सावन में भगवान भोलेनाथ (शिवजी) की पूजा विशेष रूप से क्यों की जाती है।
इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और प्राकृतिक तीनों दृष्टिकोणों से गहरे कारण हैं:
1. पौराणिक कारण:
- समुद्र मंथन और विषपान: पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब "हलाहल विष" निकला तो पूरी सृष्टि संकट में पड़ गई। भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए वह विष पी लिया। यह घटना सावन मास में ही हुई थी। विष के प्रभाव से भगवान शिव का शरीर जलने लगा, और देवताओं ने उन्हें शांत रखने के लिए गंगाजल चढ़ाया और बिल्वपत्र अर्पित किए। तभी से सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक और बिल्वपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
2. भगवान शिव और पार्वती का विवाह:
- मान्यता है कि देवी पार्वती ने सावन मास में ही कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए सावन को शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। इस कारण महिलाएं शिवजी की पूजा कर अपने पति के दीर्घायु व सौभाग्य की कामना करती हैं, और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं।
3. प्राकृतिक कारण:
- सावन मास वर्षा ऋतु का समय है। यह समय शरीर और मन को शुद्ध करने का है। जल से शिव का अभिषेक करना प्राकृतिक रूप से भी ताजगी और शांति का अनुभव देता है। साथ ही, इस समय प्रकृति हरी-भरी होती है और शिव को प्रकृति का स्वामी माना गया है – वे कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं, जो स्वयं एक प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है।
4. श्रावण मास में सोमवार व्रत का महत्व:
- सावन के सोमवार व्रत (श्रावण सोमवार) अत्यंत फलदायक माने जाते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मास में सोमवार को व्रत कर शिवजी की आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
5. ज्योतिषीय कारण:
- श्रावण मास के दौरान चंद्रमा की स्थिति शिव से जुड़ी मानी जाती है, और चंद्रमा शिवजी के मस्तक पर विराजमान हैं। इसलिए चंद्रमा और शिव की उपासना इस मास में मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभदायक मानी जाती है।
निष्कर्ष:
सावन भगवान शिव का प्रिय मास है, जिसमें उनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह मास भक्ति, तपस्या और आंतरिक शुद्धिकरण का समय है, जो व्यक्ति को आत्मिक रूप से मजबूत करता है।
।।सांब सदाशिव।।
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जय श्री राधे