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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

लेपाक्षी मंदिर

                                 लेपाक्षी मंदिर


दक्षिण भारत का एक ऐतिहासिक और वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है, जो आंध्र प्रदेश राज्य के श्री सत्य साई ज़िले के लेपाक्षी गाँव में स्थित है। यह मंदिर भगवान वीरभद्र (भगवान शिव के उग्र रूप) को समर्पित है और 16वीं शताब्दी में बनाया गया था।

मुख्य विशेषताएँ:

1. झूलता स्तंभ (Hanging Pillar):

मंदिर के 70 खंभों में से एक खंभा ज़मीन को छूता नहीं है। यह स्तंभ ज़मीन से थोड़ा ऊपर झूलता है, और लोग इसके नीचे कपड़ा या कागज सरकाकर इस रहस्य को खुद अनुभव करते हैं। यह आज भी वास्तुकला की एक अनसुलझी पहेली है।

2. नागलिंग (Shiva under hooded snake):

यहाँ एक विशाल शिवलिंग है, जिसे सात फनों वाले नाग ने घेर रखा है। यह पत्थर से तराशा गया बेहद सुंदर और भव्य दृश्य है।

3. नंदी प्रतिमा:

मंदिर से लगभग 200 मीटर दूर भारत की सबसे बड़ी एकाश्म नंदी प्रतिमा (पत्थर से बनी एक ही मूर्ति) स्थित है। यह नंदी, भगवान शिव के वाहन के रूप में पूजित होता है।

4. भित्ति चित्र और नक्काशी:

मंदिर की दीवारों और छतों पर रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों से जुड़े सुंदर चित्र और नक्काशियाँ बनी हुई हैं, जो विजयनगर साम्राज्य की समृद्ध कला परंपरा को दर्शाती हैं।

इतिहास और निर्माण:

  • मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के समय, राजा अच्युत देवराय के शासनकाल में हुआ था।
  • इसे उनके गवर्नर भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने बनवाया था।
  • एक कथा के अनुसार, विरुपन्ना ने राजा की अनुमति के बिना मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया था, जिस कारण उन्हें सज़ा का सामना करना पड़ा।

धार्मिक महत्व:

  • यह मंदिर स्कंद पुराण में वर्णित "दिव्य क्षेत्र" में से एक है।
  • यहाँ भगवान शिव के उग्र रूप वीरभद्र की पूजा की जाती है, जो दक्ष प्रजापति के यज्ञ को विध्वंस करने के लिए प्रकट हुए थे।

कैसे पहुँचे:

  • निकटतम शहर: बेंगलुरु (करीब 120 किमी)
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: हिंदूपुर
  • निकटतम हवाई अड्डा: बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
  • मंदिर समय: प्रातः 5:00 से दोपहर 12:00 और फिर शाम 4:00 से 6:00 तक

अगर आप भारतीय कला, संस्कृति और धर्म में रुचि रखते हैं तो लेपाक्षी मंदिर की


शनि शिंगणापुर

                                 शनि शिंगणापुर 

शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो शनि देव को समर्पित है। यह गांव और मंदिर अपने अनोखे विश्वासों और परंपराओं के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है।

मुख्य विशेषताएँ :

1. शनि देव की मूर्ति नहीं, शिला है:

यहाँ शनि देव की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक काली पत्थर की शिला (लगभग 5 फीट 9 इंच ऊँची) है, जिसे लोग शनि देव का स्वरूप मानते हैं।

2. मंदिर में कोई छत नहीं:

यह मंदिर खुले आकाश के नीचे स्थित है। शनि देव की शिला किसी भी छाया में नहीं रहती, यह माना जाता है कि शनि देव आकाश के देवता हैं और उन्हें छाया पसंद नहीं।

3. गांव में ताले नहीं लगते:

शनि शिंगणापुर की सबसे अनोखी बात यह है कि यहाँ किसी भी घर, दुकान या बैंक में दरवाजे या ताले नहीं होते। लोगों का विश्वास है कि शनि देव की कृपा से यहाँ चोरी नहीं होती। यदि कोई चोरी करता है, तो शनि देव खुद उसे दंडित करते हैं।

4. महिलाओं की प्रवेश परंपरा:

पहले महिलाओं को शिला के पास जाकर पूजा करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन 2016 के एक आंदोलन और न्यायालय के आदेश के बाद महिलाओं को भी शनि शिला पर चढ़कर पूजा करने की अनुमति दी गई

इतिहास से जुड़ी मान्यता:

लोककथाओं के अनुसार, कई सौ साल पहले एक किसान को खेत में एक काली शिला मिली, जिससे खून निकलने लगा। रात को उसे सपने में शनि देव ने दर्शन दिए और बताया कि वह स्वयंभू रूप में प्रकट हुए हैं और यहीं उनकी पूजा की जाए।

कैसे पहुँचे:

शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो शनि देव को समर्पित है। यह गांव और मंदिर अपने अनोखे विश्वासों और परंपराओं के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है।

मुख्य 

अगर आप शनि देव की विशेष पूजा, शनि दोष निवारण या उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो शनि शिंगणापुर एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक स्थल है।



शनिवार, 29 मार्च 2025

ओंकारेश्वर मंदिर: एक संपूर्ण परिचय

            ओंकारेश्वर मंदिर: एक संपूर्ण परिचय

1. परिचय

ओंकारेश्वर मंदिर भारत के मध्य प्रदेश राज्य में नर्मदा नदी के तट पर स्थित एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग मंदिर है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिन्दू धर्म में अत्यंत श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।

2. भौगोलिक स्थिति

  • स्थान: मंधाता द्वीप, नर्मदा नदी, खंडवा जिला, मध्य प्रदेश
  • नजदीकी शहर: इंदौर (77 किमी दूर)
  • पहुंचने के साधन: सड़क मार्ग, रेल मार्ग (खंडवा रेलवे स्टेशन), और हवाई मार्ग (इंदौर हवाई अड्डा)

3. धार्मिक महत्त्व

ओंकारेश्वर मंदिर को भगवान शिव के ओंकार स्वरूप का निवास माना जाता है। यहाँ भगवान शिव की पूजा दो रूपों में होती है:

  1. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – यह नर्मदा नदी के बीच स्थित मंधाता पर्वत पर स्थित है।
  2. ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग – यह मुख्य मंदिर के सामने नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है।

4. पौराणिक कथा

कहा जाता है कि एक बार विद्याधर नामक राजा ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें ज्योतिर्लिंग के रूप में दर्शन दिए। एक अन्य कथा के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने यहाँ शिव की आराधना की थी और वे यहीं अपने गुरु से मिले थे।

5. मंदिर की वास्तुकला

  • मंदिर प्राचीन नागर शैली में बना हुआ है।
  • यह नर्मदा नदी के बीच स्थित एक द्वीप पर स्थित है, जिसका आकार 'ॐ' के समान है।
  • मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स्थित है।
  • चारों ओर सुंदर मंदिर और घाट बने हुए हैं।

6. प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान एवं पर्व

  • महाशिवरात्रि: यहाँ विशाल मेला लगता है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
  • श्रावण मास: इस महीने में विशेष पूजा और जलाभिषेक किए जाते हैं।
  • नर्मदा जयंती: यह पर्व नर्मदा नदी के महत्व को दर्शाता है और भव्य रूप से मनाया जाता है।

7. अन्य दर्शनीय स्थल

  • सिद्धनाथ मंदिर – प्राचीन शिव मंदिर
  • अहिल्या घाट – ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल
  • गौरी सोमनाथ मंदिर – ऐतिहासिक शिव मंदिर
  • कपिल धारा – प्राकृतिक जलप्रपात

8. यात्रा सुझाव मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है।

  • मंदिर में दर्शन के लिए प्रातः 5:00 AM से रात्रि 10:00 PM तक का समय निर्धारित है।
  • नर्मदा आरती का अनुभव अवश्य लें।

निष्कर्ष

ओंकारेश्वर मंदिर एक दिव्य और पवित्र स्थल है जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। अगर आप भगवान शिव के भक्त हैं या आध्यात्मिक यात्रा पर जाना चाहते हैं, तो ओंकारेश्वर मंदिर अवश्य जाएं।



बुधवार, 26 मार्च 2025

महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन: एक विस्तृत परिचय

        महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन: एक विस्तृत परिचय


महाकालेश्वर मंदिर भारत के मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव के अत्यंत पवित्र और दिव्य रूप महाकाल को समर्पित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जिसे अत्यंत दुर्लभ और सिद्धिदायक माना जाता है।

1. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा

अद्वितीय विशेषताएँ:

  • दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग – यह भारत का एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण की ओर मुख किए हुए है।
  • स्वयंभू लिंग – यह लिंग स्वयं प्रकट हुआ माना जाता है, जबकि अन्य ज्योतिर्लिंगों को प्रतिष्ठित किया गया है।
  • भस्म आरती – महाकाल की विशेष भस्म आरती प्रसिद्ध है, जो प्रतिदिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है।
  • तीन स्तरों वाला मंदिर – इसमें तीन भाग हैं:
    • प्रथम तल: महाकालेश्वर लिंग
    • द्वितीय तल: ओंकारेश्वर लिंग
    • तृतीय तल: नागचंद्रेश्वर लिंग (यह केवल नाग पंचमी पर खुलता है)

2. पौराणिक कथा

शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में उज्जैन में चंद्रसेन नामक राजा शिव भक्त थे। उसी समय एक ग्वाले (गोपालक) और उसके मित्रों ने भी शिव भक्ति आरंभ कर दी। लेकिन कुछ असुरों और विरोधियों को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने उज्जैन पर आक्रमण कर दिया। संकट के समय भक्तों की रक्षा के लिए भगवान शिव महाकाल रूप में प्रकट हुए और शत्रुओं का संहार किया। भक्तों के अनुरोध पर भगवान शिव ने यहां महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने का वरदान दिया।

3. मंदिर की वास्तुकला

  • मंदिर पांच मंजिला है और इसकी बनावट राजस्थानी व मराठा शैली की मिश्रण है।
  • गर्भगृह में महाकाल लिंग प्रतिष्ठित है।
  • मंदिर परिसर में गणेश, पार्वती, कार्तिकेय, नंदी और कालभैरव की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।
  • यहाँ कोटि तीर्थ कुंड नामक पवित्र जलाशय भी स्थित है।

4. विशेष पूजा एवं अनुष्ठान

भस्म आरती

  • यह प्रातः 4 बजे होती है और इसमें चिता भस्म से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता था, लेकिन अब गोबर से बनी भस्म का उपयोग किया जाता है।
  • इसमें भाग लेने के लिए पूर्व पंजीकरण आवश्यक होता है।

अन्य महत्वपूर्ण पूजाएँ

  • नित्य आरती – सुबह, दोपहर और शाम को।
  • महाशिवरात्रि पर्व – इस दिन यहाँ विशाल मेला लगता है और विशेष पूजा होती है।
  • श्रावण मास – पूरे सावन महीने विशेष शिव अभिषेक और रुद्राभिषेक किए जाते हैं।
  • नाग पंचमी – केवल इसी दिन नागचंद्रेश्वर लिंग के दर्शन संभव होते हैं।

5. महाकाल लोक कॉरिडोर

हाल ही में मंदिर के आसपास महाकाल लोक कॉरिडोर का निर्माण हुआ है, जिसमें भगवान शिव से जुड़ी भव्य मूर्तियाँ, चित्र और आस्थायी स्थल बनाए गए हैं। इससे मंदिर परिसर का विस्तार और सौंदर्यीकरण किया गया है।


6. मंदिर जाने का सही समय और यात्रा सुझाव

  • अवश्य जाएँ: महाशिवरात्रि, सावन सोमवार, नाग पंचमी।
  • समय: प्रातः 4:00 बजे से रात 11:00 बजे तक।
  • कैसे पहुँचें:
    • रेलवे स्टेशन: उज्जैन जंक्शन (5 किमी)
    • एयरपोर्ट: इंदौर (55 किमी)

7. धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

महाकालेश्वर मंदिर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। यहाँ शिव भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकते हैं।

निष्कर्ष

महाकालेश्वर मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थल है, जहाँ भक्तों को शिव की महिमा का साक्षात्कार करने का अवसर मिलता है। यदि आप शिव भक्त हैं, तो जीवन में कम से कम एक बार महाकाल के दर्शन अवश्य करने चाहिए।

मंगलवार, 25 मार्च 2025

मणिमहेश (हिमाचल प्रदेश)


               2. मणिमहेश (हिमाचल प्रदेश)


स्थिति और भौगोलिक परिचय

मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 4,080 मीटर (13,390 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। झील के पास ही मणिमहेश कैलाश पर्वत है, जिसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।

धार्मिक महत्व

  • यह स्थान भगवान शिव की तपोभूमि माना जाता है, जहाँ शिवजी ने तपस्या की थी।
  • पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने यहाँ अपने मस्तक पर रत्न (मणि) धारण किया था, जिससे पर्वत का नाम "मणिमहेश" पड़ा।
  • कहा जाता है कि शिवजी स्वयं यहां स्नान करने आते हैं, और झील के जल में अद्भुत दिव्य प्रकाश की झलक कभी-कभी देखी जाती है।

मणिमहेश यात्रा और कठिनाइयाँ

  • हर साल भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर) में यहाँ "मणिमहेश यात्रा" होती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
  • यात्रा का मुख्य मार्ग भरमौर से होकर जाता है, जिसमें हडसर – धनछौ – गौरीकुंड – मणिमहेश झील शामिल है।
  • मार्ग कठिन और खड़ी चढ़ाई वाला होता है, लेकिन श्रद्धालु भक्ति भाव से यात्रा करते हैं।

गौरीकुंड का महत्व

  • झील के पास गौरीकुंड स्थित है, जिसे माता पार्वती का स्नान स्थल माना जाता है।
  • महिलाएँ मुख्य रूप से गौरीकुंड में स्नान करती हैं, जबकि पुरुष मणिमहेश झील में स्नान करते हैं।

कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश में प्रमुख अंतर


निष्कर्ष

कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश दोनों ही शिवभक्तों के लिए पवित्र स्थान हैं। कैलाश पर्वत शिवजी के दिव्य स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि मणिमहेश को उनकी भक्ति और तपस्या का स्थल माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा कठिनाई भरी होती है और इसके लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है, जबकि मणिमहेश यात्रा भारत में ही होने के कारण तुलनात्मक रूप से सरल है। इन तीर्थों की यात्रा करना एक आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो शिव भक्ति की गहराई को महसूस करने का अवसर प्रदान करता है।

कैलाश मानसरोवर

 

कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश—एक विस्तृत परिचय

हिमालय की गोद में बसे कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश दोनों ही हिन्दू धर्म के पवित्र तीर्थस्थल हैं, जिन्हें भगवान शिव से जुड़ा हुआ माना जाता है। दोनों स्थानों का धार्मिक, पौराणिक और भौगोलिक दृष्टि से विशेष महत्व है।


             1. कैलाश मानसरोवर


स्थिति और भौगोलिक परिचय

कैलाश पर्वत तिब्बत (चीन) के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह पर्वत 6,638 मीटर (21,778 फीट) ऊँचा है और चार महत्वपूर्ण नदियों—सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और कर्णाली—का उद्गम स्थल माना जाता है। कैलाश पर्वत के पास ही मानसरोवर झील स्थित है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।

धार्मिक महत्व

  • हिन्दू धर्म: कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, यही वह स्थान है जहां शिवजी अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और यहाँ उनका दिव्य ध्यान लगा रहता है।
  • बौद्ध धर्म: बौद्ध मान्यता के अनुसार, यह स्थान "कंग रिंपोचे" (गहनों से सुसज्जित पर्वत) है और यह बुद्ध धर्म के चक्रवर्ती राजा का निवास स्थान माना जाता है।
  • जैन धर्म: जैन धर्म में इसे "अष्टपद" कहा जाता है, जहाँ पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
  • बोन धर्म: तिब्बत के प्राचीन बोन धर्म के अनुयायियों के लिए भी यह एक पवित्र स्थल है।

मानसरोवर झील

  • यह हिमालय की सबसे ऊँची मीठे पानी की झील है, जिसकी ऊँचाई लगभग 4,590 मीटर है।
  • इस झील का जल अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे पीने व स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।

यात्रा और कठिनाइयाँ

कैलाश मानसरोवर की यात्रा कठिन मानी जाती है क्योंकि:

  1. ऊँचाई अधिक होने के कारण यहाँ ऑक्सीजन की कमी होती है।
  2. तिब्बत जाने के लिए चीन सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है।
  3. मौसम बेहद ठंडा और अनिश्चित होता है।

भारत से इस यात्रा के दो मुख्य मार्ग हैं:

  1. काठमांडू (नेपाल) होते हुए – नेपालगंज और तिब्बत के रास्ते।
  2. उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के माध्यम से – जो भारतीय सरकार के "कैलाश मानसरोवर यात्रा" कार्यक्रम के तहत संचालित होता है।

2. मणिमहेश (हिमाचल प्रदेश)

स्थिति और भौगोलिक परिचय

मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 4,080 मीटर (13,390 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। झील के पास ही मणिमहेश कैलाश पर्वत है, जिसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।

धार्मिक महत्व

  • यह स्थान भगवान शिव की तपोभूमि माना जाता है, जहाँ शिवजी ने तपस्या की थी।
  • पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने यहाँ अपने मस्तक पर रत्न (मणि) धारण किया था, जिससे पर्वत का नाम "मणिमहेश" पड़ा।
  • कहा जाता है कि शिवजी स्वयं यहां स्नान करने आते हैं, और झील के जल में अद्भुत दिव्य प्रकाश की झलक कभी-कभी देखी जाती है।

मणिमहेश यात्रा और कठिनाइयाँ

  • हर साल भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर) में यहाँ "मणिमहेश यात्रा" होती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
  • यात्रा का मुख्य मार्ग भरमौर से होकर जाता है, जिसमें हडसर – धनछौ – गौरीकुंड – मणिमहेश झील शामिल है।
  • मार्ग कठिन और खड़ी चढ़ाई वाला होता है, लेकिन श्रद्धालु भक्ति भाव से यात्रा करते हैं।

गौरीकुंड का महत्व

  • झील के पास गौरीकुंड स्थित है, जिसे माता पार्वती का स्नान स्थल माना जाता है।
  • महिलाएँ मुख्य रूप से गौरीकुंड में स्नान करती हैं, जबकि पुरुष मणिमहेश झील में स्नान करते हैं।

कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश में प्रमुख अंतर


निष्कर्ष

कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश दोनों ही शिवभक्तों के लिए पवित्र स्थान हैं। कैलाश पर्वत शिवजी के दिव्य स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि मणिमहेश को उनकी भक्ति और तपस्या का स्थल माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा कठिनाई भरी होती है और इसके लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है, जबकि मणिमहेश यात्रा भारत में ही होने के कारण तुलनात्मक रूप से सरल है। इन तीर्थों की यात्रा करना एक आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो शिव भक्ति की गहराई को महसूस करने का अवसर प्रदान करता है।

ज्वाला देवी

                            ज्वाला देवी


ज्वाला देवी मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी नामक स्थान पर स्थित है और हिंदू धर्म में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यहाँ प्रकट होने वाली अनन्त ज्वालाएँ हैं, जो बिना किसी ईंधन के निरंतर जलती रहती हैं।

मंदिर का पौराणिक महत्व

ज्वाला देवी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव ने उनके शव को उठाकर तांडव नृत्य किया। इस दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया, और जहाँ-जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए।

कहा जाता है कि सती की जिह्वा (जीभ) इस स्थान पर गिरी थी, जिसके कारण यहाँ माता ज्वाला देवी की उपासना होती है।

मंदिर की विशेषता

  1. अनन्त ज्वालाएँ
    मंदिर में सात मुख्य ज्वालाएँ जलती हैं, जिन्हें विभिन्न देवियों का रूप माना जाता है:

    • महाकाली
    • अन्नपूर्णा
    • चंडी
    • हिंगलाज
    • विंध्यवासिनी
    • महालक्ष्मी
    • सरस्वती
  2. बिना किसी ईंधन के जलती अग्नि
    मंदिर में जलने वाली ज्वालाएँ बिना किसी ज्ञात स्रोत के प्रकट होती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ज्वालाएँ भूमिगत प्राकृतिक गैस स्रोतों के कारण जलती हैं, लेकिन धार्मिक मान्यता इसे देवी का चमत्कार मानती है।

  3. कोई मूर्ति नहीं
    अन्य मंदिरों की तरह यहाँ कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि स्वयं प्रकट हुई ज्वालाओं को ही देवी का स्वरूप माना जाता है।

मंदिर का इतिहास

  • कहा जाता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • मुगल शासक अकबर ने इस मंदिर की परीक्षा लेने के लिए इसे बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। बाद में उसने यहाँ सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन वह रहस्यमय रूप से गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया।
  • महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और यहाँ सोने की परत चढ़ाई।

मुख्य उत्सव और मेलों

  1. नवरात्रि महोत्सव – इस दौरान यहाँ विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और विशाल भंडारे का आयोजन होता है।
  2. श्रावण मास (सावन) – इस महीने में भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में माता के दर्शन करने आते हैं।

कैसे पहुँचे?

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: कांगड़ा रेलवे स्टेशन (लगभग 30 किमी)
  • निकटतम हवाई अड्डा: कांगड़ा एयरपोर्ट (गग्गल)
  • सड़क मार्ग: यह मंदिर धर्मशाला, कांगड़ा, और पठानकोट से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

मंदिर दर्शन का समय

  • सुबह 5:00 बजे से रात 10:00 बजे तक
  • विशेष अवसरों और त्योहारों पर समय में बदलाव हो सकता है।

निष्कर्ष

ज्वाला देवी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी एक रहस्यमय स्थल है। यहाँ प्रकट होने वाली ज्वालाएँ माता के दिव्य चमत्कार का प्रतीक मानी जाती हैं, और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

शनिवार, 8 मार्च 2025

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल

                     श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल


स्थान: तिरुवनंतपुरम, केरल
समर्पित: भगवान विष्णु (श्री पद्मनाभस्वामी)
विशेषता: विश्व के सबसे धनी मंदिरों में से एक


मंदिर का इतिहास और महत्व

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के सबसे प्राचीन और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है। यह मंदिर त्रावणकोर राजघराने द्वारा संरक्षित किया गया है और इसे दुनिया का सबसे अमीर हिंदू मंदिर माना जाता है।

  1. भगवान पद्मनाभस्वामी का स्वरूप

    • यहां भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा शेषनाग (अनंत) के ऊपर योगनिद्रा मुद्रा में विराजमान है।
    • यह मूर्ति 18 फुट लंबी है और इसे तीन द्वारों से देखा जाता है—सिर, मध्य भाग और पैर।
  2. अनंत पद्मनाभ संप्रदाय

    • इस मंदिर को 'अनंत पद्मनाभसंप्रदाय' से जोड़कर देखा जाता है, जिसे आदि शंकराचार्य से संबंध बताया जाता है।
    • त्रावणकोर के शासकों ने स्वयं को भगवान पद्मनाभस्वामी का "दास" घोषित कर दिया था और राज्य को उनका निवास स्थान माना था।

मंदिर की विशेषताएँ

1. रहस्यमयी गुप्त तहखाने (Vault B का रहस्य)

  • मंदिर में छह तहखाने (Vaults) हैं, जिनमें से पाँच खोले जा चुके हैं।
  • इनमें सोना, चांदी, बहुमूल्य रत्न और ऐतिहासिक धरोहरें मिली हैं।
  • छठे तहखाने (Vault B) को खोलने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन इसे खोलना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इसके अंदर दिव्य शक्तियाँ विद्यमान हैं।

2. वास्तुकला और भव्यता

  • मंदिर का निर्माण द्रविड़ और केरल शैली की वास्तुकला में किया गया है।
  • इसमें भव्य गोपुरम (गेट टॉवर) है, जो 100 फीट ऊंचा है।
  • मंदिर के अंदर विशाल गलियारे और सुंदर नक्काशी हैं।

3. मंदिर के नियम और अनुशासन

  • केवल हिंदू भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति है।
  • पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी या परंपरागत परिधान पहनना अनिवार्य है।
  • फोटोग्राफी और मोबाइल फोन ले जाना प्रतिबंधित है।

त्योहार और अनुष्ठान

  1. पंगुनी उत्सव: यह चैत्र महीने (मार्च-अप्रैल) में मनाया जाता है।
  2. अल्पासी उत्सव: अक्टूबर-नवंबर में मनाया जाने वाला बड़ा उत्सव।
  3. विष्णु सहस्रनाम पाठ: यहां नियमित रूप से विष्णु सहस्रनाम का पाठ होता है।
  4. श्री पद्मनाभस्वामी रथ यात्रा: मंदिर की भव्य रथ यात्रा भी प्रसिद्ध है।
  5. कैसे पहुँचे?
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: तिरुवनंतपुरम सेंट्रल (लगभग 1 किमी दूर)
  • निकटतम हवाई अड्डा: तिरुवनंतपुरम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 5 किमी दूर)
  • सड़क मार्ग: केरल और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों से अच्छी बस सेवा उपलब्ध है।
  • निष्कर्ष:

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अपने रहस्यों, समृद्धि और भव्यता के कारण भी दुनिया भर के भक्तों को आकर्षित करता है। यदि आप अध्यात्म, इतिहास और रहस्य में रुचि रखते हैं, तो इस मंदिर की यात्रा अवश्य करें।

मेंहदीपुर बालाजी

                            मेंहदीपुर बालाजी 


मेंहदीपुर बालाजी मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो हनुमानजी के बालाजी रूप को समर्पित है। यह मंदिर विशेष रूप से भूत-प्रेत बाधा, नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों के निवारण के लिए प्रसिद्ध है।

मेंहदीपुर बालाजी मंदिर का महत्व

  1. हनुमानजी का चमत्कारी मंदिर – यहां हनुमानजी को 'बालाजी' के रूप में पूजा जाता है।
  2. भूत-प्रेत बाधा मुक्ति केंद्र – ऐसा माना जाता है कि यहां आने से व्यक्ति नकारात्मक शक्तियों से मुक्त हो सकता है।
  3. तीन मुख्य देवता – मंदिर में हनुमानजी (बालाजी), प्रेतराज सरकार और भैरव बाबा की पूजा होती है।
  4. विशेष नियम – भक्तों को प्रसाद वहीं खाना पड़ता है, इसे घर ले जाना वर्जित माना जाता है।

अनुभव और विशेषताएँ:

  • मंदिर में आने वाले भक्तों में कई लोग असामान्य व्यवहार करते दिखते हैं, जिन्हें भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित माना जाता है।
  • यहां तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक के बिना ही हनुमानजी के आशीर्वाद से लोग ठीक हो जाते हैं।
  • मंदिर में नवरात्रि और हनुमान जयंती के समय विशेष भीड़ होती है।

कैसे पहुंचें?

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: बांदीकुई जंक्शन (लगभग 40 किमी दूर)
  • निकटतम हवाई अड्डा: जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (लगभग 110 किमी दूर)
  • सड़क मार्ग: जयपुर और आगरा से अच्छी सड़क संपर्क सुविधा उपलब्ध है।
  • मेंहदीपुर बालाजी से जुड़ी और रोचक बात

    1. विशेष पूजा और अनुष्ठान

      • आरती और दर्शन: मंदिर में दिनभर विशेष पूजा-अर्चना होती है, लेकिन सुबह और शाम की आरती का विशेष महत्व है।
      • संकट मोचन अनुष्ठान: जो लोग नकारात्मक शक्तियों से पीड़ित होते हैं, उनके लिए विशेष पूजा कराई जाती है।
      • तेल चढ़ाने की परंपरा: यहां भक्त बालाजी को सरसों का तेल चढ़ाते हैं, जिससे उनकी कृपा प्राप्त होती है।
    2. मंदिर में मना किए गए कार्य

      • यहां से कोई भी प्रसाद या भभूत घर ले जाना वर्जित माना जाता है।
      • मंदिर के परिसर में फोटोग्राफी और वीडियो बनाना सख्त मना है।
      • दर्शन के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखने की परंपरा है।
    3. मेंहदीपुर बालाजी के रहस्य

      • कई भक्तों ने यहां आने के बाद जीवन में बड़े बदलाव महसूस किए हैं।
      • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे मानसिक और आत्मिक उपचार का केंद्र माना जाता है।
      • मंदिर में कई ऐसे लोग आते हैं, जिन पर किसी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव बताया जाता है, और यहां अनोखे तरीके से उनकी समस्या का समाधान होता है।
    4. विशेष पर्व और मेलों का आयोजन

      • हनुमान जयंती पर मंदिर में भव्य उत्सव होता है।
      • शनिवार और मंगलवार को विशेष भीड़ रहती है क्योंकि ये दिन हनुमानजी की पूजा के लिए विशेष माने जाते हैं।
      • नवरात्रि के दौरान यहां हजारों भक्त आते हैं और अनुष्ठान कराते हैं।

    यात्रा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें

    • मंदिर में कोई बिचौलिया या दलालों से बचें।
    • किसी अज्ञात व्यक्ति से प्रसाद या अन्य वस्तुएं न लें।
    • मंदिर परिसर में अनुशासन बनाए रखें और मंदिर के नियमों का पालन करें।

    मेंहदीपुर बालाजी की यात्रा एक आध्यात्मिक और रहस्यमयी अनुभव हो सकता है। अगर आप किसी परेशानी से गुजर रहे हैं या हनुमानजी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो यहां एक बार अवश्य जाएं।

  • मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का प्राकट्य स्वयंभू रूप में हुआ था। यह स्थान प्राचीन समय से ही तपस्वियों और साधुओं की साधना स्थली रहा है।

  • मंदिर की स्थापना

अगर आप आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करना चाहते हैं या किसी बाधा से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो मेंहदीपुर बालाजी मंदिर की यात्रा आपके लिए लाभदायक हो सकती है।

शनिवार, 1 मार्च 2025

                            

                            मां कामख्या मंदिर 




कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 8 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित एक प्रमुख शक्तिपीठ है। यह मंदिर देवी सती को समर्पित है और तांत्रिक साधना के लिए विशेष महत्व रखता है।माँ कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर में नीलाचल पर्वत पर स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है और तंत्र साधना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

कामाख्या मंदिर का धार्मिक महत्व

  • यह मंदिर माँ भगवती के "योनि" (जननांग) रूप की पूजा का प्रमुख केंद्र है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव, सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब विष्णुजी ने उनके शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खंड-खंड कर दिया। जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। कामाख्या मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां माता सती का योनि और गर्भाशय गिरा था।
  • मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहाँ एक प्राकृतिक गुफा में स्थित योनि कुंड की पूजा होती है, जिसे एक लाल रंग की कपड़े से ढका जाता है।

कामाख्या मंदिर की विशेषताएँ

  • गर्भगृह: अन्य मंदिरों के विपरीत, यहाँ देवी की मूर्ति नहीं है। गर्भगृह में एक प्राकृतिक चट्टान है, जिसे देवी की योनि के रूप में पूजा जाता है।

  1. अंबुवासी मेला

    • यह चार दिन तक चलने वाला एक विशेष पर्व है, जिसे माँ कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान मंदिर के गर्भगृह के जल में हल्का लाल रंग आ जाता है, जिसे दिव्य और चमत्कारी माना जाता है।
    • यह पर्व मुख्य रूप से तंत्र साधकों और संन्यासियों के लिए विशेष महत्व रखता है इस दौरान मंदिर के द्वार तीन दिनों तक बंद रहते है।
  2. तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र

    • कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधना के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ कई तांत्रिक और साधु विशेष अनुष्ठान करते हैं।
    • माना जाता है कि यहाँ किए गए तंत्र-मंत्र साधना अत्यधिक प्रभावी होते हैं।
  3. स्थापत्य और वास्तुकला

    • यह मंदिर असमिया शैली में निर्मित है और इसका मुख्य गुंबद मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखता है।
    • मंदिर परिसर में माँ कामाख्या के अलावा, दस महाविद्याओं (काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला) के भी छोटे मंदिर हैं।

कैसे पहुँचे?

  • गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • लोकप्रिया गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है।
  • स्थानीय टैक्सी, ऑटो और बसों से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।

कामाख्या मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ

  • यहाँ माता की कृपा से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
  • संतान प्राप्ति, विवाह बाधा निवारण और शक्ति साधना के लिए विशेष रूप से इस मंदिर की पूजा की जाती है।
  • यहाँ माँ के दर्शन मात्र से भक्तों को आध्यात्मिक बल और ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • तांत्रिक साधना का केंद्र: कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ विशेष अनुष्ठान और साधनाएँ की जाती हैं।

मंदिर का इतिहास

कामाख्या मंदिर का उल्लेख कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में मिलता है। समय-समय पर इस मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे इसकी वास्तुकला में विभिन्न शैलियों का समावेश देखा जा सकता है।

दर्शनीय स्थल

मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

भारत के ये चमत्कारी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी घटनाओं से भरे हुए हैं। क्या आप इनमें से किसी के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं?

 भारत के ये चमत्कारी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी घटनाओं से भरे हुए हैं। क्या आप इनमें से किसी के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं?

भारत में कई चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर हैं, जो अपनी अनोखी विशेषताओं और अद्भुत घटनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ कुछ प्रमुख चमत्कारी मंदिरों की सूची दी गई है:

1. कामाख्या मंदिर (असम)

यह मंदिर माँ कामाख्या को समर्पित है और इसे शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ माँ सती की योनि गिरी थी, और विशेष बात यह है कि मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक चट्टान से हर साल जून में प्राकृतिक रूप से रक्तस्राव होता है।

2. मेहंदीपुर बालाजी (राजस्थान)

यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है और भूत-प्रेत बाधा को दूर करने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आने वाले लोग भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति पाने के लिए विशेष अनुष्ठान करवाते हैं।

3. श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल)

इस मंदिर में सोने का अद्भुत खजाना छिपा हुआ है, जिसकी कीमत खरबों में आंकी गई है। इसके तहखानों में बंद दरवाजों के पीछे की रहस्यमयी दुनिया को अब तक पूरी तरह नहीं खोला गया है।

4. ज्वाला देवी मंदिर (हिमाचल प्रदेश)

इस मंदिर में देवी की प्रतिमा के स्थान पर धरती से स्वतः प्रकट हुई अग्नि की लपटें जलती रहती हैं, जो कभी बुझती नहीं हैं। इसे माँ ज्वालामुखी का चमत्कार माना जाता है।

5. कैलाश मानसरोवर और मणिमहेश मंदिर (हिमालय)

कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव साक्षात निवास करते हैं। मानसरोवर झील और मणिमहेश झील में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।

6. चमत्कारी शिवलिंग – महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन)

यहाँ के शिवलिंग पर जल चढ़ाते ही जल अपने आप अदृश्य हो जाता है। यह रहस्य आज भी विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है।

7. विश्व प्रसिद्ध ओंकारेश्वर मंदिर (मध्य प्रदेश)

यहाँ शिवलिंग अपने आप आकार बदलता रहता है और किसी न किसी रूप में दर्शन देता है।

8. शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र)

यहाँ स्थापित शनि देव की मूर्ति खुले आसमान के नीचे है, और इस गाँव के किसी भी घर में दरवाजे नहीं हैं, फिर भी आज तक यहाँ कोई चोरी नहीं हुई।

9. लेपाक्षी मंदिर (आंध्र प्रदेश)

इस मंदिर में एक रहस्यमयी खंभा है जो जमीन को नहीं छूता और हवा में लटका हुआ है।

10. कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर (केरल)

यह मंदिर माँ भगवती को समर्पित है, और यहाँ एक विशेष अनुष्ठान में भक्त देवी को लाल रंग के कपड़े अर्पित करते हैं।

भारत के ये चमत्कारी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा और रहस्यमयी घटनाओं से भरे हुए हैं। क्या आप इनमें से किसी के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं?

शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

कुंभ स्नान क्या होता है,इसका महत्व क्या है?

                       कुंभ स्नान क्या होता है,इसका महत्व क्या है?


"कुंभ" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है घड़ा या कलश। यह शब्द विभिन्न संदर्भों में उपयोग किया जाता है:

1. कुंभ मेला

कुंभ मेला भारत का एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) पर 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है।

2. ज्योतिष में कुंभ (राशि)

कुंभ भारतीय ज्योतिष में बारह राशियों में से एक राशि है। इसे अंग्रेज़ी में "Aquarius" कहते हैं। यह राशि शनि ग्रह द्वारा शासित मानी जाती है और इसका प्रतीक एक घड़ा लिए हुए व्यक्ति होता है।

3. संस्कृति और धार्मिक संदर्भ

धार्मिक अनुष्ठानों में कुंभ (कलश) का विशेष महत्व होता है। इसे शुभता, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ में जल से भरे कुंभ का उपयोग किया जाता है।

कुंभ स्नान कुंभ मेले के दौरान गंगा, यमुना, सरस्वती और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में किया जाने वाला धार्मिक स्नान है। इसे हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यह स्नान आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

महत्व:

  • ऐसा माना जाता है कि कुंभ स्नान पापों से मुक्ति दिलाता है।
  • यह आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है।
  • धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ स्नान के समय देवता और ऋषि भी इन नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं।

कुंभ मेला स्थान और आयोजन:

कुंभ मेला भारत के चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है:

  1. हरिद्वार: गंगा नदी
  2. प्रयागराज: त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती)
  3. उज्जैन: शिप्रा नदी
  4. नासिक: गोदावरी नदी

स्नान तिथियों का महत्व:

कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान तिथियां विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती हैं। इनमें मुख्य स्नान जैसे मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, माघी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि होते हैं।

धार्मिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ था। उस समय अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक) पर गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए।

प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। इस दौरान कई प्रमुख शाही स्नान तिथियां हैं, जिनमें से कुछ पहले ही संपन्न हो चुकी हैं। आगामी शाही स्नान तिथियां निम्नलिखित हैं:

  • बसंत पंचमी: 3 फरवरी 2025 (सोमवार)
  • माघ पूर्णिमा: 13 फरवरी 2025 (गुरुवार)
  • महाशिवरात्रि: 26 फरवरी 2025 (बुधवार)

महाशिवरात्रि के दिन, 26 फरवरी 2025, महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान होगा, जिसके साथ मेले का समापन भी होगा।

हाल ही में, 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के अवसर पर आयोजित शाही स्नान के दौरान अत्यधिक भीड़ के कारण एक दुखद घटना घटी।

यदि आप महाकुंभ मेले में शामिल होने की योजना बना रहे हैं, तो कृपया सुरक्षा निर्देशों का पालन करें और स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी की गई सलाह का ध्यान रखें।

144 साल से क्या तात्पर्य है?

जब समुद्र मंथन हुआ था तो वह 12 दिन तक चला था देवताओं का एक दिन हमारे 12 साल के बराबर होता है। इसलिए 12 दिन को अगर हम 12 से गुना करेंगे तो 144 आएगा। इसलिए 144 साल बाद यह वही तिथि है जब समुद्र मंथन हुआ था यह तिथि 144 साल बाद आती है।

बुधवार, 29 जनवरी 2025

कोई भी टेंशन दिमाग से नहीं निकाल पाते हैं क्या करूं?/koi bhi tension dimag se nahin nikal paata hun kya karun

     कोई भी टेंशन दिमाग से नहीं निकाल पाते क्या करूं?


 हमें अपने दिमाग को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। खाली दिमाग है तो गंदगी ही तो भरेगा,जितनी nagative विचार इकठ्ठा कर सकता है करेगा। अगर हम परमात्मा का चिंतन करेंगे तो सारी नकारात्मकता डिलीट हो जाएगी, अगर हमें कोई भी व्यक्ति ऐसा मिलता है जिसने कभी हमको गलत बोला हो तो, वह हमें जब भी मिलेगा तो हमें पुरानी सारी बातें फिर याद आ जाएगी। इसलिए सभी द्वेष को खत्म कर दो और भगवत चिंतन करो, आनंद पूर्वक भगवत चिंतन के बिना ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे आप अपने दिमाग की टेंशन को निकाल सको। अध्यात्म के बिना आप इन सब नेगेटिव बातों को खत्म नहीं कर सकते, कितनी भी भारी से भारी समस्याएं हो, भारी से भारी विपत्ति को हम नष्ट कर सकते है भगवान के चिंतन के द्वारा। चाहे राम जपो, कृष्ण जपों ,जो भी नाम प्रिय हो उसका जाप करो। अपने दिमाग को व्यस्त रखो, इसे खाली छोड़ोगे  तो यह हर समय टेंशन ही देगा।

बिना जाप के आपकी किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता

है। यह संसार शोक का धाम है, चारों ओर कामनाओं का जाल बिछा हुआ है। एक कामना खत्म होती हैं तो दूसरी खड़ी हो जाती है। बार-बार उसी कामनाओं व इच्छा को पूरी करते-करते हमारी आयु पूर्ण हो जाती है और हमें पता भी नहीं चलता । इसलिए समय रहते ईश्वर का जप करना शरू कर देना चाहिए,और अपने इस शरीर के जन्म को सार्थक कर लेना चाहिए।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

विनती व प्रार्थना का क्या महत्व हैं? /vinti v prarthna ka mahtav/ परमार्थ के पत्र पुष्प में से

          विनती व प्रार्थना का सबसे बड़ा महत्व है।

विनती और प्रार्थना का महत्व – व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक, और आध्यात्मिक जीवन में गहरी भूमिका निभाता है। इसका महत्व विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:

1. आध्यात्मिक महत्व

  • आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का माध्यम होता है।
  • ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है।
  • नकारात्मक विचारों को दूर कर मन की शांति प्रदान करता है।

2. भावनात्मक और मानसिक महत्व

  • मनोबल को बढ़ाने में सहायक होती है।
  • चिंताओं और तनाव को कम करती है।
  • आत्मविश्वास और धैर्य बढ़ता है।

3. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

  • सामूहिक प्रार्थनाएं सामाजिक एकता को बढ़ावा देती हैं।
  • धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में प्रार्थना का विशेष स्थान होता है।

4. आत्मचिंतन और आत्मनियंत्रण का साधन

  • व्यक्ति को आत्मविश्लेषण करने का अवसर मिलता है।
  • मनोबल और अनुशासन को प्रोत्साहन मिलता है।

  • दादा गुरु भक्तमलीजी के श्री मुख से विनती व प्रार्थना के महत्व पर विचार 

रामायण भागवत में स्तुति प्रकरण ही अधिक है।स्तुति में भगवान के स्वरूप का दया,क्षमा,करुणा का वर्णन हैं तथा भक्त अपनी दयनीय अवस्था का वर्णन करता हैं तब भगवान और भक्त दोनों ही संतुष्ट हो जाते हैं।एक दूसरे के समीप पहुंच जाते हैं।माता कुंती ने कहा कि जीव के बिना इंद्रियां शक्तिहीन हो जाती है वैसे ही आप के बिना यादवों का और पांडवों का कोई भी अस्तित्व नहीं रह जाता है।आपके चरण स्पर्श से पृथ्वी हरी भरी हैं।लता,वृक्ष,वन,पर्वत बढ़ रहे है।आपके वियोग में सब श्रीहीन हो जाएंगे।मेरी ममता पांडवों में और यदुवंशियों में बढ़ गई है।इस पारिवारिक स्नेह बंधन को आप काट दीजिए।जैसे गंगा की अखंड धारा समुद्र से मिलती रहती है उसी तरह मेरी चित्तवृत्ति किसी दूसरी और न जाकर आप में ही निरंतर प्रेम करती रहें।आप चराचर के गुरु हैं।आपकी शक्ति अनंत हैं। गाय,विप्र,और देवताओं का दुख मिटाने के लिए आपने अवतार ग्रहण किया है।आपको बार बार सदा नमस्कार हैं।इस प्रकार भक्तों के द्वारा की गई स्तुतियों से तथा अपनी भाषा में अपने ह्रदय के भाव को अर्पण करते हुए नित्य स्तुति करनी चाहिए।

निष्कर्ष

विनती और प्रार्थना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह आत्मिक शक्ति और मानसिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होती हैं।

जय श्री राधे।।

दादा गुरु श्री भक्तमाली जी के श्री मुख से

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