
इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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बुधवार, 16 दिसंबर 2015
परमार्थ क पत्र - पुष्प भाग 1
( परमार्थ के पत्र - पुष्प) हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।
हमारे गुरुदेव पुज्य श्री मलूक पीठाधीश्वर परम पूज्य श्री राजेन्द्र दासजी महाराज जी ने हमें एक पुस्तक दी, जिसमे हमारे दादा गुरु श्री भक्ततमाली जी द्वारा सत्संग के कुछ अंश हैं जो मैं आपके समक्ष रख रही हूँ। जिसके द्वारा हमे जीवन में कई महत्व पूर्ण सन्देश मिलेंगे।
हमारे गुरुदेव पुज्य श्री मलूक पीठाधीश्वर परम पूज्य श्री राजेन्द्र दासजी महाराज जी ने हमें एक पुस्तक दी, जिसमे हमारे दादा गुरु श्री भक्ततमाली जी द्वारा सत्संग के कुछ अंश हैं जो मैं आपके समक्ष रख रही हूँ। जिसके द्वारा हमे जीवन में कई महत्व पूर्ण सन्देश मिलेंगे।
हमारे दादा गुरु कहते हैं कि भारतीय जनता कर्म भूमि में जन्म पाकर धन्य- धन्य हो जाती हैं। हम लोग जंक्शन पर खड़े हैं। सब और को जाने वाली गाड़ियाँ खड़ी हैं (ब्रह्म लोक , विष्णु लोक, साकेत वैकुण्ठ , रमावैकुंठ , गोलोक,शिवलोक , पितृलोक , नरक भी हैं। )जहाँ जाना चाहो वहाँ का टिकट लो अथार्त उसी प्रकार के कर्म करो। कर्मो के अनुसार नरक -स्वर्ग को हम जा सकते हैं। मोक्ष यानि ब्रह्मलीन भी हो सकते हैं। जिसकी जैसी रूचि हो वह वैसा पुण्य करे या पाप करें। वेद पुराण और शास्त्र कहते हैं यदि दुसरो को दुःख दोगे तो नरक में जाना पड़ेगा। सुख दोगें तो स्वर्ग वैकुण्ठ मिलेगा। संसार के सभी प्राणी परमात्मा की संतान हैं। अतः अपने हैं। ऐसा समझ कर दया , सच्चाई के साथ व्यवहार करने से श्री सीतारामजी प्रसन्न होते हैं।
श्री सीताराम।
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