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रविवार, 13 जुलाई 2025

ramraksha stotra in sankrit

 राम रक्षा स्तोत्र एक शक्तिशाली संस्कृत स्तोत्र



राम रक्षा स्तोत्र एक शक्तिशाली संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना महर्षि बुद्धकौशिक ने की थी। यह स्तोत्र भगवान श्रीराम की कृपा और रक्षा प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है। इसे श्रद्धा से प्रतिदिन पाठ करने से भय, रोग, बाधा, भयभीत करने वाली शक्तियाँ तथा नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती हैं।

 रामरक्षा स्तोत्र (पूर्ण पाठ) 

श्री गणेशाय नमः।

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य
बुद्धकौशिक ऋषिः।
श्रीसीता रामचन्द्रो देवता।
अनुष्टुप् छन्दः।
सीता शक्तिः।
श्रीमद्हनुमान कीलकम्।
श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः॥

१.

ॐ श्रीरामं रमणं मेणि रामं रम्यं भजे सदा।
रामेणाभिहितं स्तोत्रं रामरक्षा शुभप्रदम्॥

२.

ध्यानम् –
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्॥

३.

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥

४.

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥

५.

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥

६.

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥

७.

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥

८.

जिव्हां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥

९.

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥

१०.

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥

११.

जानुनी सेतुकृद्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥

१२.

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥

१३.

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।
न द्रष्टुं अपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥

१४.

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥

१५.

जगज्जत्रं महेशानं कोटिसूर्यसमप्रभम्।
एकबाणेन संहर्तुं सदा रामं नमाम्यहम्॥

१६.

रामाज्ञया चतुर्युगं तपो ज्ञानं च धारयन्।
रामरक्षा कृता तेन धर्मात्मना महात्मना॥

श्रीरामराम रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥

।।जय सियाराम।।

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