणेश चतुर्थी का उल्लेख मुद्गल पुराण और गणेश पुराण में मिलता है।
  • लोकमान्य तिलक का योगदान – 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाने की परंपरा शुरू की, ताकि लोगों में एकता और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति जागरूकता फैले।
  • तब से यह केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी बन गया।

2. धार्मिक महत्व

  • भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और सिद्धि-विनायक कहा जाता है।
  • उन्हें बुद्धि, विवेक और सौभाग्य का देवता माना जाता है।
  • गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की मूर्ति स्थापित कर 10 दिनों तक पूजा की जाती है।
  • अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा मोरया, पुढ़च्या वर्षी लवकर या (अगले साल जल्दी आना) कहते हुए विसर्जन किया जाता है।

3. उत्सव की विशेषताएं


  • भव्य मूर्तियां – छोटी घर की मूर्तियों से लेकर 15–20 फीट ऊंची सार्वजनिक मूर्तियां।
  • थीम पंडाल – पौराणिक कथाएं, सामाजिक संदेश, या ऐतिहासिक स्थल की झलक।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम – भजन, आरती, नृत्य, रंगोली और कला प्रदर्शन।
  • भोग – मोदक, लड्डू, पूरणपोली, और नारियल से बनी मिठाइयां।

4. मुंबई में विशेष रंग

  • लालबागचा राजा – सबसे प्रसिद्ध और चमत्कारी गणपति माने जाते हैं।
  • गिरगांव चौपाटी का विसर्जन – लाखों लोग शामिल होते हैं।
  • दगडूशेठ गणपति – पुणे का प्रसिद्ध गणपति, लेकिन मुंबई से भी बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने जाते हैं।

5. आध्यात्मिक संदेश

गणेश चतुर्थी हमें यह सिखाती है कि जीवन की हर शुरुआत में हम ईश्वर का स्मरण करें, अपने भीतर के अहंकार को दूर करें, और प्रेम व सद्भावना के साथ समाज में रहना सीखें।


भाद्रपक्ष में मुंबई की गणेश चतुर्थी – भक्ति, भव्यता और उल्लास"

भाद्रपक्ष में बॉम्बे की गणेश चतुर्थी – भक्ति और उल्लास का संगम


🌸 भूमिका

गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख उत्सव है, लेकिन मुंबई (बॉम्बे) में इसकी भव्यता देखने लायक होती है।
भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है और 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में पूरे शहर का वातावरण गणेशमय हो जाता है।

🌺 गणेश चतुर्थी का महत्व

  • यह पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
  • गणपति को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है।
  • महाराष्ट्र, विशेषकर मुंबई में, इसे सामाजिक एकता, कला और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।

🎉 मुंबई में गणेश चतुर्थी की खासियत

1. लालबागचा राजा

मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणपति पंडाल, जहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

2. भव्य पंडाल सजावट

हर गली-मोहल्ले में अद्भुत थीम पर आधारित पंडाल सजाए जाते हैं — जैसे मंदिर की आकृति, ऐतिहासिक किले, या सामाजिक संदेश देने वाले डिज़ाइन।

3. सांस्कृतिक कार्यक्रम

भजन-कीर्तन, नृत्य, नाटक, और लोककला प्रदर्शन का आयोजन।


4. विसर्जन यात्रा

अनंत चतुर्दशी के दिन विशाल शोभायात्रा के साथ गणेशजी को विदाई दी जाती है।
"गणपति बप्पा मोरया" के जयकारों से सारा शहर गूंज उठता है।

🪔 गणेश चतुर्थी का संदेश

यह पर्व हमें सिखाता है कि शुरुआत हमेशा मंगलमय होनी चाहिए, और जीवन से सभी विघ्नों को दूर करने के लिए हमें भगवान गणेश का आशीर्वाद लेना चाहिए।


🌸 "वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभा…" 🌸


श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत,पूजा विधि,महत्व और विशेषताएं

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 – भगवान के अवतरण का पावन पर्व


🌸 भूमिका

जन्माष्टमी हिंदू धर्म का प्रमुख और पावन त्योहार है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्धरात्रि का समय इस दिन का विशेष संयोग होता है।
इस दिन मंदिरों और घरों में झूला सजाकर, भजन-कीर्तन गाकर और व्रत-पूजा करके वातावरण को कृष्णमय बनाया जाता है।

🌺 जन्माष्टमी का महत्व

  • भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा की कारागार में हुआ।
  • उन्होंने अत्याचारी कंस का अंत कर धर्म और न्याय की स्थापना की।
  • गीता के उपदेश से उन्होंने मानवता को सत्य, धर्म और कर्म का संदेश दिया।
  • जन्माष्टमी हमें प्रेम, करुणा, निडरता और धर्मनिष्ठा की प्रेरणा देती है।

🪔 व्रत और पूजा विधि

  1. व्रत का पालन – भक्त निर्जल या फलाहार उपवास रखते हैं।
  2. मध्यरात्रि पूजन – रात 12 बजे, श्रीकृष्ण जन्म समय, विशेष पूजा की जाती है।
  3. झांकी और झूला – कृष्ण-लीला की झांकियां बनाई जाती हैं और भगवान का झूला सजाया जाता है।
  4. भोग अर्पण – माखन-मिश्री, पंजीरी और मिश्री का भोग लगाया जाता है।


🎉 जन्माष्टमी की विशेषताएं

  • दही-हांडी – महाराष्ट्र और गुजरात में मटकी फोड़ प्रतियोगिता की धूम।
  • भजन-कीर्तन – पूरे दिन और रात भक्ति गीतों का आयोजन।
  • गीता पाठ – गीता के श्लोकों का पाठ और सत्संग।


💬 जन्माष्टमी का संदेश

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।
प्रेम, करुणा और निस्वार्थ सेवा ही सच्ची भक्ति है।

🌸 "राधे राधे बोलना आसान है, पर राधा के रंग में रंग जाना कठिन…" 🌸


।।जय श्री राधे।।

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