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शुक्रवार, 13 जून 2025

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ

                   गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ


गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में आता है। इसमें एक गजराज (हाथी) संकट में पड़कर भगवान विष्णु से प्रार्थना करता है। यह स्तोत्र बहुत प्रभावशाली है और संकट के समय भगवान की शरणागति का सर्वोत्तम उदाहरण है।

यहाँ गजेंद्र द्वारा किया गया स्तोत्र दिया गया है:

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र

श्रीगजेंद्र उवाच—

ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादि-बीजाय पारेसायाभिधीमहि ॥१॥

यस्येच्छया ततः सृष्टं येनैव पतितं स्वयम्।
यस्मिन् चोत्तिष्ठते चैदं यस्मिंश्चायतमेश्वरम्॥२॥

योऽन्तः प्रविशतं ज्ञात्वा बीजं सन्तान-कारणम्।
सर्वेषां जीवनामेष सततम्परिपश्यति॥३॥

तं आत्मानं स्वयंज्योतिर्निर्मलं परमं विभुम्।
निर्गुणं गुणभोक्‍त्रं च मनीषिणो मे गतिं विदुः॥४॥

न यं विदन्ति तत्त्वेन तास्य शक्त्यः स्वपारगाः।
स एको भाव्यवस्तुत्वाद् विभत्यैक: स्वराडिव॥५॥

देहमनः प्राणदृशो भूतैर्महदादिभिः।
स्वकर्मक्लेशसंयुक्तमात्मानं मन्यतेऽवितः॥६॥

स ईश्वर: मे भगवाञ्छास्त्रचक्षुरनावृतः।
अनन्तोऽन्यानुपश्यन् मां आत्मस्थोऽनुविधीयताम्॥७॥

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्तद्
नमः परेभ्योऽथ च दक्षिणायै।
नमः क्षिप्रैः पथि भूम्याश्चोर्ध्वं
नमोन्तर्हित एष सर्वतः॥८॥

सर्वात्मकः सर्वगतोऽप्यजस्रं
सर्वेन्द्रियाणां करणं न गूढः।
सर्वेषु भूतेषु गुणानुवृत्तो
गुणाश्रयो निर्गुण एष आद्यः॥९॥

काला: स्वभावो नियति: सृष्टिस्तपः
सम्भाव्य आत्मा मनसो परस्य।
जन्मापवर्गौ व्रजतामतिष्ठन्
नान्योऽतोऽस्यार्हति भूयसे वः॥१०॥

स नः समीरस्त्वजसाभिपन्नो
निर्हार्य मायागुणभोत्रदीर्घः।
संसारचक्रं भगवन् निरीह
भोक्तुं प्रपन्नमपवर्गमृच्छ॥११


यह रहा गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का भावपूर्ण हिंदी अर्थ, जो भगवान विष्णु से गजराज द्वारा की गई मार्मिक प्रार्थना है:

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र – हिंदी भावार्थ सहित

गजेंद्र ने कहा:

१.
ॐ मैं उस परमेश्वर को नमस्कार करता हूँ, जो समस्त चेतन तत्वों का आधार है, जो पुरुष (परमात्मा) है, जो समस्त सृष्टि का आदिकारण है और जो इस संपूर्ण जगत का स्वामी है।

२.
जिनकी इच्छा से यह संसार उत्पन्न हुआ, जिसमें यह स्थित है और जिसमें अन्त में विलीन हो जाता है, उन्हीं परमेश्वर का मैं ध्यान करता हूँ।

३.
जो सबके भीतर स्थित हैं, जो सबके जीवन का कारण हैं, और जो सदा सभी जीवों का निरीक्षण करते रहते हैं – वे ही परमात्मा मेरी शरण हैं।

४.
वे आत्मा स्वयं प्रकाशमान हैं, निर्मल हैं, परम विभु (सर्वव्यापक) हैं, गुणों से रहित होते हुए भी जो गुणों का उपभोग करते हैं – मुनिजन उन्हीं को अपनी गति (परम लक्ष्य) मानते हैं।

५.
जिन्हें उनकी ही शक्तियाँ (प्रकृति, माया आदि) पूर्णतः नहीं जान सकतीं – वे एकमात्र सत्यस्वरूप हैं और अपनी महिमा से अनेक रूपों में प्रकट होते हैं।

६.
जो अज्ञानी जीव आत्मा को शरीर, मन, प्राण और इन्द्रियों से युक्त समझते हैं – यह भ्रांति ही संसार की जड़ है।

७.
हे ईश्वर! आप ही मेरे शास्त्रस्वरूप नेत्र हैं, आप ही सर्वत्र व्याप्त हैं, आप ही सर्वज्ञ हैं – कृपा करके मुझ पर दृष्टि डालें और मुझे इस संकट से मुक्त करें।

८.
आपको मैं आगे, पीछे, दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे और चारों ओर नमस्कार करता हूँ – क्योंकि आप सबमें समाए हुए हैं और फिर भी सबसे परे हैं।

९.
आप ही सर्वव्यापक हैं, आप समस्त इन्द्रियों के मूल कारण हैं, आप स्वयं कभी अदृश्य नहीं होते, बल्कि सब कुछ देख रहे होते हैं। गुणों में स्थित होकर भी आप निर्गुण हैं।

१०.
काल, स्वभाव, नियम, सृष्टि, तपस्या, आत्मा और मन – ये सब आपके ही अंश हैं। जन्म और मोक्ष भी आपके अधीन हैं। आपसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है।

११.
हे प्रभो! मैं माया और कर्म के इस जाल में फँस गया हूँ। आप ही मुझे इस संसार-चक्र से मुक्त करें। मैं आपकी शरण में आया हूँ – आप मुझे मोक्ष प्रदान करें।



बुधवार, 4 जून 2025

निर्जला एकादशी

                         निर्जला एकादशी 


निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में सबसे पुण्यकारी और कठिन एकादशी मानी जाती है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, और इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति बिना जल के (निर्जल) उपवास करता है, इसलिए इसका नाम "निर्जला एकादशी" पड़ा है।

📅 निर्जला एकादशी 2025 में कब है?

तारीख: शनिवार, 7 जून 2025
पारण समय: 8 जून को प्रातः पारण किया जाता है (सूर्योदय के बाद)

🌸 व्रत का महत्व:

  • यह एकादशी भीमसेनी एकादशी भी कहलाती है, क्योंकि महाभारत के भीम ने इसी एकादशी का व्रत किया था।
  • जो व्यक्ति वर्ष भर की सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता, यदि वह सिर्फ निर्जला एकादशी का विधिपूर्वक पालन करे, तो उसे सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
  • इस दिन व्रती को जल तक ग्रहण नहीं करना होता — यह व्रत शारीरिक और मानसिक तप का प्रतीक है।

🪔 व्रत विधि:

  1. प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  2. श्री हरि विष्णु की पूजा करें — तुलसी पत्र, पीले फूल, फल अर्पित करें।
  3. व्रत के दौरान जल और अन्न का त्याग करें (संकल्प अनुसार)।
  4. रात्रि में जागरण करें और भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें।
  5. द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें (जरूरतमंदों को भोजन या दान देना पुण्यकारी होता है)।

🙏 विशेष लाभ:

  • पापों से मुक्ति
  • जल से वंचित जीवों की पीड़ा को महसूस कर सहानुभूति का विकास
  • आत्म-नियंत्रण और प्रभु भक्ति में दृढ़ता
  • मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • ।।ॐ नमः भगवते वासुदेवाय।।


सोमवार, 2 जून 2025

जब मन बहुत दुखी हो निराश हो तो क्या करें?

     जब मन बहुत दुखी हो निराश हो तो क्या करें?


जब मन बहुत दुखी और निराश होता है, तो वह स्थिति भीतर से हिला देती है — ऐसा लगता है जैसे कोई सहारा नहीं है, कोई रास्ता नहीं है। यह एक गहरी पीड़ा होती है। लेकिन यही समय होता है जब आत्मा सच में ईश्वर के सबसे पास होती है। इस स्थिति में कुछ बातें मदद कर सकती हैं:

🌼 1. ठाकुर जी (ईश्वर) से सीधा संवाद करें

आप उनसे रोकर, बोलकर, मन में या आंखें बंद करके बात करें जैसे एक मित्र से करती हैं।
कुछ कहें जैसे:

"ठाकुर जी, मैं बहुत थक गई हूं… आप ही सहारा हैं। मुझे अपनी गोदी में ले लीजिए।"

जब आप उनका नाम लेकर सच्चे मन से पुकारती हैं, तो कुछ न कुछ भीतर जरूर बदलता है।

🧘 2. गहरी सांस लें और शांत बैठें (मन को थामें नहीं, देखें)

मन को रोकने की कोशिश मत करें, बस देखिए — "हां, दुख है... निराशा है..."
लेकिन साथ ही खुद से कहें:

"मैं इस दुख नहीं हूं, मैं इसे देख रही हूं — इसका गवाह हूं।"

यह अभ्यास धीरे-धीरे आपको उस आत्मा से जोड़ता है जो अजर-अमर है, शांत है।

📿 3. नाम स्मरण करें (जप)

जो नाम आपके हृदय को शांति देता है, उसका जप करें। जैसे:

  • "श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव"
  • "राम राम राम…"
  • "ॐ नमः भगवते वासुदेवाय"

नाम में शक्ति है, यह मन की गंदगी धो देता है।

📖 4. कुछ शांति देने वाले भक्ति ग्रंथ पढ़ें

जैसे:

  • भागवत गीता (विशेषकर अध्याय 2, श्लोक 47-70)
  • रामचरितमानस के सुंदरकांड या अरण्यकांड
  • व्रज की लीलाएं, जैसे मीरा, सूरदास की रचनाएं

🌄 5. प्रकृति के पास जाएं

अगर संभव हो तो सुबह या शाम अकेले टहलें, किसी पेड़ के पास बैठें।
प्रकृति भी भगवान का ही स्वरूप है, वह मन को गहराई से शांति देती है।

🫶 6. मन की बात किसी भरोसेमंद से साझा करें

कभी-कभी मन की गांठ सिर्फ बोल देने से खुल जाती है। अगर कोई नहीं है, तो डायरी में लिखें, या मुझसे भी बात कर सकती हैं — मैं हमेशा सुनूंगी, बिना कोई निर्णय लिए।

🙏 7. आत्मा से बात करें — "मैं क्यों आई हूं?"

यह प्रश्न अपने आप से करें:

"क्या मैं सिर्फ दुख सहने आई हूं? या ठाकुर जी से मिलने?"

आपको जवाब मिलेगा — "मैं उसी प्रभु से मिलने आई हूं, और यह दुख मेरे मार्ग को साफ करने आया है।"

एक अंतिम बात:

दुख हमेशा बीत जाता है।
जैसे रात बीतती है, वैसे ही यह समय भी जाएगा।
आप अकेले नहीं हैं — ठाकुर जी हर पल साथ हैं, बस उनसे एक बार पुकार भर लें।

अगर आप चाहें, मैं आपको रोज़ या हर हफ्ते एक छोटा-सा "ध्यान वाक्य" या "प्रेम पत्र ठाकुर जी को" भेज सकती हूँ जो आपके मन को शांति देगा।मुझे कमेंट करके बताइए।

।।जय श्री राधे।।

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