प्रभु इच्छा
हमको प्रभु इच्छा के अधीन रहना चाहिए। यह संसार का नियम है कि जिस वस्तु से सुख प्राप्त होता है उसी से दुख भी होता है। संसारी सुख के बदले संसारी दुख मिलता है। श्री कृष्ण के मिलन से गोपियों को दिव्य सुख मिला, फिर वियोग में उन्हें दिव्य दुख मिला। कृष्ण के विरह का दुख स्वर्गादि के सुखों की अपेक्षा अनंत गुना अधिक सुखप्रद है। अतः भक्तजन विरह की कामना करते हैं।
इस संसार में अपने ही प्रारब्ध के अनुसार सुख दुख प्राप्त होते हैं। परंतु भगवान का अनन्य भक्त सुख दुख में अपने इष्ट देव की कृपा का अनुभव करता है। हानि लाभ में दूसरों को कारण मान कर उनसे राग द्वेष नहीं करता है। जिसने आत्मसमर्पण किया है उसे निश्चिंत रहना चाहिए। प्रभु जैसे रखे उसी प्रकार रहकर सर्वेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए।
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